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Tuesday, 12 November, 2024
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शहरी भूमि और संपत्ति रिकॉर्ड को बेहतर बनाएगी मोदी सरकार, 8-9 राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट की योजना

अधिकांश शहरों में भूमि और संपत्ति रिकॉर्ड सिस्टम मैन पावर की कमी और कई प्राधिकरणों के शामिल होने जैसे कारणों की वजह से अपडेट नहीं किए गए हैं. सरकार भू-स्थानिक रूप से सक्षम रिकॉर्ड बनाने की योजना बना रही है.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि और संपत्ति रिकॉर्ड के सिस्टम को आधुनिक बनाने के बाद, नरेंद्र मोदी सरकार अब शहरी क्षेत्रों में भूमि की खरीद-बिक्री में पारदर्शिता लाने के लिए भू-स्थानिक (geo-spatially) रूप से सक्षम भूमि और संपत्ति स्वामित्व रिकॉर्ड बनाने की पहल की योजना बना रही है.

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भूमि से संबंधित मामलों के लिए ज़िम्मेदार ग्रामीण विकास मंत्रालय का भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) योजना को अंतिम रूप देने से पहले चुनौतियों को समझने के लिए लगभग नौ राज्यों में एक पायलट प्रोजेक्ट की योजना बना रहा है.

यह केंद्र सरकार की दो महत्वपूर्ण योजनाओं – डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड्स मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम (DILRMP) और सर्वे ऑफ विलेजेज एंड मैपिंग विद इम्प्रोवाइज्ड टेक्नोलॉजी इन विलेज एरियाज (SVAMITVA) योजना के सफल कार्यान्वयन के बाद आया है, जिसका उद्देश्य क्रमशः ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के टुकड़ों और आवासीय क्षेत्रों के लिए भूमि रिकॉर्ड को आधुनिक बनाना है.

यह नई पहल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अपने चुनावी घोषणापत्र में “डिजिटल शहरी भूमि रिकॉर्ड प्रणाली के निर्माण का कार्य” करने के वादे के अनुरूप है. इस महीने की शुरुआत में ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद, शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों से भाजपा द्वारा अपने घोषणापत्र में किए गए वादों के कार्यान्वयन पर काम शुरू करने को कहा था.

सरकार पिछले साल से ही शहरी भूमि रिकॉर्ड के जटिल मुद्दे को सुलझाने के तरीके तलाश रही है. पिछले साल जून में, सरकार के शीर्ष नीतिगत मुद्दों की थिंक टैंक नीति आयोग ने DILRMP को लागू करने के लिए जिम्मेदार आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) व ग्रामीण विकास मंत्रालय को शहरी भूमि रिकॉर्ड को कारगर बनाने के संभावित समाधानों का पता लगाने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ परामर्श बैठक आयोजित करने के लिए कहा था.

दिसंबर 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मुख्य सचिवों की बैठक के दौरान भी इस मामले पर चर्चा की गई थी.

ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में पायलट प्रोजेक्ट के लिए, DoLR कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों द्वारा अपनाए गए विभिन्न मॉडलों पर विचार कर रहा है, जिनके पास अच्छी शहरी भूमि रिकॉर्ड प्रणाली है.

वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि अधिकांश शहरों में भूमि स्वामित्व रिकॉर्ड लगातार भूमि और संपत्ति की खरीद-बिक्री के बावजूद अपडेट नहीं किए जाते हैं. भूमि अधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि लोग संपत्ति की खरीद-बिक्री को पंजीकृत करवाते हैं, लेकिन यह परिवर्तन राजस्व या भूमि रिकॉर्ड में दिखाई नहीं देता है क्योंकि म्यूटेशन (प्रत्येक बिक्री और खरीद के बाद भूमि स्वामित्व को बदलने की प्रक्रिया) अनिवार्य नहीं है.

ग्रामीण विकास मंत्रालय एक ऐसी योजना लाने की योजना बना रहा है जिसके तहत शहर में प्रत्येक भूमि भूखंड को भूस्वामियों के विवरण के साथ मैप किया जाएगा.

मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, “विचार यह है कि संपत्ति मालिकों को एक ही संपत्ति कार्ड जारी किया जाए जिसमें भूमि से संबंधित विवरण होंगे. अधिकांश शहरों में, भूमि रिकॉर्ड अपडेट नहीं किए गए हैं. हम भू-स्थानिक रूप से सक्षम भूमि स्वामित्व रिकॉर्ड बनाने की योजना बना रहे हैं. इसमें ड्रोन या सैटेलाइट इमेज का उपयोग करके सर्वेक्षण के माध्यम से प्रत्येक भूखंड की सीमाओं को चिह्नित किया जाएगा. शहर प्रशासन उनके द्वारा प्रदान किए गए दस्तावेजों के आधार पर मालिकों की पहचान करने के लिए जमीनी सर्वेक्षण करवाएगा,

एक अधिकारी ने कहा कि उदाहरण के लिए, अगर किसी जमीन पर तीन फ्लैट हैं, तो हवाई सर्वेक्षण के ज़रिए प्लॉट की सीमा को चिह्नित किया जाएगा और ज़मीनी सर्वेक्षण के बाद संपत्ति के विवरण के साथ तीनों फ्लैट मालिकों के नाम ज़मीन रिकॉर्ड में दर्ज किए जाएँगे.

अधिकारी ने आगे कहा, “हम पायलट प्रोजेक्ट के विवरण पर काम कर रहे हैं. हम कुछ राज्यों की भूमि रिकॉर्ड प्रणाली का अध्ययन कर रहे हैं, जिन्होंने अच्छा काम किया है. हमारी योजना आठ-नौ राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट करने की है.”


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‘अधिकांश शहरों में भूमि रिकॉर्ड अपडेट नहीं हैं’

ग्रामीण क्षेत्रों के विपरीत, दिल्ली सहित अधिकांश शहरों में भूमि और संपत्ति रिकॉर्ड सिस्टम कई कारणों से अपडेट नहीं हैं, जैसे कि मैन पावर की कमी, ढेर सारे अधिकारियों का हस्तक्षेप और क्षेत्रों का बार-बार अधिकार क्षेत्र बदलना आदि.

पिछले साल ‘अर्बन लैंड एंड प्रॉपर्टी रिकॉर्ड सिस्टम इन इंडिया: दि केस एंड एजेंडा फॉर रिफॉर्म’ शीर्षक से एक पॉलिसी ब्रीफ में, एक शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान, इंडियन इन्स्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट (IIHS), ने शहरी भूमि रिकॉर्ड सिस्टम में अंतराल के कारणों पर प्रकाश डाला.

दीपिका झा, मनीष दुबे और अमलानज्योति गोस्वामी द्वारा लिखित पॉलिसी ब्रीफ में कहा गया है, “भारतीय शहरों में चार व्यापक तरह के शहरी भूमि और संपत्ति के रिकॉर्ड मौजूद हैं. इन्हें उनके प्रारूप, संरक्षक एजेंसी और स्थिति के आधार पर व्यापक रूप से प्रतिष्ठित किया जाता है.”

ये चार प्रकार हैं: जब रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (वह दस्तावेज़ जिसमें स्वामित्व विवरण के साथ भूमि पार्सल का विवरण होता है) या तो गायब हैं या अपडेट नहीं किया गया है; जब आरओआर ग्रामीण प्रारूप में बनाए रखा जाता है और शहरी विशेषताओं को धारण नहीं करता जैसे कि भूमि अत्यधिक विभाजित होती है और मास्टर प्लान के अनुसार निर्धारित विशिष्ट उपयोग होता है; जब आरओआर शहरी प्रारूप में बनाए रखा जाता है; और राजस्व विभाग के अलावा कई संस्थानों द्वारा बनाए गए अलग-अलग रिकॉर्ड, जैसे निगम, औद्योगिक विकास प्राधिकरण और आवास बोर्ड.

पॉलिसी ब्रीफ के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों को शहरीकृत घोषित किए जाने के बाद कुछ राज्यों में भूमि रिकॉर्ड को अपडेट नहीं किया गया है. पॉलिसी ब्रीफ में कहा गया है, “कुछ राज्यों में, क्षेत्रों को शहरीकृत घोषित किए जाने के बाद आरओआर मौजूद नहीं है या अपडेट नहीं किया गया है क्योंकि राजस्व विभाग, जो ग्रामीण भूमि रिकॉर्ड के संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं, शहरी रिकॉर्ड को नगरपालिका या विकास प्राधिकरण की जिम्मेदारी के रूप में देखते हैं.”

लेखकों ने दिल्ली के मामले का हवाला दिया है जहाँ दिल्ली सरकार का राजस्व विभाग “औपचारिक रूप से शहरी दायरे में लाए जाने के बाद गाँवों के लिए भूमि रिकॉर्ड बनाए रखना बंद कर देता है”.

दूसरी चुनौती वर्टिकल डेवलेपमेंट, मिश्रित भूमि उपयोग और भूखंडों के उप-विभाजन जैसे मुद्दों से संबंधित है. ग्रामीण क्षेत्रों के विपरीत, जहाँ एक आवासीय संपत्ति एक भूखंड पर बनाई जाती है, शहरों में अपार्टमेंट, समतल भूखंडों के विकास में कई मालिक, मिश्रित भूमि उपयोग और अनधिकृत कॉलोनियाँ आदि हैं.

अधिकांश शहरों में, अक्सर भूमि की खरीद-बिक्री होती है, और एक भूखंड को अक्सर कई मालिकों के बीच विभाजित किया जाता है. उदाहरण के लिए, यदि एक भूखंड को कई पारिवारिक सदस्यों के बीच विभाजित किया जाता है, तो भूमि रिकॉर्ड में सभी मालिकों के नाम हो सकते हैं, लेकिन कैडस्ट्रल मानचित्र (जो संपत्ति के विवरण वाला मानचित्र है) पर भूमि जोत के स्थान को नहीं दर्शा सकता है.

झा ने दिप्रिंट को बताया, “अधिकांश शहरों में, मैन पावर की कमी और शहरी स्थानीय निकायों को क्षेत्रों के हस्तांतरण सहित विभिन्न कारणों से, राजस्व विभागों ने भूमि रिकॉर्ड को अपडेट करना बंद कर दिया है. इसके कारण, हमारे पास शहरी क्षेत्रों में स्पष्ट लैंड टाइटिल नहीं हैं.”

डीओएलआर की पहल का जिक्र करते हुए झा ने कहा, “यह एक स्वागत योग्य पहल है क्योंकि यह शहरी संपत्ति रिकॉर्ड में अंतराल के संबंध में नीतिगत स्वीकृति और आगे का रास्ता दिखाता है. प्रस्तावित पायलट परियोजनाओं को व्यापक पैमाने पर शुरू किए जाने से पहले सीखने और पाठ्यक्रम सुधार की अनुमति देनी चाहिए.”

जो राज्य अग्रणी हैं

ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक उन कुछ राज्यों में से हैं, जिनके पास शहरी भूमि रिकॉर्ड बनाए रखने की व्यवस्था है. गुजरात और महाराष्ट्र में शहरी भूमि रिकॉर्ड सिटी सर्वे डिवीजन द्वारा बनाए रखे जाते हैं.

गुजरात में प्रक्रिया के बारे में बताते हुए राज्य के राजस्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में राजस्व रिकॉर्ड और संपत्ति के विवरण को डिजिटल कर दिया गया है और डेटा प्रत्येक शहर के सर्वेक्षण कार्यालयों के साथ-साथ राज्य सरकार के ई-नगर पोर्टल, एक नागरिक सेवा पोर्टल पर भी उपलब्ध है.

IIHS की पॉलिसी ब्रीफ के अनुसार, “गुजरात और महाराष्ट्र दोनों ही शहरों और बसे हुए क्षेत्रों के लिए अलग-अलग शहरी भूमि और संपत्ति रिकॉर्ड बनाने और बनाए रखने के लिए संपत्ति कार्ड का उपयोग करते हैं. संपत्ति कार्ड का रखरखाव राज्य राजस्व विभाग की एक अलग इकाई सिटी सर्वे डिवीजन द्वारा किया जाता है.”

लेकिन झा के अनुसार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश (एचपी), ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि रिकॉर्ड एक ही प्रारूप में बनाए जाते हैं.

झा ने कहा, “भूमि रिकॉर्ड प्रणाली इन राज्यों में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच अंतर नहीं करती है… चूंकि रिकॉर्ड प्रारूप समान हैं, इसलिए वे विशिष्ट शहरी प्रक्रियाओं और विवरणों को पकड़ने के लिए संघर्ष करते हैं.”

भूमि अधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि भूमि रिकॉर्ड शीर्षकों को नियमित रूप से अपडेट करने के लिए एक प्रणाली की आवश्यकता है. झा ने कहा, “अपडेट किए गए भूमि रिकॉर्ड की अनुपस्थिति लोगों के लिए एक बड़ी समस्या पैदा करती है जब अदालती मामले होते हैं या सरकार विकास उद्देश्यों आदि के लिए भूमि/संपत्ति अधिग्रहण करने की योजना बनाती है. बेहतर शहरी भूमि और संपत्ति रिकॉर्ड सिस्टम नागरिकों के हितों की कानूनी मान्यता और सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं, खरीद-बिक्री प्रक्रिया से जुड़ी चिंताओं को दूर कर सकते हैं और लंबे समय में भूमि संबंधी विवादों को कम कर सकते हैं.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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