रांची: झारखंड के गांवों में कोविड के हालात हर दिन खराब होते जा रहे हैं. राज्य में डॉक्टरों की भारी किल्लत है. दिक्कत का आलम ये है कि अब कोविड की लड़ाई में झारखंड सरकार को झोलाछाप की मिन्नतें करनी पड़ रही है.
जामताड़ा जिला के जिलाधिकारी ने झोलाछाप डॉक्टरों से कहा है कि वह गांव-गांव जाकर लोगों का प्राथमिक उपचार करें. सरकार उन्हें कोविड किट, ऑक्सीमीटर आदि मुहैया कराएगी. वह लोगों को कोविड जांच, टीका आदि के लिए भी जागरुक करें.
इसके अलावा गुमला, खूंटी जिले में भी सिविल सर्जन ने सभी पीएचसी, सीएचसी के प्रभारियों से कहा है कि अपने प्रखंड में काम करनेवाले झोलाछाप डॉक्टरों की सूची बीडीओ से लें और उनको प्रशिक्षित करें. कोरोना मरीजों को दी जानेवाली दवा और उनके डोज के बारे में जानकारी दें.
जबकि राज्य के स्वास्थ्य सचिव अरुण सिंह ने मीडिया को दिए बयान में साफ कहा है कि कोरोना संक्रमितों का इलाज रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिसनर ही कर सकते हैं. झोलाछाप डॉक्टर नहीं.
‘आप इलाज भी करें और जागरुकता भी फैलाएं’
बीती 9 मई को जामताड़ा जिला मुख्यालय में डीसी फैज अक अहमद मुमताज ने झोलाछाप की बैठक बुलाई. इसमें जिले के 100 से अधिक ऐसे लोग शामिल हुए. जामताड़ा के ग्रामीण चिकित्सक संघ के अध्यक्ष श्यामपद मंडल ने दी प्रिंट को बताया कि, ‘बैठक में डीसी ने उनसे सहयोग करने की अपील की.’ कहा कि ‘आपलोग प्रतिष्ठित आदमी हैं, गांवों में लोग आपका कहा मानते हैं. आपके कहने का ज्यादा असर होगा. आप इलाज भी करें, साथ ही वैक्सीन और कोविड टेस्ट को लेकर जागरुकता भी फैलाएं.’
7,91,042 आबादी वाले जिले में एक सदर अस्पताल के अलावा 4 कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर, 15 प्राइमरी हेल्थ सेंटर, 132 हेल्थ सब सेंटर हैं. ये सब चल रहा है मात्र 35 डॉक्टर के भरोसे. जबकि यहां डॉक्टरों के 89 पद स्वीकृत हैं. इसमें 30 सरकारी और 5 कॉनट्रैक्ट पर हैं. यानी 22,601 आदमी पर एक डॉक्टर हैं. वहीं श्यामपद मंडल के मुताबिक पूरे जिले में लगभग 700 उनके जैसे डॉक्टर हैं.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, झारखंड की आबादी 3.3 करोड़ है. स्वास्थ्य केंद्रों को देखें तो जिला अस्पतालों की संख्या 24, सब डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल 12, कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर (सीएचसी) 188, हेल्थ सब सेंटर 3876 है. यानी प्रति 8,514 एक हेल्थ सब सेंटर है. वहीं नेशनल हेल्थ सर्वे के मुताबिक़ 18,518 व्यक्ति पर एक डॉक्टर हैं.
मेडिकल ऑफिसर के 2224 पद हैं लेकिन 1710 मेडिकल ऑफिसर ही काम कर रहे हैं वहीं सीनियर मेडिकल ऑफिसर के 1201 पद हैं लेकिन 403 सीनियर मेडिकल ऑफिसर ही काम कर रहे हैं.
शहर के लोगों के लिए हॉस्पिटल और गांव के लोग झोलाछाप डॉक्टर के भरोसे?
जामताड़ा के विधायक और झारखंड कांग्रेस के उपाध्यक्ष डॉ इरफान अंसारी कहते हैं, ‘मैं खुद ओपीडी लगाकर हर दिन सौ से अधिक मरीजों का इलाज कर रहा हूं. डीसी ने कब ये आदेश दिए इसकी जानकारी मुझे नहीं है. जब जिले में डॉक्टर ही नहीं हैं, तो डीसी क्या कर सकते हैं. हेल्थ मिनिस्टर ने सभी तरह के ओपीडी बंद करने का आदेश दिया है. अब सामान्य बीमारियों के मरीज इलाज के बगैर भटक रहे हैं, वो ऐसे डॉक्टरों के पास जाएंगे ही.’
उन्होंने यह भी कहा, ‘कोविड मरीजों का भी सही से इलाज नहीं हो रहा है. मैं अपनी सरकार से मांग करता हूं कि कोविड वार्ड में सीसीटीवी कैमरा लगाया जाए, ताकि परिजन देख सकें कि उनके पेशेंट का इलाज हो पा रहा है कि नहीं.’
वहीं राज्य के हेल्थ मिनिस्टर बन्ना गुप्ता दिप्रिंट से कहते हैं, ‘झोलाछाप डॉक्टरों को इलाज की अनुमति नहीं है, उन्हें सिर्फ जागरुकता फैलाना है. इसके लिए हम ग्राम प्रधान, मानकी मुंडा, मुखिया आदि का सहयोग ले रहे हैं. झोलाछाप डॉक्टरों की भी गांव में बड़ी इज्जत होती है, चाहे वह साइकिल से ही क्यों न चलें. साथ ही हरेक थाना में दो एंबुलेंस रखने की व्यवस्था भी साथ में कर रहे हैं.’
हालांकि वह ग्रामीण इलाकों में जांच और इलाज की खास व्यवस्था के सवाल को टालते नजर आए. जांच के लिए जो भी मशीने लगाई जा रही है, वह जिला मुख्यालय में. जबकि गांव के लोगों को वहां तक पहुंचने के लिए 60-100 किलोमीटर तक का सफर भी तय करना पड़ता है. ऊपर से अफवाहों का बाजार गर्म है, सो अलग.
पलामू के सुआ कौड़िया पंचायत में 20 दिनों में 22 लोगों की मौत हुई है. यहां कोई कोविड टेस्ट नहीं हुआ है, जाहिर है कोविड के मौत के आंकड़े में ये शामिल भी नहीं हैं.
इसके अलावा झारखंड के कई गांवों में मोबाइल नेटवर्क नहीं है. ऐसे में वहां वैक्सीनेशन भी नहीं हो पा रहा है. इस पर मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा, ‘हमने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से अनुरोध किया है कि ऐसे इलाकों के लिए मोबाइल रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया समाप्त की जाए.’
इधर गांवों का हाल ये है कि उनके पास किसी भी तरह की सुविधा नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पंचायती राज डिपार्टमेंट के साथ मिटिंग में मुखियाओं ने साफ कहा कि उनके यहां न तो टेस्ट हो रहा है, न ही दवाई उपलब्ध है. सीएचसी में दवाई तक उपलब्ध नहीं है. उन्हें बेड, ऑक्सीमीटर, सैनिटाइजेशन केमिकल, पारासिटामोल चाहिए. लेकिन सरकार के किसी विभाग से इस मसले पर कोई बात नहीं है.
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‘मैं डॉक्टर नहीं हूं’
पारा टीचर रवि किशोर कहते हैं, ‘मुझे पता है कि मैं डॉक्टर नहीं हूं.’
वह आगे कहते हैं, ‘इसलिए मैं ऐसी-वैसी कोई दवाई नहीं बताता हूं जिससे मरीज का नुकसान हो जाए. हां, जितना जानता हूं, उतना जरूर लोगों को बताता हूं. एक अखबार में मेरा नंबर छाप दिया गया, उसके बाद से डर भी लग रहा है, लेकिन जो भी लोग फोन पर पूछ रहे हैं, उन्हें कोविड से जुड़ी सावधानियों के बारे में बता रहा हूं.’ रवि की पत्नी कोविड पेशेंट थीं, जिनका इलाज उन्होंने सदर अस्पताल में कराया.
बीते 40 साल के ये काम कर रहे श्यामपद मंडल कहते हैं, ‘गांव में लोग बहुत इज्जत देते हैं. डॉक्टर साहब कहकर बुलाते हैं. लेकिन सरकार ने झोलाछाप नाम दे दिया. दुःख तो होता है, लेकिन क्या कर सकते हैं. उनके मुताबिक फिलहाल वो मरीजों को पैरासिटामोल देते हैं. गंभीर मरीज को पीएचसी में जाने की सलाह देते हैं.’
शराफत अंसारी भी लोगों का इलाज कर रहे हैं. वो लक्षण देखकर पारासिटामोल, डॉक्सीसाइक्लिन, मल्टिविटामिन, विटामिन सी, ओमेज डी, विटामिन डी, एजिथ्रोमाइसिन जैसी दवाएं देते हैं.
कहते हैं, ‘हमलोग फीस नहीं लेते हैं, दवाई का पैसा ही केवल लेते हैं. उसमें भी गांव-घर में कई बार लोग पूरा पैसा दे भी नहीं पाते हैं.’
रानीगंज के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस से एक साल का कोर्स करनेवाले शराफत कहते हैं, ‘पहली बार इतनी इज्जत मिल रही है. हम डॉक्टर नहीं हैं, सही बात है, लेकिन झोलाछाप डॉक्टर के बजाय ग्रामीण चिकित्सक कहें, तो ज्यादा अच्छा लगेगा.’
दिल्ली में झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ अभियान चला चुके डॉ अनिल बंसल कहते हैं, ‘साल 2010 में नेशनल ह्यूमन राइट कमिशन ने देशभर के स्वास्थ्य सचिवों की बैठक बुलाई. उनसे कहा कि ग्रामीण को झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है. यह खतरनाक है. सरकार ने अपनी नाकामी का ठीकरा, ऐसे डॉक्टरों के ऊपर फोड़ दिया है.’
वहीं झारखंड के ही पाकुड़ जिले के पत्रकार रमेश भगत का कहना है, ‘उनके जिले में 89 पद डॉक्टरों के लिए स्वीकृत हैं, जबकि मात्र 19 काम कर रहे हैं. अगर झोलाछाप डॉक्टर एक दिन का हड़ताल कर दें तो यहां सैंकड़ों की मौत हो जाएगी. ग्रामीण स्वास्थ्य को वही संभाले हुए हैं.’
कानून क्या कहता है
झारखंड हाईकोर्ट के वकील सोनल तिवारी कहते हैं, इंडियन मेडिकल काउंसिल (प्रोफेशनल कंडक्ट, एटिक्विटी एंड एथिक्स) रेगुलेशन 2002 के मुताबिक किसी भी मरीज का इलाज वही कर सकते हैं जो मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया या फिर स्टेट मेडिकल काउंसिल से रजिस्टर्ड हों. इसका उल्लंघन करने पर 1000 रुपए का फाइन और अधिकतम एक साल की जेल है. लेकिन आईपीसी के मुताबिक चूंकि यह नॉन कॉग्निजेबल ऑफेंस है, इसलिए ऐसे लोगों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाती है.
श्यामपद मंडल एक बार फिर कहते हैं, साल 2016 में तत्कालीन सरकार ने झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई का ऑर्डर निकाला. हमने संगठन के लोगों के साथ मिलकर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी गुहार लगाई तो उन्होंने उस कार्रवाई को रोक दिया था.
ऐसे में अब सवाल उठता है कि महामारी के इस विकट परिस्थिति में ये झोलाछाप ग्रामीण जनता के संकटमोचक हैं या लोगों की जान से खेलनेवाले कानूनी तौर पर गुनहगार?