नई दिल्ली: गुजरात सरकार ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के उस एप्लीकेशन का विरोध किया है जिसमें उन्होंने 1990 के दौरान हिरासत में कथित रूप से यातना देने के मामले में दायर एक याचिका पर जस्टिस एम आर शाह को सुनवाई करने से रोकने की अपील की है. यह मामला गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है.
राज्य सरकार को अब भट्ट की याचिका पर लिखित जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है.
गुजरात की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने मौखिक दलीलें देते हुए कहा कि इस तरह की याचिका की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया और कहा कि वह अपने लिखित जवाब में इसके बारे में और स्पष्ट तरीके से बताएंगे.
भट्ट को जून 2019 में जामनगर सत्र न्यायालय ने प्रभुदास वैष्णानी की हिरासत में यातना और हत्या के मामले में दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
जामजोधपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद, 10 अक्टूबर 1990 को गिरफ्तार किए गए 133 लोगों में वैष्णानी भी शामिल थे. एक महीने तक पुलिस हिरासत में रहने के बाद वैष्णानी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. डिस्चार्ज होने के दस दिन बाद उनकी मौत हो गई.
भट्ट ने अपने ऊपर लगे आरोपों के साबित हो जाने के बाद, इस फैसले के खिलाफ गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी. मौत के वास्तविक कारण को साबित करने के लिए डॉ. एम. नारायण रेड्डी (हैदराबाद के विशेषज्ञ गवाह) से पूछताछ करने के लिए इस साल जुलाई में एक याचिका दायर की.
अभियोजन पक्ष ने इस मामले में दो डॉक्टरों से पूछताछ की थी. इनमें से एक डाक्टर ने वैष्णानी का इलाज किया था और दूसरे ने उनका पोस्टमार्टम किया था. उन्होंने बताया था कि वैष्णानी की मौत रबडोमायोलिसिस (मांसपेशियों के उन ऊतकों का टूटना जो कि खून में डैमेज करने वाले प्रोटीन को रिलीज करता है) के कारण किडनी के फेल हो जाने से हुई थी.
भट्ट ने आरोप लगाया था कि अभियोजन पक्ष वैष्णानी की मौत के कारणों और वजहों को साबित करने में विफल रहा है. उच्च न्यायालय ने अगस्त में उनकी इस याचिका को खारिज कर दिया था. इसके बाद भट्ट ने सितंबर 2022 में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. इस मामले को शुक्रवार को जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था.
भट्ट के वकील अल्जो के. जोसेफ ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को लिखा कि ‘इस विशेष अनुमति याचिका में उठाए गए कुछ मुद्दों में एक- माननीय अदालत के न्यायाधीशों में से एक द्वारा पहले इस मामले पर अपना फैसला देना है. याचिकाकर्ता को वास्तव में आशंका है कि अगर उनकी वर्तमान विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई उन्हीं न्यायाधीश द्वारा की जाएगी तो न्याय का अंत नहीं होगा.’
वह दिसंबर 2011 में न्यायमूर्ति शाह द्वारा पारित एक आदेश का जिक्र कर रहे थे जब वह गुजरात एचसी के न्यायाधीश थे. उन्होंने बताया कि उसी हिरासत में मौत के मामले में उनके खिलाफ आरोप तय करने को टालने के उनके अनुरोध को निचली अदालत ने जब खारिज कर दिया तो भट्ट ने इस फैसले को चुनौती देते हुए एक और याचिका दायर की, जिसे जस्टिस शाह ने खारिज कर दिया था. यह उसी एफआईआर की वजह से चल रहे मुकदमे के शुरुआती दौर में था.
हालांकि गुजरात सरकार ने मौखिक रूप से आवेदन का विरोध किया. राज्य सरकार को अब भट्ट की याचिका पर लिखित जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है.
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‘ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट ने नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया’
उच्च न्यायालय के सामने भट्ट ने बताया कि उन्होंने निचली अदालत के समक्ष भी इसी तरह की एक याचिका दायर की थी. तब ट्रायल कोर्ट ने उन्हें अपने गवाह पेश करने के लिए 11 जून 2019 की दोपहर 3.30 बजे तक का समय दिया था. उन्होंने कहा, ‘हालांकि यह साफ था कि विशेषज्ञ गवाह इतने कम समय में हैदराबाद से नहीं आ पाएंगे.’
उन्होंने कहा था, ‘स्वर्गीय प्रभुदास माधवजी की मौत के सटीक कारणों के बारे में जानना सबसे महत्वपूर्ण है. और यह मौजूदा आवेदक द्वारा निचली अदालत के आक्षेपित निर्णय और आदेश के खिलाफ दायर अपील के अंतिम परिणाम को प्रभावित करेगा.’
अपने हलफनामे में डॉ रेड्डी ने कहा था, ” यह कहा जाना कि डॉक्टरों की राय के मुताबिक, यह ‘रबडोमायोलिसिस के परिणामस्वरूप किडनी फेल होने’ के कारण मृत्यु का मामला था.” सही नहीं था… उन्होंने बिना यह जाने कि यह क्या है, अस्पताल केस-शीट से बस डॉक्टरों की उस राय को कॉपी कर लिया. मृत्यु के इस कारण का समर्थन करने के लिए पोस्टमार्टम एग्जामिनेशन के समय कोई सकारात्मक निष्कर्ष नहीं मिला है.’
यह देखते हुए कि डॉ रेड्डी के पास ‘स्वर्गीय प्रभुदास के शव को देखने या जांच करने का कोई मौका नहीं था और उन्होंने सिर्फ मेडिकल पेपर, एक्स-रे और रिपोर्ट आदि के आधार पर अपना मत रखा था, उच्च न्यायालय ने इस आवेदन को खारिज कर दिया.
इसने जोर देकर कहा कि अभियोजन पक्ष ने ‘मृतक की मौत के सही कारणों को साबित करने के लिए पर्याप्त मौखिक और दस्तावेजी सबूत पेश किए हैं.’
इसके बाद भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनकी याचिका में अब कहा गया है कि वह निचली अदालत के साथ-साथ उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों में ‘कमियों’ को अदालत के ध्यान में लाना चाहती है और साथ ही यह भी यह कैसे ‘आपराधिक मुकदमे में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन कर रही है.’
इसमें यह भी कहा गया है कि ट्रायल कोर्ट ‘याचिकाकर्ता को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश करने के लिए पर्याप्त अवसर और समय देने में विफल रहा है.’
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः संघप्रिया)
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