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Saturday, 2 November, 2024
होमरिपोर्टगुरुग्राम नमाज विवाद में दो दुकानों का कारोबार चौपट, एक दर्जन कामगारों की रोजी-रोटी पर संकट

गुरुग्राम नमाज विवाद में दो दुकानों का कारोबार चौपट, एक दर्जन कामगारों की रोजी-रोटी पर संकट

अब यहां पर न तो हिंदू दक्षिणपंथी कार्यकर्ता मौजूद हैं और न ही गुरुग्राम के सेक्टर 12 स्थित इस जमीन पर नमाज अदा करने वाले नमाजी ही हैं. लेकिन नमाज पर विवाद ने यहां परस्पर सौहार्द से रहने वालों के लिए जरूर संकट खड़ा कर दिया है.

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गुरुग्राम: सार्वजनिक स्थल पर नमाज़ को लेकर गुरुग्राम में शुरू हुए विवाद ने करीब 30 साल पुराने कम से कम दो छोटे कारोबारों को बंदी के कगार पर धकेल दिया है. इससे हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदायों के करीब एक दर्जन कामगारों की नौकरियों पर संकट के बादल छा गए हैं.

गुरुग्राम में सार्वजनिक स्थानों पर नमाज़ के ख़िलाफ़ हिंदू दक्षिणपंथी समूहों का विरोध प्रदर्शन शुक्रवार को भी जारी रहा. कई स्थानीय लोगों ने सरहौल, सेक्टर 12ए स्थित एक पार्क में नमाज अदा करने पर आपत्ति जताई जिसकी वजह से मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को शीतला कॉलोनी के पास दूसरी जगह पर जाना पड़ा. एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस जगह पर 50 से 100 लोग नमाज पढ़ने के लिए जुटते थे. नमाज स्थलों को लेकर विवाद पिछले महीने उस समय ज्यादा बढ़ गया जब पुलिस ने शुक्रवार की नमाज बाधित करने की कोशिश कर रहे दक्षिणपंथी समूहों के सदस्यों सहित 25 लोगों को गिरफ्तार किया. संयुक्त हिंदू संघर्ष समिति के सदस्यों, जिसमें 22 स्थानीय दक्षिणपंथी संगठन शामिल हैं, ने बीजेपी नेताओं कपिल मिश्रा और सूरज पाल अमू के साथ पिछले हफ्ते इसी जमीन पर गोवर्धन पूजा की थी. प्रदर्शनकारियों के एक अन्य समूह ने शुक्रवार से कहा कि वह यहां वॉलीबॉल कोर्ट बनाएगा. गुरुग्राम में सार्वजनिक स्थानों पर नमाज के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों ने गति पकड़ ली है क्योंकि इसे बाधित करने वालों में कई छोटे दक्षिणपंथी समूह शामिल हैं.

हुडा की इस विवादित संपत्ति के पीछे की जमीन पर एक कबाड़खाने में काम करने वाले रंजीत सिंह का कहना है, ‘हमारे पेट पर लात पड़ गई.. इनका कुछ नहीं हुआ. नमाज विवाद पिछले तीन सप्ताह से अधिक समय से जारी है.

विवाद होने के डर से नाम न छापने का अनुरोध करते हुए दुकान के मालिक ने कहा, ‘कुछ नहीं बिका है डेढ़ महीने से, एक पैसा नहीं बना पाए हैं.’


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यहां की एक दुकान पर काम करने वाले एक मुस्लिम कामगार—जो इसी इलाके में पला-बढ़ा है, और जिसके पिता रंजीत सिंह के मित्र थे, ने कहा कि धार्मिक पहचान उनके बीच कभी कोई मुद्दा था ही नहीं बनी.

सेक्टर 12ए स्थित फर्नीचर की दो दुकानों में से एक के मालिक इस्माइल खान की पिछले साल मई में कोविड के कारण मौत हो गई थी. तभी से दुकान को उनका बेटा चला रहा है. पिछले महीने नमाज़ विवाद शुरू होने से पहले सरहौल में खान की और फर्नीचर की अन्य दुकानों में काफी अच्छा कारोबार चल रहा था.

विवादित सार्वजनिक स्थल के पीछे की जमीन एक हिंदू ‘पंडितजी’, प्रदीप शर्मा की है, जिन्होंने इसे खान को किराए पर दे रखी थी. शर्मा को हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों की तरफ से फोन भी आए जिन्होंने उनके मुस्लिम दुकान मालिक के साथ ‘संबंध’ रखने पर सवाल उठाए. दुकानें खाली करने को कहने का पड़ोसियों के बीच दशकों पुराने रिश्तों पर भी असर पड़ा और किराए संबंधी समझौते, जो मौखिक थे, खत्म कर दिए गए.

ऊपर जिक्र किए गए दुकान मालिक ने कहा, ‘हमने दिवाली पर बेचने के लिए नई क्रॉकरी ली थी क्योंकि यही वह समय होता है जब हम अच्छा बिजनेस करते हैं लेकिन हम इस बार कुछ भी नहीं बेच पाए. यहां से गुजरने वाला हर व्यक्ति मीडिया-रिपोर्टिंग और विवाद के कारण होने वाली परेशानी के चलते इलाके पर उंगली उठाता है. कोई कुछ खरीदना नहीं चाहता.’ अब दुकानें खाली हो रही हैं. दुकान मालिकों और कामगारों को दो समुदायों के बीच संघर्ष की चपेट में आने का डर भी सता रहा है.

इन दुकानों और कबाड़खाने में काम करने वालों के बीच समीकरण के बारे में बताते हुए रंजीत ने कहा, ‘हमने इनको (मुस्लिम दुकानदार और उसका भाई) बड़ा होता देखा है ये शायद मुस्लिम से ज्यादा हिंदू त्यौहारों में शामिल होते आए हैं.’

दुकान मालिक ने कहा, ‘हम अब ज्यादा सतर्कता बरत रहे हैं कि कहीं कोई उपद्रवी गोवर्धन पूजा स्थल को नुकसान न पहुंचाए. हमें आशंका है कि ऐसे में हिंसा भड़केगी और हम उसमें नहीं फंसना चाहते.’

हिंदू दक्षिणपंथी समूहों के सदस्य यहां से जा चुके हैं और जमीन के इस टुकड़े पर इबादत करने वाले नमाजी भी अब अपने घरों और तहखानों में नमाज अदा करेंगे लेकिन इन सबका सबसे ज्यादा प्रतिकूल असर उन लोगों पर पड़ा है जो हमेशा से यहां सद्भाव के साथ रहते थे—उन्हें इसकी कीमत अब कारोबार गंवाकर चुकानी पड़ रही है.

दुकानदार ने कहा, ‘पता नहीं क्या करेंगे. अब जिंदगी बची है तो कुछ तो करेंगे ही लेकिन यहां पर नहीं.’ उन्हें कबाड़खाना बरकरार रखने की तो उम्मीद है लेकिन पहले अपनी दुकानों के फर्नीचर को सुरक्षित करना ज्यादा जरूर लग रहा है. उन्होंने पिछले हफ्ते से ही यहां रिपोर्टिंग के लिए जुटे पत्रकारों की भीड़ को ‘मीडिया सर्कस’ करार देते हुए कहा कि इसने उन्हें एहसास करा दिया है कि कोई भी उनकी दुकानों पर आने से डरेगा. इसलिए अब यहां से हटने का समय आ गया है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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