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Thursday, 28 August, 2025
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योगी के ‘चहेते अफसर’: सिक्किम कैडर IAS औंजनय कुमार सिंह ने UP में काटे 10 साल, सातवीं बार मिला एक्सटेंशन

औंजनय कुमार सिंह पर आरोप है कि उन्होंने सपा नेता आज़म खान से दुश्मनी निकाली, हेट स्पीच केस में कार्रवाई की जिसने आखिरकार उनके राजनीतिक करियर को खत्म कर दिया.

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लखनऊ: अक्सर योगी आदित्यनाथ के “चहेते अफसर” कहे जाने वाले औंजनय कुमार सिंह, 2005 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी, को मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप पर इंटर-कैडर डेप्यूटेशन में दुर्लभ सातवां लगातार एक्सटेंशन मिला है. इसका मतलब है कि यूपी से ताल्लुक रखने वाले लेकिन मूल रूप से सिक्किम कैडर के इस अफसर का कार्यकाल अगस्त 2026 में खत्म होने तक लगातार 11 साल यूपी में बीत जाएगा.

सिंह की पहली पोस्टिंग यूपी में डेप्यूटेशन पर 2015 में हुई थी, जो 2020 में खत्म होनी थी, लेकिन राज्य सरकार के अनुरोध पर उन्हें कई बार एक्सटेंशन मिला. उनकी आखिरी तैनाती मुरादाबाद के मंडलायुक्त के रूप में थी. 14 अगस्त 2025 को कार्यकाल खत्म होने के बाद वे छुट्टी पर चले गए थे.

हालांकि, अंतिम समय में योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक और एक्सटेंशन की सिफारिश की और कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय ने इसे मंज़ूरी दे दी. इससे वे एक साल और यूपी में रह पाएंगे. यह उनका उत्तर प्रदेश में 11वां साल होगा.

49 साल के सिंह, जो यूपी के मऊ ज़िले से हैं, उन्होंने अपने मूल कैडर सिक्किम में केवल 8 साल काम किया है, जबकि यूपी में वे 10 साल बिता चुके हैं.

भाजपा सूत्रों के अनुसार, 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राजनाथ सिंह की सिफारिश पर सिंह को यूपी में डेप्यूटेशन पर बुलाया था. उसके बाद से सीएम योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में उनके डेप्यूटेशन को कई बार बढ़ाया गया. योगी सरकार के अनुरोध पर अब तक केंद्र छह बार एक्सटेंशन मंज़ूर कर चुका है—चार बार एक-एक साल के लिए और दो बार छह-छह महीने के लिए.


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आज़म खान पर कार्रवाई और विवाद

औंजनय सिंह के यूपी कार्यकाल में कई विवाद जुड़े रहे. समाजवादी पार्टी ने उन पर अपने नेता आज़म खान को निशाना बनाने का आरोप लगाया. 2019 में जब वे रामपुर के डीएम थे, तब आज़म खान के खिलाफ हेट स्पीच का मामला दर्ज हुआ था.

7 अप्रैल 2019 को लोकसभा चुनाव के दौरान आज़म खान ने रामपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि सरकारी अफसरों से डरने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे सिर्फ तनख्वाह पर काम करने वाले कर्मचारी हैं. उन्होंने बसपा नेता मायावती पर भी टिप्पणी की थी कि उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों की तस्वीरें देखी हैं जो उनके जूते साफ कर रहे थे और चूंकि, उनकी पार्टी का उनसे गठबंधन है, इसलिए वे भी अधिकारियों से अपने जूते साफ करवा सकते हैं.

इसके बाद आज़म खान ने रामपुर कलेक्टर को गाली-गलौज वाली भाषा में निशाना बनाया, उन्हें अंधा और ज़िद्दी कहा और यूपी के मुख्यमंत्री पर हमला बोलते हुए उन्हें अपराधी बताया.

प्रशासन ने उनका भाषण वीडियो में रिकॉर्ड किया और आज़म खान के खिलाफ एफआईआर दर्ज की. एफआईआर के मुताबिक, आज़म खान ने यह भी कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा माहौल बना दिया है कि मुसलमानों के लिए देश में शांति से रहना मुश्किल हो गया है.

2019 के चुनावों के बाद उस समय के डीएम रामपुर औंजनय सिंह ने हेट स्पीच के आरोपों में उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की और तभी से आज़म खान की मुश्किलें बढ़ती चली गईं. इसी हेट स्पीच मामले में रामपुर की सांसद-विधायक अदालत ने आज़म खान को तीन साल की जेल की सज़ा सुनाई जिसके कारण 2022 में उनकी विधायकी चली गई.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने औंजनय सिंह पर भाजपा के करीबी होने का आरोप लगाया और उन्हें लगातार दिए जा रहे एक्सटेंशन पर सवाल उठाए, जबकि सिंह को यूपी में पहली बार डेप्यूटेशन पर खुद यादव के मुख्यमंत्री रहते ही लाया गया था. समाजवादी पार्टी ने उन पर आज़म खान के खिलाफ निजी दुश्मनी निकालने का भी आरोप लगाया.

सिर्फ आज़म खान ही नहीं, बल्कि उनके बेटे अब्दुल्ला पर भी सिंह ने कड़ी कार्रवाई की. अब्दुल्ला 2017 में स्वार टांडा सीट से सपा विधायक चुने गए थे. उनके प्रतिद्वंद्वी, बसपा के नवाब काज़िम अली खान ने परिणाम को चुनौती दी, यह कहते हुए कि अब्दुल्ला ने नामांकन दाखिल करते समय 25 साल की उम्र पूरी नहीं की थी.

यह मामला जब 2019 में डीएम औंजनय सिंह के सामने आया, तो उन्होंने जांच के आदेश दिए. जांच में पाया गया कि अब्दुल्ला ने फर्जी उम्र प्रमाणपत्र का इस्तेमाल किया था और नामांकन के समय वे सचमुच 25 साल से छोटे थे. डीएम ने यह रिपोर्ट चुनाव आयोग को भेजी, जिसके बाद अब्दुल्ला का नामांकन रद्द कर दिया गया.

2023 में एमपी-एमएलए कोर्ट ने आज़म खान को हेट स्पीच मामले में बरी कर दिया. जज ने यह फैसला शिकायतकर्ता के बयान के आधार पर दिया, जिसने अदालत में कहा कि उस पर ज़िला मजिस्ट्रेट ने केस दर्ज करने का दबाव बनाया था. सरकारी कर्मचारी अनिल चौहान ने अपने बयान में कहा, “मैंने जिला चुनाव अधिकारी (उस समय के डीएम) के दबाव में शिकायत दर्ज की थी.” एमपी-एमएलए कोर्ट के सेशंस जज अमित वीर सिंह ने निचली अदालत की तीन साल की सज़ा को रद्द कर दिया. हालांकि, अन्य चल रहे मामलों की वजह से आज़म खान अभी भी जेल में हैं.

6 साल से एक ही मंडल में कोई तबादला नहीं

यूपी में कार्यकाल के दौरान सिंह ने कई अहम पदों पर काम किया है, जिनमें शामिल हैं: सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग में विशेष सचिव (2015), बुलंदशहर के डीएम (2016), वाणिज्य कर में अतिरिक्त आयुक्त (2017), फतेहपुर के डीएम, रामपुर के डीएम (2019-2021) और आखिर में मुरादाबाद के मंडलायुक्त (2021)। 2019 से सिंह लगातार इसी बेल्ट में तैनात हैं.

मुरादाबाद कमिश्नर रहते हुए नवंबर 2024 में संभल में हुई सांप्रदायिक हिंसा के दौरान भी उन्हें समाजवादी पार्टी की आलोचना का सामना करना पड़ा. यह हिंसा अदालत द्वारा मस्जिद सर्वे कराने के आदेश के बाद भड़की थी. सपा का आरोप था कि हिंसा के दौरान उनका रवैया पक्षपाती रहा.

2024 लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने भी सिंह के एक्सटेंशन को चुनाव आयोग में चुनौती दी थी और कहा था कि यह सेवा नियमों का उल्लंघन है.

मुख्यमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर सिंह को आदित्यनाथ का “चहेता अफसर” बताया. अधिकारी के मुताबिक, “औंजनय को मुख्यमंत्री कार्यालय तक उन कई अफसरों से ज़्यादा पहुंच है जो उनके साथी हैं. इसकी वजह यह है कि वे अहम काम संभाल रहे हैं, क्योंकि सीएम खासतौर पर रामपुर-मुरादाबाद मंडल पर ध्यान दे रहे हैं. पिछले कुछ सालों से वे लगातार इसी मंडल में तैनात हैं. यहां बहुत कुछ ‘लकीरों के बीच’ पढ़ने लायक है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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