नई दिल्ली : तीन साल पूरे हो चुके हैं लेकिन 251 मीटर ऊंची राम प्रतिमा, जिसे दुनिया की सबसे ऊंची बताया जा रहा है, के निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने एक इंच भी जमीन का अधिग्रहण नहीं किया है.
गुजरात में लगी 183 मीटर की सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा से ज्यादा ऊंची इस प्रतिमा के निर्माण की घोषणा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने 2017 में सत्ता में आने के तुरंत बाद की थी.
करीब 3,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली यह प्रतिमा अयोध्या में लखनऊ-गोरखपुर राष्ट्रीय राजमार्ग के पास सरयू नदी के तट पर करीब 100 एकड़ भूमि पर लगाई जानी है. यह अयोध्या में राम मंदिर, जिसका निर्माण 5 अगस्त को भूमि पूजन समारोह के बाद शुरू होना है, के अलावा एक और ऐतिहासिक स्थल होगा.
राम प्रतिमा निर्माण के लिए भूमि का अधिग्रहण स्थानीय निवासियों और किसानों के विरोध के कारण अटका है, और भूमि के चयन को लेकर प्रशासन भी अपने स्तर पर फ्लिप-फ्लॉप वाला रुख अपनाए हुए है.
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नोटिस और अदालती निर्देश
इस साल जनवरी में अयोध्या प्रशासन ने राम जन्मभूमि स्थल से करीब 6 किलोमीटर दूर यह प्रतिमा लगाने और संग्रहालय बनाने के लिए माझा बरहटा और आसपास के गांवों की करीब 86 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण के लिए एक अधिसूचना जारी की थी.
इस संदर्भ में जारी नोटिस में उल्लेख किया गया था कि 125 परिवार और 66 पक्के मकान प्रभावित होंगे और ग्रामीणों को अपनी आपत्तियां दर्ज करने के लिए 15 दिन का समय दिया गया था. इस पर गांव के किसानों ने नोटिस के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश दिया. अधिनियम के तहत भूमि मालिकों को 60 दिन का समय दिया जाना चाहिए, लेकिन अयोध्या प्रशासन ने केवल 15 दिन का ही समय दिया था.
यही नहीं, अधिनियम कहता है कि भूमि का अधिग्रहण आपसी समझौते से किया जाना है, लेकिन प्रशासन की तरफ से नोटिस में केवल भूमि से संबंधित दस्तावेजों पर आपत्तियां मांगी गईं, और इस पर सहमति नहीं ली गई थी.
प्रशासन को नोटिस जारी करने के बाद किसानों की तरफ से 200 शिकायतें मिली थीं, और मौजूदा समय में उन पर विचार चल रहा है.
जून में माझा बरहटा और अन्य गांवों के किसानों ने मामले में स्पष्ट दिशानिर्देशों के लिए एक बार फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया. इस पर अदालत ने प्रशासन से कृषि भूमि, आवासीय भूमि, पेड़ों की संख्या, पशुधन आदि की मैपिंग कराने को कहा.
अयोध्या जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘मुश्किल यह है कि तमाम ग्रामीणों के पास कागजात नहीं हैं, लेकिन सैकड़ों वर्षों से जमीन पर उनका अनधिकृत कब्जा है.’
उन्होंने कहा, ‘वे सरकार के निर्धारित मानको से अधिक मुआवजा मांग रहे हैं. वे अपने परिवार के सदस्यों के लिए नौकरी भी मांग रहे हैं. ग्रामीणों के विरोध के कारण प्रशासन अब तक उनके साथ किसी करार की स्थिति में नहीं पहुंच सका है.’
अधिकारी ने कहा कि सबसे अच्छा तरीका तो आपसी सहमति से जमीन खरीदने का ही है, लेकिन किसान सरकार की ओर से प्रस्तावित मुआवजे की दर पर अपनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘कई किसानों को अपनी जमीन बेचने पर आपत्ति है, जबकि कई के पास भूमि का कोई रिकॉर्ड नहीं है. हम इन मुद्दों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं.’
इस बीच, ग्रामीणों ने कहा कि प्रशासन उचित मुआवजा दिए बिना जमीन का अधिग्रहण करना चाहता है.
एक ग्रामीण ने कहा, ‘उन्होंने इन गांवों की जमीन (ग्राम सभा) को (अयोध्या) नगर निगम के अंतर्गत लाकर पहले ही धोखेबाजी की है ताकि कम मुआवजा देना पड़े.’ साथ ही सवाल उठाया, ‘भगवान राम क्यों अपनी प्रतिमा के लिए हमें विस्थापित करना चाहेंगे?’
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महर्षि ट्रस्ट की भूमि
सरकार की तरफ से जनवरी में अधिसूचित 86 हेक्टेयर भूमि में अधिकांश हिस्सा महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट का है. और इनमें से ज्यादातर जमीन माझा बरहटा और आसपास के गांवों के लोगों की तरफ से 1994-95 में स्कूलों और अस्पतालों के निर्माण के लिए ट्रस्ट को दान कर दी गई थी.
ट्रस्ट ने प्रतिमा के निर्माण के लिए जमीन सरकार को देने पर सहमति जताई है, लेकिन ग्रामीणों ने कहा कि प्रशासन उन्हें ‘बेदखल’ करने के लिए ट्रस्ट के साथ मिलकर ‘साजिश’ कर रहा है.
अरविंद यादव नामक एक किसान ने कहा, ‘हमारे पिता ने 1994 में स्कूलों और अस्पतालों के निर्माण के लिए ट्रस्ट को यह जमीन दान में दी थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. ट्रस्ट को हमारी जमीन लौटानी चाहिए लेकिन प्रशासन हमारी जमीन छीनने के लिए ट्रस्ट के साथ मिलकर साजिश कर रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘पहले तो उन्होंने अधिक मुआवजे के भुगतान से बचने के लिए ग्राम सभा की जमीन को नगरपालिका की भूमि में बदल दिया, और अब, वे छोटे भूमि धारकों को बेदखल करने के लिए ट्रस्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं.’
राज्य सरकार ने 2019 में राष्ट्रीय राजमार्ग-28 पर मीरापुर-दोआबा रेलवे ब्रिज के पास सरयू नदी के किनारे एक और भूमि का चयन किया था. इस 24 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण के लिए जून में एक अधिसूचना जारी की गई थी.
यहां स्थानीय निवासियों, किसानों और यहां तक कि संतों ने भी भूमि अधिग्रहण का विरोध किया क्योंकि इस पर पांच मंदिर और 165 से अधिक घर आदि बने हुए हैं.
हालांकि, सरकार ने बाद में एक तकनीकी व्यवहार्यता अध्ययन रिपोर्ट के बाद अधिसूचना रद्द कर दी क्योंकि इसमें रेलवे लाइन के कारण लंबे समय में प्रतिमा के इससे प्रभावित होने की बात कही गई थी.
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सरकार को अधिग्रहण मुद्दा हल होने की उम्मीद
उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने पिछले साल नवंबर में इस प्रतिमा के उद्देश्य से 61 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करने के लिए 447 करोड़ रुपये आवंटित किए थे. इससे पहले, सरकार ने ‘परियोजना की तैयारी’ के क्रम में 200 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी.
अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय ने दिप्रिंट को बताया, ‘भूमि अधिग्रहण में समस्या आ रही है, लेकिन जिला प्रशासन किसानों की शिकायतें धैर्यपूर्वक सुनकर और आपसी सहमति से इसे सुलझाने की कोशिश कर रहा है.’
अयोध्या प्रशासन के एक अन्य अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा कि चूंकि भूमि अधिग्रहण एक संवेदनशील मसला है, इसलिए मुख्यमंत्री कोई कसर छोड़ना नहीं चाहते हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘यही वजह है कि वह समय ले रहे हैं. अन्यथा, राज्य सरकार विशेष अधिकार के तहत भूमि का अधिग्रहण कर सकती है.’
अयोध्या में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (कानून और व्यवस्था) और भूमि अधिग्रहण मामले के प्रभारी जे.पी. सिंह ने दिप्रिंट से कहा कि वह अन्य किसी जगह की भी पहचान कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘अगर किसानों के साथ (मौजूदा) समझौता आगे नहीं बढ़ता है तो सरकार के पास विशेष उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण करने का अधिकार है.’
राज्य के पर्यटन मंत्री नीलकंठ तिवारी ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार राम प्रतिमा निर्माण को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है
उन्होंने आगे कहा, ‘यह एक भव्य परियोजना होगी. भूमि अधिग्रहण को लेकर कुछ कठिनाइयां हैं, जिन्हें प्रशासन सुलझाने की कोशिश कर रहा है. हम बहुत जल्द इस दिशा में आगे बढ़ेंगे.’