नई दिल्ली: जैसे-जैसे उपराष्ट्रपति पद की दौड़ तेज़ हो रही है, बीजेपी ने इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस (सेवानिवृत्त) बी. सुदर्शन रेड्डी पर तीखा हमला किया है. बीजेपी ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने, नक्सल विद्रोह का समर्थन करने और राष्ट्रविरोधी तत्वों के प्रति सहानुभूति रखने का आरोप लगाया है.
जस्टिस रेड्डी, जिन्होंने 2011 में अपने रिटायरमेंट तक सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में सेवा दी, उन्हें औपचारिक रूप से एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन और उनके द्वारा 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रचार शुरू करने से पहले ही बीजेपी की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है.
बीजेपी नेताओं ने बयानों और सोशल मीडिया पोस्ट की एक श्रृंखला में जस्टिस रेड्डी के पुराने फैसलों और कामों को उजागर किया है, जिनके बारे में उनका कहना है कि उन्होंने भारत के राष्ट्रीय हितों को कमजोर किया.
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने एक्स पर एक तीखी पोस्ट में कहा कि “इंडिया एलायंस” की उपराष्ट्रपति पद की पसंद ने उसकी पाखंड और दिवालियापन को “एक बार फिर” उजागर कर दिया है.
उन्होंने कहा, “कांग्रेस ने बी. सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है — एक ऐसा व्यक्ति जिसका रिकॉर्ड खतरनाक फैसलों, राष्ट्रविरोधी सहानुभूति और बेशर्म अवसरवाद से भरा है. जिसे कभी कांग्रेस ने ‘हां में हां मिलाने वाला’ कहकर खारिज कर दिया था, आज उसे हीरो बनाकर पेश किया जा रहा है.”
उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में, उन्होंने सलवा जुडूम को ख़ारिज कर दिया — जिससे माओवादियों की चरम हिंसा के समय भारत की नक्सल विरोधी लड़ाई कमजोर हुई. उन्होंने भारत के हथियार निर्यात के खिलाफ इज़रायल को याचिका दायर की — जिससे भारत की वैश्विक साझेदारी कमजोर हुई. भोपाल गैस त्रासदी मामले में कांग्रेस को बचाया और एंडरसन की भागने की केस दोबारा खोलने से इनकार किया. तेलंगाना जाति जनगणना का नेतृत्व किया जो खामियों और ओबीसी की कम गिनती से भरी थी. 2013 में कांग्रेस और एनसीपी ने उनकी लोकायुक्त नियुक्ति का कड़ा विरोध किया, उन्हें कठपुतली कहा. 2025 में वही व्यक्ति अब उनका ‘मसीहा’ बन गया है!”
भंडारी ने फिर एनडीए सरकार की आलोचना में कांग्रेस के उस बयान का हवाला दिया जब उसने पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई को राज्यसभा में भेजने पर सवाल उठाया था.
उन्होंने कहा, “उन्होंने जस्टिस गोगोई पर राज्यसभा जॉइन करने पर हमला किया था, लेकिन अब अपने ही रिटायर जज को उपराष्ट्रपति पद के लिए खड़ा कर दिया. यह चुनाव सिर्फ एक उम्मीदवार का नहीं है, यह इस बारे में है कि भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रीय संकल्प को दिखाएंगे या कांग्रेस का गंदा समझौता राष्ट्रीय सुरक्षा पर हावी होगा!”
बीजेपी ने जस्टिस (सेवानिवृत्त) रेड्डी की भोपाल गैस त्रासदी मुकदमे में भूमिका भी उठाई. 2011 में तत्कालीन सीजेआई एस.एच. कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पांच जजों की सुप्रीम कोर्ट बेंच के हिस्से के रूप में, जस्टिस रेड्डी ने सीबीआई की क्युरेटिव याचिका खारिज कर दी थी जिसमें यूनियन कार्बाइड अधिकारियों के खिलाफ पुनः सुनवाई और कठोर सज़ा की मांग की गई थी.
यह याचिका 2010 में यूनियन कार्बाइड के सात पूर्व कर्मचारियों को दो साल की नरम सज़ा दिए जाने के बाद उठे सार्वजनिक गुस्से के बाद दाखिल की गई थी.
बेंच ने कहा कि सीबीआई ने केस दोबारा खोलने के लिए कोई ठोस कारण नहीं बताया. बीजेपी ने लगातार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन सांसद अर्जुन सिंह पर 1984 में यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन और सीईओ वॉरेन एंडरसन को भारत से भागने देने का आरोप लगाया है.
एक और आलोचना में, बीजेपी नेताओं ने जस्टिस रेड्डी के उस याचिका पर हस्ताक्षर का ज़िक्र किया जो पिछले साल 24 अन्य प्रमुख हस्तियों के साथ रक्षा मंत्रालय से गाज़ा संघर्ष के दौरान इज़रायल को हथियार निर्यात रोकने की मांग करती थी.
Former Supreme Court judge B. Sudarshan Reddy, now put forward by the I.N.D.I Alliance for the Vice President’s office, is remembered for a judgment that weakened India’s fight against Naxalism.
On 5 July 2011, Justice Reddy delivered the verdict in the Salwa Judum case —… https://t.co/Ti7o9RokXG
— Amit Malviya (@amitmalviya) August 19, 2025
बीजेपी आईटी सेल प्रमुख और पश्चिम बंगाल प्रभारी अमित मालवीय ने 2011 में नंदिनी सुंदर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले पर दिए गए उनके फैसले की आलोचना की. इस फैसले में राज्य सरकार की आदिवासी युवाओं को स्पेशल पुलिस ऑफिसर (एसपीओ) बनाकर सलवा जुडूम आंदोलन के तहत हथियार देने की नीति को असंवैधानिक बताया गया था.
उन्होंने कहा, “यह फैसला नंदिनी सुंदर की याचिका पर आया था. वह दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर हैं, जिन पर लंबे समय से नक्सल समूहों से नजदीकी होने का आरोप लगाया जाता रहा है और जिन्हें बस्तर में एक हत्या के मामले की एफआईआर में भी नामजद किया गया था (बाद में हटा दिया गया)। वह सिद्धार्थ वरदराजन की पत्नी भी हैं, जो द वायर के वामपंथी झुकाव वाले संपादक हैं. इसलिए यह फैसला सिर्फ एक राज्य सरकार की नक्सल विरोधी रणनीति को झटका नहीं माना गया, बल्कि इसे माओवादी समर्थकों के पक्ष में न्यायपालिका की सहानुभूति के तौर पर भी देखा गया.”
एक्स पोस्ट में उन्होंने कहा, “ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने की बात करते हैं, आई.एन.डी.आई गठबंधन ने ऐसे उम्मीदवार को चुना है जिसकी विरासत पर विद्रोहियों का साथ देने का दाग है.”
उन्होंने कहा, “उप-राष्ट्रपति चुनाव केवल एक संवैधानिक पद भरने का मामला नहीं है. यह इस बात पर भी है कि क्या भारत के सर्वोच्च पद हिंसक उग्रवाद के खिलाफ राष्ट्रीय संकल्प की भावना को दिखाएंगे या फिर पुराने वैचारिक समझौतों में लौट जाएंगे.”
जस्टिस रेड्डी की पहले BJP ने की थी तारीफ़
मौजूदा हमलों के बावजूद, बीजेपी ने पहले जस्टिस रेड्डी की 2011 की काले धन पर ऐतिहासिक टिप्पणी के लिए प्रशंसा की थी. अपनी रिटायरमेंट से पहले, जस्टिस रेड्डी और जस्टिस (सेवानिवृत्त) एस.एस. निज्जर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यूपीए सरकार को विदेशों में बैंक खातों में रखे काले धन को वापस लाने में गंभीरता न दिखाने के लिए फटकार लगाई थी. इसने विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाने का आदेश दिया था.
तब भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने इसे यूपीए सरकार के लिए “चेहरे पर तमाचा” बताया था. उन्होंने कहा था कि अदालत ने कांग्रेस नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई न करने की अनिच्छा को उजागर कर दिया है.
उन्होंने कहा था, “हम काले धन के मुद्दे पर एसआईटी नियुक्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. इस फैसले ने पूरी तरह से सरकार और कांग्रेस को बेनकाब कर दिया है. सरकार भ्रष्टाचार और काले धन पर रोक लगाने के लिए कोई सख्त और ईमानदार कदम नहीं उठाना चाहती। यह फैसला सरकार के चेहरे पर तमाचा है.”
उन्होंने कहा था, “यह फैसला इस बात का सबूत है कि अदालत भी भ्रष्टाचार से निपटने के मामले में सरकार की नीयत पर भरोसा नहीं करती.”
फैसले से पहले, वरिष्ठ भाजपा नेता एल.के. आडवाणी, जिन्होंने 2009 लोकसभा चुनाव अभियान में काले धन को केंद्रीय मुद्दा बनाया था, ने ब्लॉग लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट सरकार को विदेशों में रखा धन वापस लाने के लिए मजबूर करके “भारतीय जनता की स्थायी कृतज्ञता अर्जित करेगा. उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट विदेश में रखा काला धन वापस लाएगा.”
उन्होंने कहा था, “देश को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को उसके तार्किक नतीजे तक ले जाएगा. 462 अरब अमेरिकी डॉलर बहुत बड़ी रकम है जो भारतीय हालात में चमत्कारिक बदलाव ला सकती है.” आडवाणी ने यह टिप्पणी तब की थी जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को उन लोगों के नाम उजागर न करने पर फटकार लगाई थी जिनका धन विदेश में जमा है.
काले धन से जुड़े याचिकाएं राम जेठमलानी और अन्य लोगों ने दायर की थीं. मामले की सुनवाई के दौरान, जस्टिस रेड्डी और निज्जर ने तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम से पूछा था, “जानकारी उजागर करने में क्या दिक्कत है. आप यह विशेषाधिकार किस आधार पर मांग रहे हैं कि जिन लोगों का पैसा विदेशी बैंकों में जमा है, उनकी जानकारी न दी जाए.”
नरेंद्र मोदी, जो तब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, ने काले धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 2014 लोकसभा चुनाव का सफल अभियान चलाया था. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने काले धन पर एसआईटी का गठन अपनी कैबिनेट के पहले फैसले के रूप में किया था.
बाद में प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में कहा था, “किसी को बचाने की कोशिश की जा रही थी इसलिए यूपीए ने एसआईटी का गठन नहीं किया.”
गोवा सरकार ने लोकायुक्त बनाया
यूपीए सरकार के खिलाफ पूरे देश में भ्रष्टाचार विरोधी माहौल था. इसको कोयला घोटाले, 2जी घोटाले और अन्ना हजारे आंदोलन ने और हवा दी थी. इसी दौरान मार्च 2013 में तब की भाजपा शासित गोवा सरकार, मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में, जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को राज्य का पहला लोकायुक्त नियुक्त किया गया.
लेकिन जब जस्टिस रेड्डी ने गोवा लोकायुक्त के तौर पर शपथ ली, तो विपक्ष के विधायक वहां मौजूद नहीं थे. हालांकि उन्होंने औपचारिक रूप से समारोह का बहिष्कार नहीं किया. विपक्ष ने आरोप लगाया कि जस्टिस रेड्डी पर्रिकर के “हां में हां मिलाने वाले” हैं.
2010 में, कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जस्टिस सुमित्रा सेन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया था. सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति और राज्यसभा की नियुक्त पैनल, जिसमें जस्टिस रेड्डी भी शामिल थे, ने यह निष्कर्ष दिया था कि जस्टिस सेन ने “दुर्व्यवहार” किया है और उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.
भाजपा ने समिति की सिफारिशों और महाभियोग प्रस्ताव दोनों का समर्थन किया.
2011 में इस प्रस्ताव पर बहस के दौरान, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा, “सेन ने जजों की जांच समिति को गुमराह किया. और बुधवार को राज्यसभा को भी अपनी सफाई में गुमराह किया. वह जज के पद पर बने रहने के लायक नहीं हैं. जस्टिस सेन की सफाई को खारिज किया जाना चाहिए.”
“एक जज सीज़र की पत्नी की तरह होता है. उस पर कोई शक नहीं होना चाहिए. सीज़र ने अपनी पत्नी को सिर्फ शक के आधार पर ही तलाक दे दिया था. ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को ईमानदारी के सबसे ऊंचे मानकों पर खरा उतरना चाहिए. एक जज पर कोई शक नहीं होना चाहिए.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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