scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होमराजनीति2024 चुनाव में नीतीश कुमार होंगे नरेंद्र मोदी के सामने? कुढ़नी सीट उपचुनाव की हार के क्या हैं मायने

2024 चुनाव में नीतीश कुमार होंगे नरेंद्र मोदी के सामने? कुढ़नी सीट उपचुनाव की हार के क्या हैं मायने

बिहार की कुढ़नी विधानसभा सीट का उपचुनाव हारने के बाद बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने फिर से अपनी पुरानी सोच को बुलंद करने की शुरूआत की है

Text Size:

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा तथा दिल्‍ली नगर निगम के चुनाव हो चुके हैं. गुजरात में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी को बड़ी जीत दिलाई. भाजपा ने गुजरात की 182 सदस्‍यीय विधानसभा के अब तक के इतिहास में सर्वाधिक 156 सीटें जीतकर नया रिकॉर्ड बनाया और उसकी पारंपरिक प्रतिद्वंदी कांग्रेस 17 सीटों पर सिमट गई जिसे पिछली बार 77 सीटें मिली थीं.

हिमाचल प्रदेश में राज बदल गया, पर रिवाज नहीं बदला. और हर बार सरकार पलटने के रिवाज के तहत कांग्रेस फिर सत्‍ता में लौट आई. भाजपा, हिमाचल प्रदेश में उत्‍तराखंड का इतिहास नही दोहरा पाई जहां वह सत्‍ता-विरोधी लहर की मार से बच गई थी.

दिल्‍ली नगर निगम के चुनावों में आम आदमी पार्टी ने भाजपा को हराकर पहली जीत दर्ज की लेकिन हिमाचल प्रदेश में उसके सारे प्रत्‍याशियों की जमानत जब्‍त हो गई.

गुजरात में आप के नेता अरविंद केजरीवाल के लोकलुभावन वादे मतदाताओं को रिझाने में असफल रहे. उसने वहां पांच सीटों से खाता खोला लेकिन कांग्रेस को पीछे ढकेलने का मंसूबा भी धरा का धरा रह गया.

हर चुनाव के बाद हार जीत का राजनीतिक विश्‍लेषण होना स्‍वाभाविक है. एक बार फिर मोदी बनाम विपक्ष को लेकर नये समीकरण गढने की कवायद शुरू हो गई है.

बिहार की कुढ़नी विधानसभा सीट का उपचुनाव हारने के बाद बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने फिर से अपनी पुरानी सोच को बुलंद करने की शुरूआत की है और कहा है कि अगर सारा विपक्ष एकजुट हो जाये तो वह अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को हरा सकता है.

उन्‍होंने महागठबंधन के घटक राष्‍ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्‍वी यादव को अपना उत्‍तराधिकारी घोषित कर दिया है और विपक्ष को एकजुट करने का बीड़ा उठाने का मंतव्‍य जाहिर किया है.

साथ ही उन्‍होंने कहा, ‘न तो मैं प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार हूं और न मुख्यमंत्री चेहरा. मेरा एक ही लक्ष्य बीजेपी को हराना है.‘

नीतीश कुमार ने जब ऐलान किया कि 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का नेतृत्व तेजस्वी यादव करेंगे तो सवाल खड़े हो रहे हैं कि इस फैसले के पीछे उनकी कोई राजनीतिक मजबूरी है या फिर एक सोची-समझी राजनीतिक चाल.

यह सवाल भी है कि आखिर नीतीश कुमार ने तेजस्वी के नाम की घोषणा पिछले सप्ताह कुढ़नी उपचुनाव में भाजपा के हाथों मिली जबरदस्त शिकस्त के बाद ही क्यों की.

नीतीश के बयान के बाद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी कहा है कि कई राजनीतिक दल के मुखिया विपक्ष की एकता को लेकर बात कर रहे हैं.


यह भी पढ़ेंः ‘जो पिएगा, वो मरेगा’, बिहार में जहरीली शराब से हुई मौत पर BJP के हंगामे पर बोले नीतीश कुमार


तीन मौकों पर विपक्ष, सत्‍तारूढ़ दल या गठबंधन के खिलाफ हुआ है एकजुट

दोनों नेताओं के पूरे कथन में अगर-मगर, किंतु-परंतु की मजबूरियों को आसानी से देखा जा सकता है. कई संभावनाओं को लेकर समीकरण गढ़े जा सकते हैं लेकिन अब तक तीन बड़े मौकों पर विपक्ष सत्‍तारूढ़ दल या गठबंधन के खिलाफ एकजुट होकर अपने मकसद में सफल रहा है लेकिन ज्‍यादा दिन टिक नहीं पाया.

पहला मौका था इमरजेंसी (आपातकाल), जब वाम दलों को छोड़कर सभी राजनीतिक दल एकजुट हुये और जनता पार्टी का गठन हुआ. जनसंघ समेत कई राजनीतिक दलों के विलय के साथ बनी जनता पार्टी ने सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्‍व में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हराया और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था.

विपक्ष के लिये यह एक बड़ी उपलब्धि थी लेकिन जनता पार्टी ढाई साल भी नहीं टिक पाई. मोरारजी देसाई को हटाकर चौधरी चरण सिंह कांग्रेस की मदद से प्रधानमंत्री बने और उन्‍हें बहुमत साबित करने के लिए 23 दिन का समय दिया गया था लेकिन ठीक एक दिन पहले 19 अगस्त 1979 को इंदिरा गांधी ने समर्थन वापस ले लिया.

संसद का एक दिन भी सामना किये बगैर चरण सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ा. फिर लोकसभा चुनाव हुये और इंदिरा गांधी चुनाव जीत गईं और जनता पार्टी हार गई फिर टुकड़े-टुकड़े में बंट गई.

दस साल बाद राजीव गांधी सरकार के बोफोर्स घोटाले के मद्देनजर सारा विपक्ष एक बार फिर एकजुट हुआ और 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई.

कांग्रेस छोड़कर आये विश्‍वनाथ प्रताप सिंह दो दिसंबर 1989 को प्रधानमंत्री बने लेकिन विपक्ष की एकजुटता अंतर्कलह की शिकार हो गई. उनका शासन एक साल से कम चला और उन्‍हें 10 नवंबर 1990 को इस्‍तीफा देना पडा.

एक बार फिर कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने और एकजुट विपक्ष बिखर गया. पुरानी कहानी दोहरायी गई और कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के बाद चंद्रशेखर सरकार गिर गई. यह वह दौर था जब अयोध्‍या में राममंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन चरम पर था.

1996 के लोकसभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्‍व में भाजपा की सरकार बनी.

बहुमत नहीं होने के कारण वाजपेयी को इस्‍तीफा देना पडा और विपक्ष को एकजुट रखने के लिये बने यूनाइटेड फ्रंट ने कर्नाटक के नेता एचडी देवेगौडा को संसदीय दल का नेता चुना और वह प्रधानमंत्री बने. इस बार भी यूनाइटेड फ्रंट बिखरने लगा और महज दस महीने में कांग्रेस की समर्थन वापसी के बाद देवेगौडा को इस्‍तीफा देना पडा.

फिर 21 अप्रैल 1997 को इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने लेकिन उनका हश्र भी देवेगौडा जैसे हुआ. लोकसभा चुनाव हुये और अटल बिहारी वाजपेयी राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता चुने गये और 19 मार्च 1998 को दोबारा प्रधानमंत्री बने.

उनकी सरकार एक साल बाद लोकसभा में एक मत से हार गई लेकिन अगले लोकसभा चुनाव में राजग स्‍पष्‍ट बहुत हासिल करने में सफल रहा और उसने अपना कार्यकाल पूरा किया.

एकजुटता के नाम पर विपक्ष को एकजुट करने की कवायद अपने आप में जटिल है. वाम दल राजनीति में पहले ही हाशिये पर जा चुका और उनके साथ कई क्षेत्रीय दलों का राजनीतिक दायरा सिमटता जा रहा है.

हर क्षेत्रीय दल की अपनी सीमायें है और अधिकतर एक राज्‍य तक सीमित हैं. खुद नीतीश कुमार का जनता दल बिहार की सरहद पार नहीं कर पाया है.

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल से बाहर नही निकल पाई. द्रमुक एवं अन्‍नाद्रमुक तमिलनाडु तक सीमित है. बीजू जनता दल उडीसा तेलंगाना राष्‍ट्र समिति तेलंगाना और कांग्रेस वाईएसआर आंध्र प्रदेश तक सीमित हैं. दीगर बात यह है कि कोई अपनी जमीन छोडना नही चाहता है.

तीन महीने पहले नीतीश कुमार महागठबंन की सरकार बनाने के बाद देश भ्रमण पर निकल पडे थे और सबसे पहले तेलंगाना के मुख्‍यमंत्री के चंद्रशेखर राव से मिलने के लिये हैदराबाद पहुंचे जो मोदी सरकार से बेहद नाखुश हैं.

दोनो नेता मिले और नीतीश ने ऐलान किया कि इस बार विपक्ष का थर्ड फ्रंट नही बल्कि मेन फ्रंट होगा. फिर दिल्‍ली आ गये और सबसे पहले कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से भेंट की जो अगले ही दिन अपनी पार्टी को संजीवनी देने के लिये भारत जोडो यात्रा के लिये कन्‍याकुमारी रवाना हो गये.

नीतीश ने आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की जो दिल्‍ली में शराब नीति को लेकर अपने उपमुख्‍यमंत्री मनीष सिसोदिया को बचाने में लगे हुये थे.

केंद्रीय जांच ब्‍यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय नई शराब नीति में कथित घोटाले की जांच में अभी भी छापेमारी कर रहा है. केजरीवाल सरकार को मजबूर होकर नई शराब नीति को वापस लेना पडा और फिर से पुरानी शराब नीति लागू करनी पडी.

नीतीश कुमार इंडियन नेशनल लोकदल के नेता ओम प्रकाश चौटाला से भी मिले जो शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल में लंबी सजा काट के बाहर आये थे और 25 सितंबर को पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल की जयंती पर फरीदाबाद में होनेवाली रैली के आयोजन को लेकर व्‍यस्‍त थे.

वह अपनी रैली को सफल बनाने के लिये विपक्षी दलों के नेताओं और गैर भाजपा शासित राज्‍यों के मुख्‍यमंत्रियों को न्‍यौता भेज रहे थे. नीतीश कुमार भी इस रैली के लिये आमंत्रित किये गये थे और वह उसमें शामिल हुये थे.

उनके साथ लालू यादव के बेटे और बिहार के उप मुख्‍यमंत्री तेजस्‍वी यादव साये की तरह साथ रहने लगे हैं. शायद तेजस्‍वी के लिये राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपनी पहचान बनाने का यह एक बढिया मौका है और इसकी आड़ में वह नीतीश पर पूरी नजर रख रहे हैं.

वजह साफ है तेजस्‍वी एक बार नीतीश से धोखा खा चुके हैं और खुद लालू यादव उन्‍हें पालाबदल राजनीति में अव्‍वल समझे जानेवाले नीतीश कुमार से सदैव सतर्क रहने की हिदायत अवश्‍य दी होगी. नीतीश कुमार पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौडा, वाम दलों के नेताओं सीताराम येचुरी और डी राजा से भी मिले थे.

तब भी नीतीश कुमार ने कहा था कि वह प्रधानमंत्री पद की रेस में नही हैं, वह तो भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं ताकि अगले लोकसभा चुनाव में विपक्ष एकजुट होकर भाजपा को चुनौती दे सके.

नीतीश कुमार 1974-77 के बीच जयप्रकाश नारायण आंदोलन से निकले नेता हैं जिसमें कांग्रेस और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ लंबी लडाई लडी गई और इस आंदोलन से जुडे तमाम विपक्ष के नेताओं को इमरजेंसी के दौर जेल में दिन काटने पडे.

वजह साफ थी उस समय हर कोई उसूलों का कायल था और उससे पीछे नही हटना चाहता था. सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण ने नारा दिया, सिंहासन खाली करो जनता आती है, और जनक्रांति की लहर चली जिसमे इंदिरा गांधी की कांग्रेस पतझड के पत्‍तों की तरह सत्‍ता से बाहर हो गई.


यह भी पढ़ेंः फोरेंसिक रिपोर्ट ने की पुष्टि, महरौली के जंगल से मिली हड्डियां श्रद्धा वालकर की ही हैं


देश में लंबे समय से चल रहा है गठबंधन का दौर

देश में गठबंधन की राजनीति का दौर लंबे समय से है और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर इस समय सत्‍तारूढ़ राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के अलावा संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सबसे बडे गठबंधन के रूप में मौजूद है.

लेकिन इन दोनों के बीच लोकसभा में सीटों के हिसाब से बडा फासला है. राजग में भाजपा के पास अकेले ही बहुमत से ज्‍यादा सीटें हैं. नीतीश कुमार बिहार के महागठबंधन के नेता हैं और तीन महीने पहले ही यूपीए का हिस्‍सा बने हैं.

2014 के लोकसभा चुनावों के लिये नरेंद्र मोदी को जब भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार बनाया तब उन्‍होंने वाराणसी और राजकोट से लोकसभा चुनाव लडकर एक तीर से दो निशाना साधा था.

मोदी मूल रूप से गुजराती हैं फिर भी उन्‍होंने वाराणसी लोकसभा सीट को बरकरार रखने का फैसला किया और उनकी पकड गुजरात के साथ उत्‍तर प्रदेश पर भी बन गई. इसका उदाहरण उत्‍तर प्रदेश के पिछले दो विधानसभा चुनाव भी हैं जिसमे मोदी के नेतृत्‍व में भाजपा लगातार दूसरी बार भारी अंतर से जीती.

कहते हैं कि दिल्‍ली की गद्दी का रास्‍ता उत्‍तर प्रदेश से होकर जाता है. पहले उत्‍तर प्रदेश और अब गुजरात की जीत को लेकर भाजपा बार बार यही दोहरा रही है कि मोदी है तो मुमकिन है.

कांग्रेस अपने खोये हुये जनाधार और पार्टी के अंतर्कलह से उबरने की कोशिश कर रही है और उसकी कमजोरी का फायदा खंडित विपक्ष भी उठाने में कोई कसर बाकी नहीं रखता है. खंडित विपक्ष के घटक दल कांग्रेस और वामदलों की जमीन पर पनपे और लंबे समय से फल फूल रहे हैं.

वे कांग्रेस के नेतृत्‍व को स्‍वीकार करने के लिये तैयार नहीं दिखते. खुद नीतीश कुमार बिहार में शराबबंदी को लेकर अक्‍सर घिरते नजर आते हैं. वह यूपीए का संयोजक बनने की मंशा रखते है और कई बार पाला बदलने के कारण उनकी छवि और कृत्‍य को लेकर राजद के नेता लालू यादव की आलोचना का पात्र बन चुके हैं.

फिलहाल जो स्थिति है उसमे यही समीकरण बन रहा है, मोदी बनाम खंडित विपक्ष. चुनावी गणित और उसके इतिहास 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेन्‍द्र मोदी के पक्ष को मजबूत करते हैं.

(संपादनः शिव पाण्डेय)


यह भी पढ़ेंः प्रधानमंत्री मोदी ने सरदार पटेल की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की


 

share & View comments