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Tuesday, 23 April, 2024
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उद्धव ठाकरे को राहुल गांधी या शरद पवार से खतरा नहीं लेकिन अजीत पवार पर नज़र रखना क्यों है ज़रूरी

राहुल गांधी खुद को महाराष्ट्र के कोविड-19 संकट से अलग-थलग कर रहे दिखते हैं और भले हीं शरद पवार ने कमान संभाली हो, परंतु उद्धव सरकार के लिए खतरा कहीं और से है.

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महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ तीन पार्टियों के महागठबंधन महाविकास अगाड़ी (एमवीए) के पांच वरिष्ठ नेताओं ने दिप्रिंट के साथ बात करते हुए बताया कि महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार की स्थिरता इस बात से खतरे में नहीं आती कि उसे राहुल गांधी का समर्थन प्राप्त होता है या नहीं.

इन पांचों में शिवसेना और कांग्रेस के दो-दो और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के एक नेता शामिल हैं. यही तीन दल महाविकास अगाड़ी के मुख्य घटक हैं.

इन नेताओं का मानना ​​है कि ठाकरे को शिवसेना के प्रति राहुल गांधी की राजनीतिक उदासीनता अथवा राकांपा प्रमुख शरद पवार- जिनके हर कदम से, यहां तक ​​कि राजभवन के दौरे से भी, तीव्र राजनीतिक उत्सुकता और साजिश की शंका जगती है- की राजनैतिक चातुरी से डरने की कतई जरूरत नहीं है.

सेना और कांग्रेस के उपर्युक्त नेताओं के अनुसार अगर वाकई में ठाकरे को किसी पर नज़र रखनी है तो वो हैं उनकी अपनी सरकार के उप- मुख्यमंत्री और एनसीपी प्रमुख के भतीजे अजीत पवार, जिनके हिंदुत्व का जनक माने जाने वाले वी.डी. सावरकर के चित्र का माल्यार्पण करने के फैसले से राजनैतिक हलकों में खलबली मची हुई है.

शिवसेना के नेताओं में से एक का दावा है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने स्वयं हीं शरद पवार को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलने का सुझाव दिया था ताकि उन्हें मौजूदा राजनीतिक और प्रशासनिक गतिविधियों को ठीक से समझने में मदद मिले.

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एनसीपी के एक नेता ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा, ‘पवार साहब के दोबारा सीएम बनने का कोई सवाल ही नहीं उठता है. हां, उद्धव ठाकरे की कार्यशैली पर कुछ सवाल ज़रूर उठे हैं, लेकिन यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है.’


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एनसीपी नेता ने आगे कहा कि पवार साहब हमेशा उनका (उद्धव का) मार्गदर्शन करने के लिए मौजूद रहते हैं.

महाराष्ट्र की राजनीति में राहुल गांधी की अप्रासंगिकता

एमवीए नेता इस बात में एकमत हैं कि कांग्रेस पार्टी के अधिकांश विधायकों का विश्वास कांग्रेस आलाकमान से उठ चुका है. उनमें से अधिकांश का कहना है कि ज़रूरत पड़ने पर वे पाला बदलने के बारें में ज़्यादा सोचविचार नहीं करने वाले.

इनमें से एक अत्यंत प्रभावशाली विधायक का कहना था, ‘वे जानते हैं कि (पूर्व मुख्यमंत्री) देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा सरकार के तहत चार साल या अधिक का कार्यकाल कांग्रेस को महाराष्ट्र में पूरी तरह से ख़त्म कर देगा. वे महाराष्ट्र में अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए दलबदल सहित हर कीमत पर सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा बने रहने के लिए तैयार हैं.’

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें विश्वास है कि दलबदल-विरोधी कानून से बचने के लिए आवश्यक न्यूनतम दो-तिहाई कांग्रेसी विधायक विद्रोह कर सकते हैं, उन्होंने कहा, ‘दो-तिहाई? मैं तो चार बटा पांच (80%) बोलूंगा.’

वास्तव में, महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार की स्थिरता के बारे में कई सारी अटकलें उनके शपथ ग्रहण के पहले दिन से ही लगती रही हैं, क्योंकि राहुल गांधी और उनके सहयोगी शिवसेना के साथ हाथ मिलाने के विचार का तीव्र विरोध करते रहे हैं.

हालांकि, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने काफी मशक्कत के बाद सोनिया गांधी को भारत की व्यावसायिक राजधानी में- जिसे केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की आर्थिक मजबूती में प्रमुख योगदान के लिए जाना जाता है- भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए शिवसेना के साथ हाथ मिलाने के लिए मना हीं लिया था.

कांग्रेस के अंदरूनी हलकों में एक खुला रहस्य है कि कैसे राहुल गांधी शिवसेना का सहयोगी बनने के विचार से कभी भी सामंजस्य नहीं बना सके और उनकी यह बेचैनी पिछले सप्ताह खुल कर सामने आई जब उन्होंने कहा कि कांग्रेस केवल ठाकरे सरकार का ‘समर्थन’ कर रही थी, न कि उसका नेतृत्व कर रही है.

देश भर में कोविड-19 के लगभग एक तिहाई मामलों के साथ एक बड़े कोविड हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहे महाराष्ट्र की छवि की पृष्ठभूमि में राहुल गांधी द्वारा दिया गया यह बयान ठाकरे सरकार के कोविड संकट के कुप्रबंधन से कांग्रेस को दूर करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में कांग्रेस के 44 विधायक मिलकर एमवीए के 154 सदस्यों का एक महत्वपूर्ण घटक हो सकते हैं, लेकिन यहां ठाकरे सरकार के बारे में राहुल गांधी की राय ज्यादा मायने नहीं रखती है.

कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री ने हमें बताया, ‘उन्होंने (राहुल गांधी ने) महाराष्ट्र में सिर्फ दो चुनावी सभाओं को संबोधित किया था और वे कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत में किसी भी भूमिका का दावा नहीं कर सकते. वैसे भी कांग्रेस के सभी विधायक इसका यथासंभव श्रेय शरद पवार को हीं देते हैं, जिन्होंने विधानसभा चुनाव में विपक्ष की लड़ाई का बखूबी नेतृत्व किया.’


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महाराष्ट्र में 1999 से 2014 तक सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस के साथ उनका जूनियर पार्टनर बने रहने के बावजूद पिछले विधानसभा चुनाव में एनसीपी एक मजबूत ताकत बनकर उभरी थी. राज्य में बिना पतवार वाली कांग्रेस की कीमत पर उसने पश्चिमी महाराष्ट्र से परे भी अपने प्रभाव क्षेत्रों के विस्तार पर काम किया है. एमवीए के सूत्रों का मानना ​​है कि तीनों सत्तारूढ़ घटकों में केवल कांग्रेस हीं सरकार में कनिष्ठतम साझेदार होने के बावजूद लगातार गिरावट का सामना कर रही है. अगर हम भारत के राजनीतिक इतिहास को देखें तो यह तमिलनाडु से बिहार तक फैलने का एक चिरपरिचित स्वरूप (पैटर्न) जैसा हीं है.

अजीत पवार का ‘गेम प्लान’

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री द्वारा हिंदुत्व के प्रखर विचारक सावरकर के चित्र पर माला पहनाने के फैसले से पार्टी में कई लोगों की भौंहे तनी हुई है. आख़िर यह पहली बार है कि एनसीपी के किसी प्रमुख नेता ने ऐसा किया हो.

उनकी हीं पार्टी के एक सहयोगी, जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है, ने इसके महत्व को कम करके आंकने का आग्रह करते हुए कहा, ‘हमने कभी भी वीर सावरकर का विरोध नहीं किया, हालांकि हम उनके हिंदुत्व दर्शन से भी सहमत नहीं हैं. पूरे महाराष्ट्र में उनका अत्यंत सम्मान किया जाता है. मुझे नहीं पता कि उन्होंने (अजीत पवार ने) उनके चित्र को माल्यार्पित करने का फैसला क्यों और कैसे किया, लेकिन इसे बहुत अधिक तूल नहीं जाना चाहिए.’

लेकिन एमवीए में बहुत सारे लोग इस स्पष्टीकरण के बारे में आश्वस्त नहीं हैं, खासकर इस तथ्य को देखते हुए कि कैसे अजीत पवार ने पिछले साल नवंबर में देवेंद्र फडणवीस को सीएम के रूप में समर्थन दे खुद डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली थी. वह भी तब जबकि उनके सगे चाचा एमवीए को अंतिम स्वरूप देने की प्रक्रिया में लगे हुए थे.

हालांकि बाद में चाचा और भतीजे के बीच सुलह हो गई थी, लेकिन फिर भी साझा राजनीतिक और व्यावसायिक हितों वाले बारामती के पवार परिवार के बीच पनप रहीं गहरी दरार सबके सामने आ चुकी थी. एनसीपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, अजीत पवार इस बात से खुश नहीं हैं कि शरद पवार और उनके साथ हीं उनकी बेटी सुप्रिया सुले भी, पार्थ पवार (अजीत के बेटे) की कीमत पर अपने भतीजे रोहित पवार को बढ़ावा दे रहे हैं. शरद पवार की राजनीतिक विरासत का अनसुलझा सवाल अभी भी उनके भतीजे और उनकी बेटी के बीच एक बड़ा रोड़ा बना हुआ है.


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इन्हीं सब पृष्ठभूमि के कारण, एमवीए के नेतागण अजीत पवार द्वारा सावरकर के चित्र को माला पहनाने के कदम को सवालिया निगाहों से देख रहे हैं. उनका मानना ​​है कि इसका मकसद भाजपा के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को संदेश भेजने का भी था.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री का मानना ​​है कि अजीत पवार भविष्य में किसी भी मोड़ पर एनसीपी में या फिर एमवीए में सत्ता-संघर्ष की स्थिति में अपने विकल्प खुले रख रहे हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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