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Friday, 3 May, 2024
होमदेशशौचालय, सड़क बनवाने और गांवों में बिजली पहुंचाने के बाद अब कोरोना संकट से निपट रही हैं मुखिया रितु जायसवाल

शौचालय, सड़क बनवाने और गांवों में बिजली पहुंचाने के बाद अब कोरोना संकट से निपट रही हैं मुखिया रितु जायसवाल

सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया रितु जायसवाल ने बिहार के इस अत्यंत पिछड़े, उपेक्षित, बाढ़ प्रभावित क्षेत्र को बदलने के लिए दक्षिण दिल्ली के सिरी फोर्ट इलाके में रहने वाले एक आईएएस अधिकारी की पत्नी के रूप में अपनी शानदार जीवन शैली को त्याग दिया.

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सीतामढ़ी: कोरोना महामारी के चलते देश में लगे अभूतपूर्व लॉकडाउन और सख्त नियमों के चलते स्थानीय प्रशासन और लोकल अधिकारियों के रोल महत्वपूर्ण हो गए हैं. इसके साथ ही गांवों में लौट रहे प्रवासी मजदूरों के लिए क्वारेंटीन सेंटरों की स्थापना, परिवारों तक राशन पहुंचाना और रोज़गार के अवसर पैदा करने जैसे कई जरूरी कामों का ज़िम्मा ग्राम प्रधानों या मुखियाओं पर आ गया है.

बिहार के सीतामढ़ी जिले की सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया रितु जायसवाल की ज़िम्मेदारी भी उतनी ही बढ़ गई है. आमतौर पर जब आप ग्राम प्रधान के बारे में सोचते हैं तो दिमाग में मूंछों वाले, कुर्ता पजामें पहने किसी पचास की उम्र के पुरुष की ही छवि उभर कर आती है. लेकिन 43 वर्षीय रितु जायसवाल इसका अपवाद हैं.

सिंहवाहिनी पंचायत के अंतर्गत आने वाले सात गांवों के लिए इस महामारी के दौरान रितु जायसवाल की भूमिका अति महत्वपूर्ण हो चली है.

जिला हेडक्वार्टर्स से जब हम नेपाल बॉर्डर की तरफ आगे बढ़े और सिंहवाहिनी पंचायत में प्रवेश कर रहे थे, तो दीवारों पर क्वारेंटीन, लॉकडाउन नियमों और कोरोना वायरस को लेकर बड़े-बड़े पोस्टर दिखे.

कोरोना के खिलाफ जागरूकता के लिए लिखा स्लोगन। फोटो : ज्योति यादव/ दिप्रिंट

एक जगह लिखा था, गुटखा थूकने पर पांच सौ रुपए का जुर्माना. दूसरी जगह लिखा था- लॉकडाउन के नियमों का पालन करें. तीसरी जगह पीएम मोदी द्वारा बताई गई कोरोना की फुल फॉर्म- कोई रोड पर ना निकले लिखी हुई थी.

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ये सारे पोस्टर रितू के बहुत सारे प्रयासों का एक हिस्सा हैं. रितू ने गांव की महिलाओं से बड़े स्तर पर मास्क और फिनाइल बनवाना शुरू किया है.

रितू दिप्रिंट से कहती हैं, ‘फिनाइल और मास्क की डिमांड बढ़ गई है. इससे इन महिलाओं के हाथों में कैश भी आसानी से उपलब्ध हो रहा है. ऐसे में जिनके पति बाहर फंस गए हैं, वो अपने घर का खर्चा निकाल सकती हैं.’

रितू बताती हैं कि ये आइडिया उन्हें तब आया जब पता चला कि गांवों की महिलाओं ने साहूकारों से मोटी दरों पर ब्याज लेना शुरू कर दिया है. ताकि वो बाहर फंसे अपने पतियों तक पैसे पहुंचा सकें. मास्क की कीमत 20 रुपए प्रति मास्क है और फिनाइल तीन सौ रुपए प्रति लीटर.

रितू के मुताबिक रीवर्स माइग्रेशन से घरेलू हिंसा के केस बढ़ने की संभावना है. इसलिए उनकी कोशिश है कि महिलाओं और पुरुषों, दोनों के लिए रोजगार के अवसर पैदा किए जाएं.


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रितू कहती हैं, ‘मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराने व मास्क, हैंड वॉश और फिनाइल बनवाने के अलावा मैं पंचायत की एक वेबसाइट लॉन्च करने की भी सोच रही हैं जहां हम अपनी पंचायत के प्रोडेक्ट्स की ब्रांडिंग कर सकेंगे. घी से लेकर कपूर तक, तेल से लेकर बेसन तक, सारे सामान को ऑनलाइन बेचने की कोशिश की जाएगी.’

साउथ दिल्ली से बिहार के गांव तक का सफर

हाजीपुर की रहने वाली जायसवाल 2013 में सिंहवाहिनी में पहली बार आने से पहले अपने पति के साथ साउथ दिल्ली के सिरी फोर्ट के पास रहती थीं. उन्हें अपनी पहली यात्रा अभी भी अच्छे से याद है जब इस पंचायत के गांवों ने कभी बिजली, साफ पीने का पानी और शौचालय तक नहीं देखे थे.

वो अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, ‘जब मैं आई तो मुझे नदी में से चप्पल हाथ में लेकर जाना पड़ा, मैले में पैर जा रहे थे तो मुझे प्रेम चंद की कहानियां याद आईं. लेकिन मुझे तकलीफ भी हुई कि इस गांव के लोगों को गरीबी में जीवन काटना पड़ रहा है. यहां की औरतें और बच्चे कुपोषित थे. गांव में युवा नजर नहीं आते थे. सिर्फ प्रेग्नेंट औरतें, बुजुर्ग और बच्चे व विधवा महिलाएं ही थीं.

दिल्ली की आरामदायक जिंदगी जीने के चश्में से देखने वाली रितू को गांव के इस अनुभव ने पूरी तरह बदल दिया. उसके बाद वो हर छह महीने में गांव की स्थिति बेहतर करने के लिहाज से आती रहीं. आखिरकार 2016 में उन्होंने अपनी शहरी जिंदगी को छोड़कर बाढ़ प्रभावित इस पंचायत की मुखिया का चुनाव लड़ा और वो जीत गईं.

चुनाव से पहले ही रितू ने इन गांवों तक बिजली लाने का काम शुरू कर दिया था. 2017 की शुरुआत में इस इलाके में बिजली आ चुकी थी.

अक्टूबर 2016 में रितू के मुखिया बनने की तीन महीने बाद ही सिंहवाहिनी पंचायत को खुले में शौच से मुक्त पंचायत घोषित किया गया. उस साल जुलाई और सिंतबर महीने के बीच कम से कम 2500 शौचालयों का निर्माण किया गया.

उसी साल रितू को ‘उच्च शिक्षित आदर्श युवा सरंपच’ का खिताब मिला. ये अवॉर्ड पाने वाली वो बिहार की इकलौती मुखिया थीं.

सीतामढ़ी जिले के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ‘रितू ने निस्सदेंह ही सिंहवाहिनी पंचायत की शक्ल बदली है. वो इस इलाके में अपनी लगन और मेहनत को लेकर जानी जाती हैं. गांवों की स्थिति बदलने में उनकी मेहनत का काफी योगदान है.’

पारिवारिक समर्थन

वैशाली महिला कॉलेज में इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएशन करने के बाद 1995 में रितू की शादी अरुण कुमार से हुई थी. अरुण कुमार सेंट्रल विजिलेंस कमीशन में कमीशनर रह चुके हैं. अरूण की पोस्टिंग के हिसाब से रीतू जबलपुर, नागपुर, मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में रह चुकी हैं.

दोनों के दो बच्चे हैं. जब रितू ने मुखिया के चुनाव लड़ने के बारे में सोचा तो पति-पत्नी की पहली चिंता बच्चों को लेकर थी. लेकिन पूरे परिवार ने मिलकर ये तय किया कि बच्चे बोर्डिंग स्कूल में भेजे जाएंगे.

रितू के बेटे 19 वर्षीय रित्विक बेंगलुरु में रहते हैं. वो इग्नू से ग्रेजुएशन करने के साथ सिविल सर्विस के एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं. रितू की बेटी अवनी फिलहाल 12वीं कक्षा में हैं.

अरूण रितू की जर्नी को लेकर कहते हैं, ‘मैं नारीवादी हूं. इसलिए जब रितू ने फैसला किया कि उन्हें चुनाव लड़ना है तो एक परिवार के तौर पर मैंने और हमारे बच्चों ने उनके फैसले का समर्थन किया. मुखिया बनने से पहले भी सोशल वर्क के कामों से जुड़ी थीं. उनकी लगन और मेहनत की हमेशा ही सराहना की जाती रही है. लगन और मेहनत ही वो कारण रहे जिसके दम पर उन्होंने सिंहावाहिनी पंचायत में कुछ बुनियादी बदलाव लाए.’ अरूण रिटायरमेंट के बाद पटना में मैग्नस आईएएस नाम की एक कोचिंग संस्था चलाते हैं. ये संस्था बैकवर्ड कम्यूनिटी के बच्चों को फ्री क्लासेज भी उपलब्ध कराती है.


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वो आगे बताते हैं, ‘आगे भी वो अगर राजनैतिक डिस्कोर्स का हिस्सा बनने के बारे में सोचेंगी तो भी हम उनके साथ पूरी तरह खड़े रहेंगे. लेकिन वो अपनी भागीदारी एक विचारधारा के दम पर ही सुनिश्चित कराएंगी, फिर चाहे वो किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ें.’

2016 तक सिंहवाहिनी पंचायत के सातों गांवों (नरकटिया, खूंठा, करवाहा, बड़ी सिंहवाहिनी, छोटी सिंहवाहिनी, भगवानपुर और जानकीपुर) में सड़कें नहीं थी. सबसे बड़ी समस्या यहां हर साल आने वाली बाढ़ है, जो सब कुछ तबाह करके चली जाती है.

रितू  कहती हैं, ‘हम हर साल काम नए सिरे से शुरू करते हैं और बाढ़ सबकुछ बहाकर ले जाती है. बाढ़ चले जाने पर हम काम फिरसे शुरू करते हैं.’

मुखिया की भूमिका में रितू ने रोड, शौचालय और घर घर तक बिजली पहुंचाने का काम किया है. लेकिन रितू मानती हैं कि सिंहवाहिनी को पूरी तरह बदलने के लिए ना सिर्फ ये सुविधाएं काम आएंगी बल्कि लोगों के नजरिए को बदलना बेहद जरूरी है.

वो कहती हैं, ‘घर में बने शौचालयों के इस्तेमाल को लेकर लोगों में बिहेवियरल चेंज की आवश्यकता होती है. इसलिए हमारे सामने ये चुनौती भी थी कि गांव वालों को समझाएं की खुले में शौच ना सिर्फ उनके लिए हानिकारक है, बल्कि उनके घरों की महिलाओं के लिए भी खराब है. पहले जब रात बेरात महिलाएं शौच के लिए निकलती थीं तो कोबरा अटैक का शिकार तक हो जाती थीं.’

एक अन्य महत्वपूर्ण काम रितू ने जो किया वो ये भी रहा कि उन्होंने इन गांवों महिलाओं के साथ रहे शोषण के प्रति जागरुकता फैलाने का बीड़ा उठाया. उन्होंने गांववासियों के अंधविश्वास को कम करने के लिए ओह माय गॉड और भूल भुलैया जैसी फिल्मों का सहारा लिया.

वो बताती हैं, ‘हमने प्रोजेक्टर्स की मदद से ये फिल्में चलाईं ताकि वो अंधविश्वास के बारे में जागरूक हो सकें. मैं हमेशा से ये मानती रही हूं कि अगर किसी गांव का विकास करना है, तो वहां की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करना होगा. इसलिए मैंने सबसे पहला काम महिलाओं को सशक्त करना शुरू किया. यहां की लड़कियों को टेलरिंग, नर्सिंग और ब्यूटी पार्लर की ट्रेनिंग दिलवाई.’

रितू ने पटना के एनजीओ की मदद से गांव के युवाओं की जागरुक करवाया और उनके दसवीं-बारहवीं की पेपर क्लियर कराने के लिए ट्यूशन का इंतजाम भी कराया.

नरकटिया गांव की बिंदू देवी। फोटो : ज्योति यादव/ दिप्रिंट

नरकटिया गांव की बिंदू देवी बताती हैं, ‘मेरे पिता शहर में कमाने गए थे. वहां बीमार पड़ गए. तब रितू मैम ने मुझे टेलरिंग की क्लास के लिए कहा. टेलरिंग सीखी तो अब मुझे मास्क बनाने का काम मिल गया. इसके अलावा कपड़े भी सीलने शुरू किए हैं. ‘

महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए रितू ने यहां की महिलाओं को जीविका के तहत लोन दिलाकर भैंस और बकरी पालने के लिए प्रोत्साहित किया.

सिंहवाहिनी पंचायत के राम छबीला राय, जोकि एक सरकारी अध्यापक है कहते हैं, ‘रितू जी ने ना सिर्फ इन गांवों का ढांचा बदल दिया है बल्कि उन्होंने हमारे वोट देने के पैटर्न को भी बदला है. पहले हम जाति के आधार पर वोट देते थे. लेकिन अब यहां के लोगों को समझ आया है कि जो बदलाव ला सके, उसे भी तो जिताया जा सकता है.’

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