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Friday, 26 April, 2024
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बिहार में शहरों से लौटे प्रवासियों ने महिलाओं के लिए नया संकट पैदा किया- कर्ज के चंगुल का

अपने परिवार का पेट भरने और बाहर के राज्यों में फंसे हुए पति और बेटों को पैसा भेजने के बोझ ने बिहार में एक बहुत ख़तरनाक प्रवृति को जन्म दे दिया है, इसकी वजह से महिलाएं ऊंची ब्याज दरों पर साहूकारों से पैसा उधार ले रही हैं.

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सीतामढ़ी : कोरोनावायरस के कारण हुए लॉकडाउन ने प्रवासी श्रमिकों के परिवारों की महिलाओं के जीवन को बदतर स्थिति में बदल दिया है.

उदाहरण के लिए बिहार के सीतामढ़ी जिले में वापस लौट रहे पुरुषों के पास कोई पैसा या परिवार को पालने के लिए कोई आमदनी नहीं है और दूसरा ये कि इन महिलाओं को अपने परिवार के फंसे हुए लोगों को पैसे भेजने पड़ते हैं, ताकि लॉकडाउन में वो अपना गुज़ारा कर सकें और घर लौटने के लिए (निजी बसों और ट्रक को) किराया अदा कर सकें. परिवार का पेट भरने का बोझ भी अब पूरी तरह महिलाओं के ही कंधों पर है, क्योंकि प्रवासी शहरी मज़दूर, जो पहले घर के लिए पैसा भेजता था. देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से अब उसके पास देने के लिए कुछ नहीं है.

प्रवासी मज़दूरों की घर वापसी के साथ ही घर का आर्थिक बोझ पूरी तरह घर की महिला पर आ गया है.इसके कारण एक बहुत ख़तरनाक प्रवृति सामने आई है, जिसमें महिलाएं ऊंची ब्याज दरों पर साहूकारों से पैसा उधार ले रही हैं. 1974 के बिहार मनी लेंडर्स एक्ट के तहत राज्य सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं किए गए निजी मनी लेंडर्स को पैसे उधार देने से रोक दिया जाता है.

दिप्रिंट ने सीतामढ़ी के तीन गांवों का दौरा किया- जानकी नगर, मल्हाटोला, और कहरवा- (सिंहवाहिनी पंचायत का हिस्सा) जिसमें कुल 7 गांव हैं- इन महिलाओं द्वारा झेले जा रहे, इस संकट के बारे में और अधिक जानने के लिए.

दिप्रिंट ने निजी बसों और ट्रकों के ज़रिए यूपी और बिहार में लौट रहे प्रवासी मज़दूरों के बहुत से समूहों से बात की थी. ऐसे ही एक मामले में, राजस्थान के अलवर से निजी बस में यूपी के अपने गांव लौट रहे प्रवासी मज़दूरों के एक ग्रुप ने दि प्रिंट को बताया था कि उन्होंने वो बस 1,60,000 रुपए में बुक की थी, जिसमें प्रति व्यक्ति किराया 3,670 रुपए था, और इस पूरी रक़म का इंतज़ाम, उनकी पत्नी या मां ने किया था.

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साहूकारों से ज्यादा दर पर पैसे लेने को मजबूर

55 वर्षीय इंदु देवी के तीन बेटे- अशोक, आलोक व संतोष (कंस्ट्रक्शन में दिहाड़ी मज़दूर) पंजाब में फंसे हैं. मल्हाटोला में उसके परिवार में कुल 9 लोग हैं, जिनमें 2 से 6 साल की उम्र के 3 बच्चे हैं. तीनों बेटों के फंस जाने की वजह से, परिवार को चलाने का पूरा ज़िम्मा देवी के कांधों पर आन पड़ा है. साथ ही देवी को आलोक की 7 महीने की गर्भवती पत्नी की, डिलीवरी के लिए भी पैसों का प्रबंध करना है, क्योंकि उसे नहीं मालूम कि उसके बेटे कब आएंगे और कुछ आर्थिक सहायता कर पाएंगे. इस सब ने इंदु देवी को पैसा उधार लेने के लिए गांव के साहूकारों के दर पर जाने को मजबूर कर दिया है.

मल्हटोला गांव के एक स्थानीय साहूकार से कर्ज लेने वाली की इंदु देवी। फोटो: ज्योति यादव/ दिप्रिंट

इंदु देवी ने ये भी कहा, ‘मेरे पास कोई ज़मीन नहीं है, मैं सिर्फ गाय और बकरी का दूध बेंचकर गुज़ारा करती हूं, जो मैंने जीविका ऋण कार्यक्रम के तहत (लॉकडाउन से पहले) लोन लेकर ख़रीदीं थीं.’

इंदु देवी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे अपने बेटों को पैसा भेजना पड़ता है, उनका ठेकेदार उनसे किराए और खाने का पैसा मांग रहा है. अभी तक मैं 50,000 रुपए उधार ले चुकी हूं, जिसका ब्याज 5 प्रतिशत है. उसमें से 20,000 हज़ार रुपए मैंने आलोक, अशोक और संतोष को भेजा है और 30,000 घर के ख़र्च और रागिनी की डिलीवरी के लिए अपने पास रखे हैं.’

उन्होंने यह भी कहा, ‘अगर वो मुझे और ज्यादा ब्याज पर क़र्ज़ देंगे, तब भी मैं उधार लूंगी, क्योंकि इस परिवार का बोझ मेरे ऊपर है और मैं बच्चों को भूख से नहीं मरने दूंगी. मेरे बेटों की अब कोई आय नहीं है, पहले वो हमारे ख़र्च के लिए पैसा भेजते थे.’ इंदु देवी के पति की बहुत पहले ही मौत हो गई थी.(उसे नहीं याद कितना समय हो गया है).

ये पूछे जाने पर कि उन लोगों ने केंद्र सरकार की स्पेशल ट्रेन, श्रमिक एक्सप्रेस से घर लौटने की कोशिश क्यों नहीं की, इंदु देवी चिंता और परेशानी के साथ बोली, ‘मुझे नहीं मालूम कि वो श्रमिक एक्सप्रेस से घर क्यों नहीं आ पा रहे हैं. मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूं कि समझ सकूं. जब उनसे पूछती हूं, तो वो कहते हैं कि हम कोशिश कर रहे हैं.’

जानकी नगर की बिंदु देवी की कहानी भी लगभग वैसी ही है. बिंदु देवी का पति, जो एक कपड़े की दुकान पर काम करता था, मुज़फ़्फ़रपुर में फंसा हुआ है.

जानकी नगर की बिंदु देवी। फोटो: ज्योति यादव/ दिप्रिंट

देवी ने बताया, ‘उसके पास खाने, मोबाइल रीचार्ज कराने या किराया देने का भी पैसा नहीं है. मैं 15,000 रुपए क़र्ज़ लेकर उसका फोन रीचार्ज करा रही हूं और उसे पैसा भेज रही हूं.’ देवी ने बताया कि साहूकारों ने न केवल ब्याज 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 5-6 प्रतिशत कर दी है, बल्कि कभी-कभी क़र्ज़ देने में भी हिचकते हैं.


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उसने ये भी कहा,’अगर वो ब्याज दर बढ़ा भी देंगे, तब भी मुझे क़र्ज़ लेना पड़ेगा, कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है.’

प्रशासन की प्रतिक्रिया

जब दिप्रिंट ने गांवों में साहूकार से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया. सीतामढ़ी के पुलिस अधीक्षक अनिल कुमार ने कहा कि इस संबंध में अब तक कोई शिकायत नहीं मिली है, लेकिन वे नजर बनाए हुए हैं.

कुमार ने कहा, निजी धन उधार (अपंजीकृत उधारदाताओं द्वारा) देना एक अवैध अपराध है और जब भी कोई शिकायत करता है, तो हम तत्काल कार्रवाई करते हैं. हमने अपने थाना प्रभारी को लोगों को उच्च ब्याज दरों पर निजी ऋणदाताओं से ऋण नहीं लेने के लिए जागरूकता वर्कशॉप के माध्यम से बताने के लिए भी कहा है.

उन्होंने कहा, अब तक, इन महिलाओं द्वारा आधिकारिक रूप से कार्रवाई करने के लिए कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है. हम नज़र रख रहे हैं.

दिप्रिंट ने संदेश और फोन कॉल के माध्यम से सीतामढ़ी के जिला मजिस्ट्रेट तक पहुंचने की भी कोशिश की, लेकिन उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

मुखिया का प्रयास

सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया रितु जायसवाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘इन परिवारों के लोग घर पैसा भेजा करते थे, लेकिन मौजूदा हालात में, आर्थिक दबाव ने महिलाओं को 5-6 प्रतिशत की दर पर उधार लेने को मजबूर कर दिया है. इसकी वजह से लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद भी, इनकी हालत और बिगड़ेगी. काफी संभावना है कि अब घरेलू हिंसा के मामले भी बढ़ सकते हैं.’

 

सिंहवासिनी पंचायत की एक महिला फिनाइल बनाते हुए | फोटो: ज्योति यादव/ दिप्रिंट

पंचायत निधि योजना के तहत पंचायतें मास्क का उत्पादन कर रही हैं और जिला के अधिकारी उनसे प्रति मास्क 20 रुपये की दर से खरीदते हैं. 5 लीटर फिनाइल के लिए 300 रु देना होता है.

मुखिया ने ये भी कहा, ‘जब मुझे पता चला कि ये महिलाएं साहूकारों से उधार ले रही हैं, तो मैंने उन्हें मास्क और फिनायल बनाने के काम में लगाकर रोज़गार देने का फैसला किया, क्योंकि आजकल उनकी बहुत मांग है. लॉकडाउन से पहले भी मैंने उन्हें बिहार सरकार के फ्लैगशिप प्रोग्राम ‘जीविका’ के तहत क़र्ज दिलाए थे, जिससे उन्होंने गाय और बकरियां ख़रीदीं थीं. कुछ महिलाओं को ज़्यादा क़र्ज़ नहीं लेने पड़े, क्योंकि अपने फंसे हुए मर्दों को पैसा भेजने और घर ख़र्च चलाने के लिए, उन्होंने ये गाय और बकरियां बेंच दीं.’

राज्य सरकार ने मदद के लिए क्या किया है?

बिहार सरकार ने 20 मई को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि राज्य के 20 लाख से अधिक लोगों को प्रधानमंत्री राहत कोष से 1,000 रुपये प्रदान किए जायेंगे. इसमें कहा गया है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) और अन्य राज्य सरकार की योजनाओं जैसे जन हरियाली और हर घर नल से जल के तहत 2 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान किया जायेगा.

विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि जीविका और राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन योजनाओं के तहत लगभग 13 लाख परिवारों को जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उनके खातों में 1,000 रुपये दिया जायेगा.

बिहार सरकार के सूचना मंत्री नीरज कुमार सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि दस लाख महिलाएं पहले से ही जीविका से जुड़ी हुई हैं और हम इस योजना के तहत महिला प्रवासी श्रमिकों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं. राज्य सरकार अगले दो महीनों के लिए मुफ्त राशन प्रदान करने की योजना बना रही है.

उन्होंने कहा, ‘हम उन प्रवासी श्रमिकों को भी जॉब कार्ड प्रदान कर रहे हैं, जिनके पास कार्ड नहीं है, ताकि उन्हें मनरेगा के तहत तत्काल आधार पर रोजगार मिल सके.’

दिल्ली विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ सोशल वर्क के प्रोफेसर और राज्यसभा सांसद मनोज के झा ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रधान से ज़्यादा इस मामले में राज्य सरकार को दख़ल देने की ज़रूरत है. इन महिलाओं के जीवन को आसान बनाने के लिए, सरकार की ओर से जन धन योजना के तहत दी जाने वाली रक़म, अगले चार महीने के लिए 500 रुपए से बढ़ाकर क़रीब 7000 रुपए करने की ज़रूरत है.

झा ने कहा, ‘इसके अलावा मनरेगा राशि को भी 202 रुपए से बढ़ाकर 400 रुपए और रोज़गार के दिन 100 से बढ़ाकर 200 करने की आवश्यकता है. राज्यों को गंभीरता के साथ क़र्ज़ की इस प्रवृति को कम कराना चाहिए, अन्यथा ये महिलाएं साहूकारों का शिकार बनती रहेंगी और बहुत लम्बे समय तक क़र्ज़ के बोझ तले दबी रहेंगी.’

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