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Sunday, 24 November, 2024
होमराजनीतिउत्तर प्रदेश में जाटों और मुसलमानों की एकता देखकर क्यों उड़ गयी हैं भाजपा की नींद

उत्तर प्रदेश में जाटों और मुसलमानों की एकता देखकर क्यों उड़ गयी हैं भाजपा की नींद

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कई लोग आरएलडी को वोट देंगे लेकिन सिर्फ इसलिए क्योंकि उम्मीदवार एक मुस्लिम है; कहिये,जाट-मुस्लिम एकता अतीत की बात।

कैराना: कैराना लोकसभा के उपचुनाव को बीजेपी के खिलाफ संयुक्त विपक्ष की शक्ति का एक और परीक्षण माना जा रहा है,लेकिन इस प्रतियोगिता के मूल में सवाल यह है कि क्या मुसलमान 2013 के दंगों को भूल सकते हैं और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार को वोट देने के लिए जाटों के साथ हाथ मिला सकते हैं।

अपने पारंपरिक मतदाता आधार, जाटों के सफल समेकन और मुसलमानों के कारण पश्चिमी यूपी क्षेत्र में आरएलडी एक प्रमुख बल था।लेकिन 2013 के दंगों के बादमुस्लिम और जाट एक दूसरे से दूर हो गए। परिणामस्वरूप आरएलडी को 2014 के लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं मिल पाई।

अब 28 मई को आयोजित होने वाले कैराना के उपचुनाव में आरएलडी को वोट देने के लिए मुस्लिम एक बार फिर जाटों के साथ पंक्तिबद्ध हो रहे हैं। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि वे अतीत को भूल गए हैं।

संबंधित मुद्दा दंगों की एक श्रृंखला है जिसने अगस्त 2013 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश को हिला दिया था। कावल गांव में इन दंगों की उत्पत्ति हुई थी, जहां दो जाट युवकों, सचिन और गौरव ने कथित रूप से एक जाट लड़की का पीछा करने पर एक मुस्लिम लड़के शाहनवाज को कथित तौर पर मार डाला था। क्रोधित मुसलमानों ने प्रतिशोध में दोनों भाइयों को मार डाला।

यह क्षेत्र के दोनों समुदायों के बीच हिंसा की व्यापक घटनाओं का शुरुआती बिंदु था, जिसमें अगले दो महीनों में 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे। हजारों मुस्लिम परिवारों को अपने गांव छोड़ने पड़े और स्थानीय प्रशासन द्वारा स्थापित अस्थायी शिविरों में स्थानांतरित होना पड़ा। बाद में उन्होंने अपनी भूमि और घरों को अपने संबंधित गांवों के जाटों को कौड़ी के भाव बेच दिया।

असर

हिंसा का प्रभाव2014 के लोकसभा चुनावों में महसूस हुआ, जब जाटों ने भाजपा के लिए बड़े पैमाने पर मतदान किया। कैराना मेंभाजपा सांसद हुकुम सिंह ने सपा उम्मीदवार नाहिद हसन के खिलाफ 1.3 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की।

2017 के विधानसभा चुनावों मेंजब जाट आरएलडी के खेमे में लौटने लगे तोमुसलमानों ने व्यापक रूप से पार्टी को अनदेखा कर दिया। आरएलडी के वरिष्ठ नेता जयंत चौधरी कहते हैं, “हालांकि हम हार गए, पर 2014 के मुकाबले 2017 में हमारे वोट बढ़ेहैं। उदाहरण के लिए, शामली विधानसभा सीट में हमें 33,000 अधिक वोट मिले। चूंकि मुसलमानों ने हमें वोट नहीं दिया था। यह जाट ही थे जो वापस आए थे।”

कैराना में जमीन की वास्तविकताओं के प्रति जागरूक आरएलडीने भाजपा कीमृगांका सिंह के खिलाफ एक मुस्लिम उम्मीदवार तबस्सुम बेगम को मैदान में उतारा है। मृगांका हुकुम सिंह की बेटी हैं, फरवरी में जिनकी मौत के कारण यह उपचुनाव करवाने की जरुरत पड़ी है।

लेकिन अगर जाट उन्हें गले लगाने के लिए तैयार हैं, तो मुस्लिम सावधान हैं। जलालाबाद के एक बढ़ई, 52 वर्षीय मोहम्मद साजिद कहते हैं, “हम तबस्सुम के लिए मतदान कर रहे हैं।” “हम (आरएलडी प्रमुख) अजीत सिंह के लिए मतदान नहीं कर रहे हैं। “वे कहाँ थे जब हम निर्दयतापूर्वक मारे गए थे और अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे। जाट उन दंगों को भूल सकते हैं क्योंकि उन लोगों ने ही हमें मारा था, लेकिन हम कैसे भूल सकते हैं? इस क्षेत्र में जाटों और मुसलमानों के बीच कभी एकता नहीं होगी।”

गंगोह में जहाँ सपा विधायक नाहिद हसन एक सभा को संबोधित कर रहे थे, मुस्लिमों ने उन्हीं विचारों को प्रतिध्वनित किया। 23 वर्षीय रियाज सईद कहते हैं, “यदि यह एक मुस्लिम उम्मीदवार का मसला नहीं होता तो हम कंवर हसन (निर्दलीय) के लिए मतदान करते।”
कंवर भी आरएलडी में शामिल हो गए हैं, जो पार्टी को एक बड़ी ताकत प्रदान करते हैं। आरएलडी को इन उपचुनावों में बसपा, सपा और कांग्रेस द्वारा समर्थन मिल रहा है।

आरएलडी ने अपने चुनाव अभियान को विभाजित कर दिया है, तबस्सुम उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेंगी जिनमें पर्याप्त मुस्लिम आबादी है और बाकी क्षेत्रों को जयंत चौधरी द्वारा अभियान के लिए छोड़ा गया है।

चौधरी कहते हैं,”निर्वाचन क्षेत्र को विभाजित करना अपने हमारे लिए बेहतर है ताकि विशिष्ट क्षेत्रों पर उचित ध्यान दिया जा सके। यह पाँच विधानसभा सीटों वाला एक विस्तृत क्षेत्र है और एक व्यक्ति पूरे क्षेत्र को कवर नहीं कर सकता है। “जलालाबाद में इफ्तार पार्टी में भाग लेने के दौरान तबस्सुम ने कहा, “ऐसा कुछ भी नहीं है।जहाँ भी संभव है, मैं सभी क्षेत्रों में जा रही हूँ।”

बेचैन भाजपा

यह सिर्फ जाट-मुस्लिम एकत्रीकरण ही नहीं है जो भाजपा को चिंतितकर रहा है, बल्कि दृढ़ता के साथ आरएलडी के समर्थन में डटे विपक्ष के साथ-साथ दलित मतदाता भी हैं जो पार्टी की तरफ बढ़ते हुए नज़र आ रहे हैं।

कैराना में करीब 16 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 5.6 लाख के साथ सबसे ज्यादा मुस्लिम हैं। 2.5 लाख दलित मतदाता हैं, खासकर जाटव,जबकि जाट मतदाता संख्या 1. 6 लाख है। हालांकि भाजपा की गुर्जर वोटों (1.35 लाख मतदाता) पर मजबूत पकड़ है और इस क्षेत्र में कश्यप (2 लाख), सैनीस (1 लाख) और अन्य ओबीसी समुदायों (1 लाख) से इसे समर्थन प्राप्त है।दलितों और मुस्लिमों के एक साथ आने पर ये कुल 7 लाख मतदाताहैं, जो यहां पार्टी की संभावनाओं को गंभीर रूप से प्रभावित करेंगे।

पार्टी की उम्मीदवार मृगंका सिंह को पता है कि यह उपचुनाव बहुत करीबी प्रतियोगिता होगी। कैराना में उनके निवास पर पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बैठक में, जब आगरा के एक पार्टी कार्यकर्ता ने उन्हें बताया कि वह 2 लाख वोटों से जीतेंगी, तो उन्होंने तुरंत कहा, “ये आर-पार का चुनाव है। 500 वोटों की जीत भी इस बार जीत के रूप में गिनी जाएगी।”

कैराना के पास एक मुस्लिम-प्रभुत्व वाले गाँव जहानरपुरा में, जहाँ उन्होंने बाद में अपने पिता द्वारा किए गए काम को दिलाते हुए अभियान चलाया, एक पार्टी कार्यकर्ता मतदाताओं से कहते हैं, “इस बार करीबी मामला है। आप लोग साथ दे दो दीदी का। बाबूजी ने बहुत काम किया है आपके लिए।”

जाट कारक

जाटों में भाजपा के लिए एक साफ नाराजगी है,विशेष रूप से कृषि के मुद्दों पर,और आरएलडी के लिए स्पष्ट सहानुभूति है। शामली के कसमपुर गाँव के एक 52 वर्षीय किसान ओमवीर सिंह कहते हैं, “मैंने पिछली बार मोदी को वोट दिया था। लेकिन उन्होंने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया। इस बार हम आरएलडी को वोट देंगे क्योंकि यह हमारी पार्टी रही है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उम्मीदवार मुस्लिम है। यह वोट अजीत सिंह के लिए है।”

जयंत चौधरी जिस जाट गाँव का दौरा करते हैं वहां उनका गर्मजोशी से स्वागत होता है। सोंटागाँव में वहाँ के बुजुर्गों ने पार्टी फंड में 11,000 रुपये दान दिए, साथ ही आरएलडी के चुनाव चिन्ह हैंडपंप को वोट देने का वादा भी किया।”चौधरी जनसमूह को बताते हैं कि “1980 में जब वह यहाँ से चुनाव लड़ रही थीं तो मेरी दादी ने आपके गाँव का दौरा किया था। मैं आपका बेटा हूँ और समर्थन के लिए आपके पास आया हूँ। यह आत्म सम्मान के लिए लड़ाई है।”

एक बार चौधरी का भाषण पूरा करने के बाद, गांव के कुछ जाट युवाओं ने उन्हें पास के दलित घरों में जाने का आग्रह किया। युवाओं में से एक शुभम जावला कहते हैं कि, “उन्हें उपेक्षित महसूस नहीं कराना है,बस उन्हें आश्वस्त करना है कि हम उनके साथ हैं।”

चिंतित भाजपा जाटों के गुस्से को कम करने का प्रयास कर रही है। शामली के भाजपा विधायक तेजेंद्र निर्वाल कहते हैं कि “जाट मतदाताओं के बीच हमारे लिये गुस्सा है, वे गन्ने के साथ-साथ अन्य मुद्दों से परेशान हैं। लेकिन यह हमाराआपसी मसला है और हम मतदान दिवस से पहले इसे आपस में ही सुलझा लेंगे।”

पार्टी के जाट नेता संजीव बाल्यान को जाट-वर्चस्व वाले क्षेत्रों में अभियान के लिए नियुक्त किया गया है, लेकिन उन्हें कई अवसरों पर ग्रामीणों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है।वह कहते हैं कि “हमारे बीच कोई समस्या नहीं है और हम सभी एक साथ हैं।वे (जाट मतदाता) कुछ मुद्दों को उठा रहे हैं और हम उन्हें हल कर रहे हैं।इसे यूं नहीं देखा जाना चाहिए कि वे हमसे नाखुश हैं और वह दूसरों को वोट देंगे।”

Read in English: Why the BJP is sleepless over Jats & Muslims joining hands in Uttar Pradesh poll

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