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Tuesday, 2 September, 2025
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2021 SI भर्ती परीक्षा को हाईकोर्ट के रद्द करने पर क्यों अलग-अलग है राजस्थान बीजेपी सरकार के विचार

कांग्रेस सरकार में 2021 में हुई इस परीक्षा पर पेपर लीक और गड़बड़ियों के गंभीर आरोप लगे थे. अब हाईकोर्ट ने परीक्षा रद्द कर दी है.

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नई दिल्ली: मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली राजस्थान की भारतीय जनता पार्टी की सरकार मुश्किल में है. वजह यह है कि राजस्थान हाईकोर्ट की एकल पीठ ने पेपर लीक और भ्रष्टाचार के चलते 2021 की सब-इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा को रद्द कर दिया, जबकि राज्य सरकार ने परीक्षा रद्द न करने की अपील की थी.

13 से 15 सितंबर 2021 के बीच हुई इन परीक्षाओं के 859 पदों के लिए 7.97 लाख से ज्यादा उम्मीदवारों ने परीक्षा दी थी.

यह विवादित परीक्षा अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में कराई गई थी, लेकिन अब इसका असर बीजेपी सरकार पर पड़ रहा है. बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और पेपर लीक के चलते परीक्षा रद्द होने से जहां बीजेपी सरकार की किरकिरी हुई है, वहीं इसने सरकार के भीतर गहरे मतभेद भी उजागर कर दिए हैं. दो कैबिनेट मंत्रियों के बीच सार्वजनिक तौर पर मतभेद सामने आए हैं.

शुरुआत में कड़े कदम उठाने के वादों के बावजूद भाजपा सरकार की देरी और उलझे संदेशों ने कांग्रेस को हमला करने का मौका दे दिया है.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा, जिन्होंने परीक्षा रद्द करने के आंदोलन का नेतृत्व किया था, उन्होंने कोर्ट के फैसले को “सत्य और संघर्ष की जीत” बताया. उन्होंने दावा किया कि उन्होंने मुख्यमंत्री को परीक्षा रद्द करने की सलाह दी थी, लेकिन इसे नज़रअंदाज़ किया गया.

वहीं, कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने सरकार का बचाव करते हुए कहा, “कोर्ट ने परीक्षा रद्द नहीं की, सिर्फ टिप्पणियां की हैं.” लेकिन बाद में उन्होंने अपनी बात वापस ले ली.

करीब एक साल चली सुनवाई के बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने 28 अगस्त को 2021 एसआई परीक्षा रद्द कर दी और राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) के चेयरपर्सन समेत छह सदस्यों को जिम्मेदार ठहराया.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “यह पहचानना मुश्किल है कि किसने ईमानदारी से परीक्षा दी और किसने लीक पेपर से फायदा उठाया, लेकिन अगर एक भी व्यक्ति लीक पेपर के जरिए कांस्टेबल बन जाता है, तो यह ठीक नहीं होगा.”

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सरकार द्वारा बनाई गई समिति ने माना कि धोखाधड़ी संगठित तरीके से हुई थी, पेपर बड़े पैमाने पर बांटे गए थे और इंटरव्यू में भी हेरफेर हुआ था. ऐसे में असली और फर्जी उम्मीदवारों के बीच फर्क करना नामुमकिन है. “भर्ती को बनाए रखना मतलब बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को वैध ठहराना होगा.”

फैसले के तुरंत बाद कृषि मंत्री मीणा ने इसे “बेरोज़गार युवाओं की जीत” करार दिया.

उन्होंने मुख्यमंत्री पर तंज कसते हुए कहा, “जैसे ही दिसंबर 2023 में बीजेपी की सरकार बनी, मैंने मुख्यमंत्री को परीक्षा रद्द करने की सलाह दी. यहां तक कि सरकारी बैठकों में भी मुद्दा उठाया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. सरकार ने SOG और SIT बनाई, लेकिन असली जवाब मुख्यमंत्री ही दे सकते हैं. भाजपा परीक्षा रद्द करके बेरोज़गार युवाओं का दिल जीत सकती थी. हनुमान बेनीवाल (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) ने गहलोत को यह सुझाव दिया था, लेकिन गहलोत ने परीक्षा रद्द नहीं की.”

अब बीजेपी सरकार इस मुद्दे पर दुविधा में है. एक तरफ उसके अपने मंत्री मीणा और विपक्षी नेता बेनीवाल फैसले का जश्न मना रहे हैं. दूसरी तरफ कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उलझन पैदा कर दी, जब उन्होंने कहा, “परीक्षा रद्द नहीं हुई है, यह सिर्फ एक ऑब्ज़र्वेशन है.”

पटेल ने कहा, “अगर आप कोर्ट का फैसला देखें, तो एसआई भर्ती रद्द नहीं हुई है. राज्य सरकार आरपीएससी और कानून विभाग से सलाह लेकर फैसला करेगी.” हालांकि, बाद में पटेल ने बयान बदलते हुए कहा, “कानून विभाग यह देखेगा कि आदेश राज्य सरकार को जारी करना है या RPSC को. कोर्ट के आदेश के बाद सरकार आरपीएससी की राय लेगी.”

राजस्थान के कानून मंत्री ने यहां तक कहा कि प्रभावित उम्मीदवार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं.

इस बीच, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राज्य सरकार के रुख का समर्थन किया.

उन्होंने कहा, “हालांकि, मैंने पूरा फैसला नहीं पढ़ा, लेकिन प्राथमिक तौर पर लगता है कि कोर्ट ने फैसला सरकार पर छोड़ा है. यह ठीक नहीं है कि कुछ लोगों ने गड़बड़ी की और बाकी को इसकी सज़ा मिले. राज्य सरकार इसी नज़रिए से मामले को देख रही है. मुझे लगता है कि फैसले की विस्तार से समीक्षा ज़रूरी है. सरकार की मंशा हमेशा से ही पेपर लीक करने वालों को सज़ा देने की रही है. कई लोगों ने अपनी नौकरी छोड़कर 3-4 साल तक इस परीक्षा की तैयारी की थी.”

कांग्रेस नेता सचिन पायलट, जिन्होंने गहलोत सरकार के खिलाफ यात्रा निकालकर परीक्षा रद्द करने की मांग की थी, उन्होंने कहा, “भजनलाल सरकार ने इस मुद्दे को दो साल तक लटकाए रखा. यह सरकार के मुंह पर तमाचा है. यह सिर्फ ईमानदार उम्मीदवारों का मामला नहीं है, बल्कि पूरी प्रक्रिया और आरपीएससी का है. आरपीएससी का गठन यूपीएससी की तर्ज पर होना चाहिए. किसी को भी छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने का हक नहीं है.”


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बीजेपी का यू-टर्न

भाजपा सरकार का यू-टर्न 2023 में सत्ता में आने के तुरंत बाद ही शुरू हो गया, जब गहलोत सरकार में पेपर लीक हुआ था, तब बीजेपी विपक्ष में थी. उस वक्त पार्टी ने परीक्षा रद्द करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन किया और इसे चुनाव से पहले युवाओं का समर्थन जुटाने का राजनीतिक हथियार बनाया.

बीजेपी ने वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आई तो परीक्षा रद्द की जाएगी और पूरे मामले की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई जाएगी. सत्ता में आने के बाद बीजेपी सरकार ने पेपर लीक मामलों की जांच के लिए एसआईटी गठित भी की.

फरवरी 2024 में स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप ने 2021 की परीक्षा में चयनित प्रशिक्षु एसआई डालूराम मीणा को गिरफ्तार किया. यह मामले में पहली गिरफ्तारी थी, जिसने पूरे राज्यभर में फैले नेटवर्क को उजागर कर दिया. इसके बाद एसओजी ने 120 आरोपियों को पकड़ा, जिनमें 54 प्रशिक्षु एसआई भी शामिल थे.

सितंबर 2024 में आरपीएससी के पूर्व सदस्य रामू राम रैका को भी गिरफ्तार किया गया और एसआईटी ने परीक्षा रद्द करने की सिफारिश की, लेकिन एडीजी वी.के. सिंह के नेतृत्व वाली एसआईटी, एसओजी और पुलिस मुख्यालय की परीक्षा रद्द करने की सिफारिशों के बावजूद भजनलाल सरकार हिचकिचाती दिखी.

कैबिनेट बैठक में भी मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने परीक्षा रद्द करने की मांग उठाई, जिसके बाद सरकार ने संसदीय कार्य मंत्री पटेल की अध्यक्षता में एक उप-समिति बना दी.

इस कैबिनेट उप-समिति, जिसमें मीणा भी शामिल थे, उन्होंने सुझाव दिया कि “एसओजी की जांच में सिर्फ 6.3% परीक्षार्थी गड़बड़ी में शामिल पाए गए हैं. ऐसे में परीक्षा रद्द करना जल्दबाजी होगी, क्योंकि एसआईटी अभी दोषी और निर्दोष उम्मीदवारों को अलग करने की प्रक्रिया में है.”

राजस्थान बीजेपी के एक उपाध्यक्ष ने कहा, “अफसरशाही ने सरकार को परीक्षा रद्द न करने के लिए गुमराह किया. (उन्होंने दावा किया कि अगर परीक्षा रद्द हुई) तो बाकी लोगों को भी नुकसान होगा. हो सकता है अफसरों के अपने हित हों क्योंकि यह बहुत बड़ा नेटवर्क है.”

जब कोर्ट ने मामले में धीमी प्रगति पर नाराज़गी जताई, तो जुलाई 2025 में भजनलाल सरकार ने कहा कि परीक्षा रद्द नहीं की जाएगी. सरकार की तरफ से पेश हुए एडवोकेट जनरल राजेंद्र प्रसाद ने कहा, “भर्ती प्रक्रिया जारी रखने का फैसला कैबिनेट उप-समिति की सिफारिश पर आधारित है, जिसे मुख्यमंत्री ने मंजूरी दी.”

फैसला सुनाते समय कोर्ट ने यह माना कि राज्य सरकार ने एसआईटी बनाई और आरोपियों को गिरफ्तार करने जैसे कदम उठाए, लेकिन उसने यह भी कहा कि ठोस सबूतों के बावजूद सरकार की निष्क्रियता गंभीर है.

‘ना माया मिली, ना राम’

राजस्थान बीजेपी के एक उपाध्यक्ष ने दिप्रिंट से कहा, “हमारी सरकार की नीयत सही थी—दोषियों को पकड़ना और परीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना. इसी वजह से सरकार ने एसआईटी बनाई और एसओजी ने लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन बाद में अफसरशाही ने सरकार को परीक्षा रद्द न करने के लिए गुमराह किया. (उन्होंने कहा कि अगर परीक्षा रद्द हुई) तो और लोगों को भी नुकसान होगा. हो सकता है अफसरों के अपने हित जुड़े हों क्योंकि यह बहुत बड़ा नेटवर्क है.”

उन्होंने आगे कहा, “अब जब कोर्ट ने परीक्षा रद्द कर दी, तो कांग्रेस भी हमारी सरकार पर ‘कार्रवाई न करने’ का आरोप लगा रही है. हनुमान बेनीवाल ने इसका श्रेय ले लिया. हमें ही रुकावट डालने वाला दोषी बताया जा रहा है. हमारी स्थिति अब ना माया मिली, ना राम जैसी हो गई है (यानि हमारे लिए यह हार-हार की स्थिति है).”

राजस्थान वित्त आयोग के चेयरमैन और बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने सरकार का बचाव किया. उन्होंने कहा, “बीजेपी सरकार ने ही कोर्ट के फैसले की नींव रखी. सरकार ने एसआईटी बनाई और एसओजी ने दोषियों को गिरफ्तार किया. जांच पूरी नहीं हुई थी, इसलिए परीक्षा रद्द न करना सही कदम था. कांग्रेस ने तो सिर्फ भ्रष्टाचारियों को बचाया और पेपर लीक कर भ्रष्ट लोगों को फायदा पहुंचाया. अब मगरमच्छ के आंसू बहा रही है. किरोड़ी लाल मीणा, जिन्होंने यह मुद्दा उठाया, बीजेपी का ही हिस्सा हैं. इस पर अब सरकार ही फैसला करेगी.”

भाजपा के एक सूत्र ने कहा कि इस “इज्ज़त खोने” के बाद सरकार शायद खुद अपील दाखिल न करे, लेकिन दूसरों को डिवीजन बेंच में समीक्षा के लिए जाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है.

कांग्रेस प्रवक्ता स्वर्णिम चतुर्वेदी ने कहा, “सरकार की साख पूरी तरह गिर गई है. वे जोर देकर कहते रहे कि परीक्षा रद्द नहीं होगी. उन्होंने एसआईटी बनाई, अब कोर्ट ने परीक्षा रद्द कर दी. इसके बावजूद मंत्री कह रहे हैं कि वे फैसले की समीक्षा करेंगे. क्या सरकार कोर्ट से ऊपर है?”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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