scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमराजनीतितेलुगु राजनीति में ‘आकर्षण और शोमैनशिप’ का प्रतीक रहीं पदयात्राओं की ताकत क्यों हुई कमजोर

तेलुगु राजनीति में ‘आकर्षण और शोमैनशिप’ का प्रतीक रहीं पदयात्राओं की ताकत क्यों हुई कमजोर

आने वाले महीनों में तेलंगाना और आंध्र में भाजपा तेलंगाना प्रमुख बंदी संजय, राज्य कांग्रेस प्रमुख रेवंत रेड्डी और वाई.एस. जगन की बहन शर्मिला द्वारा कई पदयात्राओं की योजना बनाई गई है.

Text Size:

हैदराबाद: तेलंगाना में इस समय पदयात्राओं का मौसम चल रहा है, भले ही विधानसभा चुनाव 2023 में होने वाले हैं.

राज्य भाजपा प्रमुख बंदी संजय ने ऐलान किया है कि अगस्त में वह हैदराबाद से हुजूराबाद, जिस सीट पर उपचुनाव होने हैं, तक 750 किलोमीटर की यात्रा पर निकलेंगे. हालांकि अभी तारीखों की घोषणा नहीं की गई है.

यह सीट कभी मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के करीबी और पद से हटा दिए गए मंत्री एटाला राजेंदर के पास थी, जो जून में भाजपा में शामिल हो गए थे.

राजेंदर खुद भी 270 किलोमीटर लंबी पदयात्रा पर निकले हुए हैं, जिसकी शुरुआत उन्होंने सोमवार को वारंगल जिले के कमलापुर मंडल से की थी.

कोई भी किसी से पीछे नहीं रहना चाहता, नवनियुक्त कांग्रेस प्रमुख रेवंत रेड्डी ने भी आने वाले महीनों में पदयात्रा के संकेत दिए हैं. 53 वर्षीय रेड्डी दिल्ली में कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए फरवरी में 140 किलोमीटर की पदयात्रा पूरी कर चुके हैं.

इसके बाद फिर वाई.एस. शर्मिला भी हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वाई.एस. राजशेखर रेड्डी (वाईएसआर) की बेटी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी की बहन हैं. 8 जुलाई को ही अपनी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी लॉन्च करने वाली शर्मिला ने भी राज्य में पदयात्रा निकालने की घोषणा की है.

हालांकि, पदयात्रा उनके लिए नई बात नहीं है. उन्होंने 2012 में एक ऐसी ही यात्रा की थी जब उनके भाई जगन रेड्डी आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेल में थे.

और यह उनके पिता वाईएसआर ही थे जिन्होंने जिन्होंने पहली बार दिखाया था कि तेलुगु राज्यों में राजनीतिक लाभ के लिए पदयात्राओं का इस्तेमाल किया जा सकता है.

2003 में वाईएसआर ने अविभाजित आंध्र प्रदेश में 1,500 किलोमीटर की पदयात्रा करीब 60 दिनों में पूरी की थी. यह पदयात्रा ही 2004 के विधानसभा चुनावों में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को कुर्सी से हटाने में उनके लिए मददगार साबित हुई थी.

तब से ही लोगों से जमीनी स्तर पर बेहतर ढंग से जुड़ने के इरादों के साथ की निकाली जाने वाली पदयात्राएं दोनों ही राज्यों में विपक्षी दलों के नेताओं के लिए अपना राजनीतिक कैरियर फिर से बनाने या उसे चमकाने का एक साधन बन गई हैं.

लेकिन विशेषज्ञों का तर्क है कि करीब दो दशक बाद अब इनमें वो आकर्षण नहीं रह गया है जो पहले हुआ करता था.

विश्लेषक पदयात्रा की अहमियत कम होने की दो वजहें बताते हैं—सोशल मीडिया और इन वॉकथॉन की भरमार.

राजनीतिक विश्लेषक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने दिप्रिंट को बताया, ‘तेलंगाना में कम से कम दो या अधिक विपक्षी नेताओं के पदयात्रा करने की ओर रुझान दिखाए जाने के साथ लोगों को अव्यवस्था फैलने की आशंका सताने लगी है.’

रेड्डी ने कहा, ‘और जब तक ये नेता एकदम अमिट छाप नहीं छोड़ते, इन प्रयासों से अपेक्षित नतीजे नहीं निकल सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘तेलंगाना में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का अंतिम लक्ष्य हासिल करने की जुगत में लगे रेवंत रेड्डी या बंदी संजय या किसी अन्य नेता के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि 2023 में प्रस्तावित अगले चुनाव तक वह मीडिया, सोशल मीडिया और इन पदयात्रा के माध्यम से प्रचार की बदौलत खुद को सुर्खियों में बनाए रखे.’

वरिष्ठ राजनीतिक पर्यवेक्षक सुरेश अलापति ने कहा कि मौजूदा नेताओं में से किसी के भी पास वाईएसआर जैसा आभामंडल नहीं है.

अलापति ने कहा, ‘हम आज के विपक्षी नेताओं की पदयात्राओं की तुलना वाईएसआर के समय से नहीं कर सकते. उनके पास एक अलग आकर्षण और शोमैनशिप नजर आती थी, जो इन नेताओं में नहीं है. रेवंत रेड्डी में कुछ हद वो आकर्षण है फिर से उनकी अपनी कमियां और मामले हैं.’

उन्होंने कहा, ‘प्रभाव एक जैसा नहीं हो सकता क्योंकि राजनीतिक फैक्टर अलग हैं—बंदी संजय वैसे नेता नहीं है जो मोदी अपनी पार्टी के लिए है. इसी तरह, रेवंत के मामले में कांग्रेस नेतृत्व की भूमिका मुख्य होती है. तेलंगाना में शर्मिला की पार्टी के आकार लेने के बाद की स्थिति को भी देखना होगा.’


य़ह भी पढ़ें: कैसे सिर्फ 7 सालों के अंदर आंध्र प्रदेश में कांग्रेस एकदम अप्रासंगिक हो गई?


पदयात्राएं कैसे तेलुगु राजनीति में गेम-चेंजर बनीं

आंध्र प्रदेश में विपक्षी नेताओं को सत्ता शीर्ष तक पहुंचाने में पदयात्राओं के मददगार साबित होने का इतिहास रहा है.

वह दिवंगत वाईएसआर थे जिन्होंने इस तरह की शुरुआत की थी. उनकी 2003 की पदयात्रा ने चंद्रबाबू नायडू की नीतियों से परेशान किसानों को कांग्रेस के साथ लाने में उनकी मदद की थी.

उस समय नायडू पर हैदराबाद को आईटी हब के रूप में विकसित करने के दौरान किसानों की अनदेखी करने के आरोप लग रहे थे.

वाईएसआर का अभियान ऐसा रहा कि वह 2009 में सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रहे.

इसने जमीनी स्तर पर लोगों से कटे रहने को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रहे नायडू को 2012 में 2,800 किलोमीटर की पदयात्रा के लिए प्रेरित किया, उस समय वह लगभग 63 वर्ष के थे. इसके बाद उन्होंने 2014 का विधानसभा चुनाव जीता.

और वाईएसआर के बेटे वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी ने लगभग 14 साल बाद 2017 में 3,648 किलोमीटर की पदयात्रा शुरू की. 341 दिनों में उन्होंने कथित तौर पर जमीनी स्तर पर 2 करोड़ लोगों से मुलाकात की और 2019 के विधानसभा चुनावों में सफलता हासिल करके आंध्र प्रदेश में सत्ता शीर्ष पर पहुंचे.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रो नागेश्वर राव कहते हैं, ‘पदयात्राएं ऐसी शक्तिशाली घटनाएं होती हैं जो कई दिनों तक चलती है. उदाहरण के तौर पर यदि आप हेलिकॉप्टर से किसी निश्चित स्थान पर जाते हैं, तो यह कुछ ही मिनट वाली एक घटना होगी. लेकिन अगर आप उतनी ही दूरी पैदल तय करते हैं तो इसमें कई दिन लगेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘पदयात्रा में सबसे अहम होता है इसकी गति धीमी रहना, जिससे यह मीडिया को आकर्षित करेगी और नेताओं को खबरों में बने रहने में मदद करेगी—इसलिए यह एक मजबूत राजनीतिक हथियार है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘और, जाहिर है कि जब आप लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलते हैं, तो उनके साथ भावनात्मक रिश्ता बनता है, इससे नेताओं को आम लोगों के बीच प्रासंगिक बने रहने में मदद मिलती है.’

अलापति ने भी कहा कि पदयात्रा एक शक्तिशाली राजनीतिक हथियार है, लेकिन साथ ही कहा कि कुछ अन्य फैक्टर भी अहम भूमिका निभाते हैं. उन्होंने कहा कि वाईएसआर के समय में तत्कालीन नायडू सरकार के खिलाफ मजबूत सत्ता विरोधी लहर थी और जब नायडू ने पदयात्रा की तो आंध्र/तेलंगाना में एक अलग तरह की जनभावना विकसित हुई.

उन्होंने कहा कि जब जगन ने अपनी यात्रा शुरू की तो नायडू असंतोष का सामना कर रहे थे. उन्होंने बताया कि जगन ने कल्याणकारी योजनाओं का वादा किया, वाईएसआर फैक्टर था और प्रशांत किशोर की टीम ने उन्हें सोशल मीडिया पर प्रचारित कर रही थी.

उन्होंने आगे कहा, ‘पदयात्रा अब भी खासी अहमियत रखती हैं. लोगों को खुशी होगी कि हैदराबाद से नेता उनके घरों तक आएं. लेकिन मुझे नहीं लगता कि इनमें से किसी भी नेता को वैसा प्रभाव दिखेगा जैसा वाईएसआर या अन्य लोगों ने देखा था. हालांकि, टीआरएस के प्रति असंतोष बढ़ रहा है, लेकिन वे इसे खत्म करने में सफल हो सकते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: तेलंगाना की राजनीति T20 की तरह है, इसलिए कांग्रेस ने मेरे जैसे हार्ड-हिटर को चुना: रेवंत रेड्डी


 

share & View comments