नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का उज्जैन में ‘आध्यात्मिक नगरी’ बनाने का सपना अब एक अप्रत्याशित विरोध का सामना कर रहा है—राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन भारतीय किसान संघ (बीकेएस) से.
किसानों का यह संगठन 2,400 हेक्टेयर ज़मीन अधिग्रहण का विरोध कर रहा है, जिस पर 2028 के सिंहस्थ मेले (कुंभ) से पहले एक कंक्रीट की आध्यात्मिक नगरी बनाई जानी है. सिंहस्थ कुंभ हर 12 साल में उज्जैन के अलावा हरिद्वार, प्रयागराज और नासिक में भी होता है.
बीकेएस का आरोप है कि बीजेपी सरकार भूमि पूलिंग पॉलिसी के जरिए किसानों की ज़मीन “हड़पने” की कोशिश कर रही है ताकि स्थायी ढांचे बनाए जा सकें. संगठन का कहना है कि उज्जैन सदियों से बिना किसी स्थायी निर्माण के कुंभ आयोजित करता आया है, ऐसे में ज़मीन अधिग्रहण की ज़रूरत ही नहीं है.
बीकेएस के महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया कि इस संबंध में गृहमंत्री अमित शाह से शिकायत की गई है और इस मुद्दे को इस वीकेंड जोधपुर में होने वाली संघ की ऑल-इंडिया कोऑर्डिनेशन मीट में संघ प्रमुख मोहन भागवत के सामने भी उठाया जाएगा.
इस बैठक में संघ से जुड़े सभी संगठन और बीजेपी नेता, जिनमें पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और संगठन महासचिव बी.एल. संतोष शामिल हैं, मौजूद रहेंगे.
उज्जैन के रहने वाले सीएम यादव ने इस साल फरवरी में मध्य प्रदेश ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में आध्यात्मिक नगरी के निर्माण की घोषणा की थी.
उन्होंने कहा था, “उज्जैन में करीब 3,300 हेक्टेयर में फैली आध्यात्मिक नगरी की योजना को मंजूरी मिल रही है. उज्जैन को हरिद्वार जैसे धार्मिक गंतव्य के रूप में विकसित करने का ब्लूप्रिंट तैयार किया गया है. 2028 में सिंहस्थ होगा, संतों और साधुओं को ठहरने और अन्य गतिविधियों के लिए उपयुक्त जगह चाहिए. इसी को देखते हुए सरकार स्थायी आश्रम बनाने की योजना बना रही है. निजी कंपनियों को भी इस विकास में शामिल किया जाएगा.”
मिश्रा ने सवाल उठाया, “आखिर सरकार को सिंहस्थ के लिए उज्जैन में 2,400 हेक्टेयर ज़मीन की ज़रूरत क्यों है? इतने सालों से उज्जैन में मेला होता आया है. प्रयागराज की तरह अस्थायी रूप से ज़मीन लेकर, कुछ महीनों तक कैंप सिटी बनाई जाती है. सरकार मुआवजा देकर बाद में ज़मीन लौटा देती है, लेकिन इस बार स्थायी नगरी बनाने की योजना है. 12 साल में एक बार होने वाले आयोजन के लिए स्थायी निर्माण की क्या तुक है?”
उन्होंने कहा, “सरकार ने भूमि पूलिंग कानून जिस जल्दबाजी में पास किया, उससे किसानों का शक और गहरा गया.”
मार्च में मध्य प्रदेश विधानसभा ने टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट में संशोधन कर भूमि पूलिंग की व्यवस्था सभी प्रोजेक्ट्स पर लागू करने का प्रावधान किया था.
मिश्रा ने कहा, “हम इस कानून का विरोध कर रहे हैं. इसमें कहा गया है कि अधिग्रहित ज़मीन के बदले किसानों को विकसित ज़मीन दी जाएगी, लेकिन किसानों को डर है कि सरकार मॉल और होटल बनाएगी, जो बाद में निजी हाथों में चले जाएंगे और किसान अपनी ज़मीन स्थायी रूप से खो बैठेंगे.”
सरकार की आध्यात्मिक नगरी योजना और उज्जैन विकास प्राधिकरण द्वारा भूमि अधिग्रहण शुरू करने की खबरों के बाद से उज्जैन और आसपास के इंदौर में रोज़ाना विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
बीजेपी महासचिव संतोष जब सोमवार को भोपाल में पार्टी बैठक के लिए पहुंचे, तो किसानों और बीकेएस कार्यकर्ताओं ने बीजेपी दफ्तर में पहुंचकर अपनी चिंताएं रखीं. वहीं, भोपाल में बीकेएस की दो दिवसीय बैठक में राज्यव्यापी आंदोलन की धमकी भी दी गई.
दिप्रिंट ने उज्जैन विकास प्राधिकरण के सीईओ संदीप कुमार सोनी और राज्य नगरीय विकास विभाग के सचिव से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन जवाब नहीं मिला.
सरकार पर बढ़ता दबाव
सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, बीकेएस ने मामला बीजेपी हाईकमान तक पहुंचाया तो गृहमंत्री अमित शाह ने खुद सीएम मोहन यादव से उज्जैन में मेले के लिए स्थायी निर्माण की ज़रूरत पर सवाल किया.
पिछले हफ्ते यादव की शाह से हुई बैठक में गृह मंत्री ने सीएम और अधिकारियों से पूछा कि आखिर ज़मीन क्यों अधिग्रहित करनी है. अधिकारियों ने उन्हें आश्वस्त किया कि किसानों के हित सुरक्षित रहेंगे और विकसित जमीन उन्हें वापस दी जाएगी. उन्होंने हरिद्वार का उदाहरण दिया, लेकिन शाह ने कहा कि वह मामला “कई साल पुराना” है और वे आश्वस्त नहीं हुए.
बीकेएस मध्य प्रदेश अध्यक्ष कमल सिंह अंजना ने दिप्रिंट से कहा, “किसान अपनी ज़मीन देना नहीं चाहते. राज्य की कई सरकारी इमारतें पहले से जर्जर हालत में हैं और मरम्मत के लिए पैसा नहीं है. सिंहस्थ के बाद उज्जैन में बने स्थायी ढांचों की देखरेख कौन करेगा? अगले 11 साल तक वे नशेड़ियों के अड्डे बन जाएंगे.”
उन्होंने आगे कहा, “हम 17 गांवों के किसानों से मिले हैं, जो सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं. निजी कंपनियों को होटल और मॉल बनाने के लिए ज़मीन मिलेगी, लेकिन किसानों को विकसित ज़मीन कब मिलेगी, इसकी कोई स्पष्टता नहीं है. यही वजह है कि हम विरोध कर रहे हैं.”
यादव सरकार को न सिर्फ संघ से जुड़े संगठन का विरोध झेलना पड़ रहा है, बल्कि विधानसभा के बजट सत्र में बीजेपी विधायकों ने भी इस मुद्दे पर आपत्ति जताई.
अलोट विधायक चिंतामणि मालवीय ने सदन में कहा कि उज्जैन के किसान डरे और नाराज़ हैं.
उन्होंने कहा, “पहले उनकी ज़मीन केवल तीन से छह महीने के लिए ली जाती थी. अब उन्हें स्थायी अधिग्रहण के नोटिस दिए जा रहे हैं. मुझे नहीं पता किस अधिकारी ने उज्जैन में आध्यात्मिक नगरी बनाने का सुझाव दिया. कोई शहर इमारतों से नहीं, बल्कि लोगों की आस्था से आध्यात्मिक बनता है.”
मालवीय ने माना कि उन्होंने किसानों की परेशानियां उठाईं और यह भी कहा कि संघ से जुड़ा संगठन भी यही मुद्दा उठा रहा है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “स्थायी ढांचे बनाने का कोई तुक नहीं है. अधिकारी सीएम को बेवकूफ बना रहे हैं.”
बीजेपी के एक और राज्य नेता ने बताया कि यह मसला बेहद संवेदनशील है और पहले ही शाह तक पहुंच चुका है तथा जल्द ही भागवत तक भी जाएगा. उन्होंने कहा, “किसानों से ज़मीन छीनी गई तो यह दूसरा सिंगूर बन जाएगा. ज़मीन बहुत संवेदनशील मुद्दा है. बिना उचित मुआवजे और स्पष्ट सार्वजनिक उद्देश्य के सरकार को किसानों की ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं करना चाहिए. यहां छिपे हुए व्यावसायिक हित भी हो सकते हैं. इसलिए राज्य सरकार आगे बढ़ने से पहले केंद्र से सलाह लेगी.”
इधर, यादव ने मंगलवार को समीक्षा बैठक की, जिसमें उन्होंने सचिवों से कहा कि दिसंबर 2027 तक उज्जैन का सारा विकास कार्य पूरा हो और सिंहस्थ को एक वैश्विक आयोजन के रूप में पेश किया जाए.
सीएम चाहते हैं कि 2028 का यह धार्मिक आयोजन भव्य सफलता बने ताकि हिंदुत्व आधार मजबूत हो, क्योंकि उसी साल मध्य प्रदेश में चुनाव भी होंगे.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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