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Saturday, 16 November, 2024
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BJP सरकार के पूर्व CM एनडी तिवारी को पुरस्कार देने पर गुस्से में क्यों है उत्तराखंड कांग्रेस

तिवारी उन पांच लोगों में थे, जिनमें लेखक रस्किम बॉण्ड भी शामिल हैं, जिन्हें सोमवार को पुष्कर सिंह धामी सरकार ने उत्तराखंड गौरव सम्मान देने का ऐलान किया है.

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देहरादून: कांग्रेस बीजेपी पर आरोप लगा रही है कि वह पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की राजनीतिक विरासत को हथियाने का प्रयास कर रही है. राज्य सरकार ने इसी सप्ताह स्वर्गीय नेता को, अपने पहले उत्तराखंड गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया था.

तिवारी उन पांच लोगों में थे, जिनमें लेखक रस्किन बॉण्ड भी शामिल हैं, जिन्हें सोमवार को पुष्कर सिंह धामी सरकार ने उत्तराखंड गौरव सम्मान देने का ऐलान किया.

पुरस्कार की घोषणा होते ही पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस दिग्गज हरीश रावत, बिना कोई समय गंवाए नैनीताल के पदमपुरी गांव में, स्वर्गीय नेता के परिवार के सदस्यों से मिलने पहुंच गए. रावत ने तिवारी के भाई दुर्गा प्रसाद तिवारी, उनके परिवार और दूसरे गांववासियों से मुलाक़ात की और उन्हें आश्वासन दिया कि अगर कांग्रेस 2022 में फिर से जीतकर सत्ता में वापस आती है, तो पार्टी उनके विकास के लिए भरसक प्रयास करेगी.

दिप्रिंट से बात करते हुए रावत ने कहा कि बीजेपी इस पुरस्कार से सियासी फायदा उठाना चाहती है. उन्होंने आगे कहा कि ये पुरस्कार इसी तरह के उस अलंकरण से ज़्यादा कुछ नहीं है, जो उनकी सरकार ने 2016 में ही घोषित कर दिया था.

रावत ने कहा, ‘कांग्रेस सरकार ने 2016 में ‘उत्तराखंड रत्न’ पुरस्कार शुरू किया था और पूर्व सीएम एनडी तिवारी को उससे नवाज़ा गया था’. उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन, मौजूदा बीजेपी सरकार ने उस पुरस्कार को अमान्य कर दिया है, और पूर्व सीएम को मरणोपरांत इस नए पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया है. बीजेपी एनडी तिवारी के नाम पर सियासत कर रही है, जो कि कांग्रेस के लिए जिए और मरे. उन्हें हमेशा एक कांग्रेसी के तौर पर याद किया जाएगा, जिसे कोई बदल नहीं सकता’.

हालांकि, रावत को उत्तराखंड कांग्रेस में तिवारी के सियासी मुख़ालिफ के तौर पर जाना जाता था.

बीजेपी दावा कर रही है कि उसका पुरस्कार उत्तराखंड में तिवारी की हैसियत को मान्यता देता है, और वो ये भी कह रही है कि कांग्रेस ने स्वर्गीय नेता की विरासत का परित्याग कर दिया था और ‘उनके जीवन के अंतिम दौर में, षडयंत्र करके उनकी छवि और चरित्र को कलंकित किया था’.

प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता शादाब शम्स ने दिप्रिंट से कहा, ‘पंडित नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड के सबसे सम्मानित नेता थे, लेकिन हरीश रावत को साधन बनाकर, कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें हमेशा नीचा दिखाया. 2002 में जब उन्होंने उत्तराखंड की पहली निर्वाचित सरकार की अगुवाई की, तो पूरे पांच साल तक रावत लगातार तिवारी का विरोध करते रहे थे’.

‘बाद में उन्हें चरित्र हनन का भी शिकार होना पड़ा, जब वो आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे. क्या ग़लत है अगर बीजेपी सरकार ने उन्हें उनकी उचित पहचान दे दी है. उन्होंने राज्य की पहली चुनी हुई सरकार की अगुवाई की और उत्तराखंड के विकास के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार किया. कांग्रेस के पास इस पर बोलने का कोई कारण नहीं है’.

शम्स ने ज़ोर देकर कहा कि तिवारी के आख़िरी वर्षों में, कांग्रेस ने उन्हें किनारे कर दिया था.

पुरस्कार के बाद बीजेपी ने तिवारी को और सम्मान भी दिए हैं. 10 नवंबर को हलद्वानी में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ऐलान किया कि उधम सिंह नगर ज़िले में पंतनगर राज्य इंफ्रास्ट्रक्चर एवं औद्योगिक विकास निगम पार्क का नाम, पूर्व सीएम के नाम पर रखा जाएगा. धामी ने ये भी ऐलान किया कि नैनीताल ज़िले में, तिवारी के ननिहाली गांव बलूती को जाने वाली एक सड़क का नाम भी उनके नाम पर रखा जाएगा.

दिग्गज कांग्रेसी तिवारी तीन बार अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और उनका एक कार्यकाल उत्तराखंड में रहा, जो 2002 में शुरू हुआ था. वो 1986 से 1988 के बीच दो बार, स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री रहे.

प्रसिद्ध ब्राह्मण नेता 2007 से 2009 के बीच आंध्र प्रदेश के राज्यपाल भी रहे, लेकिन उन्हें उस समय पद छोड़ना पड़ा, जब वो तीन महिलाओं के साथ एक कथित सेक्स टेप विवाद में फंस गए.

लेकिन, 2017 में प्रदेश असेम्बली चुनावों से पहले, तिवारी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की, और बीजेपी को समर्थन की पेशकश की थी.

2018 में 18 अक्तूबर को, 93 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, जो उनका जन्म दिवस भी था.


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‘तिवारी को मान्यता में बहुत देरी, उनका क़द पुरस्कार से कहीं ऊंचा’

कांग्रेस ज़ोर देकर कहती है कि वो तिवारी की राजनीतिक विरासत की स्वाभाविक उत्तराधिकारी है.

उत्तराखंड कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी का कहना था, ‘कांग्रेस को हमारे स्वर्गीय नेता एनडी तिवारी की विरासत पाने के लिए कोई प्रयास करने की ज़रूरत नहीं है. हम उनकी विरासत के स्वाभाविक उत्तराधिकारी हैं. वो तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और एक बार उत्तराखंड में रहे, जिसके अलावा उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया’.

दसौनी ने आगे कहा, ‘कांग्रेस लीडर के नाते तिवारी ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में विकास की परिकल्पना को आकार दिया. उत्तराखंड के लोग अच्छी तरह जानते हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान, राज्य में औद्योगिक विकास की क्या गति थी. उनका क़द उस पुरस्कार से कहीं बड़ा है, जो बीजेपी सरकार ने उनके लिए घोषित किया है. वो भी बहुत देरी से आया है’.

पीसीसी महासचिव पृथ्वी पाल सिंह चौहान ने कहा कि तिवारी का क़द ऐसा है कि सरकार के पास उन्हें सूची में शामिल करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था.

चौहान ने कहा, ‘बीजेपी की ये दिखाने की कोशिश कि उसने स्वर्गीय कांग्रेस नेता के लिए कुछ बहुत महान कर दिया है, राज्य में कोई सियासी असर नहीं छोड़ेगी. राज्य का सर्वोच्च पुरस्कार घोषित करते हुए धामी सरकार एनडी तिवारी के नाम से बच नहीं सकती थी. स्वर्गीय नेता को उचित सम्मान देना उनका फर्ज़ बनता था’.

एक अन्य बीजेपी प्रवक्ता मनबीर सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस तब से रूठी हुई है जब 9 नवंबर को, राज्य की स्थापना की पूर्व संध्या पर सरकार ने पुरस्कार का ऐलान किया था.

सिंह ने कहा, ‘पूर्व सीएम एनडी तिवारी और चार अन्य को राज्य का सर्वोच्च पुरस्कार देने की घोषणा के बाद से कांग्रेस पार्टी हिल गई है. वरना हरीश रावत अगले ही दिन आनन-फानन में स्वर्गीय नेता के गांव पहुंचकर उनके परिजनों और गांववासियों से क्यों मिलते?’

UP व उत्तराखंड में BJP की ब्राह्मण वोट पर नज़र

हालांकि, वो सामने आकर बोलने को तैयार नहीं हैं, लेकिन बीजेपी नेताओं का कहना है कि तिवारी को मान्यता देने से उसे न केवल उत्तराखंड बल्कि उत्तर प्रदेश में भी फायदा होगा.

उत्तराखंड के एक वरिष्ठ बीजेपी विधायक ने, नाम न बताने की शर्त पर स्वीकार किया, ‘एक आम धारणा है कि यूपी में ब्राह्मण बीजेपी से बहुत नाराज़ हैं. एनडी तिवारी का दोनों राज्यों में समुदाय के अंदर और बाहर भी बहुत सम्मान था. हो सकता है कि उत्तराखंड गौरव सम्मान देने से कोई बड़ा सियासी फायदा हासिल न हो, लेकिन पार्टी दोनों राज्यों में एक संदेश देने में कामयाब हो गई है’.

उत्तराखंड अपनी ठाकुर-ब्राह्मण सियासत के लिए भी जाना जाता है, जिसकी 29 असेम्बली सीटें एनडी तिवारी के गृह क्षेत्र कुमाऊं में आती हैं, और बाक़ी 41 गढ़वाल में पड़ती हैं.

2017 असेम्बली चुनावों में बीजेपी 57 सीटों पर विजयी रही, जिनमें 23 कुमाऊं में और 34 गढ़वाल में थीं. कांग्रेस के हिस्से में 11 सीटें आईं, जबकि दो निर्दलीयों को मिलीं.

यहां पर राजनीतिक राय निर्माताओं का कहना है कि पुरोहितों की ओर से देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के विरोध में प्रदर्शन, और कुमाऊं के मैदानों में किसानों के आंदोलन को देखते हुए, बीजेपी उत्तराखंड में ब्राह्मणों की नाराज़गी मोल लेना सहन नहीं कर सकती.

देहरादून स्थित राजनीतिक टीकाकार जय सिंह रावत ने कहा, ‘फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि चार धाम पुरोहितों के विरोध प्रदर्शन का, आमतौर से ब्राह्मण मतदाताओं पर कोई असर पड़ा है. लेकिन बीजेपी ने ज़ाहिरा तौर पर कुछ रोकथाम के उपाय किए हैं, ताकि आगे चलकर अगर धामी सरकार देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की मांग कर रहे पुरोहितों का विश्वास जीतने में विफल हो जाती है, तो उसे कुछ सहायता मिल सके’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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