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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतBJP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ‘सब ठीक है’ के संदेश के बीच पार्टी तमाम अहम मसलों को दरकिनार कर रही है

BJP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ‘सब ठीक है’ के संदेश के बीच पार्टी तमाम अहम मसलों को दरकिनार कर रही है

ऐसे कई सवाल हैं जो बीजेपी के विधायक और अन्य नेता, जिनकी आलाकमान के साथ ज्यादा नजदीकियां नहीं हैं, उठा रहे हैं. हालांकि, उनके सुर बहुत तेज नहीं हैं.

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अगली बार जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का कोई नेता आपसे ये कहे कि वो पार्टी के लिए पहाड़-समंदर सब लांघ सकता है तो इस बात को हंसी में कतई मत उड़ाइएगा. केंद्रीय पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने तो इस हफ्ते हक़ीकत में ऐसा कर दिखाया है. वह रविवार को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए स्कॉटलैंड के ग्लासगो से करीब 7,000 किलोमीटर की उड़ान भरी.

ग्लासगो में जारी जलवायु वार्ता में भारत ने काफी बड़ा दांव लगा रखा है और यादव वहां वार्ता की मेज पर देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. उन्होंने सोमवार को फिर ग्लासगो लौटने के लिए 7,000 किलोमीटर का सफर तय किया. संयोग की बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को छोड़ दिया जाए तो पार्टी के बाकी सभी मुख्यमंत्रियों और राज्य अध्यक्षों ने बैठक में वर्चुअली हिस्सा लेने का विकल्प ही चुना.

भूपेंद्र यादव ने पार्टी बैठक में हिस्सा लेने के लिए इतनी महत्वपूर्ण जलवायु वार्ता को बीच में तीन दिन छोड़ने के साथ इतनी जो परेशानी उठाईं, उसकी भी वजह है. बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने जलवायु परिवर्तन पर ‘दुनिया को राह दिखाने’ के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘सम्मानित’ किया है. ग्लासगो शिखर सम्मेलन में मोदी ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन और 2030 तक चार अन्य लक्ष्य हासिल करने समेत भारत की ओर से पांच ‘संकल्प’ जताए थे. आलोचक और संशयवादी इस पर हैरान हो सकते हैं कि भविष्य के लिए पीएम की इन प्रतिबद्धताओं को बीजेपी इतना बढ़ा-चढ़ाकर क्यों पेश कर रही है लेकिन ऐसा करके वो भावनात्मक राजनीति के इस दौर (पोस्ट ट्रुथ इरा) में भगवा पार्टी की राजनीति को समझने में भूल कर रहे हैं. वो नहीं समझ पाएंगे कि बीजेपी के राजनीतिक प्रस्ताव में किसानों की आय दोगुनी करने के लिए पीएम की ‘सकारात्मक पहल’ की बात क्यों कही गई, जबकि इसके लिए निर्धारित समयसीमा—2022—पूरी होने के करीब पहुंच चुकी है.

बीजेपी की बैठकों में तो मोदी-नामा का पाठ होता रहता है लेकिन बीजेपी के संविधान के मुताबिक ‘पार्टी की सर्वोच्च इकाई’ यानी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की साढ़े छह घंटे लंबी चली बैठक के विचार-विमर्श की तीन शब्दों में समेटा जा सकता है—‘ऑल इज वेल.’ मोदी के ‘सशक्त नेतृत्व’ में भारत ने 100 करोड़ टीकाकरण का आंकड़ा पार करके इतिहास रच दिया है. आज का भारत एक ‘बैलेंसिंग पॉवर’ के बजाए एक ‘बड़ी ताकत’ बनना चाहता है. चाहे जो कहें-कहीं कोई समस्या तो है ही नहीं—बात चाहे एलओसी की हो या एलएसी, अर्थव्यवस्था या स्वास्थ्य क्षेत्र की कहीं कुछ समस्या नहीं है. कोई बेरोजगारी नहीं है, कृषि संबंधी कोई मसला भी नहीं है, विपक्षी दलों की नकारात्मक और अवसरवादी राजनीति के अलावा कोई और मुद्दा ही नहीं है. कम से कम पार्टी के राजनीतिक संकल्प को देखकर तो यही लगता है.


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राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक

पार्टी संविधान के तहत निर्धारित तीन महीने के बजाए तीन साल बाद हो रही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र और दादरा और नगर हवेली में विधानसभा और संसदीय उपचुनावों में हार पर चर्चा तक नहीं की गई. जेपी नड्डा के गृह राज्य हिमाचल जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं वहां बीजेपी तीन विधानसभा और एक संसदीय सीट का उपचुनाव हारकर खाली हाथ रही थी. पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने रविवार को इस मुद्दे को नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा. बीजेपी के राजनीतिक प्रस्ताव में असम, बिहार, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में उपचुनावों से महीनों पहले हो चुके विधानसभा चुनावों में सफलता की बात की गई.

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पश्चिम बंगाल विधानसभा की चार सीटों में उपचुनावों में भी पार्टी खाली हाथ रही. यहां तक कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री निशीथ प्रामाणिक और सांसद जगन्नाथ सरकार की जीती सीटों को भी गंवा दिया.

उपचुनाव हार के अलावा चुनाव से पूर्व तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वालों की घर वापसी के साथ राज्य विधानसभा में भगवा पार्टी के सदस्यों की संख्या छह महीने में ही 77 से घटकर 70 रह गई है. हालांकि, बीजेपी के राजनीतिक प्रस्ताव ने इन सारे ताजा घटनाक्रम को पूरी तरह छोड़ दिया है बजाए इसके बंगाल में राजनीतिक हिंसा पर ध्यान केंद्रित करने का विकल्प चुना—ये ऐसा मुद्दा है जिसे उसने कर्नाटक और केरल विधानसभा चुनावों के दौरान भी उठाया था लेकिन बाद में उसे भुला दिया गया. जनवरी 2018 में कर्नाटक चुनावों के दौरान तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और बीजेपी के 20 कार्यकर्ताओं की हत्या की गई है और उन्होंने बीजेपी की सरकार बनने पर उन्हें न्याय दिलाने की कसम भी खाई थी.

कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बने दो साल से अधिक समय बीत गया है लेकिन लगता है कि उसके केंद्रीय नेता उन ‘हत्याओं’ के बारे में भूल चुके हैं.

मोदी का समापन भाषण

सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक प्रस्ताव में विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का भी उल्लेख नहीं है. हालांकि, मोदी ने अपने समापन भाषण में हरियाणा के ऐलनाबाद उपचुनाव में बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन की ओर जरूर इशारा किया, जिसे उन्होंने कृषि कानूनों के लिए जनता के समर्थन का एक संकेत करार दिया.

बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा पिछले महीने विजयादशमी पर अपने भाषण में उठाए गए सभी महत्वपूर्ण मुद्दों को भी नजरअंदाज कर दिया है. उन्होंने बताया था कि कैसे लॉकडाउन ने ‘अर्थव्यवस्था को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है.’ नड्डा ने रविवार को अपने उद्घाटन भाषण में लॉकडाउन के फैसले की सराहना की. राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने के बाद ‘शांति’ बहाल हुई है और आतंकी घटनाओं में कमी आई है. अपने विजयादशमी के संबोधन में भागवत ने ‘नागरिकों, खासकर हिंदुओं की हत्याओं की घटनाओं में तेज़ी’ को लेकर चिंता जताई थी और जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं को ‘रोकने और उन्हें पूरी खत्म करने’ के प्रयासों में ‘तेज़ी’ लाने की ज़रूरत बताई थी. राजनीतिक संकल्प में जनसंख्या नीति की समीक्षा या जनसांख्यिकीय असंतुलन’ या धर्मांतरण के संबंध में भागवत की तरफ से उठाए गए मुद्दों को भी कोई जगह नहीं दी गई है. लेकिन, इसे बीजेपी और उसके वैचारिक आकाओं के बीच संघर्ष का कोई संकेत नहीं माना जाना चाहिए. इसका संकेत यही है कि मोदी-शाह के नेतृत्व वाली भाजपा संघ परिवार में अपनी स्वायत्त स्थिति बना रही है.

अपने समापन भाषण में प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों पर एक बार फिर अपना चिर-परिचित तंज कसते हुए बताया कि बीजेपी कैसे ‘एक परिवार के इर्द-गिर्द’ ही नहीं घूमती रहती है. मोदी शायद पार्टी और सरकार में वंशवादियों को ‘चुनींदा’ आधार पर शामिल करने या ना करने को लेकर पार्टी के भीतर बढ़ती बेचैनी से बेखबर हैं. पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कई वंशवादी मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हैं.

बीजेपी का चुनावी टिकट

जब पार्टी में टिकट बंटवारे की बात आती है तो मनमाने नियम लागू होते हैं. हालिया विधानसभा उपचुनावों में पार्टी ने दिवंगत विधायकों के बच्चों को टिकट देने से इनकार कर दिया लेकिन हरियाणा के ऐलनाबाद में विवादास्पद विधायक गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा को भाजपा में शामिल होने के तीन दिन बाद ही टिकट दे दिया गया.

दिवंगत विधायकों के परिवार के सदस्यों को टिकट नहीं देना कई निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी को भारी पड़ा है. उदाहरण के तौर पर उसने हिमाचल प्रदेश के जुब्बल-कोटखाई निर्वाचन क्षेत्र में मृत बीजेपी विधायक के बेटे चेतन ब्रागटा को टिकट देने से इनकार कर दिया. उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और बीजेपी उम्मीदवार की तुलना में लगभग नौ गुना अधिक वोट हासिल करके कांग्रेस की जीत सुनिश्चित कर दी. इसी तरह दिवंगत बीजेपी विधायक सीएम उदासी के परिजनों को टिकट से इनकार करना कर्नाटक के हंगल निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी की हार का प्रमुख कारण बताया जा रहा है. वंशवाद पर पार्टी के नजरिए में कोई एकरूपता न होने से बीजेपी में असंतोष बढ़ रहा है लेकिन आलाकमान से जवाब कौन मांगेगा?

बीजेपी का ‘ऑल इज वेल’ संदेश पार्टी के मध्य-स्तर के नेतृत्व और पार्टी कार्यकर्ताओं में बढ़ते मोहभंग की भी अनदेखी करता है. शीर्ष नेतृत्व ने खंडवा लोकसभा उपचुनाव में अपनी जीत का तो ढोल पीटा लेकिन मंडी (जो सीट पहले भाजपा के खाते में थी) और दादरा और नगर हवेली के संसदीय उपचुनावों में हार को नजरअंदाज़ कर दिया जबकि सच्चाई यह है कि बीजेपी को 2021 में खंडवा में 2019 की तुलना में करीब दो लाख वोट कम मिले हैं—जो 8.38 लाख से घटकर 6.32 लाख रह गए हैं. दादरा और नगर हवेली के उपचुनाव में बीजेपी 2019 की तरह 2021 में भी दूसरे नंबर पर रही, लेकिन पिछले दो सालों में पार्टी को लगभग 15,000 वोटों का नुकसान हुआ है. और, जाहिर है बीजेपी ने अपनी सीट मंडी तो कांग्रेस के हाथ गंवा ही दी है, जहां पिछले दो सालों में भगवा पार्टी के वोट लगभग 2.85 लाख कम हो गए.

ऐसे कई सवाल हैं जो बीजेपी के विधायक और अन्य नेता, जिनकी आलाकमान के साथ ज्यादा नजदीकियां नहीं हैं, उठा रहे हैं. हालांकि, उनके सुर बहुत तेज़ नहीं हैं. पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का यही संदेश है—अपनी जिम्मेदारियों से किनारा करते रहिए.

लेखक का ट्विटर हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त विचार निजी हैं.

(यह लेख अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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