पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक नवंबर को मुजफ्फरपुर में नकली देशी शराब पीने से पांच लोगों की मौत की घटना पर एक तरह से ताना मारते हुए कहा था, ‘जब गड़बड़ चीज पीजिएगा, तो आप चले जाइएगा.’
लेकिन तीन जिलों में 36 और मौतों के साथ पांच दिन के भीतर ही नीतीश का रुख बदल गया है क्योंकि उन्हें राज्य में लागू शराबबंदी कानून की समीक्षा करने के अपने इरादे की घोषणा करनी पड़ी है.
2 अक्टूबर 2016 को बिहार मद्य निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम लागू हुआ था. इसे नीतीश कुमार की महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा था.
लेकिन पांच साल बाद उन्हें इस कानून पर पूरी तरह अमल न होने को लेकर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि पूरे बिहार में अवैध शराब आराम से उपलब्ध है. समस्तीपुर में सेना के एक जवान और तीन अन्य की मौत के अलावा पिछले तीन दिनों में जहरीली शराब से मौतों की अन्य घटनाओं ने मुख्यमंत्री को कानून की समीक्षा का वादा करने पर मजबूर किया है.
जदयू के दो नवनिर्वाचित विधायकों के शपथग्रहण समारोह के बाद पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘हम छठ के बाद शराबबंदी कानूनों पर अमल को लेकर एक समीक्षा बैठक करेंगे. मैं अधिकारियों से बात कर रहा हूं और कार्रवाई शुरू कर दी गई है. छापेमारी जारी है; अगर कुछ लोग अवैध देशी शराब बना रहे हैं तो यह गलत है और इस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.’
उस दिन शाम को नीतीश ने इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय बैठक भी बुलाई.
हालांकि, राज्य सरकार द्वारा कानून को रद्द किए जाने के बजाये नियमों में बदलाव किया जा सकता है.
पूर्व आईपीएस अधिकारी और आबकारी और मद्यनिषेध मामलों के मंत्री सुनील कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि कानून लागू रहेगा. उन्होंने कहा कि 2016 में शराबबंदी लागू होने के बाद से चार लाख लीटर से अधिक शराब जब्त की गई है, शराब की आपूर्ति में इस्तेमाल होने वाले 60,000 से अधिक वाहन जब्त किए गए हैं और तीन लाख से अधिक लोगों को कानून के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘जब कानून बनाया जा रहा था तो मौजूदा विपक्ष ने इसका समर्थन किया था और इसे सर्वसम्मति से लागू किया गया था. अपराध पर सीआरपीसी और आईपीसी की धाराएं लागू होते हैं, और फिर भी अपराध होते हैं. इसी तरह, इस कानून का उल्लंघन करने वाले लोग भी हैं. हम कार्रवाई करते हैं और अवैध शराब के व्यापार में मिलीभगत के लिए 2016 से अब तक लगभग 6,000 पुलिस और आबकारी कर्मियों को बर्खास्त किया गया है. हम संशोधन पर विपक्ष के सुझावों के लिए तैयार हैं. लेकिन निषेध कानून लागू रहने वाले हैं.’
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मौतों ने सियासी तूफान खड़ा किया
बहरहाल, नकली शराब की घटनाओं से राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है, विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का कहना है कि ये घटनाएं हत्या के समान हैं.
राजद सांसद मनोज झा ने आरोप लगाया, ‘एक सिंडिकेट है जो अवैध शराब के कारोबार में लिप्त है. इसे सरकार का संरक्षण हासिल है.’ साथ ही कहा कि सरकार ने अब तक इस सवाल का जवाब नहीं दिया है कि भाजपा के मंत्री राम सूरत राय के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई जिनके हाजीपुर स्थित एक स्कूल से इस साल के शुरू में दो ट्रक शराब बरामद की गई थी.
राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने आरोप लगाया कि कानून केवल गरीबों को नुकसान पहुंचा रहा है.
तिवारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘बिहार में शराबबंदी कानून का मजाक बन गया है. शराब की होम डिलीवरी हो रही है. केवल गरीब और दलितों को ही गिरफ्तार किया जाता है. किसी सफेदपोश व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया गया है. नीतीश कुमार उन अधिकारियों और अपनी पार्टी के नेताओं को जानते हैं जो रोजाना शराब पीते हैं. एक माफिया अवैध शराब का समानांतर कारोबार चला रहा है, जो अनुमानित तौर पर 10,000 करोड़ रुपये का है. बिहार का हॉस्पिटैलिटी सेक्टर चरमरा गया है. नीतीश कुमार बिहार के हर नागरिक को जबरदस्ती साधु बनाना चाहते हैं.’
पूर्व मुख्य सचिव वी.एस. दुबे का मानना है कि अवैध शराब की समस्या से निपटना सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है.
उन्होंने कहा, ‘पाबंदी को देखने के दो पहलू हैं. एक तो यह स्वास्थ्य की लिहाज समाज के लिए जरूरी है. लेकिन दूसरा, इसे लागू करना आसान नहीं है क्योंकि बिहार की यूपी, पश्चिम बंगाल, नेपाल और झारखंड के साथ खुली सीमाएं हैं. बिहार की ओर जाने वाली सैकड़ों ऐसी सड़कें हैं जहां से अवैध शराब आसानी से पहुंच सकती है. आप सभी आवाजाही की निगरानी नहीं कर सकते. यही नहीं अवैध शराब का उत्पादन शुरू करने के लिए भी जमीनी स्तर पर काफी काम करना पड़ता है. ऐसे में यह अकल्पनीय है कि स्थानीय पुलिस को इसके बारे में पता नहीं होता होगा. जाहिर है मिलीभगत है. अवैध शराब और जहरीली शराब से मौतें होना जारी रहेगा और राज्य सरकार इस पर कुछ नहीं कर सकती.’
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