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Thursday, 27 February, 2025
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नए अध्यक्ष के चुनाव में क्यों अटकी बीजेपी, जेपी नड्डा पद पर अब भी बरकरार

नए भाजपा अध्यक्ष का चुनाव कई कारणों से टल रहा है, जिनमें राज्य, जिला और मंडल स्तर पर आम सहमति का अभाव भी शामिल है. सूत्रों का कहना है कि प्रक्रिया मार्च में पूरी हो जाएगी.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की आंतरिक प्रक्रिया, जो मूल रूप से फरवरी के अंत तक पूरी होनी थी, अब मार्च तक खिंच सकती है. इस दौरान पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा अपने पहले से बढ़ाए गए कार्यकाल से आगे भी पद पर बने रहेंगे.

यह देरी बीजेपी के संगठनात्मक चुनावों के टलने के कारण हुई है. पार्टी के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले कम से कम आधे राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव पूरा होना आवश्यक है. अब तक बीजेपी ने 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 12 में संगठनात्मक चुनाव संपन्न कर लिए हैं, लेकिन उसे अभी भी कम से कम छह और प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति करनी होगी.

कुछ बड़े राज्यों और चुनावी राज्यों में संगठनात्मक चुनाव आंतरिक मतभेदों और गुटबाजी के कारण अटके हुए हैं, खासकर जिला अध्यक्षों के चयन को लेकर.

क्षेत्रीय गुटबाजी, नेतृत्व संबंधी विवाद और कुंभ मेला व आगामी राज्य चुनाव जैसी प्राथमिकताओं ने भी इस प्रक्रिया में देरी की है.

बीजेपी के संगठनात्मक चुनावों की जिम्मेदारी संभाल रहे एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, “हमारा प्रयास है कि 20 मार्च तक संगठनात्मक चुनाव पूरे कर लिए जाएं, क्योंकि कई राज्य इस प्रक्रिया को बहुत धीमी गति से आगे बढ़ा रहे हैं. हमारी टीम विभिन्न राज्यों का दौरा कर रही है ताकि इस प्रक्रिया को तेज किया जा सके और राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो सके.”

संगठनात्मक चुनावों के सह-प्रभारी नरेश बंसल ने भी कहा कि पार्टी 20 मार्च तक चुनाव पूरे करने की उम्मीद कर रही है और कई प्रदेश अध्यक्ष होली से पहले नियुक्त हो जाएंगे.

अंदरूनी कलह, दिल्ली चुनाव और कुंभ

हिंदी हार्टलैंड के प्रमुख राज्यों में भाजपा को प्रदेश अध्यक्ष पर आम सहमति बनाने में कठिनाई हो रही है.

उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में जिला अध्यक्षों की कई सूची दिल्ली भेजी गईं, लेकिन स्थानीय नेता अभी भी मंडल और जिला स्तर पर अपने उम्मीदवारों को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. इस कारण सूची खारिज कर दी गई और चुनाव प्रक्रिया में देरी हो गई.

कुछ राज्य भाजपा नेताओं का कहना है कि शीर्ष नेतृत्व की कुंभ मेले में व्यस्तता भी देरी की एक वजह है. एक नेता ने बताया कि दिल्ली ने सूची को इस आधार पर स्वीकृति नहीं दी क्योंकि इसमें महिलाओं और दलितों का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं था. इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व ने जिला अध्यक्षों के चयन में इन समूहों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व की मांग की.

उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने रविवार को पत्रकारों से कहा, “नेता दिल्ली विधानसभा चुनाव और कुंभ में व्यस्त थे, इसलिए प्रक्रिया में देरी हुई. लेकिन अब हम जल्द ही जिला अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर लिस्ट जारी करेंगे.”

उत्तर प्रदेश के एक भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया कि जब संगठन महासचिव बीएल संतोष जनवरी में लखनऊ आए थे, तो उन्होंने नेताओं से 15 जनवरी तक प्रक्रिया पूरी करने का आग्रह किया था. अब एक महीने से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन सूची अभी तक अंतिम रूप नहीं ले पाई है.

“चूंकि 2027 का विधानसभा चुनाव नए जिला अध्यक्षों के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, इसलिए टिकट चयन और चुनावी रणनीति में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी.”

“हर मंत्री और सांसद अपने जिले में अपनी पसंद का जिला अध्यक्ष चाहता है. हाल ही में लोकसभा चुनाव में भाजपा को यूपी में कई सीटों पर हार मिली, और इसका एक कारण यह था कि कई जिलों में जिला अध्यक्ष और सांसद एक राय पर नहीं थे. इसलिए यूपी में जिला अध्यक्षों के चयन को लेकर भारी दबाव बना हुआ है.”

कुछ राज्यों में जिला और मंडल स्तर के अध्यक्षों का चुनाव हो चुका है, लेकिन अब तक प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा नहीं हुई है.

मध्य प्रदेश में, वीडी शर्मा का बतौर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पांच साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है, लेकिन जिला अध्यक्षों के चुनाव के बावजूद पार्टी अब तक उनके उत्तराधिकारी के नाम पर फैसला नहीं कर पाई है. मध्य प्रदेश के संगठनात्मक चुनाव प्रभारी भगवंदास सबनानी ने कहा, “हमने जिला स्तर के चुनाव पूरे कर लिए हैं, और प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कभी भी हो सकती है.”

इसी तरह, बिहार में जिला अध्यक्षों की घोषणा हो चुकी है, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल का औपचारिक चुनाव अभी बाकी है, क्योंकि प्रमुख नेता दिल्ली चुनाव में व्यस्त थे. जायसवाल, जिन्हें कुछ महीने पहले नियुक्त किया गया था, अब 4 मार्च को राष्ट्रीय पर्यवेक्षक की उपस्थिति में आधिकारिक रूप से अनुमोदित किए जाने वाले हैं.

उत्तराखंड से हिमाचल प्रदेश तक, दिल्ली चुनाव और पार्टी के अंदरूनी मतभेद कई राज्यों में देरी के प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं.

हरियाणा में, वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बडोली और वरिष्ठ नेता अनिल विज के बीच विवाद ने संगठनात्मक चुनावों को प्रभावित किया है. विज, जिन्होंने बडोली पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया था, को अनुशासनहीनता के लिए नोटिस जारी किया गया. इसके अलावा, हरियाणा में स्थानीय निकाय चुनाव भी देरी का एक कारण बने हैं.

झारखंड में, संगठनात्मक चुनाव केवल पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के बाद ही शुरू हो सके और अब मार्च के अंत तक पूरे होने की उम्मीद है.

हिमाचल प्रदेश में, पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल हाल ही में दिल्ली में भाजपा प्रमुख जे.पी. नड्डा से मिले ताकि वे अपने दावों को आगे बढ़ा सकें, लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

पश्चिम बंगाल में, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि पूर्व अध्यक्ष सुकांत मजूमदार को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया है.

हालांकि, पश्चिम बंगाल में मंडल अध्यक्षों के चुनाव को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं में जबरदस्त असंतोष है. पार्टी ने हाल ही में राज्य में 1,280 में से 1,000 मंडल अध्यक्ष नियुक्त किए, लेकिन इस प्रक्रिया ने विरोध को जन्म दिया है. भाजपा विधायक सत्येंद्र नाथ राय ने भी चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं.

मंडल अध्यक्षों के चुनाव पहले चरण में आते हैं, इसलिए जिला अध्यक्षों के चुनाव में और अधिक समय लगेगा, जिससे प्रदेश अध्यक्ष के चयन में भी देरी होगी.

इसके अलावा, राज्य अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पुराने भाजपा नेताओं और तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में आए सुवेंदु अधिकारी के बीच तनातनी भी एक और चुनौती बनी हुई है.

अब तक भाजपा ने 12 छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया पूरी कर ली है, जिनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, असम, सिक्किम, चंडीगढ़, गोवा, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, लद्दाख, मेघालय और नागालैंड शामिल हैं.

हिंदी हार्टलैंड में राजस्थान एकमात्र राज्य है जहां यह प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, और मौजूदा अध्यक्ष मदन राठौड़ को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष चुना गया है.

दक्षिणी राज्यों में अंदरूनी कलह

अधिकांश दक्षिणी राज्यों में, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में देरी हो रही है, क्योंकि जिला अध्यक्ष का चुनाव पूरा नहीं हुआ है और पार्टी में विरोधी गुटों के बीच अभी भी प्रदेश अध्यक्ष के चयन पर आम सहमति नहीं बन पाई है.

कर्नाटक में, मौजूदा प्रदेश भाजपा प्रमुख बी.वाई. विजयेंद्र के आंतरिक विरोध के कारण प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में देरी हो रही है. पूर्व मंत्री बसनगौड़ा पाटिल यतनाल के नेतृत्व वाले विजयेंद्र विरोधी गुट ने नेतृत्व चुनाव होने पर उम्मीदवार उतारने की धमकी दी है.

विधायक यतनाल और रमेश जारकीहोली, पूर्व सांसद जी.एम. सिद्धेश्वरा और पूर्व विधायक बीपी हरीश, कुमार बंगारप्पा और एन.आर. संतोष सहित वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने विजयेंद्र के नेतृत्व को खुली चुनौती दी है.

यतनाल के विद्रोह के बाद, केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें अनुशासनात्मक नोटिस भेजा, लेकिन चल रही अंदरूनी कलह ने कर्नाटक के प्रदेश अध्यक्ष के चयन को और भी विलंबित कर दिया है.

पूर्व विधायक कुमार बंगरप्पा ने पहले भी दोहराया है कि बागी गुट ने प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने से पीछे नहीं हटे हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमने अपना फैसला वापस नहीं लिया है. अगर चुनाव होते हैं, तो हमारा उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा. प्रदेश अध्यक्ष को निश्चित रूप से बदला जाएगा. हमने कर्नाटक की स्थिति के बारे में हाईकमान को सूचित कर दिया है. हम पीछे नहीं हट रहे हैं.’

तेलंगाना में 19 जिला अध्यक्ष चुने गए हैं, लेकिन जी. किशन रेड्डी की जगह नया प्रदेश अध्यक्ष अभी तक सर्वसम्मति के अभाव में नहीं चुना जा सका है. रेड्डी ने पिछले सप्ताह संवाददाताओं से कहा था कि प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति केवल तीन या चार महीने के लिए थी, लेकिन नए अध्यक्ष की नियुक्ति विभिन्न कारणों से स्थगित होने के कारण इसे बढ़ा दिया गया था.

हालांकि, उन्होंने कहा कि मार्च में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों से पहले राज्य को नया अध्यक्ष मिल जाएगा. हालांकि, पार्टी सूत्रों ने कहा कि अगले प्रदेश अध्यक्ष को लेकर अंदरूनी कलह के कारण निर्णय में देरी हुई है, जबकि केंद्रीय नेतृत्व ने अभी तक अंतिम फैसला नहीं किया है. जुलाई 2023 में जब बंदी संजय को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया, तो जी. किशन रेड्डी को लाने का एक कारण सभी गुटों में उनकी स्वीकार्यता थी.

अब जबकि रेड्डी केंद्रीय मंत्री हैं, प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की संभावना है. हाल के दिनों में एमएलसी रामचंदर राव इस पद के लिए दिल्ली में पैरवी कर रहे थे, हालांकि संसद सत्र के कारण कई वरिष्ठ नेता उनसे नहीं मिल पाए. यह देरी पूर्व मंत्री एटाला राजेंद्र, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डीके अरुणा और रामचंदर राव सहित कई दावेदारों के बीच आम सहमति बनाने में पार्टी की विफलता के कारण हुई है.

तमिलनाडु और केरल में जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, भाजपा अभी भी इस बात पर फैसला नहीं कर पाई है कि मौजूदा अध्यक्ष के साथ बने रहना है या नया अध्यक्ष चुनना है. के. अन्नामलाई जुलाई 2021 से तमिलनाडु में प्रदेश अध्यक्ष हैं, जबकि के. सुरेंद्रन पार्टी के भीतर विरोध के बावजूद फरवरी 2020 से केरल में इस पद पर हैं. सुरेंद्रन के नेतृत्व में पार्टी 2021 का विधानसभा चुनाव हार गई, लेकिन पिछले साल के लोकसभा चुनाव में राज्य में अपनी पहली संसदीय सीट जीतकर बढ़त हासिल की.

हाल ही में पलक्कड़ उपचुनाव में मिली हार के बावजूद, भाजपा नेतृत्व ने सुरेंद्रन विरोधी खेमे के दबाव का विरोध किया है. पार्टी नेताओं के बीच एक विचार यह है कि 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए के. सुरेंद्रन को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा जाए.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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