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Friday, 15 November, 2024
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लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल की इंडियन सेक्युलर फ्रंट ने लेफ्ट और कांग्रेस से क्यों तोड़ा नाता

मुर्शिदाबाद और सेरामपुर सीटों पर सीट बंटवारे पर बातचीत टूटने के बाद आईएसएफ ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. विश्लेषकों का मानना है कि सीपीआई (एम) या कांग्रेस के समर्थन के बिना आईएसएफ को कोई मौका नहीं मिलेगा.

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कोलकाता: इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के विधायक नवसाद सिद्दीकी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए पश्चिम बंगाल में वाम-कांग्रेस और आईएसएफ के बीच गठबंधन के लिए बातचीत टूटने के लिए कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी को जिम्मेदार ठहराया है.

सीट बंटवारे को लेकर सीपीआई (एम) और आईएसएफ के प्रयासों के सकारात्मक नतीजे निकलने में विफल रहने के बाद, आईएसएफ ने गुरुवार को अपने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की.

सिद्दीकी ने दिप्रिंट से कहा, “मुझे नहीं पता कि अधीर रंजन चौधरी सीट बंटवारे की बातचीत से पूरी तरह दूर क्यों रहे. मुझे नहीं पता कि वे किसकी सलाह लेते हैं. यही कारण है कि आईएसएफ, सीपीआई (एम) और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हुआ. 2021 में उन्होंने फुरफुरा शरीफ में आकर बैठक की, लेकिन अब इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं. यहां तक कि सीताराम येचुरी ने भी कहा कि जब 2021 में सीटों का बंटवारा स्पष्ट हो गया था तो आईएसएफ के साथ कोई औपचारिक गठबंधन नहीं था.”

उनके मुताबिक, जिन दो सीटों पर गतिरोध पैदा हुआ, वे मुर्शिदाबाद और सेरामपुर थीं. उन्होंने कहा कि सीपीआई (एम) आईएसएफ को केवल चार सीटें दे रही है, जो स्वीकार्य संख्या नहीं है.

सिद्दीकी ने कहा, “हम मुर्शिदाबाद सीट छोड़ने के लिए तैयार थे क्योंकि राज्य सचिव मोहम्मद सलीम वहां से सीपीआई (एम) के लिए लड़ रहे थे, लेकिन हम सेरामपुर सीट चाहते थे, जहां उन्होंने अपने उम्मीदवार की घोषणा तब की जब हम बातचीत कर रहे थे. हम अकेले लड़ने के लिए तैयार हैं क्योंकि सीपीआई (एम) और कांग्रेस अनिश्चित हैं कि वे किसे ऑक्सीजन दे रहे हैं – भाजपा या टीएमसी.”

इस बीच, वामपंथियों ने तुरंत दोष आईएसएफ पर मढ़ दिया.

दिप्रिंट से बात करते हुए सीपीआई (एम) नेता और उम्मीदवार सुजन चक्रवर्ती ने कहा, “लोग आईएसएफ की स्थिति का फैसला करेंगे क्योंकि उसने बातचीत से बाहर निकलने और अपने दम पर लड़ने का फैसला किया है. यह एक राजनीतिक दल है और उसे चुनाव लड़ने का अधिकार है, लेकिन यह फैसला केवल भाजपा और टीएमसी को मजबूत करने में मदद करेगा जिनके खिलाफ हम लड़ रहे हैं.”

हालांकि, टीएमसी ने दावा किया कि सीपीआई (एम) समर्थन जुटाने के लिए आईएसएफ का “इस्तेमाल” कर रही है. “सीपीआई (एम) अपने स्वार्थी कारणों से आईएसएफ का उपयोग कर रही थी और इसीलिए गठबंधन नहीं हुआ, लेकिन आईएसएफ किसे मैदान में उतारने का फैसला करती है यह उनकी रणनीति है और टीएमसी उनके आंतरिक मामले पर टिप्पणी नहीं करेगी.”

दिप्रिंट ने कॉल और टेक्स्ट के जरिए अधीर रंजन चौधरी से संपर्क की कोशिश की. जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

आईएसएफ, जिसने कुल आठ सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है, सेरामपुर के बदले पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम के खिलाफ मुर्शिदाबाद के अपने उम्मीदवार हबीब शेख को वापस लेने को तैयार था, लेकिन सीपीआई (एम) ने स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की नेता दीपशिता धर की सेरामपुर सीट छोड़ने से इनकार कर दिया, जिस पर अब आईएसएफ के शरियार मलिक से मुकाबला होगा. एसएफआई सीपीआई (एम) की छात्र शाखा है.

आईएसएफ ने सीपीआई (एम) के सुजन चक्रवर्ती के खिलाफ जादवपुर से नूर आलम खान के नामांकन की भी घोषणा की है. भांगर, जिस सीट पर आईएसएफ ने 2021 में जीत हासिल की, वो इसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है. पार्टी ने बालुरघाट से मोजम्मिल हक, बैरकपुर से जमीर हुसैन और उलुबेरिया सीटों से मोफीकुल इस्लाम को मैदान में उतारा है और आने वाले दिनों में और अधिक उम्मीदवारों की घोषणा करने की संभावना है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, आईएसएफ को अपने दम पर सफलता मिलने की संभावना नहीं है.

राजनीतिक विश्लेषक बिश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा, “आईएसएफ-लेफ्ट संयुक्त रूप से अभी भी एक मौका बना सकता है, लेकिन इस जैसे महत्वपूर्ण चुनाव में, अल्पसंख्यकों द्वारा उस पार्टी का समर्थन करने की संभावना नहीं है जो वे जानते हैं कि भाजपा को नहीं हरा सकते.”


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‘बंगाली मुस्लिम मतदाताओं को कम मत आंकिए’

जबकि वाम-कांग्रेस और आईएसएफ 2021 में लगभग 10 प्रतिशत संयुक्त वोट शेयर हासिल करने में कामयाब रहे, पिछले साल हुए पंचायत चुनावों में उन्होंने 20 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर लिया.

यह पहली बार है जब आईएसएफ पश्चिम बंगाल से आम चुनाव लड़ेगा.

सिद्दीकी डायमंड हार्बर निर्वाचन क्षेत्र से टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के खिलाफ लड़ने के लिए उत्सुक थे. मीडिया के सामने उनके बयानों ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया था कि वे चुनौती के लिए तैयार हैं, लेकिन पार्टी ने उनकी जगह मोफिजुल लस्कर को मैदान में उतारने का फैसला किया. पार्टी के भीतर कई लोगों का दावा है कि सिद्दीकी को आईएसएफ के स्टार प्रचारक के रूप में बनाए रखने और उम्मीदवारी के मामले में उन्हें एक निर्वाचन क्षेत्र तक सीमित नहीं रखने का फैसला लिया था.

लेकिन भाजपा का दावा है कि मतभेदों के बावजूद आईएसएफ और सीपीआई (एम) के बीच जमीनी स्तर पर एक मौन सहमति है. सांसद दिलीप घोष ने शुक्रवार को चुनाव प्रचार के दौरान मीडिया से कहा, “यह सब सेटिंग है, और लोगों को एक बात समझ में आ गई है — वे बाएं या दाएं नहीं देखेंगे बल्कि सीधे आएंगे और भाजपा को वोट देंगे.”

लेकिन राजनीतिक विश्लेषक उदयन बंदोपाध्याय के अनुसार, आईएसएफ के लिए पश्चिम बंगाल में कोई बड़ा चुनावी प्रभाव डालना जल्दबाजी होगी.

असदुद्दीन ओवसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) से तुलना करते हुए बंदोपाध्याय ने दिप्रिंट से कहा, “आईएसएफ पश्चिम बंगाल में अपनी स्थिति स्थापित नहीं कर पाएगा. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे बंगाली मुसलमानों की राजनीतिक चेतना को कम आंक रहे हैं. AIMIM ने 2021 के विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारे, जिससे अल्पसंख्यक वोटों के विभाजित होने की चर्चा शुरू हो गई, लेकिन अंत में, उन्होंने टीएमसी का समर्थन किया। मुझे नहीं लगता कि आईएसएफ इस बार कोई बड़ा प्रभाव डालेगी.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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