मुंबई: मुंबई के आलीशान इलाके मालाबार हिल स्थित सागर बंगले के बाहर रविवार को माहौल काफी गहमागहमी भरा था, टेलीविजन कैमरा क्रू, पत्रकार और तमाम भाजपा नेता खबर बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे और, उनका मानना था कि घर के अंदर मुंबई पुलिस की साइबर सेल की टीम महाराष्ट्र के नेता विपक्ष देवेंद्र फडणवीस से उस मामले में बातचीत कर रही है जिसमें उन्हें ‘स्टार विटनेस’ माना जाता है.
लेकिन जब बात बाहर आई तो पता चला कि मामला एकदम वैसा नहीं था, जैसा सोचा जा रहा था.
करीब दो घंटे बाद जब पुलिस टीम विपक्षी नेता के आवास से निकली तो फडणवीस ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि प्रमुख गवाह होने की बात तो दूर, उनसे तो ऐसे पूछताछ की गई जैसे वह कोई संदिग्ध हों.
भाजपा नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने संवाददाताओं से बातचीत में दावा किया, ‘मुझे (साइबर सेल की तरफ से) भेजी गई प्रश्नावली और मुझसे पूछे गए प्रश्नों के बीच बहुत अंतर था. आज सभी प्रश्नों का सुर कुछ ऐसा था जैसे मैंने सरकारी गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन किया है. प्रश्न उस तरह के नहीं थे जो किसी गवाह से पूछे जाते हैं. बल्कि इस तरह के थे कि यह निर्धारित किया जा सके कि क्या मुझे आरोपी या सह-आरोपी बनाया जा सकता है.’
इस तरह के संकेत मिलने पर राज्यभर के भाजपा नेताओं ने हो-हल्ला शुरू कर दिया और आरोप लगाया कि फडणवीस को राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया जा रहा था- जो कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक आम बात है जहां सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) और भाजपा दोनों ही राजनीतिक कारणों से कानून प्रवर्तन एजेंसियों के इस्तेमाल को लेकर एक-दूसरे पर निशाना साधने और आरोप-प्रत्यारोप का कोई मौका नहीं छोड़ते.
साइबर सेल ने रविवार को फडणवीस से जिस मामले में पूछताछ की, उसकी शुरुआत एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस के कारण हुई थी जिसे महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने लगभग एक साल पहले संबोधित किया था.
23 मार्च 2021 को फडणवीस ने आरोप लगाया था कि पुलिस तबादलों में ‘बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार’ हो रहा है और एमवीए सरकार ने इस मामले में पुलिस अधिकारी और पूर्व खुफिया आयुक्त रश्मि शुक्ला की एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की है. फडणवीस ने यह भी कहा था कि उनके पास सबूत के तौर पर फोन टैपिंग से मिला 6.3 जीबी कॉल डेटा रिकॉर्ड हैं.
पिछले साल उसी महीने, बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स साइबर पुलिस स्टेशन में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ कथित तौर पर गैर-कानूनी तरीके से फोन टैपिंग और गोपनीय दस्तावेजों को लीक करने को लेकर सरकारी गोपनीयता अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई. वहीं, एमवीए सरकार ने फडणवीस और शुक्ला दोनों पर आरोप लगाए कि उनकी तरफ से सरकार को गिराने की कोशिश की जा रही है.
हालांकि, एमवीए सरकार ने इस बात को साफ किया है कि रविवार को हुई पूछताछ फडणवीस को निशाना बनाने के लिए नहीं थी.
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आईपीएस पोस्टिंग में भ्रष्टाचार और फोन टैपिंग
पिछले साल मार्च में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान फडणवीस ने पुलिस विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग में कथित भ्रष्टाचार को लेकर आईपीएस अधिकारी रश्मि शुक्ला की उस विवादास्पद रिपोर्ट का हवाला दिया था, जो उनके खुफिया आयुक्त रहने के दौरान की थी. भाजपा नेता ने कहा था कि उनके पास रिपोर्ट है और उन्होंने अग्रसारित पत्र की जानकारी भी पत्रकारों के साथ साझा की थी जिसमें संक्षेप में मामले की पूरी जानकारी दी गई थी.
उन्होंने बताया था कि उनके पास 6.3 जीबी कॉल डेटा रिकॉर्ड भी हैं जिन्हें शुक्ला ने इंटरसेप्ट कराया था, और उसी शाम को दिल्ली में केंद्रीय गृह सचिव को डेटा सौंप दिया गया.
फडणवीस के मुताबिक, शुक्ला ने अगस्त 2020 में राज्य सरकार को यह रिपोर्ट सौंपी थी और एमवीए सरकार ने कथित तौर पर इस पर कोई कार्रवाई नहीं की. फडणवीस के आरोपों के बाद, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव सीताराम कुंटे को 24 घंटे के भीतर फोन टैपिंग पर एक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया.
रिपोर्ट में कुंटे ने कहा कि शुक्ला ने फोन टैप करने की अनुमति लेने के लिए सरकार को गुमराह किया था. उन्होंने आगे कहा कि फोन टैपिंग का सहारा केवल असाधारण मामलों में ही लिया जाना चाहिए और आईपीएस पोस्टिंग और तबादलों में कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए निर्धारित तरीकों का ही इस्तेमाल किया जा सकता था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शुक्ला ने गोपनीय सरकारी दस्तावेज लीक किए थे.
इस मामले पर विवाद के बाद मुंबई पुलिस की साइबर सेल ने राज्य के खुफिया विभाग की शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की थी. मामले में पूछताछ के लिए बुलाए जाने पर शुक्ला ने बांबे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि उन्हें गिरफ्तारी का डर है. साथ ही अदालत से उनके खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं किए जाने का निर्देश देने की गुहार लगाई.
पिछले साल अक्टूबर में शुक्ला, जो अभी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं, ने कोर्ट को बताया कि एमवीए मंत्री जितेंद्र आव्हाड और नवाब मलिक ने उन सबूतों को लीक किया, जिन पर उनकी रिपोर्ट आधारित थी. जबकि फडणवीस ने इसके साथ लगे केवल दो कवरिंग लेटर साझा किए.
अभी फरवरी में पुणे पुलिस ने 2016-2017 में कथित अवैध फोन टैपिंग के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले के आरोप के सिलसिले में शुक्ला के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी. इस महीने की शुरुआत में, मुंबई के कोलाबा पुलिस स्टेशन ने भी शुक्ला के खिलाफ शिवसेना के दो नेताओं के फोन टैप कराने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की थी.
‘जानबूझकर फडणवीस को निशाना बनाने का कोई इरादा नहीं’
राज्य के गृह मंत्री दिलीप वालसे पाटिल ने सोमवार को राज्य विधानसभा में बताया कि राज्य सरकार ने पिछले साल फडणवीस के इस मुद्दे को उठाने से पहले ही अवैध फोन टैपिंग की जांच के लिए एक समिति का गठन किया था.
पाटिल ने कहा कि समिति की रिपोर्ट के आधार पर अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी और जांच अधिकारियों ने पहले ही मामले में 24 लोगों के बयान दर्ज कर लिए थे.
उन्होंने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के अनुसार यदि जांच अधिकारी कुछ जानकारी चाहते हैं तो उन्हें इससे संबंधित व्यक्ति को बुलाने का अधिकार है. उन्होंने कहा कि पूछताछ का उद्देश्य केवल यह जानना था कि फडणवीस को गोपनीय डेटा कैसे मिला. मुंबई पुलिस की साइबर सेल ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से फडणवीस द्वारा सौंपा गया डेटा साझा करने को भी कहा है.
पाटिल ने कहा, ‘पहले तो नेता विपक्ष को एक प्रश्नावली भेजी गई थी, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्होंने इसका जवाब नहीं दिया. और इसीलिए कुछ दिन पहले जांच अधिकारियों ने उन्हें सीआरपीसी की धारा 160 के तहत नोटिस भेजा था. इसका सीधा मतलब सिर्फ इतना ही होता है कि मामले में अपना बयान दर्ज कराएं.’
उन्होंने कहा, ‘यह सिर्फ एक नियमित प्रक्रिया है. आपराधिक मामलों में किसी को भी छूट नहीं मिलती है. नेता विपक्ष को नोटिस एक आरोपी के तौर पर नहीं भेजा गया था- यह सिर्फ यह पता लगाने की कोशिश है कि उन्हें जानकारी कैसे मिली. जानबूझकर विपक्षी नेता को निशाना बनाने का कोई इरादा नहीं है.’
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