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Friday, 22 November, 2024
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आधुनिकीकरण या उत्पीड़न? यूपी में गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के सर्वे पर विवाद क्यों

यूपी मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष का दावा है कि मान्यता प्राप्त मदरसों में से कुछ तो ऐसे हैं जिनका पहले कभी कोई अस्तित्व नहीं था. लेकिन एक कार्यकर्ता का मानना है कि इस तरह के सर्वे भ्रष्टाचार को बढ़ा सकते हैं.

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लखनऊ: योगी आदित्यनाथ सरकार ने गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों की पहचान करने और उन्हें चलाने वाले संगठनों, पाठ्यक्रम और आय के स्रोत जैसी जानकारी इकट्ठा करने के लिए एक सर्वेक्षण शुरू करने का आदेश जारी किया है. उनके इस फैसले ने एक राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि यह सब उत्तर प्रदेश में रह रहे मुसलमानों को परेशान करने के लिए किया जा रहा है.

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के अनुसार, राज्य में लगभग 20 लाख छात्र 16,513 मान्यता प्राप्त मदरसों के साथ जुड़े हैं.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक मोटे अनुमान के अनुसार, भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में लगभग 40 से 50 हजार निजी मदरसे हैं.

30 अगस्त को जारी अपने आदेश में भाजपा सरकार ने सभी जिलाधिकारियों (डीएम) को अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे शुरू करने और उन्हें चलाने वाले संगठन के नाम सहित मदरसे की स्थापना का साल, पाठ्यक्रम, आय का स्रोत और क्या बिल्डिंग छात्रों के लिए उपयुक्त है, आदि जानकारी इकट्ठा करने के लिए कहा गया है.

साथ ही डीएम को यह जानकारी भी लेनी होगी कि मदरसे किसी सरकारी या गैर-सरकारी संगठन से संबद्ध हैं या नहीं, संगठन के खिलाफ कोई आरोप और उसके छात्र दूसरे स्कूल में नामांकित हैं या नहीं.

यूपी सरकार के उप सचिव शकील अहमद सिद्दीकी ने आदेश के मुताबिक सर्वेक्षण करने के लिए सभी डीएम को 9 सितंबर तक एक तहसील के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, मूल शिक्षा अधिकारी और अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी को शामिल करने के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया है.

आदेश में कहा गया है, ‘समिति एडीएम (प्रशासन) की देखरेख में काम करेगी और 5 अक्टूबर तक सर्वे की अपनी रिपोर्ट सौंप देगी. एडीएम (प्रशासन) 10 अक्टूबर तक डीएम को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा जो आगे 25 अक्टूबर तक सरकार को डेटा साझा करेगा.’

दिप्रिंट के पास पत्र की एक प्रति है.

सर्वेक्षण क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि सर्वे का उद्देश्य राज्य में चल रहे गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या के आंकड़े इकट्ठे करना है.

यूपी मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद ने दिप्रिंट को बताया कि सिर्फ 16,513 मदरसे परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त हैं. इनमें से 560 मदरसों को राज्य सरकार से अनुदान मिलता है.

उन्होंने कहा, ‘2018 में, जब मदरसों के आंकड़े इकट्ठा करने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया गया था, तो सिर्फ 2500 से 3000 मदरसे ही कागजों पर मौजूद थे. इसका मतलब यह है कि कई मदरसों को वास्तविकता में अस्तित्व के बिना मान्यता मिली हुई है.’

वह बताते हैं, ‘हमारे पास गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या नहीं है. जब बाल अधिकारों का हनन होता है तो सरकार पर उंगलियां उठाई जाती हैं. हम ऐसे मदरसों की संख्या, उनकी स्थिति, छात्रों और शिक्षकों की संख्या जानना चाहते हैं. हम जानना चाहते हैं कि एनसीपीसीआर (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग) के नियमों के अनुसार उनके पास बच्चों के लिए सभी जरूरी सुविधाएं हैं या नहीं.

जावेद ने कहा कि मदरसों को मान्यता देने के लिए सर्वे के नतीजों का अध्ययन करने के बाद नए नियम बनाए जाएंगे.


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ओवैसी और विपक्ष का गुस्सा

पिछले हफ्ते ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह एक सर्वे नहीं है, बल्कि एक ‘मिनी-एनआरसी’ है और यूपी सरकार का ‘मुसलमानों को परेशान करने’ के लिए किया गया प्रहार है. उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत सरकार उनके अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज सिंह काका ने दिप्रिंट को बताया कि संविधान की प्रस्तावना के अनुसार, सरकार को धर्मों की समानता का पालन करना चाहिए.

उन्होंने सत्तारूढ़ भाजपा पर उत्तर प्रदेश में हिंदू-मुस्लिम विभाजन की कोशिश करने का भी आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, ‘सवाल मदरसों के आधुनिकीकरण का नहीं है. यह इस बारे में है कि एक ऐसे समुदाय को कैसे बदनाम किया जाए और उसे निशाना बनाया जाए, जो सैकड़ों सालों से हमसे जुड़ा हुआ है… अगर भाजपा सरकार को वास्तव में मुसलमानों की चिंता है, तो उसने विधानसभा चुनाव में 403 सीटों में से किसी पर भी इस समुदाय के उम्मीदवार को एक भी टिकट क्यों नहीं दिया? पार्टी ने समुदाय को इतना हाशिए पर क्यों रखा है? …उन्हें सीट दें और प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति में सुधार करें जहां बच्चों को अभी तक किताबें नहीं मिली हैं.’

यूपी कांग्रेस मीडिया और संचार विंग के अध्यक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि सरकार को उन सभी मदरसों, स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जिन्हें अवैध रूप से मान्यता मिली हुई है.

वह कहते हैं, ‘पहले, यह जांचना होगा कि नियम क्या हैं. अगर किसी मदरसे को नियमों के खिलाफ मान्यता मिली है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन कोई अड़ियल कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. और सिर्फ मदरसों को ही नहीं, सभी स्कूलों, शिक्षण संस्थानों को एक नजर से देखा जाना चाहिए.

प्रयागराज में उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य ने रविवार को मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहा कि सर्वेक्षण का कोई गलत उद्देश्य नहीं है. यह इसलिए किया जा रहा है ताकि यहां पढ़ने वाले बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस और आईपीएस अधिकारी बन सकें और किसी गलत गतिविधि का जरिया न बनें.

अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री दानिश रज़ा ने दिप्रिंट को बताया कि विपक्ष सिर्फ राजनीति करने में लगा रहता है.

उन्होंने बताया, ‘हम एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) पाठ्यक्रम, आदि शुरू करके मदरसों का आधुनिकीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी और ओवैसी राजनीति कर रहे हैं. मुसलमान जानते हैं कि योगी जी के नेतृत्व में सिर्फ बीजेपी सरकार ही उनकी बेहतरी के लिए कदम उठा रही है.

लखनऊ के कार्यकर्ता ज़मीर नकवी, जिन्होंने मदरसों के कामकाज में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, ने दिप्रिंट को बताया कि इस तरह के सर्वेक्षण से ‘भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी’ हो सकती है.

उन्होंने कहा, ‘सर्वे शायद ही कभी सिस्टम के लिए कुछ सकारात्मक करते हो. इस तरह के सर्वेक्षण सिर्फ भ्रष्टाचार की संभावना को बढ़ाएंगे. आमतौर पर कागजात की कमी के बाद पैसों का लेनदेन शुरू हो जाता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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