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Friday, 20 December, 2024
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जानिए क्यों भाजपा को आगामी यूपी चुनावों में 2017 से भी बड़ी जीत करनी होगी हासिल

2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की कुल 403 सीटों में से 312 सीटें जीती थीं.

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नई दिल्ली: 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए अपनी प्रतिष्ठा और सत्ता को बरकरार रखने के अलावा भी और बहुत कुछ दांव पर लगा है.

इसका एक बड़ा कारण यह है कि अगर भाजपा की अगले राष्ट्रपति चुनावों में जीत हासिल करनी है तो पार्टी को 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में किये गए अपने प्रदर्शन – 403 सीटों में से 312 – में और ज्यादा बेहतरी लाने की जरूरत है.
ज्ञात हो कि भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 2022 में समाप्त हो रहा है और इस पद के लिए चुनाव पांच राज्यों – उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा- में विधानसभा चुनावों के बाद होंगे.

चूंकि राष्ट्रपति चुनाव में सांसदों और विधायकों दोनों के मतों को ध्यान में रखा जाता है, इसलिए इन विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीती हुई हर विधानसभा सीट महत्वपूर्ण होगी, खासकर यह देखते हुए कि पिछले कुछ वर्षों में इसने अपने कई सहयोगियों को खो दिया है.

हालांकि भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग या एनडीए) को अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए केसीआर की तेलंगाना राष्ट्र समिति और नवीन पटनायक की बीजू जनता दल (बीजद) जैसे फेन्स सिटर्स (असम्बद्ध) दलों का सहयोग मिल सकता है, पर अगर इसे उत्तर प्रदेश में एक और भारी-भरकम जीत हासिल होती है तो इस सब आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी.

2018 के बाद से, कई अहम क्षेत्रीय दलों ने एनडीए के साथ संबंध तोड़ दिए हैं जिनमें आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) शामिल हैं.

2017 के बाद से हुई सभी राजनीतिक हलचलों को ध्यान में रखते हुए, दिप्रिंट ने पाया है कि राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के लिए उपलब्ध मतों का हिस्सा बहुमत के आंकड़े से नीचे आ गया है. नतीजतन, मौजूदा सीटों में किसी भी तरह के नुकसान अथवा गिरावट से इस अंतर के और भी बढ़ने की संभावना है.


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राष्ट्रपति चुनाव

राष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचक मंडल (इलेक्टोरल कॉलेज) में विधायक और सांसद दोनों शामिल होते हैं. लोकसभा या राज्यसभा के आधार पर अंतर किये बिना प्रत्येक सांसद के मत का मूल्य 708 है, जो एक पूर्व-निर्धारित फॉर्मूले पर आधारित है.

दूसरी तरफ, प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य अलग-अलग होता है: यह राज्य की जनसंख्या (1971 की जनगणना के आधार पर) और राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या पर निर्भर करता है.

यही वह वजह है जिससे उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण हो जाता है – इसके प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य 208 है, जो सिक्किम के एक विधायक के लिए निर्धारित मूल्य (मात्र 7) के मुकाबले सर्वाधिक है.
एनडीए के मामले में उसकी सबसे बड़ी ताकत लोकसभा में है, जहां उसके पास 530 सांसदों में से 334 के समर्थन के साथ स्पष्ट बहुमत है.

राज्यसभा में 232 की वर्तमान संख्या में से एनडीए के पास 116 सीटें हैं. भाजपा को अब तक 3 मनोनीत उम्मीदवारों के आधार पर ही राज्यसभा में बहुमत प्राप्त है, लेकिन वे राष्ट्रपति चुनाव में मतदान के लिए पात्र/योग्य नहीं होते हैं. देश भर के राज्यों में एनडीए के पास 4,033 विधानसभा सीटों में से 1,761 सीटें हैं. लेकिन यह संख्या उन प्रमुख राज्यों से नहीं आती है जहां के विधायकों के मत का मूल्य अधिक है. उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में एक विधायक के मत का मूल्य 176 है, पश्चिम बंगाल में यह आंकड़ा 151 है, वहीं झारखंड में यह 176 (पूर्व-निर्धारित फॉर्मूले के आधार पर) और महाराष्ट्र में 175 है.

कुल मिलाकर देखें तो वर्तमान ताकत के अनुसार एनडीए के पास राष्ट्रपति निर्वाचक मंडल (प्रेसिडेंशियल इलेक्टोरल कॉलेज) के 49.95 प्रतिशत मत हैं, जो बहुमत के आंकड़े से 0.05 प्रतिशत कम है.

The BJP's presidential poll position | Illustration: Ramandeep Kaur
बीजेपी की राष्ट्रपति चुनाव की स्थिति । चित्रणः रमनदीप कौर

क्यों महत्वपूर्ण हैं यूपी और इसके अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव?

अगले साल जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों होने वाले हैं वहां राष्ट्रपति चुनाव के 1,03,756 वोट हैं, यानि कि राष्ट्रपति चुनाव में कुल मतदाताओं का लगभग 10 प्रतिशत. इसमें से करीब 80 फीसदी यानी 83,824 मत उत्तर प्रदेश से है.

पंजाब को छोड़कर अन्य चार राज्यों में एनडीए पहले से ही सत्ता में है. लेकिन गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में विधायकों के मत का मूल्य क्रमशः 20, 18 और 64 है. ये सभी छोटे राज्य हैं. गोवा में सिर्फ 40 विधायक हैं तो मणिपुर में 60 और उत्तराखंड में 70.

पंजाब के 117 विधायकों में से प्रत्येक के मत का मूल्य 116 है, लेकिन अकाली दल के एनडीए से अलग होने और किसानों के आंदोलन के कारण व्याप्त अशांति को देखते हुए, राज्य में एनडीए की संभावनाएं कभी धूमिल दिखती हैं.
इनके बाद सिर्फ उत्तर प्रदेश बचता है, जहां वर्तमान में, एनडीए के पास 306 भाजपा विधायकों और अपना दल के 11 विधायकों – यानि कि यूपी की कुल सीटों के 78 प्रतिशत – का समर्थन है.

लेकिन प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य 208 होने के कारण राज्य में हर 10 सीटों पर हार का मतलब राष्ट्रपति चुनाव के मतों में 0.02 प्रतिशत की हानि है.

यहां किसी भी तरह का प्रतिकूल परिणाम विपक्ष को राष्ट्रपति चुनावों में ठीक-ठाक चुनौती देने के लिए जरुरी प्रेरणा प्रदान कर सकता है.

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में कार्यरत राजनीतिक वैज्ञानिक और शोधकर्ता (फेलो) राहुल वर्मा के मुताबिक इसके और भी कई सारे नतीजे हो सकते हैं.

वर्मा कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश के परिणाम सहयोगी दलों की सौदेबाजी की ताकत को भी प्रभावित करेंगे. यूपी जैसे राज्य में एक रिकॉर्ड तोड़ जीत सत्ता के कथित संतुलन को बदल देगी. अगर भाजपा को भारी अंतर से जीत मिलती है, तो संभावना इस बात की है कुछ फेन्स सिटर्स भी खुले तौर पर भाजपा की पसंद के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को समर्थन दे सकते है.‘

पर वर्मा का यह भी कहना है कि इस राज्य को हारने से, चाहे यह कितने भी कम अंतर से क्यों न हो, भाजपा के सहयोगी दलों का भी सौदेबाजी के लिए हौसला बढ़ेगा.

वर्मा का कहना है कि ‘उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार से न केवल (राष्ट्रपति चुनाव में) पार्टी के उम्मीदवार की जीत के बारे में फेन्स सिटर्स की धारणा प्रभावित होगी, बल्कि यह अपने मौजूदा सहयोगियों के साथ भाजपा के संबंधों को भी कमजोर कर सकती है. यूपी में हार से सहयोगी दलों की सौदेबाजी की ताकत और बढ़ेगी, जो एनडीए का समर्थन तभी करना चाहेंगे जब उनकी पसंद का कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा हो. याद रखें कि बिहार में जद (यू)-राजद गठबंधन में टूट 2017 के यूपी चुनावों में बीजेपी की भारी जीत के बाद हीं आई थी.’


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मित्रों के मदद की आवश्यता !

फेन्स सिटर्स के मामले में जहां भाजपा थोड़ी सी सुरक्षित हालत में है, वह है बीजद और जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी जैसी पार्टियों के साथ इसके सम्बन्ध जिन्होंने संसद में ज्यादातर उसके पक्ष में ही मतदान किया है.
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के पास आंध्र प्रदेश में 150 विधानसभा सीटें हैं, जिनका राष्ट्रपति चुनाव में मूल्य 26,250 वोटों के बराबर है. राज्यसभा और लोकसभा दोनों मिलाकर इसके 28 सांसद हैं, जिनके मतों का मूल्य 19,824 वोट है.
2017 के राष्ट्रपति चुनाव में, जब विपक्ष में रहते हुए उसके विधायक काफी कम थे, तब भी वाईएसआर कांग्रेस ने एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का ही समर्थन किया था.

इसके पड़ोसी राज्य तेलंगाना में, के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति, एक और फेन्स सिटर, के पास 103 विधायक हैं जिनके मतों का मूल्य 13,596 है. टीआरएस के पास 11,328 वोटों के साथ वाले 16 सांसद भी हैं. पार्टी ने पिछले चुनावों में भी एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया था.

इसी तरह, नवीन पटनायक के नेतृत्व वाले बीजू जनता दल को उसके विधायकों के 16,837 वोट और उसके 21 सांसदों के 14,868 वोट हासिल हैं. बीजद एक और ऐसी पार्टी है जिसने पिछले चुनावों में एनडीए का समर्थन किया था.
कुल मिलाकर, ये फेन्स सिटर्स, एनडीए को 9-10 प्रतिशत अतिरिक्त वोटों की मदद कर सकते हैं, जो इसे इलेक्टोरल कॉलेज में एक आरामदायक बहुमत प्रदान करेगा.

परन्तु मतों की ये संख्याएं विपक्षी एकता के कुछ संकेत दिखने से पहले की हैं. हाल ही में कई विभिन्न पार्टी प्रमुखों ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से मुलाकात की और यह सब इस चर्चा के बीच हो रहा है कि ये बैठकें अगले साल के राष्ट्रपति चुनाव हेतु विपक्ष को एकजुट करने के लिए की जा रही हैं. हालांकि एनसीपी नेता शरद पवार ने इसका साफ तौर पर खंडन किया है.

हालांकि, चुनाव विशेषज्ञ और सर्वे एजेंसी सी-वोटर के संस्थापक यशवंत देशमुख के अनुसार, एनडीए अगर उत्तर प्रदेश में अपनी सबसे खराब स्थिति के तहत 100 सीटें भी हार जाती है, तब भी वह फेन्स सिटर्स के कारण जीत जाएगी.
देशमुख आगे कहते हैं, ‘लेकिन अगर विपक्ष द्वारा शरद पवार को मैदान में उतारा जाता है तो सारा-का सारा खेल पलट सकता है. आरएसएस की कुछ शर्तों/आपत्तियों के कारण एनडीए कभी भी पवार को राष्ट्रपति का पद नहीं दे सकता है, परिणामस्वरूप, यदि वह पूरे विपक्ष को एक साथ जोड़ने में सफल हो जाते हैं तो समर्थन का आधार बदल सकता है. अगर ऐसा होता है तो उत्तर प्रदेश की एक-एक सीट मायने रखेगी.’

मेथोडोलॉजिकल नोट

भारत में राष्ट्रपति चुनावों के लिए निर्वाचक मंडल (प्रेसिडेंसियल इलेक्टोरल कॉलेज) का प्रतिनिधित्व नेताओं के दो समूहों द्वारा किया जाता है – संसद सदस्य (लोकसभा एवं राज्य सभा) और राज्यों के विधायक. प्रत्येक सांसद के मत का मूल्य 708 है और प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य उनके राज्य की 1971 की जनगणना में प्राप्त जनसंख्या के आधार पर अलग-अलग राज्यों में भिन्न होता है. जम्मू-कश्मीर के चुनावों पर अभी किसी तरह की स्पष्टता नहीं होने के कारण, हमने इसकी विधानसभा को अपने विश्लेषण से अलग रखा है.

विभिन्न विधानसभाओं में विधायकों की 33 सीटें भी खाली पड़ी थीं. हमने उन्हें इलेक्टोरल कॉलेज में तो शामिल किया है लेकिन उन्हें किसी पार्टी के खाते में नहीं डाला है. राज्यसभा के 33 सांसद ऐसे भी हैं जो राष्ट्रपति चुनाव से पहले सेवानिवृत्त हो रहे हैं. विधायकों की संख्या के आधार पर इन सीटों पर कब्जा करने की वर्तमान ताकत को ध्यान में रखते हुए, एनडीए को होने वाला शुद्ध हानि/लाभ 0 (शून्य) है.

इसके आधार पर हमें राष्ट्रपति निर्वाचक मंडल के मतों की कुल संख्या 10,87,683 प्राप्त होती है, जिसमें से एनडीए के पास 5,43,062 मत (या 49.95%) हैं, जो बहुमत से लगभग 0.05% कम है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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