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Saturday, 21 December, 2024
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BJP का 2023 में CM चेहरे के बिना छत्तीसगढ़ चुनाव लड़ना रमन सिंह के लिए अच्छी ख़बर क्यों नहीं

2018 के असेम्बली चुनावों में बीजेपी की पराजय तक सिंह 15 वर्षों तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे. हार के बाद भी सिंह राज्य में बीजेपी का चेहरा बने रहे थे और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को को कोविड, नक्सल समस्या से निपटने के मुद्दों पर घेरते रहे,

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रायपुर: रविवार की इस घोषणा को कि 2023 का छत्तीसगढ़ असेम्बली चुनाव बीजेपी मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किए बिना लड़ेगी, राजनीतिक पर्यवेक्षक और प्रदेश बीजेपी नेताओं का एक वर्ग, पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह के लिए एक झटके के रूप में देख रहा है.

हालांकि कुछ प्रदेश बीजेपी नेता जिनमें सिंह के वफादार भी शामिल हैं, इसकी ये व्याख्या कर रहे हैं कि ये पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का फैसला है और पार्टी की ‘संगठनात्मक नीति’ का हिस्सा है- जिसका पार्टी में सिंह की स्थिति से कोई संबंध नहीं है- लेकिन कुछ दूसरे नेताओं ने नाम न बताने की शर्त पर स्वीकार किया कि ये ऐलान पूर्व मुख्यमंत्री के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है, जिनकी हैसियत को 2018 के छत्तीसगढ़ असेम्बली चुनावों में बीजेपी की हार से झटका लगा था.

लेकिन, जो बात बहुत से राजनीतिक पर्यवेक्षकों को हैरत में डालती है, वो ये है कि ये घोषणा चुनावों से इतना पहले कर दी गई है.

ये घोषणा कि पार्टी 2023 का चुनाव मुख्यमंत्री उम्मीदवार सामने लाए बिना लड़ेगी, बीजेपी की राष्ट्रीय महासचिव और छत्तीसगढ़ प्रभारी डी पूरंदेश्वरी की ओर से की गई.

रविवार को रायपुर में हुई कोर कमेटी की एक बैठक के बाद, मीडिया से बात करते हुए पूरंदेश्वरी ने कहा, ‘अगले विधानसभा चुनावों में हम सिर्फ विकास के मुद्दों के साथ लोगों के पास जाएंगे. विकास ही हमारा चेहरा होगा और विकास ही प्रमुख मुद्दा रहने वाला है. मुख्यमंत्री का फैसला पार्टी उसके बाद करेगी.’

प्रदेश बीजेपी में बहुत से लोग अपेक्षा कर रहे थे कि सिंह के क़द, उनकी लोकप्रियता और जनाधार को देखते हुए मुख्यमंत्री पद के लिए वो एक स्वाभाविक पसंद होंगे. अब पूरंदेश्वरी के ऐलान के ये मायने निकाले जा रहे हैं कि बीजेपी आलाकमान संकेत देना चाहता है कि वो छत्तीसगढ़ में कोई नया चेहरा तलाश रहा है और 68 वर्षीय सिंह को शायद पार्टी के मार्गदर्शक या परामर्शदाता की कम सक्रिय भूमिका सौंपी जा सकती है.

2003 से 2018 के असेम्बली चुनावों में बीजेपी की पराजय तक सिंह 15 वर्षों तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने रहे थे. 2018 में पार्टी की हार के बाद भी सिंह राज्य में बीजेपी का चेहरा बने रहे थे और बहुत से महत्वपूर्ण मुद्दों पर सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को घेरते रहे, जैसे कि सरकार का कोविड स्थिति का प्रबंधन, विकास की गतिविधियों का अभाव और राज्य में नक्सल समस्या से निपटने में कथित रूप से प्रयासों की कमी आदि.

वो आमतौर से पार्टी की प्रदेश इकाई से जुड़े फैसली भी लेते रहे हैं और छत्तीसगढ़ बीजेपी में सभी प्रमुख पदों पर, जिनमें प्रदेश अध्यक्ष भी शामिल है, सिंह के निष्ठावान ही बैठे हुए हैं.

हालांकि अधिकांश प्रदेश बीजेपी नेता खुलकर टिप्पणी करने से बच रहे हैं कि क्या केंद्रीय नेतृत्व सिंह को किनारे करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन नाम न बताने की शर्त पर कुछ नेताओं ने स्वीकार किया कि पूर्व छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का विकल्प तलाशने की कोशिशें की जा रही है.

एक प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता ने नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘प्रदेश प्रभारी का ऐलान वास्तव में पूर्व मुख्यमंत्री के लिए एक झटका है. जहां पार्टी पिछले 15 वर्षों में उनकी सरकार द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर वोट मांगेगी जब वो कुर्सी पर थे, वहीं ये भी सच है कि पार्टी उनके संभावित विकल्पों को भी तौल रही है. अंतिम फैसला 2023 चुनावों से पहले किया जाएगा’.

सिंह के मुख्यमंत्री काल के दौरान छत्तीसगढ़ में इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े बड़े विकास कार्य किए गए थे, जिनमें सड़कों का निर्माण और बिजली में आत्म-निर्भरता शामिल हैं. नया रायपुर शहर का निर्माण और इस्पात उत्पादन केंद्र के रूप में छत्तीसगढ़ का कायाकल्प भी, उन्हीं के अंतर्गत शुरू हुआ था.

इस बीच, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विष्णु देव साइ ने, जो सिंह के वफादार हैं, घोषणा के निष्कर्षों को हल्का करने की कोशिश की.

‘बीजेपी की नीति रही है कि वो चुनावों से पहले, कभी मुख्यमंत्री चेहरे का ऐलान नहीं करती, 15 वर्षों तक जब डॉ. रमन सिंह सरकार के मुखिया रहे तब भी ऐसा ही था. चुनावों के बाद विधायक उन्हें अपना नेता चुनते थे, लेकिन छत्तीसगढ़ के लोग चीज़ों से वाकिफ थे और उसी हिसाब से वोट देते थे’.

साइ ने आगे कहा, ‘डी पूरंदेश्वरी ने जो घोषणा की वो पार्टी की नीति का हिस्सा थी और सिर्फ ये है कि 2013 चुनावों के लिए हमारा मुख्य मुद्दा विकास रहेगा और साथ में कांग्रेस का कुशासन और उसकी नाकामियां रहेंगी. मुख्यमंत्री का फैसला केंद्रीय नेतृत्व द्वारा लिया जाएगा, लेकिन पार्टी के लिए रमन सिंह का मार्गदर्शन हमेशा मूल्यवान रहेगा’.


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रमन के साथ और ख़िलाफ

पार्टी का सिंह से अलगाव छत्तीसगढ़ असेम्बली चुनाव में बीजेपी की हार के बाद जल्द ही शुरू हो गया था. लोकसभा चुनावों में राज्य के किसी भी सिटिंग सांसद को, जिनमें रमन सिंह के बेटे अभिषेक भी शामिल थे, टिकट नहीं दिए गए.

इसकी बजाय टिकट बंटवारे में राज्यसभा सांसद सरोज पाण्डे जैसे उनके विरोधियों की ज़्यादा चली. जब मोदी को फिर से जनादेश मिला तो अपेक्षा की जा रही थी कि सिंह को केंद्र सरकार में शामिल किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

तब भी उनके समर्थकों ने इन संकेतों को ख़ारिज किया था कि उन्हें पार्टी में किनारे किया जा रहा है.

अब इस घोषणा और पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के विषय ने पार्टी के अंदर ख़ेमाबंदी शुरू कर दी है, और नेता लोग पूर्व मुख्यमंत्री के पक्ष या विपक्ष में अपनी निष्ठा के हिसाब से अपना रुख़ तय कर रहे हैं.

एक दूसरे प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कहा, ‘डॉ. रमन सिंह हमेशा से पार्टी के एक सक्रिय नेता रहे हैं, जो शासन में तीन सफल कार्यकाल देख चुके हैं. लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय पर निर्भर करता है और हमें उसे मानना होता है’.

चंद्राकर जो पार्टी विधायक भी हैं, प्रदेश बीजेपी इकाई में रमन सिंह-विरोधी ख़ेमे के नेता माने जाते हैं.

इस बीच रमन सिंह समर्थकों का दावा है कि बीजेपी नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यों और राज्य में उनकी लोकप्रियता की उपेक्षा नहीं कर सकता, और वो आज भी छत्तीसगढ़ में सबसे बड़े नेता हैं.

‘प्रदेश प्रभारी के बयान का आप जैसा चाहें मतलब निकाल सकते हैं, लेकिन इससे कोई इनकार नहीं है कि डॉ. रमन सिंह राज्य में सबसे लोकप्रिय नेता रहे हैं. अगर आज जनमत संग्रह कराया जाए, तो वो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से ज़्यादा लोकप्रिय निकलेंगे,’ ये कहना था रमन सिंह के वफादार, बीजेपी प्रवक्ता और पूर्व मंत्री राजेश मुदत का, जो फिर से पूरंदेश्वरी देवी के ऐलान के परिणामों की अहमियत को हल्का करने की कोशिश कर रहे थे.

‘अगर बीजेपी विपक्ष में हो तो चुनाव हमेशा प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में लड़े जाते हैं. सीएम चेहर का ऐलान करना कभी बीजेपी की परंपरा नहीं रही’.

हालांकि अधिकांश राजनीतिक टीकाकार इस विचार से सहमत हैं कि प्रदेश प्रभारी का बयान एक स्पष्ट संकेत है कि पार्टी, सिंह को सूबे में अपना चेहरा बनाए रखना नहीं चाहती.

एक दशक से अधिक से छत्तीसगढ़ की सियासत को निकटता से देख रहे,  राजनीतिक टीकाकार अशोक कुमार तोमर ने कहा, ‘हालांकि राजनीति अनिश्चितताओं से भरी है, लेकिन मौजूदा हालात में पूरंदेश्वरी का बयान एक संकेत है कि पार्टी अब पूर्व मुख्यमंत्री को (राज्य में पार्टी गतिविधियों के) अगले मोर्चे पर नहीं रखना चाहती. लेकिन ये कुछ ज़्यादा ही जल्दी हो गया है, जबकि चुनाव होने में अभी ढाई साल बाक़ी हैं’.

तोमर ने आगे कहा: ‘रमन सिंह भले आज भी (छत्तीसगढ़ में) भगवा पार्टी के सबसे बड़े नेता हों, लेकिन जो चीज़ उनके खिलाफ जाती है, वो है 2018 के राज्य चुनावों में पार्टी की करारी हार. इस हार ने ज़मीनी स्तर पर बीजेपी की कमज़ोरियां उजागर कर दीं. ये पार्टी के राष्ट्रीय सह-संगठन महासचिव शिव प्रकाश के हालिया निर्देश से भी ज़ाहिर था, जिन्होंने प्रदेश नेतृत्व से पार्टी को बूथ लेवल पर मज़बूत करने के लिए कहा, चूंकि 15 वर्षों तक सत्ता में रहने से वो काफी कमज़ोर हो गया है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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