scorecardresearch
Thursday, 28 March, 2024
होमराजनीतिअमित शाह ने मुझे राजनीति में आने से आगाह किया था लेकिन मैंने नहीं सुनी- पूर्व IAS अधिकारी

अमित शाह ने मुझे राजनीति में आने से आगाह किया था लेकिन मैंने नहीं सुनी- पूर्व IAS अधिकारी

ओपी चौधरी ने कहा कि राजनीति में चुनौतियां हैं और बुराइयां भी हैं लेकिन ये लोगों की सेवा करने का एक बहुत अच्छा तरीका भी है. ये वो इंजिन है जो लोकतंत्र को चलाता है.

Text Size:

रायपुर: जब ओपी चौधरी ने छत्तीसगढ़ में 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) को छोड़ा, तो उन्हें सब अच्छा ही अच्छा लग रहा था.

नए बने राज्य से आईएएस में आने वाले पहले व्यक्ति चौधरी की एक प्रशासक के रूप में बहुत अच्छी छवि थी, जिन्होंने एक बड़े नक्सल केंद्र दंतेवाड़ा में शिक्षा के क्षेत्र में अपनी मौलिक पहलकदमियों से आदिवासी बच्चों के जीवन बदल दिए. अपने पैतृक गांव और दूर-दराज़ इलाकों में उन्हें हीरो की तरह देखा जाता था.

इसलिए जब तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए कहा, तो उन्होंने दोबारा नहीं सोचा. उन्हें बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि राजनीति का सफर कितना ऊबड़-खाबड़ होता है.

चुनाव हारने के बाद जब उनके संरक्षक रमन सिंह भी विधानसभा चुनावों में बीजेपी की करारी शिकस्त के बाद अपना राजनीतिक रसूख बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो चौधरी ज़रूर याद कर रहे होंगे कि तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उनसे क्या कहा था, जब वो राजनीति में प्रवेश कर रहे थे.

चौधरी ने दिप्रिंट के बताया, ‘बीजेपी में शामिल होने से पहले मुझे पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने का अवसर मिला. जब मैंने बीजेपी में शामिल होने की इच्छा ज़ाहिर की, तो उन्होंने बड़ी नम्रता के साथ कहा कि इतने लंबे करियर के साथ तो आप मुख्य सचिव बन सकते हैं’.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

‘उन्होंने कहा कि राजनीति में बहुत कठिनाइयां पेश आती हैं और ज़्यादातर लोग जो हमें शीर्ष पर देखते हैं, वो ये देखने की ज़हमत नहीं करते कि एक सफल राजनीतिक व्यक्ति बनने के लिए क्या कुछ करना पड़ता है. लेकिन मैं अड़ा हुआ था और अपने फैसले पर दोबारा गौर करने के लिए तैयार नहीं था’.

बीजेपी ने चौधरी को, जिनका ताल्लुक सूबे के रायगढ़ ज़िले के बयाना गांव से है, 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का गढ़ समझे जाने वाली खारसिया सीट से मैदान में उतारा लेकिन वो चुनाव हार गए.

अब एक पूर्ण-कालिक राजनेता के तौर पर, चौधरी को लगता है कि सेवा को छोड़ने की बजाय, आईएएस अधिकारियों को सिस्टम के भीतर रहते हुई ही काम करने का कोई रास्ता निकालना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘ये सवाल खड़े करना उचित नहीं होगा कि दूसरे लोगों ने क्या कहा और किया, लेकिन मेरा मानना है कि लोगों और समाज के लिए काम करने के लिए सिस्टम सबसे ताकतवर यंत्र है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘मुद्दों के प्रति दुर्भावना रखने की बजाय, उनका हिस्सा रहते हुए भी आप उनका समाधान कर सकते हैं. लोकतंत्र में राजनीति के साथ नौकरशाही भी व्यवस्था का एक हिस्सा है और समाज की सेवा के लिए ये एक अच्छा मिश्रण है’.

उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार किया कि उन्हें सिविल सेवा छोड़ने का खेद है और कहा कि 2018 में उनकी चुनावी हार के बाद उन्हें सेवा में लौटने की पेशकश हुई थी लेकिन ‘अपने जीवन के बेहतरीन 13 साल’ का आनंद लेने के बाद वो जीवन में आगे बढ़ना चाहते थे.

उन्होंने कहा, ‘सोच समझ कर लिए गए एक फैसले के लिए खेद क्यों होना चाहिए? आपको चीज़ें एक पैकेज में मिलती हैं, सफलता और विफलता दोनों के साथ यही है. जो लोग ऐशो-आराम चाहते हैं वो नौकरशाही में बने रह सकते हैं, लेकिन मुझे कुछ और चाहिए था’.


यह भी पढ़ें: ‘चुनावी मुद्दा नहीं है धर्मांतरण’- मीनाक्षीपुरम से लेकर नियोगी रिपोर्ट तक खोलते हैं इसके राज़


2005 कैडर के अधिकारी  

चौधरी, जो एक आरएसएस-समर्थित कोचिंग संस्थान संकल्प से निकले थे, 2000 में छत्तीसगढ़ का गठन होने के बाद वहां की धरती से आने वाले पहले आईएएस अधिकारी थे.

2005 बैच के अधिकारी 23 वर्ष के थे जब वो सेवा में शामिल हुए. 2018 में विधानसभा चुनावों से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जब वो रायपुर कलेक्टर के पद पर काम कर रहे थे.

उन्होंने कहा, ‘ये सब तब शुरू हुआ जब रायपुर कलेक्टर के तौर पर करीब दो साल तैनात रहने के बाद अगस्त 2018 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और कुछ अन्य पार्टी नेताओं ने सुझाव दिया कि मैं एक राजनीतिक करियर पर विचार करूं. दिल्ली में अपने शुभ-चिंतकों के साथ व्यापक सलाह-मश्विरा करने के बाद मैंने इस्तीफा दे दिया’.

उन्होंने आगे कहा कि चुनावी हार के बाद के ढाई सालों में राजनीति से उनके लगाव में इजाफा ही हुआ है.

चौधरी ने कहा, ‘राजनीति में चुनौतियां हैं और बुराइयां भी हैं लेकिन ये लोगों की सेवा करने का एक बहुत अच्छा तरीका भी है. ये वो इंजिन है जो लोकतंत्र को चलाता है’.

वर्तमान में चौधरी प्रदेश बीजेपी सचिव और पार्टी के युवा मामलों के प्रभारी भी हैं.

राज्य के बीजेपी नेताओं का भी मानना है कि उन्हें युवा मामलों का प्रभार दिया जाना, इस बात को दर्शाता है कि पार्टी में उनकी क्या हैसियत है.

वरिष्ठ पार्टी नेता और पूर्व प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने का कहना है, ‘ये ऐसा ही है कि जैसे उन्हें संगठन की रीढ़ मज़बूत करने का काम दे दिया गया हो. युवाओं के बीच उनकी अपील, मेहनत करने की क्षमता, उनसे जुड़ाव, उनकी समस्याएं समझने और उनकी आवाज़ बनने की क्षमता को देखते हुए ही उन्हें ये ज़िम्मेदारी दी गई है’.

छत्तीसगढ़ बीजेपी युवा विंग के पूर्व मीडिया इंचार्ज अनुराग अग्रवाल ने कहा, ‘ओपी चौधरी बीजेपी के भविष्य की उम्मीद हैं. इसका सबूत सोशल मीडिया पर उनके चाहने वाले लाखों युवा हैं जो उन्हें फॉलो करते हैं और जिनसे उन्हें रेस्पॉन्स मिलता है’.

‘चौधरी भारत की एक सबसे प्रतिष्ठित और आरामदेह सेवा छोड़कर राजनीति में आए हैं. लेकिन पार्टी ने अभी उनकी प्रतिभा का भरपूर इस्तेमाल नहीं किया है’.

इन दिनों चौधरी राज्य का दौरा कर रहे हैं, ताकि ग्रामीण छत्तीसगढ़ को खुद से महसूस कर सकें. उनके दौरों में गेस्ट लेक्चरर और प्रेरक वक्ता के तौर पर कुछ गैर-राजनीतिक काम भी शामिल होते हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: महंगाई गरीबों के ‘विकास’ के लिए पीएम मोदी की नई महत्वाकांक्षी योजना है?


 

share & View comments