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Friday, 22 November, 2024
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‘2024 के लिए शंखनाद’: BJP ने बिहार चुनाव अभियान के लिए मुस्लिम-बहुल सीमांचल को क्यों चुना

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अगले महीने 2024 लोकसभा चुनावों के लिए बिहार मुहिम की शुरुआत करेंगे, जिसमें महागठबंधन से टक्कर लेने के लिए एक अपराध-मुक्त, भ्रष्टाचार-मुक्त सरकार का दावा पेश किया जाएगा.

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पटना: 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले, जब राष्ट्रीय जनता दल नेता लालू प्रसाद यादव और जनता दल (युनाइटेड) के नीतीश कुमार ने हाथ मिला लिया था, तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार की शुरुआत के लिए पटना के गांधी मैदान का चयन किया था.

नीतीश-लालू की अगुवाई वाले आरजेडी-जेडी(यू)-कांग्रेस महागठबंधन को चुनावों में भारी जीत मिली, जबकि बीजेपी और उसके सहयोगी 243 में से केवल 58 सीटें ही प्राप्त कर पाए.

सात साल बाद, जब जेडी(यू) ने एक बार फिर बीजेपी से नाता तोड़कर आरजेडी और कांग्रेस से हाथ मिला लिया, तो केंद्र की सत्ता में बैठी पार्टी ने 2024 लोकसभा चुनावों का प्रचार अभियान शुरू करने के लिए, न केवल एक अलग जगह, बल्कि अलग मुद्दों का भी चुनाव किया है, जिनपर वो महागठबंधन से टक्कर लेने जा रही है.

अगले महीने, अब केंद्रीय गृह मंत्री बन चुके अमित शाह 2024 के लिए बिहार का चुनाव अभियान मुस्लिम-बहुल सीमांचल क्षेत्र से आरंभ करेंगे, जिसमें कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज के चार ज़िले आते हैं. 23 सितंबर को शाह पहले पूर्णिया में एक सभा को संबोधित करेंगे, फिर अगले दिन किशनगंज में एक दूसरी सभा करेंगे.

पूर्व स्पीकर और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये 2024 लोकसभा चुनावों के लिए हमारा शंखनाद होगा. हम बिहार में एक अपराध-मुक्त, भ्रष्टाचार-मुक्त सरकार देने के अपने संकल्प को दोहराएंगे’.

सीमांचल में मुसलमान आबादी (किशनगंज में) 70 प्रतिशत से लेकर (पूर्णिया में) 35 प्रतिशत तक है.

अतीत में, बीजेपी ने हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करके इस क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया है. 2019 के लोकसभा चुनावों में, एनडीए ने यहां चार में से तीन सीटें जीती थीं, जिनमें से एक सीट जेडी(यू) ने कटिहार से जीती थी, जिसके लिए उसने अपने टिकट पर एक बीजेपी उम्मीदवार को खड़ा किया था. 2019 में एनडीए ने बिहार में 40 में से 39 लोकसभा सीटें जीती थीं.

इस बीच जेडी(यू) सीमांचल में बीजेपी के आउटरीच से बेफिक्र नज़र आ रही है.

जेडी(यू) के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने दावा किया, ‘बहुत स्पष्ट है कि बीजेपी ने अपनी मुहिम की शुरुआत के लिए सीमांचल को क्यों चुना है. लेकिन वो सफल नहीं होगी क्योंकि वहां पर हमारा सामाजिक आधार बहुत बड़ा है, और हमारे मतदाता बीजेपी के सांप्रदायिक एजेंडा के उद्देश्य के प्रति कहीं अधिक जागरूक हैं. बिहार में बीजेपी की तालिका एकल अंक में रहेगी’.

इस बीच तेलंगाना सीएम के चंद्रशेखर राव (केसीआर) के 31 अगस्त को पटना आने का कार्यक्रम है, जहां उनके सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी-सीएम तेजस्वी यादव से लंच पर मुलाकात करने की अपेक्षा है.

हालांकि केसीआर तेलंगाना में आग लगने की एक घटना में मारे गए बिहार के मज़दूरों, तथा गलवान घाटी में मारे गए सैनिकों के परिवारों को मुआवज़ा देने के लिए शहर में होंगे लेकिन एक बीजेपी-विरोधी मंच को लेकर भी बातचीत होने की संभावना है. जनवरी में, इसी उद्देश्य से तेजस्वी केसीआर से मिलने के लिए हैदराबाद गए थे.


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हिंदू वोटों को संगठित करना

सीमांचल में बीजेपी के लिए उसका काम तय है.

प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने दिप्रिंट से कहा, ‘सीमांचल क्षेत्र एक संवेदनशील इलाका है. ये इस्लामिक आतंकवाद, बांग्लादेश से घुसपैठ और आईएस (इस्लामिक स्टेट) गतिविधियों का केंद्र है’.

आपस के रिश्ते टूटने से पहले ही, इलाके के स्कूल जेडी(यू) और बीजेपी के बीच विवाद का विषय रहे थे. पिछले महीने, बिहार के शिक्षा मंत्री विजय चौधरी ने सीमांचल क्षेत्र के ऐसे सरकारी स्कूलों पर एक ‘स्टेटस रिपोर्ट’ मांगी थी, जो रविवार की बजाय हर शुक्रवार को बंद रहते थे, ताकि मुस्लिम समुदाय के अध्यापक और छात्र जुमे की नमाज़ में शरीक हो सकें.

बिहार में उठने से पहले उसी महीने ये मुद्दा पड़ोसी झारखंड में भी उठाया गया था. हालांकि झारखंड सरकार ने उन स्कूलों में छुट्टी को बदलकर रविवार को कर दिया है, जो पहले शुक्रवार को बंद रहते थे लेकिन बीजेपी बिहार में भी यही कराना चाहती थी.

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि सीमांचल में हिंदू वोटों को संगठित करने से न केवल बिहार के दूसरे हिस्सों में, बल्कि उससे सटे पश्चिम बंगाल के ज़िलों में भी संदेश जाएगा, जहां मुस्लिम आबादी का प्रतिशत काफी अधिक है.

बीजेपी नेता और बिहार विधान परिषद सदस्य सम्राट चौधरी ने कहा, ‘इस बार, अपने वोट बैंकों को बचाने का दायित्व महागठबंधन सहयोगियों पर होगा’. ये दावा करते हुए कि 2024 के लोकसभा चुनाव केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द होंगे, चौधरी ने याद किया कि कैसे एनडीए को 2019 के चुनावों में बिहार में महागठबंधन से 27 प्रतिशत ज़्यादा वोट मिले थे.

जेडी(यू) उस समय एनडीए का हिस्सा था.

2024 के लिए बीजेपी उम्मीद करेगी कि असदुद्दीन अवैसी की अगुवाई वाली ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन, जिसने 2020 में वोटों में सेंध लगाई थी, उसे भी मुस्लिम वोट मिलेंगे जिससे सीमांचल में जेडी(यू)-आरजेडी-कांग्रेस की संभावनाओं पर असर पड़ेगा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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