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Friday, 3 May, 2024
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‘गहलोत-पायलट की खींचतान, निराश युवा’- कांग्रेस शासित राजस्थान के छात्र संघ चुनावों में क्यों हारी NSUI

राजस्थान छात्र संघ चुनाव में एबीवीपी के उम्मीदवारों ने सात, एसएफआई ने दो और निर्दलीय उम्मीदवारों ने पांच अध्यक्ष पदों पर जीत हासिल की है, जबकि कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई के खाते में एक भी सीट नहीं आई.

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नई दिल्ली: राजस्थान विधानसभा चुनाव में बमुश्किल 15 महीने का समय बचा है और इस बीच राज्य में छात्र संघ चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजा दी है.

कांग्रेस का छात्र संगठन भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) राजस्थान की 14 यूनिवर्सिटी में से एक में भी अध्यक्ष पद जीतने में नाकाम रहा है, यहां तक कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह क्षेत्र जोधपुर में भी उसे सफलता नहीं मिली.

छात्र संघ चुनाव नतीजे घोषित होने के दो दिन बाद ही मंगलवार को पार्टी को एक और झटका लगा जब गहलोत खेमे के एक विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा ने कहा कि वह चाहते हैं कि उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनें.

बैरवा, जो राजस्थान अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी हैं, ने सवालिया लहजे में कहा, ‘राजस्थान के हालात को देखते हुए सचिन पायलट को सीएम बनाने में क्या दिक्कत है? युवा और उनके समुदाय (गुर्जर) के लोग उनके साथ हैं.’

कांग्रेस को यह झटका ऐसे समय लगा है जब पार्टी का एक खेमा चाहता है कि अगर वायनाड के सांसद राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हो जाते हैं तो गहलोत को अगले पार्टी अध्यक्ष के तौर पर दिल्ली बुला लिया जाना चाहिए.

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बहरहाल, कांग्रेस शासित राज्य में छात्र संघ चुनावों में एनएसयूआई को इतनी बड़ी हार का सामना कैसे करना पड़ा? यह सवाल जब एनएसयूआई नेताओं से पूछा गया तो उनमें से कुछ ने गहलोत-पायलट के बीच लंबे समय से जारी खींचतान को इसका जिम्मेदार ठहराया. वहीं, प्रतिद्वंद्वी दलों के छात्र संगठनों का दावा है कि ‘कई परीक्षा पेपर लीक, महिला सुरक्षा और अपराध दर बढ़ने जैसे मुद्दों’ से राज्य के युवा निराश हैं.

दिप्रिंट ने इस मामले में प्रतिक्रिया के लिए राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी (आरपीसीसी) के प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा से संपर्क साधा, लेकिन उन्होंने टिप्पणी से इनकार कर दिया.

राजस्थान कांग्रेस के प्रवक्ता स्वर्णिम चतुर्वेदी ने कहा कि उनका मानना है कि परिणाम 2023 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन पर बहुत कम असर डालेंगे क्योंकि जीतने वाले उम्मीदवारों में से दो एनएसयूआई के बागी नेता थे.

चतुर्वेदी ने कहा, ‘दो प्रमुख विश्वविद्यालयों— जयपुर स्थित राजस्थान यूनिवर्सिटी और जोधपुर की जय नारायण यूनिवर्सिटी—में एबीवीपी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है. शीर्ष स्थान पर रहे तीन उम्मीदवार, जिनमें बागी भी शामिल थे, एनएसयूआई से थे.’ साथ ही जोड़ा, एनएसयूआई ने कॉलेजों में ‘ठीकठाक प्रदर्शन’ किया है और इसमें सुधार की गुंजाइश थी.

इस बीच, भाजपा ने अपनी खोई जमीन हासिल करने का मौके देखते हुए राजस्थान में सियासी पारा बढ़ाने की पूरी तैयारी कर ली है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के अगले सप्ताह जोधपुर में भाजपा के ओबीसी मोर्चा की बैठक में शामिल होने की संभावना है.

वहीं, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता वसुंधरा राजे ने ट्विटर पर छात्र संघ चुनाव के परिणाम को ‘कांग्रेस के खराब शासन से आजिज आ चुके लोगों के गुस्से’ का संकेत बताया है.


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एबीवीपी, एनएसयूआई, एसएफआई में मुकाबला

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने 14 में से सात विश्वविद्यालयों में अध्यक्ष पदों पर जीत हासिल की है. माकपा के छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने दो पर सफलता हासिल की, जबकि बाकी पांच जगह अध्यक्ष पद निर्दलीयों के खाते में गए.

एबीवीपी के राष्ट्रीय सचिव हुश्यार मीणा ने कहा कि एबीवीपी का ‘राज्य और संगठन के स्तर पर चौबीसों घंटे सक्रिय रहना’ ही उनके उम्मीदवारों की जीत की वजह है.

मीणा ने कहा, ‘हम उन कैंपस में भी 365 दिन काम करते हैं, जहां चुनाव नहीं हो रहे होते हैं. कई परीक्षा के पेपर लीक, महिला सुरक्षा से जुड़े मुद्दों और अपराध दर बढ़ने से युवा निराश थे. राजस्थान सरकार ने यह सोचकर हम पर चुनाव थोप दिया कि वे साबित कर देंगे कि युवा उनके साथ हैं लेकिन एनएसयूआई ने एक भी अध्यक्ष पद नहीं जीता.’

एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव वरुण चौधरी ने सीएम गहलोत और पायलट के बीच तनातनी से एनएसयूआई के चुनावी नतीजे प्रभावित होने की बात से इनकार करते हुए दिप्रिंट से कहा, ‘अशोक गहलोत जी पूरे राज्य के सीएम हैं, इसे लेकर कोई सवाल ही खड़ा नहीं होता कि उन्होंने विशेष उम्मीदवारों का समर्थन किया था या नहीं या छात्र चुनावों में विशेष दिलचस्पी ले रहे थे या नहीं.’

चौधरी ने आगे कहा कि एनएसयूआई ने राजस्थान यूनिवर्सिटी में एक महिला उम्मीदवार को टिकट दिया क्योंकि संगठन महिला प्रतिनिधित्व को अहमियत देना चाहता था. उन्होंने कहा, ‘राजस्थान में महिलाएं राजनीति में आगे नहीं आती हैं. हमने राजस्थान यूनिवर्सिटी में अध्यक्ष पद के लिए एक महिला उम्मीदवार को उतारा, लेकिन वह फैसला हमारे पक्ष में नहीं रहा. हालांकि, अभी भी ऐसे कॉलेज हैं जहां एनएसयूआई ने अच्छा प्रदर्शन किया है और एबीवीपी को किसी भी पद पर सफलता नहीं मिली है.


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आरयूएसयू चुनाव में एनएसयूआई के बागी उम्मीदवार की जीत

जब मतगणना चल ही रही थी, एनएसयूआई ने अपने छह सदस्यों को राजस्थान, बीकानेर और जोधपुर के विश्वविद्यालयों में निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने के कारण संगठन से निष्कासित कर दिया.

एनएसयूआई के दो बागी छात्र नेताओं निर्मल चौधरी और निहारिका जोरवाल ने राजस्थान यूनिवर्सिटी छात्र संघ (आरयूएसयू) चुनाव में पहला और दूसरा स्थान हासिल किया, जबकि एनएसयूआई के आधिकारिक उम्मीदवार को तीसरा स्थान मिला.

जोरवाल कांग्रेस विधायक मुरारी लाल मीणा की बेटी हैं, जो गहलोत सरकार में मंत्री हैं. वहीं चौधरी को लाडनूं से कांग्रेस विधायक मुकेश भाकर का समर्थन हासिल था. मीणा और भाकर दोनों को सचिन पायलट के निकट सहयोगियों के तौर पर देखा जाता है.

चौधरी ने तो जीत के बाद अपने भाषण में ही कहा कि वह पायलट को अपना ‘आदर्श’ मानते हैं.

इसी तरह, जोधपुर स्थित जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में एसएफआई उम्मीदवार अरविंद भाटी ने एनएसयूआई प्रत्याशी हरेंद्र चौधरी को हराया, जबकि हरेंद्र चौधरी के लिए सीएम गहलोत के बेटे वैभव ने प्रचार किया था. एनएसयूआई से टिकट न मिलने पर भाटी ने एसएफआई उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था.

एनएसयूआई की जोधपुर इकाई के अध्यक्ष दिनेश परिहार ने जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में एसएफआई के हाथों मिली हार के लिए ‘जाति समीकरण’ को जिम्मेदार ठहराया है.

परिहार ने कहा, ‘एसएफआई ने एक राजपूत को टिकट दिया, जबकि एबीवीपी और एनएसयूआई दोनों ने जाट उम्मीदवार उतारे. यहां जोधपुर में जातिगत समीकरणों पर चुनाव लड़ा जाता है और राजपूत वोट बंट जाते हैं.’ यह पूछे जाने पर कि क्या गहलोत-पायलट के बीच तनातनी ने छात्र संघ चुनाव के नतीजे पर कोई असर डाला हो सकता है, परिहार ने इससे इनकार किया.


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एनएसयूआई नेताओं ने पायलट-गहलोत खींचतान को बताया वजह

छात्र संघ चुनावों में हार का सामना करने वाले एक एनएसयूआई उम्मीदवार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘सबको ही पता है कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच क्या चल रहा है. मैं हार के लिए किसी अन्य पार्टी को दोष नहीं दूंगा, यह सब आंतरिक कलह का नतीजा है, हम क्या कर सकते हैं.’

इस प्रत्याशी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने व्यक्तिगत तौर पर किसी से समर्थन नहीं मांगा क्योंकि मुझे पता था कि अगर मैं समर्थन के लिए किसी विशेष खेमे में जाता, तो दूसरे से अपना समर्थन खो देता. राजनीति में, आप किसी को नाराज नहीं कर सकते और हम छात्र संघ के नेताओं के रूप में शुरुआत कर रहे हैं. अगर मैं एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरता, तो शायद मुझे और समर्थन मिलता.’

एनएसयूआई के एक जिलाध्यक्ष ने भी नाम न छापने की शर्त पर कहा कि छात्र संघ चुनावों में एनएसयूआई के खराब प्रदर्शन के लिए ‘परिवार में फूट’ जिम्मेदार है.

उन्होंने कहा, ‘सभी यूनिवर्सिटी में एक ही फैक्टर था, पार्टी के भीतर गुटबाजी के कारण समर्थन बंट गया. हम यह मुद्दा आलाकमान के सामने उठाएंगे क्योंकि यह तो हम युवा छात्र नेता हैं जो दो वरिष्ठ नेताओं के बीच अहंकार-टकराव का खामियाजा भुगत रहे हैं.’

चुनाव हारने वाली एक अन्य एनएसयूआई उम्मीदवार ने आरोप लगाया कि ‘दुष्प्रचार और गुटबाटी’ के कारण उन्हें अध्यक्ष पद चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा, ‘मैं 6-7 महीने से कड़ी मेहनत कर रही थी लेकिन मेरे मुकाबले उम्मीदवारों को कुछ महीने पहले ही लाया गया.’

उम्मीदवार ने कहा, ‘जाति, धनबल के कारण वोट विभाजित हो गए. पार्टी सबकी होती है लेकिन गहलोत जी और पायलट जी के बीच तनातनी के कारण छात्र संगठन दो गुटों में बंट गया. निश्चित तौर पर इसकी कीमत हमें हार के रूप में चुकानी पड़ी है.’

पायलट के करीबी राजस्थान के एक वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारी ने कहा कि कांग्रेस आलाकमान को छात्र संघ चुनाव नतीजों के संदेश को समझना चाहिए. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर वे तुरंत सीएम नहीं बदलते, तो अगले चुनावों में पार्टी की स्थिति बेहद खराब हो सकती है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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