बेंगलुरु/हैदराबाद: हिंदुत्व के मुद्दे पर विभाजन रेखा के दोनों पक्षों का प्रतिनिधित्व करने वाली दक्षिण भारत की तीन राज्य सरकारों ने ब्राह्मणों के तक पहुंच बनाने के अपने-अपने कार्यक्रमों को और मजबूत किया है, ताकि वे इस समुदाय के बीच राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बनी रह सकें और विपक्षी दलों द्वारा उनको लुभाने के प्रयासों का मुकाबला कर सकें.
तेलुगु भाषी गैर-भाजपा शासित राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना तथा भाजपा शासित कर्नाटक में, ब्राह्मणों की आबादी वैसे तो नगण्य है और उनका जनादेश राजनीतिक रूप से महत्वहीन माना जाता है. फिर भी इन राज्यों की सरकारों में से किसी ने भी इस प्रभावशाली समुदाय से अपनी नज़रें नहीं हटाई हैं, और वे अक्सर उनकी शिक्षा और रोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए या ‘अपनी’ वैदिक संस्कृति को बनाए रखने के लिए योजनाओं का अनावरण करती रहती हैं.
बेशक, इन पहलों का लाभ उठाने वालों को यह साबित करने के लिए अपना जाति प्रमाण पत्र दिखाना होता है कि वे जन्म से ब्राह्मण हैं – क्योंकि उनमें से अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से आते हैं.
आंध्र में, पूर्ववर्ती चंद्रबाबू नायडू सरकार के साथ हुई लड़ाई के बाद से ही ब्राह्मणों ने हमेशा रेड्डी समुदाय के साथ ही अपना ज़ोर बनाए रखा है. लेकिन क्या वे वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी से अब भी खुश हैं, खासकर तब जब विपक्षी भाजपा खुद को ‘हिंदू धर्म का रक्षक’ बताती रहती है?
इस बीच, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव सार्वजनिक रूप से एक ‘श्रद्धालु हिंदू’ का जीवन जीते हैं और हालांकि उनकी सरकार में ब्राह्मणों का शायद ही कोई प्रतिनिधित्व है, फिर भी वह उन्हें अपने मंच पर रखना जारी रखते हैं और यदा-कदा पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव, जो स्वयम् उस समुदाय से आते थे, के लिए भारत रत्न की मांग करते रहते हैं.
कर्नाटक के मामले में, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस समुदाय के साथ सावधानी का व्यवहार अपना रहा है क्योंकि उस डर है कि ब्राह्मणों को लगेगा कि ‘उन्हें हल्के में लिया जा रहा है’.
हालांकि, बुद्धिजीवी बताते हैं कि ब्राह्मणों तक पहुंच बनाए रखने की यह नीति उस सामंती अवधारणा पर आधारित है कि वे शक्तिशाली होते हैं. वे इसे हास्यास्पद भी मानते हैं.
ब्राह्मणों के लिए घोषित आंध्र सरकार की वैदिक शिक्षा योजना की विशेष तौर पर आलोचना हुई है. राजनीतिक वैज्ञानिक/ विशेषज्ञ प्रताप भानु मेहता ने लिखा है कि राज्य किसी भी ऐसे पेशे को समर्थन नहीं दे सकता जिसकी योग्यता जन्म से निर्धारित हो. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि ब्राह्मणों के लिए वैदिक अध्ययन अच्छा हो सकता है, तो वह सभी के लिए अच्छा होना चाहिए.
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‘आंध्र, तेलंगाना में बुद्धिमान और बड़े विचारक माने जाते हैं’
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों सरकारों ने क्रमशः 2014 और 2017 में स्थापित ब्राह्मण कल्याण विभाग और इससे संबंधित पोर्टल नामित किए हैं, जो इस समुदाय को बुद्धिमान और ‘बड़े’ विचारक के रूप में वर्णित करते हैं.
तेलंगाना ब्राह्मण समक्षेम परिषद – इस समुदाय के उत्थान के लिए काम करने वाली सरकारी संस्था – अपनी वेबसाइट पर कहती है कि ब्राह्मण का अर्थ होता है ‘सोच में व्यापक दृष्टिकोण वाला और बुद्धिमान; आजीविका में न्याय संगत और धार्मिक; व्यक्तित्व में निपुण और साहसी; गुणवत्ता में ईमानदारी और मानवता; चरित्र में शील और नैतिकता; कार्य प्रदर्शन में नवाचार और उद्यमिता तथा दृष्टिकोण में बड़प्पन और नवीनता‘.
आंध्र की वेबसाइट इस समुदाय को ‘बड़ी सोच, संसाधन का सही लाभ उठाने वाली, दृष्टिकोण (सकारात्मक), कड़ी मेहनत, विनम्रता, अखंडता और नवीन सोच’ वाली के रूप में परिभाषित करती है.
दोनों ही राज्य सरकारें इन्हें उच्च शिक्षा, उद्यमिता, कौशल विकास, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं – खास तौर पर इस समुदाय के भीतर के आर्थिक रूप से कमजोर समूहों को.
हालांकि, ऐसी योजनाएं इन दोनों राज्यों में सिर्फ़ ब्राह्मण समुदाय के लिए विशिष्ट रूप से लागू नहीं हैं. पिछड़े समुदायों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए काम करने के प्रति नामित विभाग भी हैं, जो इनके सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए लगभग इसी तरह की वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं.
डिप्टी स्पीकर कोना रघुपति को छोड़कर ना तो जगन के कैबिनेट में और ना ही केसीआर के कैबिनेट में एक भी ब्राह्मण मंत्री हैं. दोनों राज्यों में कुछ ही ब्राह्मण विधायक हैं, जो इस तथ्य को साफ तौर पर दर्शाता है कि तेलंगाना में 3 प्रतिशत से कम भी ब्राह्मण मतदाता हैं जबकि आंध्र में इनकी संख्या 5 प्रतिशत से कुछ कम है. फिर भी विश्लेषकों का कहना है कि इन दोनों मुख्यमंत्रियों के लिए ब्राह्मण महत्वपूर्ण हैं.
इस समुदाय में ‘वैदिक संस्कृति’ और ‘वैदिक शिक्षा’ को बढ़ावा देने के लिए भी कई वित्तीय सहायता योजनाएं हैं. तेलंगाना ब्राह्मण परिषद ‘वेदहित – वैदिक छात्र’ नाम से एक योजना चलाती है, जो प्रत्येक ब्राह्मण छात्र को ‘स्मर्त’ स्तर तक अध्ययन की सफलता के बाद 3 लाख रुपये और ‘अगमा, क्रमांथा और गणंत’ अध्ययन खत्म करने के बाद 5 लाख रुपये का निर्वहन अनुदान देती है.
आंध्र में इसी तरह की एक योजना के तहत छह साल की अवधि के लिए सालाना 36,000 रुपये तक का भुगतान किया जाता है.
तेलंगाना में, सरकार अपनी ‘ब्राह्मण सदन योजना’ के तहत जिला और मंडल स्तर पर ‘ब्राह्मण सदन’ के निर्माण की 75 प्रतिशत लागत का खर्चा उठाती है.
आंध्र की ‘वशिष्ठ योजना’ सिविल सेवा जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं मे शामिल होने वाले उम्मीदवारों के बोर्डिंग और लॉजिंग (रहने-खाने) के खर्च के साथ-साथ कोचिंग का शुल्क प्रदान करती है.
इन सभी योजनाओं के लिए एक पात्रता मानदंड यह है कि लाभार्थी और उसके माता-पिता ब्राह्मण हों.
2015 से 2019 तक, ज्यादातर चंद्रबाबू नायडू के शासन काम में, आंध्र ने इस समुदाय के लिए कल्याणकारी योजनाओं पर 216 करोड़ रुपये खर्च किए.
आंध्र सरकार किसी ब्राह्मण परिवार के मृतक के अंतिम संस्कार पर खर्च के लिए भी वित्तीय सहायता प्रदान करती है, बशर्ते उसका परिवार इसे वहन करने में सक्षम ना हो.
राजनीतिक विश्लेषक तेलकापल्ली रवि ने दिप्रिंट को बताया: ‘हमारे समाज की संरचना को देखते हुए, ब्राह्मण अभी भी जनमत निर्माण में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं. वे प्रभावशाली पदों पर आसीन हैं. हालांकि उनकी आर्थिक और राजनीतिक ताक़त बहुत अधिक नहीं हो सकती है, परंतु सरकार के कई सलाहकार इस समुदाय से संबंधित हैं, और नौकरशाह के रूप में शीर्ष पदों पर हैं.’
रवि ने यह भी कहा कि प्रसिद्ध तिरुमाला मंदिर के मुख्य पुजारी ए.वी. रमना दीक्षितुलु का पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू की सरकार में एक खास तरह का प्रभाव था.
लेकिन उन्होंने साफ किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी ब्राह्मण गरीब नहीं हैं,
तेलंगाना में, ब्राह्मणों के लिए केसीआर द्वारा दिया गया सबसे हालिया तोहफा नरसिम्हा राव जन्म शताब्दी समारोह का साल भर चलने वाला समारोह है जिसकी उन्होंने 2020 में घोषणा की थी. जून में हैदराबाद में इस पूर्व प्रधानमंत्री की एक प्रतिमा लगाई गई थी, जिसका उद्घाटन स्वयं सीएम केसीआर ने किया था. सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति ने स्नातक क्षेत्र के एमएलसी चुनावों में उनकी पोती को उम्मीदवार बनाया और वह जीत भी गईं
रवि कहते हैं, ‘केसीआर इस समुदाय को ज्यादा ताकत नहीं देते हैं, लेकिन उन्हें एक ख़ास पायदान पर बनाए रखते हैं और यह बताते रहते हैं कि वह उनका सम्मान कर रहे हैं.’
राजनीतिक दल तेलंगाना जन समिति के संस्थापक प्रो. कोडंदराम रेड्डी ने कहा कि इस समुदाय की मौजूदगी ज्यादातर शहरी इलाकों में है.
तेलंगाना के भाजपा नेता रामचंदर राव के अनुसार, राज्य के कुल 119 में से 12 शहरी विधानसभा क्षेत्रों में ही ब्राह्मण मतदाताओं का दबदबा है.
कोडंदराम रेड्डी बताते हैं, ‘आंध्र प्रदेश की तुलना में, तेलंगाना में ब्राह्मण समुदाय शुरू से ही जमींदार (जमींदार) संस्कृति और निजाम शासन के कारण ज़्यादा प्रभावशाली नहीं था. लेकिन बाद में चीजें बदल गईं और ब्राह्मण समुदाय की कुछ उप-जातियों जैसे ‘कर्णम’ ने गांवों के रिकॉर्ड (लेखा-जोखा) बनाए रखने और राजस्व की देखभाल का काम शुरू कर दिया.’
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‘हम आपको हल्के में नहीं लेते’: कर्नाटक के ब्राह्मणों से बीजेपी की अपील
ब्राह्मणों के बीच व्याप्त नाराजगी को दूर करने के लिए, कर्नाटक में सत्तारूढ़ भाजपा ने उनके मामलों की देख-रेख के लिए एक बोर्ड का गठन किया है, खासकर उनके लिए जो गरीब हैं.
राज्य में ब्राह्मण कुल आबादी का चार प्रतिशत हैं.
कर्नाटक के नये नवेले मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने इस सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आने वाले ब्राह्मण समुदाय के 9,206 छात्रों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डाइरेक्ट बेनेफिट ट्रान्स्फर) के माध्यम से 13.77 करोड़ रुपये जारी किए.
संदीपनी शिष्य वेथना, नाम की यह योजना कर्नाटक राज्य ब्राह्मण विकास बोर्ड (केएसबीडीबी) की नवीनतम पेशकश है, जिसे एच.डी. कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली जद (एस)- कांग्रेस गठबंधन सरकार द्वारा 2018 में प्रास्तावित किया गया था और जिसे भाजपा के बी.एस. येदियुरप्पा सरकार द्वारा 2020 में शुरू किया गया था.
अगले विधानसभा चुनावों के लिए, भाजपा चाहती है कि केएसबीडीबी समुदाय इस समुदाय से जुड़ी किसी भी शिकायत का समाधान करे, क्योंकि पार्टी हिंदुत्व के चुनावी नारे के साथ एक और चुनाव के लिए तैयार है. चूंकि बोर्ड के लगभग सभी सदस्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके संबद्ध संगठनों से आते हैं, अतः भाजपा के आउटरीच कार्यक्रम में यह बोर्ड बहुत महत्वपूर्ण है.
केएसबीडीबी के प्रमुख एच.एस. सच्चिदानंद मूर्ति भाजपा से संबंधित एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने पिछले चार दशकों में विभिन्न पदों पर कार्य किया है, जिसमें बेंगलुरु जिला अध्यक्ष का पद भी शामिल है. वह बचपन से ही संघ के सदस्य भी रहे हैं.
बोर्ड की वेबसाइट पर डाली गई उनकी प्रोफाइल में लिखा है: ‘उन्होंने अयोध्या राम जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व किया है और इसके लिए रथ यात्रा के प्रभारी थे. उन्होंने अयोध्या में नित्यपूजे, रामज्योति, कार सेवा और एकता यात्रा में सक्रिय रूप से भाग लिया है.’ यह साइट उन्हें ‘एक कार्यकर्ता के रूप में 38 साल समर्पित करने वाले आरएसएस के पैदल सैनिक’ के रूप में भी वर्णित करती है.
इस बोर्ड के निदेशकों में राज्य सरकार के चार अधिकारी – अतिरिक्त मुख्य सचिव, राजस्व विभाग (मुजराई), धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती के लिए आयुक्त, राजस्व विभाग (मुजराई) में संयुक्त सचिव और धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती के लिए आयुक्त के सहायक- शामिल हैं. इन चारों पदाधिकारियों को राज्य सरकार द्वारा मनोनीत किया गया. है
अन्य 19 सदस्यों, जिनमें ज्योतिषियों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक विभिन्न पेशे के लोग शामिल हैं, मे से सभी भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और ब्राह्मण महासभा के सदस्य हैं.
सच्चिदानंद मूर्ति ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने कार्यभार संभालने के बाद लगभग शून्य से शुरुआत की थी. अब तक हम तेरह योजनाएं लेकर आए हैं, जिनमें से छह को मंजूरी मिल चुकी है.
उन्होंने कहा कि बोर्ड के लिए पहली चुनौती आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के ब्राह्मणों को जाति और आय प्रमाण पत्र जारी करने की होगी, क्योंकि योजनाओं का लाभ उठाने के लिए यह मूल एक आवश्यकता है.
कर्नाटक की योजनाएं
चाणक्य प्रशासनिक प्रशिक्षण योजना के तहत, केएसबीडीबी ने ब्राह्मण समुदाय के 161 उम्मीदवारों को प्रशिक्षण के लिए नई दिल्ली में संकल्प संस्थान में भेजा है.
मेधावी और प्रतिभाशाली ब्राह्मण छात्रों और अच्छा परिणाम प्राप्त करने वालों की पहचान और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए, बोर्ड ने विश्वामित्र प्रतिभा पुरस्कार की शुरुआत की है. सच्चिदानंद मूर्ति ने कहा कि इस योजना के तहत प्रत्येक जिले में 180 छात्रों को पुरस्कार राशि और प्रमाण पत्र प्राप्त हुए हैं.
युवाओं के बीच संध्यावंदम जैसे अनुष्ठान संबंधित पूजा-कर्म को प्रोत्साहित करने के लिए, बोर्ड ने इस साल की शुरुआत में राज्य भर के 85 केंद्रों पर 15 दिवसीय शिविर आयोजित किए थे. सच्चिदानंद मूर्ति ने बताया कि ‘हमने प्रत्येक छात्र को 500 रुपये और प्रत्येक शिक्षक को 5,000 रुपये का भुगतान किया.’
बोर्ड अब एमबीबीएस के 153 गरीब ब्राह्मण छात्रों की 97 लाख रुपये फीस देने की तैयारी कर रहा है, और साथ ही इसने एक उद्यमिता कार्यक्रम के तहत 20,000 रुपये से 1 लाख रुपये के बीच ऋण प्रदान करने के लिए केनरा बैंक के साथ एक करार किया है.
सच्चिदानंद मूर्ति बताते हैं: ‘अन्नदान योजना के तहत, हम उन ब्राह्मण किसानों को खेती के उपकरण खरीदने हेतु 40 प्रतिशत सब्सिडी देते हैं जिनके पास पांच एकड़ से कम जमीन है. सरकार पहले से ही 40 फीसदी अतिरिक्त सब्सिडी देती है. इसलिए, लाभार्थियों को उपकरण की कुल लागत का केवल 20 प्रतिशत ही भुगतान करना होगा.’
उन्होंने आगे यह भी बताया कि बोर्ड ने ‘अरुंधति’ और ‘मैत्री’ नाम की योजनाओं को शुरू करने के लिए अतिरिक्त 50 करोड़ रुपये की मांग की है. इनमें से पहली योजना में गरीब ब्राह्मण वधुओं को 25,000 रुपये दिया जाएगा, जबकि बाद वाली योजना में गरीब ब्राह्मण पुजारियों, रसोइयों और मंदिर के सहायकों से शादी करने वाली वधुओं को 3 लाख रुपये का बांड प्रदान किया जाएगा. ‘मैत्री’ योजना हाल ही में समान जाति के विवाह को प्रोत्साहित करने के लिए एक विवाद में घिर गयी थी.
बोर्ड को अपनी ओर से सामुदायिक जनगणना करने के लिए सरकार की अनुमति मिलने की भी उम्मीद है. सच्चिदानंद मूर्ति ने कहा, ‘हमने कुछ तालुकों में ब्राह्मणों, उनकी आर्थिक स्थिति, उपजातियों और उनके पेशे का विवरण एकत्र करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.’
क्या ‘विकास बोर्ड की यह संस्कृति’ कर्नाटक के लिए नई बात है?
मतदाताओं के बीच नाराजगी को दूर करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों ने जाति विकास बोर्डों का सहारा लिया है.
कर्नाटक के 2021-22 के बजट में, 16 विभिन्न जाति कल्याण बोर्डों के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिसमें 500 करोड़ रुपये वीरशिव-लिंगायत (जो जनसंख्या का 16 प्रतिशत हैं) के लिए एक नया बोर्ड स्थापित करने हेतु और 500 करोड़ रुपये वोक्कालिगा समुदाय (11 प्रतिशत) के लिए भी थे. इसमें से ब्राह्मण विकास बोर्ड को भी 50 करोड़ रुपये मिले.
हालांकि, इन सब में ब्राह्मण बोर्ड अपेक्षाकृत नया है. सच्चिदानंद मूर्ति का कहना है कि: ‘इस बोर्ड की स्थापना करके, कर्नाटक में भाजपा सरकार ने इतिहास रच दिया है.’
केंद्र सरकार द्वारा 2019 में ईडब्ल्यूएस कोटा के तहत उच्च जातियों/समुदायों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा किए जाने तक ब्राह्मण इस राज्य में किसी भी आरक्षण योजना के तहत नहीं आने वाले तीन प्रमुख समुदायों में से एक थे. इस साल जुलाई में मुख्यमंत्री के रूप में अपनी अंतिम कैबिनेट बैठक में कर्नाटक की तत्कालीन येदियुरप्पा सरकार ने अपनी विदाई के उपहार के रूप में इस आरक्षण को लागू करने के लिए मंजूरी दी थी.
सच्चिदानंद मूर्ति बताते हैं: ‘हमारे अनुमान के अनुसार, राज्य में लगभग 40 लाख से 42 लाख ब्राह्मण हैं. कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में से करीब 21 पर हम निर्णायक कारक हैं.’
राज्य भाजपा के महासचिव एन. रवि कुमार ने कहा: भाजपा ने सिर्फ ब्राह्मण जाति के लिए हीं नहीं बल्कि वीरशैव-लिंगायत, कडू गोला समुदाय कल्याण बोर्ड स्थापित किए हैं. यहां तक कि एक मराठा विकास बोर्ड भी स्थापित किया है. ब्राह्मण हमारी आबादी का केवल 4 प्रतिशत हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन हमारे अन्य मुख्य वोट बेस जैसे ओबीसी, लिंगायत और वोक्कालिगा के साथ मिलकर, वे पार्टी को ताकत प्रदान करते हैं.
कुमार ने इस बात से इनकार किया कि उनकी पार्टी किसी एक समुदाय को खास तरजीह दे रही है और जोर देकर कहा कि अन्य (जातियों के) कल्याण बोर्ड भी स्थापित किए गए हैं.
भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता मालविका अविनाश ने कहा, ‘यहां उद्देश्य गरीबों की मदद करना है, चाहे उनकी सामाजिक पहचान पिछड़ों या फिर अगड़ों के रूप में होती हो. भाजपा बखूबी समझती है कि ब्राह्मण समुदाय के गरीबों को भी मदद की जरूरत है.’
चुनाव का समय आने पर भाजपा हिंदुत्व को अपना प्राथमिक चुनावी नारा बनाएगी, और उसे ब्राह्मणों से इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है. भाजपा अपने चुनाव अभियानों के दौरान पारंपरिक रूप से भजन समूहों, हरि कथा, पारंपरिक भोज, सामुदायिक प्रार्थना आदि के लिए मंदिरों में विशेष सभाएं आयोजित करती रही है. अब इस बोर्ड के माध्यम से गरीब पुजारियों को प्रोत्साहन दिए जाने के साथ, पार्टी उन तक अपनी पहुंच को और मजबूत करना चाहती है.
अपनी बात ख़त्म करते हुए सच्चिदानंद मूर्ति कहते हैं: ‘ब्राह्मणों ने हमेशा भाजपा और हिंदुत्व की उसकी विचारधारा का समर्थन किया है. एक ब्राह्मण के रूप में हम हिंदुत्व की रक्षा करते हैं और हम सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास करते हैं. हम इस यात्रा में पार्टी के साथ खड़े रहेंगे.’
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‘धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय अब एक तमाशा बन कर रह गया है’
राजनीतिक विश्लेषक प्रताप भानु मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखे अपने स्तंभ में कहा कि इन राज्यों में धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय ‘एक हास्यास्पद विचार’ बन कर रह गयी है. उन्होंने आगे लिखा कि राजनीति और सार्वजनिक नीति को निहायत ही बेतुके तरीके से ‘जाति-आधारित’ लामबंदी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
वे लिखते हैं, ’क्या आप इस विचार से अधिक अचंभे वाली कोई बात सोच सकते हैं कि 21वीं सदी में राज्य सरकार एक ऐसे पेशे को समर्थन प्रदान कर रही है जिसकी योग्यता जन्म के आधार पर निर्धारित होती है? यदि वैदिक शिक्षा इतनी ही अच्छी है, तो यह सभी के लिए खुली क्यों नहीं होनी चाहिए? क्यों इसे आचरण के नियमों के अधीन होना चाहिए? राज्य इसमें कैसे भेदभाव कर सकता है और इसे जन्म से ब्राह्मण साबित हुए लोगों तक ही कैसे सीमित कर सकता है? यह किसी भी तरह की संवैधानिक कसौटी पर खरा नहीं उतार सकता है.’
वे आगे लिखते हैं, ‘… यह वास्तव में सामाजिक न्याय से संबंधित विमर्श की उसी प्रकार की विकृति है जिसे मंडल के बाद के काल शुरू किया गया था और जहां इस एक गहरे ऐतिहासिक भेदभाव के सवाल बजाए सामान्य रूप से पिछड़ापन और गरीबी के मुद्दे के साथ भ्रमित किया गया था.’
अन्य विश्लेषकों का कहना है कि राज्य सरकारें वोट बैंक के रूप में नगण्य स्थिति के बावजूद ब्राह्मणों को समाज में उनकी ‘आदरणीय स्थिति’ के कारण अपने पाले में संतुष्टि के साथ रखना जारी रखे हुए हैं.
स्वतंत्र कार्यकर्ता स्काई बाबा ने कहा: ‘दशकों पुरानी सामंती व्यवस्थाओं का मानना था कि अगर ब्राह्मण किसी आधिकारिक स्थिति में होते हैं, तो सब कुछ अपने आप सही हो जाता है. ये सरकारें अभी भी उसी भावना का पालन कर रही हैं.’
हालांकि कर्नाटक में राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि भाजपा अपनी ब्राह्मण तुष्टीकरण नीति के कारण एक जोखिम उठा रही है. लेखक और प्रोफेसर चंदन गौड़ा ने कहा, ‘इस बोर्ड की स्थापना के पहले से ही ब्राह्मण समाज विभिन्न समूहों, संघों, मठों के माध्यम से सरकार द्वारा अपने हित में काम करवाने में सफल होता रहा है. हो सकता है कि बीजेपी ने ब्राह्मण बोर्ड की स्थापना के कदम से दूसरे कुछ समुदायों को नाराज कर दिया हो. लेकिन अगर वे इसके साथ राज़ी हैं, तो यह दांव भाजपा के काफ़ी काम आ सकता है.’
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