लखनऊ: पिछले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश में ‘आई लव मुहम्मद’ कैंपेन के समर्थन में कई प्रदर्शन हुए, लेकिन बरेली में शुक्रवार की नमाज़ के बाद ऐसा ही एक विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया. प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई. यह प्रदर्शन इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) के प्रमुख मौलाना तौकीर रज़ा खान ने बुलाया था.
भारी पत्थरबाज़ी हुई, जिसमें कई लोग घायल हो गए. पुलिस ने पांच थानों में 10 मुकदमे दर्ज किए हैं. इनमें से सात मामलों में 55 साल के मौलाना तौकीर को मुख्य आरोपी बनाया गया है. शनिवार को बरेली पुलिस ने उन्हें सात अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया, जबकि 39 और लोगों को हिरासत में लिया गया.
विवाद की शुरुआत 4 सितंबर को कानपुर में बारावफात (ईद-ए-मिलादुन्नबी) के जुलूस के दौरान हुई थी. उस समय एक बैनर लगाया गया, जिस पर लिखा था ‘आई लव मुहम्मद’. कुछ हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया और कहा कि यह “नई परंपरा शुरू करने की कोशिश” है. पुलिस ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि सरकारी नियम जुलूसों में नई परंपराओं को जोड़ने की अनुमति नहीं देते.
बाद में 24 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई, जिन पर आरोप था कि उन्होंने एक पारंपरिक तंबू हटाकर उस जगह पर बैनर लगाया, जिससे साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ा.
यह मामला और गरमा गया जब 15 सितंबर को AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कानपुर पुलिस को टैग किया और कहा कि पैगंबर से मोहब्बत जताना कोई गुनाह नहीं है.
19 सितंबर को तौकीर रज़ा ने घोषणा की कि ‘आई लव मुहम्मद’ विवाद को लेकर शुक्रवार की नमाज़ के बाद विरोध प्रदर्शन होंगे और यह “किसी भी कीमत पर” होंगे.
यह पहली बार नहीं है जब मौलाना तौकीर सुर्खियों में आए हों. उनका नाम दशकों से सांप्रदायिक दंगों से जोड़ा जाता रहा है.
यूपी पुलिस के रिकॉर्ड के मुताबिक, उनके खिलाफ पहली एफआईआर 1982 में दर्ज हुई थी, जब उन पर हिंसा भड़काने का आरोप लगा. इसके बाद 1987, 1988, 1996, 2000, 2007 और 2010 में भी उन पर अलग-अलग मामलों में आरोप लगे. 2010 में बरेली के प्रेमनगर थाने क्षेत्र में हुए दंगे में भी उन्हें मुख्य आरोपी बनाया गया था.
वे 2010 के जुलूस-ए-मोहम्मदी हिंसा के भी आरोपी हैं, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे और शहर में 27 दिन तक कर्फ्यू लगाना पड़ा था. आठवीं एफआईआर 2019 में कोतवाली थाने में दर्ज हुई, नौवीं 2020 में संभल में और एक और मामला 2023 में फरीदपुर में दर्ज हुआ. इतने लंबे रिकॉर्ड के बावजूद वे अब तक जेल जाने से बचते रहे थे.
मुख्यमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हर बार मौलाना और ताक़तवर होते गए और पुलिस प्रशासन पर दबाव डालते रहे, लेकिन इस बार योगी सरकार में उनकी हिंसा भड़काने की कोशिश भारी पड़ी. दंगे वाली रात को ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अगले दिन जेल भेज दिया गया.”
बरेली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “तौकीर के सभी पार्टियों से राजनीतिक संबंध रहे हैं. हालांकि, इस बार उन्हें गिरफ्तार किया गया है, लेकिन पहले वह हमेशा जेल जाने से बच जाते थे. उनकी पहुंच सिर्फ विपक्षी नेताओं तक सीमित नहीं थी, बल्कि सत्ताधारी पार्टी तक भी थी क्योंकि उनका परिवार बरेली का असरदार परिवार माना जाता है. कहा जाता है कि बरेली के एक पूर्व भाजपा सांसद से उनके घनिष्ठ संबंध थे. हालांकि, अब वे नेता जिले की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन एक समय उनकी वजह से तौकीर गिरफ्तारी से बच जाते थे. 2010 में भी उन्हें कुछ घंटों के लिए हिरासत में लिया गया था, लेकिन तुरंत छोड़ दिया गया. इस बार पहली बार ऐसा लग रहा है कि वह कम से कम दो हफ्ते तक जेल में रहेंगे.”
एक असरदार मौलाना
मौलाना तौकीर रज़ा खान सिर्फ धार्मिक नेता ही नहीं, बल्कि एक राजनीतिक शख्सियत भी हैं. वे बरेलवी फिरके के आला हज़रत परिवार से ताल्लुक रखते हैं और इस फिरके के संस्थापक अहमद रज़ा खान के वंशज हैं. उनके भाई मौलाना सुभान रज़ा खान (सुभानी मियां) आला हज़रत दरगाह के प्रमुख हैं, जबकि उनके भतीजे मुफ्ती एहसान रज़ा खान इसके मौजूदा सज्जादानशीन (सीनियर धार्मिक प्रमुख) हैं.
तौकीर रज़ा ने 2001 में इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) नाम की क्षेत्रीय पार्टी बनाई. 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ भोजीपुरा सीट जीत पाई. 2017 में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली.
2009 में रज़ा की पार्टी ने कांग्रेस को समर्थन दिया. चार साल बाद, 2013 में आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल उनसे मिलने बरेली आए. इसके बाद रज़ा ने लोकसभा चुनाव के दौरान केजरीवाल के समर्थन में अपील की. उस समय केजरीवाल दिल्ली से बाहर आम आदमी पार्टी का विस्तार करने की कोशिश कर रहे थे.
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले रज़ा ने सपा-बसपा गठबंधन का समर्थन किया और कांग्रेस को “वोट-कटुआ पार्टी” कहा, लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में उन्होंने एक बार फिर कांग्रेस का साथ दिया.
रज़ा बीस साल से ज्यादा वक्त से सक्रिय हैं और बरेली व आसपास के जिलों में उनकी गहरी पकड़ है. उनके पिता हज़रत रेहान खान कभी कांग्रेस के एमएलसी रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2010 के बरेली दंगों के बाद जिले की अदालत ने स्वतः संज्ञान लिया और मार्च 2024 में उन्हें दंगों का मास्टरमाइंड करार दिया. अदालत ने यह भी कहा कि वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी राजनीतिक दबाव में काम कर रहे थे. बाद में उनके खिलाफ समन जारी हुआ और अदालत में पेश न होने पर 2024 में उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया.
योगी की तारीफ और विवादित बयान
रज़ा के पुराने बयानों ने कई बार सुर्खियां बटोरी हैं. एक मौके पर उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ की थी कि उन्होंने राज्य में सामाजिक सौहार्द बनाए रखा. 2022 में उन्होंने कहा था कि योगी सरकार ने फौरन कार्रवाई की थी जब कुछ हिंदू युवक टोपी पहनकर मस्जिदों में घुसकर गड़बड़ी करने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने यहां तक कह दिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को योगी से ‘राजधर्म’ सीखना चाहिए.
हालांकि, उनके कई अन्य बयान विवादों में भी रहे. फरवरी 2024 में उन्होंने ऐलान किया था कि वह कभी ज्ञानवापी नहीं छोड़ेंगे, कहा कि भारत में “कानून का राज नहीं है” और बाबरी मस्जिद के फैसले की आलोचना की. बाद में, सितंबर 2024 में उन्होंने आरएसएस, बजरंग दल और वीएचपी को “आतंकी संगठन” बताया और उन पर बैन लगाने की मांग की. इससे पहले, मार्च 2023 में उन्होंने आरोप लगाया था कि मोदी सरकार में मुसलमानों को इंसाफ नहीं मिल रहा और विवादित तरीके से कहा था कि मुसलमानों की हत्या करने वालों पर भी बुलडोज़र चलना चाहिए.
19 सितंबर 2025 को, “आई लव मुहम्मद” विवाद के बीच, रज़ा ने ऐलान किया कि शुक्रवार की नमाज़ के बाद हर हाल में विरोध प्रदर्शन होंगे.
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