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Sunday, 22 December, 2024
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हम पाकिस्तानी या चीनी नहीं हिंदुस्तानी मुसलमान हैं-फारूक अब्दुल्ला

राज्य के विशेष दर्जे को खत्म किए जाने की दूसरी वर्षगांठ (5 अगस्त) से पहले दिप्रिंट को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में, पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला ने कश्मीर में लोगों के साथ मोदी सरकार के व्यवहार के बारे में बात की.

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श्रीनगर: भारत सरकार को अगर केवल कश्मीर की जमीन नहीं, कश्मीरी आवाम भी चाहिए तो उसे अनुच्छेद 370 को रद्द करने के अपने फैसले पर ‘फिर से सोचना होगा’. यह कहना है इस सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक़ अब्दुल्ला का. श्रीनगर के गुपकर रोड वाले अपने बंगले पर उन्होंने राज्य के विशेष दर्जे को खत्म किए जाने की दूसरी वर्षगांठ (5 अगस्त) के मौके पर ‘दप्रिंट’ से खास बातचीत की.

उन्होंने इस बात से साफ इनकार किया कि अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के दो साल बाद कश्मीर के लोगों ने इस बदलाव को कबूल कर लिया है और शुरू में उनका जो गुस्सा दिखा था वह ठंडा हो रहा है. ‘सूबे में हम कई हादसे देख चुके हैं… हम कश्मीरियों की एक बड़ी फितरत यह है कि हम अंदर जो महसूस करते हैं उसे जाहिर नहीं करते… नफरत आप यहां जितनी महसूस करेंगे उससे कहीं ज्यादा है. वे आपसे कुछ कहेंगे नहीं. लेकिन आप किसी अमेरिकी या ब्रिटिश या किसी और विदेशी पत्रकार को भेजिए, वे आपको जितना बताएंगे उससे कहीं ज्यादा उस पत्रकार को बताएंगे.’

86 वर्षीय अब्दुल्ला मार्च में कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद से अभी भी स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं. वे कमजोर, और राज्य के हालात से नाराज दिखे. लेकिन उनकी आवाज दमखम और चुनौती भरी थी.

यह पूछे जाने पर कि क्या वे यह मानते हैं कि दिल्ली में कोई दूसरी सरकार बनी तो वह नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले (अनुच्छेद 370 को रद्द करने के) को पलट देगी, नेशनल कनफरेंस के अध्यक्ष ने कहा कि हम पर 200 साल तक राज करने वाले अंग्रेजों ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन जवाहरलाल नेहरू लाल किले पर झंडा फहराएंगे, और भगत सिंह ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन उनकी क़ुरबानी देखी जाएगी.

‘और जिन लोगों पर लाल किले में मुकदमा चलाया गया था उन्होंने क्या कभी ऐसा सोचा था? नहीं. लेकिन एक पुकार थी कि हम मुल्क को आज़ाद देखेंगे. यह मुल्क हम सबके लिए होगा… यही यहां, कश्मीर में भी होगा एक दिन. मैं यह देखने के लिए शायद नहीं रहूं लेकिन यह होगा.’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर आप (भारत सरकार) केवल जमीन चाहते हैं, तो आप जो दिल में आए कीजिए. लेकिन अगर आप कश्मीर के लोग चाहते हैं, तो आपको फिर से सोचना पड़ेगा.’


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नयी हकीकतें

‘दिप्रिंट’ के साथ दो घंटे की बातचीत में ऐसा लगा कि अब्दुल्ला नयी हकीकतों को कबूल नहीं पाए हैं, हालांकि सार्वजनिक जीवन में वे जिस जवां आकर्षण, ज़िंदादिली और गर्मजोशी के लिए मशहूर रहे हैं वह सब उनमें मौजूद दिखा. अपने पुराने दिनों को वे बड़े प्यार से याद करते रहे— एक डॉक्टर के रूप में लंदन में पार्टियों में शिरकतों को, अपने पिता शेख अब्दुल्ला की रिहाई के बाद उनकी अगवानी के लिए तीन मूर्ति भवन की सीढ़ियों पर आंखों में आंसू भरकर खड़े प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को, 1980 के दशक में खुद पहली बार सांसद बनने के बाद इंदिरा गांधी से अपनी मुलाक़ात में सांसदों के महज 1500 रुपये के वेतन के बारे में शिकायत को याद करते रहे.

बातचीत के दौरान एक क्षण में वे दिल खोल कर हंस रहे थे, तो अगले ही क्षण उनकी आंखें नम हो जाती थीं. 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने और उसे केंद्र शासित दो प्रदेशों में बांटे जाने के एक दिन पहले उन्हें हिरासत में ले लिया गया था, और सात महीने बाद रिहा किया गया.

गुस्से से कांपती आवाज़ में उन्होंने कहा, ‘मुझ पर पीएसए (सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम) लागू कर दिया गया. क्या मैं पाकिस्तानी हूं? चीनी हूं? यह दुखद है. मैं बीजेपी का नौकर नहीं हूं, मैं जनता का सेवक हूं. हमने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि जो लोग भारत के साथ हैं उनसे यहां नफरत की जाती है.’

‘दिल्ली सच नहीं सुनना चाहती. जब (पिछले महीने) मैं प्रधानमंत्री से मिला तो मैंने उनसे साफ कह दिया कि आपको हम सब पर भरोसा नहीं है, और हम सब को दिल्ली पर भरोसा नहीं है.’


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टूटे वायदे

इतिहास में झांकते हुए उन्होंने ‘टूटे’ हुए वायदों की बात की— ‘रायशुमारी’ करवाने का नेहरू का वायदा, स्वायत्तता की मांग पर पी.वी. नरसिंह राव का यह वादा कि ‘आसमान ही इसकी सीमा है, ‘कश्मीरियत, इंसानियत, जम्हूरियत’ का अटल बिहारी वाजपेयी का वादा. अब्दुल्ला ने कहा, ‘इन सबके बाद आप (मोदी) आए. आपने सबको धो-पोंछ दिया. अब हम बस जी रहे हैं. हम आज़ाद नहीं है. हम गुलाम हैं. यही हैं हम.’

‘इस मुल्क में सच सुनना कोई नहीं चाहता क्योंकि वे सच नहीं सुनना चाहते. हम क्या हैं? यहां, हर कोने में आप जितनी फौज देखते हैं उतनी क्या देश के किसी दूसरे हिस्से में देखते हैं? देश के दूसरे किसी हिस्से में आप फौज को अपना झंडा लगाते देखते हैं? क्या यह आज़ाद सूबा है? क्या हम भारत के स्वतंत्र लोग हैं? मुझे तो ऐसा नहीं लगता.’

प्रधानमंत्री मोदी के इस कटाक्ष पर अब्दुल्ला नाराज हो जाते हैं कि राजनीतिक घरानों ने कश्मीर को ‘लूट’ लिया. वे कहते हैं, ‘मोदी हमेशा झूठ बोलते रहे हैं. आपने उन्हें सच बोलते कब सुना? आज वे अपने मंत्रियों तक, और सुप्रीम कोर्ट के जजों, करीब 40 पत्रकारों, तथा अपने कुछ दोस्तों के खिलाफ भी जासूसी करने के लिए इजरायली मशीन ले आए हैं लेकिन झूठ बोल रहे हैं कि हमने ऐसा नहीं किया. तो सच कहां है?’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर इन घरानों ने कश्मीर को लूटा, तो मेरे पास तो कई महल होने चाहिए थे. मैं इस दुनिया का सबसे अमीर आदमी होता. क्या मैं ऐसा हूं? क्या मैं अंबानी या अदानी के करीब भी कहीं पहुंचता हूं?’

तो आगे क्या रास्ता है? इस सवाल पर अब्दुल्ला की खीज़ बाहर आ जाती है, ‘जब तक वे अपना नजरिया नहीं बदलते, यह नहीं समझते कि हिंदुस्तान केवल एक मजहब के लिए नहीं है… जब तक हम हिंदुस्तान की विविधता का सम्मान करते रहेंगे तब तक यह मुल्क कायम रहेगा. जिस दिन हम इस विविधता से छेड़छाड़ करेंगे उस दिन भारत खत्म हो जाएगा. हां, हिंदी पट्टी शायद कायम रहेगी. बाकी सब चले जाएंगे. एक समय ऐसा आएगा, जिसे देखने के लिए मैं नहीं रहूंगा लेकिन मेरे बच्चे और उनके बच्चे देखेंगे.’

उन्होंने सवाल किया, ‘वे वादे कहां हैं कि वे लोगो के दिल जीतेंगे? क्या आप बीएसएफ, सीआरपीएफ, लोकल पुलिस के बूते लोगों के दिल जीत सकते हैं? यहां कश्मीर में वह आज़ादी कहां है जो आपको दिल्ली, या भारत में कहीं और हासिल है?’

आगे के कार्यक्रम को लेकर नेशनल कॉनफ्रेंस के अध्यक्ष अनिश्चय में दिखे. क्या वे चुनाव लड़ेंगे? चुनाव अगर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिए जाने से पहले हुए तो क्या करेंगे? ‘मैं नहीं जानता. मैं आपको नहीं बता सकता कि तब क्या होगा. अभी वह दूर है. पहले देखें कि परिसीमन से क्या होता है.’


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‘हमेशा से ज्वलनशील मुद्दा रहा है’

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल्ला का मानना है कि कश्मीर ‘.भारत, पाकिस्तान और चीन के लिए हमेशा एक खौलता हुआ (ज्वलनशील) मुद्दा रहेगा.’ ‘हम इसलिए उलझ गए हैं क्योंकि सरकार आगे कदम बढ़ाना नहीं चाहती. उसे पाकिस्तान के साथ कोई रास्ता निकालना होगा. उसने हमारी जो जमीन ले ली है उसे हम वापस नहीं ले सकत, और न वे इस जम्मू-कश्मीर को हमसे ले सकते हैं.’

वाजपेयी जब पाकिस्तान जा रहे थे तब उन्होंने अब्दुल्ला से सलाह मांगी थी. ‘मैंने उनसे कहा था कि वे उससे कहें कि आप उसे रखिए, हम इसे रखते हैं. हम सीधी लकीर खींच दें और दोनों तरफ के लोगों का आना-जाना, व्यापार और दूसरे मामले चलने दें.’

अब्दुल्ला 1990 के दशक से ज़ोर देते आ रहे हैं कि नियंत्रण रेखा (एलओसी) को भारत-पाकिस्तान की स्थायी सरहद बना दें.

आज भी वे यही मानते हैं कि यही एकमात्र समाधान है, ‘दूसरा उपाय क्या है? परमाणु युद्ध? क्या आप यही चाहते हैं? सत्तर साल से हम गरीबी झेल रहे हैं और आप चाहते हैं कि हम नरक में चले जाएं. हमें निबटारा करना होगा. अगर हम यह नहीं करते, तो खुदा के लिए अफगानिस्तान चले जाइए और देखिए कि उसका क्या हश्र हुआ है. देखिए, कि आज अफगानिस्तान कहां पहुंच गया है.’

‘मुसलमानों के खिलाफ नफरत की मुहिम’ से फ़ारूक़ अब्दुल्ला नाराज हैं, ‘हम पाकिस्तानी या चीनी या ब्रिटिश मुसलमान नहीं हैं. हम हिंदुस्तानी मुसलमान हैं. देखिए कि उन्होंने बाकी मुल्क में कितनी नफरत फैला दी है. क्या आपको लगता है कि इसका एक मुस्लिम बहुल सूबे पर असर नहीं पड़ता? मैं 86 का हो गया हूं. मैंने हिंदुस्तान को कभी इस रास्ते पर जाते नहीं देखा था.’

(इस इंटरव्यू को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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