नई दिल्ली: विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने आह्वान किया है, कि उत्तराखंड के हरिद्वार में कुंभ मेला जारी रहना चाहिए, इसके बावजूद कि शहर में पिछले 48 घंटों में, कोविड-19 के 1,000 से अधिक मामले सामने दर्ज किए जा चुके हैं.
वीएचपी उपाध्यक्ष चंपत राय ने दिप्रिंट से ये भी कहा, कि मेले की दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज़ में हुए, तबलीग़ी जमात के जलसे से तुलना नहीं की जा सकती, जो उनके हिसाब से कोई धार्मिक कार्यक्रम नहीं था.
दोनों आयोजनों के बीच तुलना की जा रही है, चूंकि पिछले साल मार्च में मरकज़ में हुए आयोजन को, महामारी की शुरूआत में एक सुपर-स्प्रैडर क़रार दिया गया था, जबकि कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच, मेले को लेकर मीडिया की प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत दबी हुई है.
राय ने कहा, ‘कुंभ बहुत पुराना और परंपरागत उत्सव है’. उन्होंने आगे कहा, ‘इसके आयोजन में विद्वान मंडलेश्वर और शंकराचार्य सम्मिलित होते हैं. नियमों का पालन होना चाहिए, लेकिन ये एक हिंदू धार्मिक उत्सव है, जो हर 12 वर्ष में आयोजित होता है. उत्सव पर प्रतिबंध लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है; हमें बस कोविड गाइडलाइन्स का पालन करने की ज़रूरत है’.
वीएचपी के संयुक्त सचिव सुरेंद्र जैन ने और भी ज़ोरदार तरीक़े से अपनी बात रखी, और मेले की जमात के आयोजन से तुलना पर निशाना साधा.
उन्होंने कहा, ‘तबलीग़ी मरकज़ और कुंभ में तीन अंतर हैं. कुंभ एक धार्मिक कार्यक्रम है, जबकि इसके उलट मरकज़ एक सत्तावादी आयोजन था, जिसका मक़सद मुस्लिम आधिपत्य का मुज़ाहिरा करना था. दूसरा अंतर ये है कि कुंभ को सरकारी की मंज़ूरी है, और ये कोई छिपा हुआ कार्यक्रम नहीं है. कुंभ एक धार्मिक कार्यक्रम भी है, और ये एक आस्था का उत्सव है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘कुंभ की मरकज़ से तुलना, गंगाजल को नालियों के गंदे पानी से मिलाने के समान है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘कुंभ पर पाबंदी लगाने या इसे घटाने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि ये धर्माचार्य के आशीर्वाद के साथ आयोजित किया जा रहा है’.
कार्यक्रम के लिए VHP का समर्थन ऐसे समय आया है, जब एक दिन पहले ही उत्तराखंड मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने स्पष्ट किया था, कि कुंभ मेला जारी रहेगा.
रावत ने मंगलवार को ये भी कहा था, कि कुंभ मेले की तुलना निज़ामुद्दीन मरकज़ से नहीं की जा सकती.
रावत ने पत्रकारों से कहा था, ‘वो सब (मरकज़ में हाज़िर लोग) एक बिल्डिंग के अंदर थे, जबकि यहां सब कुछ खुले में है. और ये गंगा के किनारे है. मां गंगा का प्रवाह और आशीर्वाद मिलकर सुनिष्चित करेंगे, कि कोरोनावायरस ना फैले. किसी तुलना का तो सवाल ही पैदा नहीं होता’.
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अभी एक और प्रमुख स्नान है बाक़ी
सामान्य हालात में कुंभ मेला चार महीने तक चलता है, लेकिन इस साल ये केवल 1 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच आयोजित किया जा रहा है.
अभी तक, स्नान की दो प्रमुख तिथियां, या शाही स्नान पूरे हो चुके हैं, जबकि तीसरा स्नान 27 अप्रैल को होना है, जब लाखों की संख्या में लोगों के, गंगा में डुबकी लगाने की संभावना है.
उत्तराखंड कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत ने दिप्रिंट से कहा, कि राज्य को 27 अप्रैल को बहुत ज़्यादा भीड़ जुटने की अपेक्षा नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘दो सबसे भीड़ वाले शाही स्नान पूरे हो चुके हैं, और 27 अप्रैल को हम उतनी अधिक भीड़ की अपेक्षा नहीं कर रहे हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन ये एक धार्मिक और पारंपरिक उत्सव है, इसलिए भीड़ को रोकना संभव नहीं है, चूंकि ये हर 12 वर्ष के बाद आयोजित होता है. हम केवल ये सुनिश्चित कर सकते हैं, कि कोविड गाइडलाइन्स का पालन किया जाए’.
राज्य सरकार के दावों के बावजूद, बिना मास्क और अनिवार्य कोविड-19 निगेटिव सर्टिफिकेट के, घूम रहे भक्तों और साधुओं की तस्वीरें, हरिद्वार में सामान्य हो गई हैं.
हरिद्वार के मुख्य चिकित्सा अधिकारी एसके झा ने दिप्रिंट से कहा, ‘मेले में गाइडलाइन्स को मनवाने की तमाम कोशिशों के बावजूद, कोविड नियमों का गंभीर उल्लंघन हो रहा है, चूंकि प्रशासन का ध्यान भीड़ के प्रबंधन पर अधिक है’.
उत्तराखंड बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा, कि मुख्यमंत्री रावत राजनीति के हिसाब से चल रहे हैं.
नेता ने कहा, ‘कोविड फैलने के जोखिम के बावजूद, हम धार्मिक भावनाओं की अनदेखी नहीं कर सकते, ख़ासकर ऐसे समय, जब प्रदेश में अगले साल चुनाव होने हैं’.
‘मुख्यमंत्री धर्मगुरुओं और संस्थानों को ख़ुश करने में लगे हैं. पहले उन्होंने इन सबको आश्वस्त किया, कि वो 51 धर्मस्थलों और मंदिरों को नियमित के, अपने पूर्ववर्त्ती त्रिवेंद्र सिंह रावत के क़ानून को वापस लेंगे, और अब उन्होंने कुंभ के आयोजन की अनुमति दे दी है. अगर उन्होंने कुंभ में भागीदारी पर प्रतिबंध लगाया होता, तो उसके गंभीर राजनीतिक परिणाम सामने आते’.
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