नई दिल्ली: राहुल गांधी ने अपने चचेरे भाई और भाजपा सांसद वरुण गांधी के कांग्रेस में शामिल होने की संभावना को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वरुण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा में विश्वास करते हैं. मंगलवार को मीडिया से बातचीत में यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब मोदी सरकार की लगातार आलोचना करने वाले वरुण अपने लिए विकल्पों की तलाश कर रहे हैं.
राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के पंजाब चरण के दौरान कहा, ‘वह भाजपा से हैं और अगर वह यहां चलेंगे तो उन्हें दिक्कत हो जाएगी.’
उन्होंने कहा, ‘मेरी विचारधारा उनसे मेल नहीं खाती है. मैं आरएसएस के ऑफिस कभी नहीं जा सकता. आपको मेरा सिर काटना होगा. मैं नहीं जा सकता क्योंकि मेरे परिवार की एक अलग विचारधारा है. वरुण ने एक समय में, शायद आज भी उस विचारधारा को अपनाया हुआ है, जिसे मैं स्वीकार नहीं कर सकता. मैं उनसे प्यार से मिल सकता हूं, उन्हें गले लगा सकता हूं लेकिन उस विचारधारा को स्वीकार नहीं कर सकता. यह नामुमकिन है. परिवार अलग है.’
यह टिप्पणी वरुण की उस दुविधा को और बढ़ाती नजर आ रही है, जिसका सामना दरकिनार किए जा रहे भाजपा नेता मौजूदा समय में कर रहे हैं.
पिछले कुछ सालों से पीलीभीत से तीन बार के सांसद को भाजपा सरकार की नीतियों से असंतुष्ट नेता के रूप में देखा गया है. पीलीभीत वह निर्वाचन क्षेत्र है जिसका प्रतिनिधित्व उनकी मां और पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुकी भाजपा नेता मेनका गांधी पहले से करती आई हैं.
कभी भाजपा की शक्तिशाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी का हिस्सा रहे वरुण कई मुद्दों पर मोदी सरकार के आलोचक रहे हैं. विवादास्पद अग्निपथ अल्पकालिक सेना भर्ती नीति और अब निरस्त कृषि कानून जैसे मुद्दों पर वह सरकार के खिलाफ बोलते रहे हैं.
उनकी इन्हीं आलोचनाओं के चलते 2021 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति से वरुण को हटा दिया गया था.
भाजपा सरकार की उनकी आलोचना के अलावा यह उनके कजिन्स – खासकर राहुल की बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी- के साथ उनकी कथित निकटता है, जिसने उनके कांग्रेस में शामिल होने की अटकलों को हवा दी .
यह सब देखते हुए चचेरे भाई के बारे में राहुल गांधी का बयान काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. दरअसल उनके इस बयान ने पीलीभीत के सांसद के लिए विकल्पों को प्रभावी रूप से सीमित कर दिया है.
दिप्रिंट ने फोन, व्हाट्सएप और टेक्स्ट मैसेज के जरिए वरुण गांधी तक पहुंचने की कोशिश की थी. उनसे प्रतिक्रिया मिलने पर इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा.
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हेट स्पीच से लेकर भाजपा की आलोचना तक
पंजाब में मीडिया के साथ अपनी बातचीत में राहुल ने कहा कि वर्षों पहले उन्होंने वरुण को आरएसएस की प्रशंसा करते हुए सुना था और तब उन्होंने अपने चचेरे भाई से अपने परिवार के इतिहास को पढ़ने का आग्रह किया था.
राहुल ने कहा, ‘अगर आपने ऐसा किया होता तो आप ऐसा कभी नहीं कहते.’
वरुण कभी उग्र भाषा कौशल के साथ भाजपा के एक होनहार युवा तुर्क माने जाते थे. लेकिन फिलहाल तो ट्विटर और अखबारों के लेखों में उनके हाल के अधिकांश सार्वजनिक बयानों में केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों में भाजपा और उसकी सरकारों की आलोचना प्रमुख बनी हुई है.
2013 में जब राजनाथ सिंह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, ने वरुण को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया था. लेकिन उन्हें अगस्त 2014 में सिंह के उत्तराधिकारी अमित शाह ने पद से हटा दिया था.
पीलीभीत के सांसद नफरत फैलाने वाले भाषणों के आरोपों से भी मुश्किल में आते रहे हैं. 2009 में उन पर मामला दर्ज किया गया था और यहां तक कि पीलीभीत में दो ‘भड़काऊ’ भाषणों के संबंध में उन्हें गिरफ्तार तक कर लिया गया था. लेकिन बाद में वह दोनों मामलों में बरी हो गए थे.
कई लोगों ने उनके एंग्री-यंग-मैन की छवि को 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में खुद को भाजपा के मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश करने के एक सचेत प्रयास के रूप में देखा. मगर जब मुख्यमंत्री के दावेदार का चुनाव करने का समय आया, तो गोरखपुर के सांसद आदित्यनाथ ने उनसे बाजी मार ली.
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में वरुण की स्थिति भाजपा में उनके कद की गवाही थी. यह अलग बात है कि उन्हें कभी भी वो शाही तवज्जो नहीं मिली जो उनके चचेरे भाइयों को कांग्रेस में मिलती आई थी.
धीरे-धीरे, वरुण के स्वर बदलने लगे. पहले अधिक वामपंथी दृष्टिकोण और फिर भाजपा सरकार की नीतियों की खुली आलोचना उनके बदलते सुरों की गवाही दे रही है.
आज उनकी ट्विटर टाइमलाइन को सत्ता पक्ष के एक सांसद की तुलना में एक विपक्षी सांसद की तरह अधिक पढ़ा जाता है. मिसाल के तौर पर इस महीने बीजेपी सांसद ने कम से कम दो ट्वीट पोस्ट किए जो मोदी और योगी सरकार दोनों की आलोचना कर रहे थे.
7 जनवरी को वरुण ने मांग की कि केंद्र सरकार ने दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए मुआवजे के रूप में जिस धन राशि को देने का वादा किया था, उसे वह जारी करे.
स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को टैग करते हुए उन्होंने एक ट्वीट किया – ‘पिछले साल सरकार ने हर दुर्लभ बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को 50 लाख रुपये की वित्तीय सहायता देने का आश्वासन दिया था. अभी तक एक भी मरीज को इस योजना का लाभ नहीं मिला है. इलाज के इंतजार में 10 बच्चों की मौत हो गई है.’ ट्वीट में इस मामले पर स्वास्थ्य मंत्री को वरुण द्वारा लिखे गए पत्र की फोटो भी थी.
Last year, the govt assured financial assistance of Rs 50 lakh to every rare disease patient.
So far, not a single patient has benefited from this scheme. 10 children have died waiting for treatment.
I request Shri @mansukhmandviya to act immediately by clearing these payments. pic.twitter.com/6IcpFuNft0
— Varun Gandhi (@varungandhi80) January 7, 2023
फिर 13 जनवरी को उन्होंने लखनऊ में शिक्षा मित्रों (एड हॉक टीचर्स) द्वारा किए गए विरोध का एक वीडियो ट्वीट किया. सिर्फ चुनाव के दौरान इन शिक्षकों को याद करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सरकार से पूछा कि इन टीचर्स की शिकायतों का समाधान क्यों नहीं किया जा रहा है.
भाजपा सरकार के साथ उनके सबसे बड़े मतभेदों में फिलहाल निरस्त किए जा चुके कृषि कानूनों पर उनका रुख था. अप्रैल 2020 में इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख में उन्होंने संसद द्वारा कृषि बिलों को पारित करने के तरीके पर सवाल उठाया था.
गौरतलब है कि कृषि कानून कई महीनों तक भाजपा सरकार के लिए काफी संवेदनशील मसला बना रहा था. अपना विरोध दर्ज कराने के लिए किसान महीनों तक सड़कों पर डेरा डाले रहे थे और अपनी मांगे न माने जाने पर उन्होंने पीछे हटने से इनकार कर दिया था.
तब उन्होंने लिखा था, ‘भारत की 543 लोकसभा सीटों में से 250 पर उन राजनेताओं का कब्जा है जो किसान होने का दावा करते हैं. फिर भी इन ‘किसानों’ में से कुछ, अगर हैं तो संसद में तीन कृषि कानूनों पर बहस पर अपनी आवाज उठा सकते थे.’
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चचेरे भाई का प्यार?
वरुण की ओर से एक ऐसी सरकार को हठपूर्वक खारिज करना जिसे वह व्हिप की स्थिति में संसद में समर्थन देने के लिए बाध्य है, ने कई सालों तक इस अटकल को जन्म दिया है कि वह कांग्रेस का नेतृत्व कर सकते है – एक पार्टी जिसे उनके पिता संजय को 1980 में उनकी असामयिक मृत्यु से पहले स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में देखा गया था.
सोनिया और मेनका के बीच मतभेदों के बावजूद वरुण के प्रियंका के करीबी होने की धारणा बनी रही, जिसने अफवाहों के बाजार को गर्म रखा.
2011 में अपनी शादी में आमंत्रित करने के लिए वरुण सोनिया के घर भी गए थे, हालांकि उस परिवार से कोई भी शादी में शामिल नहीं हुआ था.
प्रियंका अपने चचेरे भाई की आलोचना करते हुए हमेशा से सावधान रही हैं.
2015 में अमेठी में चुनाव प्रचार करते हुए प्रियंका ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से वरुण को सही रास्ता दिखाने का आग्रह किया था. उन्होंने कहा थ कि वह ‘भटक’ गए हैं.
2019 में एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में वरुण ने कहा था कि प्रियंका गांधी के साथ उनके ‘औपचारिक संबंध’ हैं.
अखिलेश यादव की तारीफ
वरुण न सिर्फ भाजपा सरकार के आलोचक रहे हैं, बल्कि एक वाकये में तो उन्होंने विपक्ष के नेता अखिलेश यादव की भी तारीफ कर दी थी.
हाल ही में अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक समारोह में बोलते हुए उन्होंने एक घटना को याद किया, जब समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश राज्य के मुख्यमंत्री थे.
उन्होंने बताया कि वह उन सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों का अध्ययन करना चाहते थे जो एक व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करती हैं.
उन्होंने कहा, ‘तो मैंने उन्हें (यादव) लिखा कि इसमें कोई राजनीति नहीं है. हम यूपी में उन लोगों की सूची प्राप्त करना चाहते हैं जो इन मानदंडों को पूरा करते हैं … उन्होंने तुरंत अपने अधिकारियों को बुलाया और एक बड़ा दिल दिखाते हुए कहा, क्योंकि कोई राजनीति नहीं है इसलिए सूचना प्रदान की जानी चाहिए. हमें 42,000 लोगों की सूची मिली थी.
पीलीभीत: बीजेपी नेता वरुण गांधी ने एक जनसभा में अखिलेश यादव की जमकर तारीफ की, बीजेपी पर बरसे। इस बयान के सामने आने के बाद से सियासी गलियारों में मची हलचल, चर्चाओं का बाज़ार हुआ गर्म। सुनिए क्या है ये किस्सा और क्या हैं इसके सियासी मायने?#Pilibhit #VarunGandhi #AkhileshYadav pic.twitter.com/r7A8pCdSe4
— UP Tak (@UPTakOfficial) January 17, 2023
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादनः ऋषभ राज)
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