लखनऊ: विधानसभा चुनावों में हार का सामना करने के बमुश्किल तीन महीने बाद, समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव का अलग-अलग जाति-आधारित छोटे दलों के साथ बना इंद्रधनुषी गठबंधन टूटता दिख रहा है. उत्तर प्रदेश विधानसभा परिषद चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन पर दो घटकों ने नाराजगी जाहिर की है.
बुधवार को महान दल ने कहा कि उसने सपा से अलग होने का ‘लगभग तय’ कर लिया था. जबकि जनवादी पार्टी (समाजवादी) ने 20 जून को होने वाले एमएलसी चुनावों के टिकट बंटवारे में हिस्सेदारी न मिलने पर असंतोष जताया है. विधान परिषद चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जहां नौ उम्मीदवारों की घोषणा की है, वहीं सपा ने चार उम्मीदवारों पर ठप्पा लगाया है.
इन बयानों के कुछ घंटे बाद, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के एक वरिष्ठ नेता ने भी एक क्रिप्टिक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने अपने ‘साझेदार’ के साथ नाराजगी जाहिर की और ‘भविष्य’ के बारे में चेतावनी दी. अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव के नेतृत्व में वाली प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया ने इस बीच घोषणा की कि वह राज्य के आगामी नगरपालिका चुनाव अपने दम पर लड़ेगी.
हालांकि सपा ने अपने सहयोगी दलों की नाराजगी को कम कर दिया और दावा किया कि गठबंधन बरकरार है. मौर्य की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने दिप्रिंट को बताया कि इस मुद्दे पर अब तक कोई चर्चा नहीं हुई है, लेकिन गठबंधन के घटकों के साथ बातचीत के बाद जल्द ही चीजें साफ हो जाएंगी. उन्होंने कहा, हो सकता है कि इस घटना (एमएलसी चुनाव) से कुछ नाराजगी हुई हो लेकिन गठबंधन बरकरार है. हमें विश्वास है कि महान दल हमारे साथ है और आगे भी रहेगा.
जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) ने फरवरी 2018 में अखिलेश के साथ गठबंधन किया था. तो वहीं महान दल, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, कांशीराम बहुजन मूल समाज पार्टी और राजनीतिक न्याय पार्टी 2021 में अखिलेश के साथ जुड़ गए. बाद में अपना दल (कामेरावाड़ी) भी गठबंधन में शामिल हो गया. जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में अपेक्षाकृत दो बड़ी पार्टी हैं. इनका क्रमशः पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में काफी मजबूत आधार है.
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‘एसपी को अब मेरी जरूरत नहीं’
सपा द्वारा एमएलसी चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा के तुरंत बाद, महान दल के प्रमुख केशव देव मौर्य ने अखिलेश पर निशाना साधते हुए कहा कि वरिष्ठ सहयोगी को अब उनकी जरूरत नहीं है. उन्हें केवल भाजपा के पूर्व मंत्री और इस साल जनवरी में सपा में शामिल हुए पिछड़े वर्ग के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोगों की जरूरत है ‘जो सवाल नहीं पूछ सकते.’
मीडिया को दिए एक बयान में मौर्य ने कहा कि उन्होंने एमएलसी सीट मांगी थी लेकिन उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया. हालांकि महान दल प्रमुख ने ये नहीं कहा कि गठबंधन खत्म हो चुका है. उन्होंने कहा, ‘मैंने गठबंधन से अलग होने का लगभग फैसला कर लिया था. मैं किसी से नाराज नहीं हूं… जब से मैं गठबंधन में आया हूं, पूरे मन से चाहता हूं कि सपा सरकार बनाए. लेकिन मुझे कभी सपा से कोई महत्व नहीं मिला. अन्य लोगों को जिस तरह से तरजीह दी गई, वैसी मुझे नहीं मिली. अब भले ही महान दल शाक्य, सैनी, कुशवाहा और मौर्य समुदायों की एक बड़ी पार्टी है.’ उन्होंने कहा, एसपी ने उनकी तुलना में स्वामी प्रसाद मौर्य को अधिक महत्व दिया ताकि वह एक प्रमुख नेता के रूप में न उभर पाएं.
केशव देव मौर्य ने यह भी दावा किया कि आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में एटा से लोकसभा टिकट के उनके अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया गया था. फिर उन्होंने फर्रुखाबाद से टिकट के लिए कहा, लेकिन उनका अनुरोध अनसुना कर दिया गया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस साल के चुनाव के दौरान सपा ने बिलसी विधानसभा क्षेत्र में उनकी पार्टी के उम्मीदवार को कमजोर करने की कोशिश की.
उन्होंने कहा कि पिछले 25 दिनों से प्रयास करने के बावजूद उन्हें अखिलेश के साथ अपॉइंटमेंट नहीं मिला है. वह कहते हैं, ‘गठबंधन के समय मैंने कहा था कि मैं बिना किसी शर्त के आगे बढ़ रहा हूं लेकिन सरकार बनने के बाद कहूंगा. ठीक है, सरकार नहीं बन सकी. लेकिन जब आप दूसरों को दे रहे हैं तो मुझे क्यों नहीं?’
‘परेशान हैं लेकिन सपा के साथ रहेंगे’
लोनिया चौहान ओबीसी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली एक अन्य सपा सहयोगी, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) सभी दलों में सबसे पुरानी सपा सहयोगी है. इसने भी एमएलसी टिकट से इनकार किए जाने के बाद सपा से नाराजगी जाहिर की है.
जेपी (एस) प्रमुख संजय चौहान ने दिप्रिंट को बताया ,‘मैं फरवरी 2018 से सपा के साथ जुड़ा हूं और अखिलेश जी का सबसे पुराना सहयोगी हूं. मैं अन्य पिछड़ा वर्ग को सपा से जोड़ने की कोशिश कर रहा हूं. 2022 के चुनावों में हमारे समुदाय को पर्याप्त सीटों से इनकार के बावजूद सपा के लिए वोट हासिल करने की कोशिश की. तब मैंने कोई आपत्ति नहीं जताई थी क्योंकि मुझसे कहा गया था कि हमें चुनाव पर ध्यान देना चाहिए और सरकार बनने के बाद मुझे एमएलसी बनाया जाएगा. अफसोस की बात है कि पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक के दौरान भी आश्वासन को दोहराया गया था. जब भी पार्टी का कोई पदाधिकारी सपा नेतृत्व से मिलता है तो यह मुद्दा उठाया जाता है. इसलिए मैं परेशान हूं.’
हालांकि उनकी पार्टी गठबंधन में बनी हुई है लेकिन चौहान ने स्वीकार किया कि वह सपा से ‘नाराज’ थे.
एसबीएसपी प्रवक्ता का क्रिप्टिक ट्वीट
एसबीएसपी प्रमुख ओपी राजभर ने इस बात से इनकार किया कि गठबंधन टूट रहा है. मगर उनकी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अरुण राजभर ने एक क्रिप्टिक ट्वीट करते हुए हिंदी में लिखा- ‘भागीदारी देने की बात सिर्फ जुबा तक सीमित रखने से जनता उनको सीमित कर देती है, जो मेहनत करे, ताकत दे उनको नज़रअंदाज करो. जो सिर्फ बात करे उसको आगे बढ़ाओ. यह आगे के लिए हानिकारक है’
भागीदारी देने की बात सिर्फ जुबा तक सीमित रखने से जनता उनको सिमित कर देती है,जो मेहनत करे ताकत दे उनको नजरअंदाज करो, जो सिर्फ बात करे उसको आगे बढ़ाओ,यह आगे के लिए हानिकारक है।
— Arun Rajbhar (@ArunrajbharSbsp) June 8, 2022
लेकिन ओ पी राजभर ने ट्वीट को तवज्जो नहीं दी और दिप्रिंट को बताया कि उपचुनाव के लिए चुनाव प्रचार के दौरान गठबंधन के सभी घटक, जिनमें वे स्वयं, संजय चौहान, केशव देव मौर्य और अन्य शामिल हैं, एक मंच पर दिखाई देंगे.
कनिष्ठ सहयोगियों द्वारा व्यक्त की गई नाराजगी को ‘अल्पकालिक’ बताते हुए एसबीएसपी प्रमुख ने पूछा, ‘छोटे दल कहां जाएंगे?’ यह कहते हुए कि मीडिया रिपोर्टों के बावजूद कि खान सपा नेतृत्व से परेशान थे, वह राज्यसभा चुनाव के लिए सपा के दिग्गज आज़म खान के साथ आए थे. राजभर ने विश्वास जताया कि 23 जून को आजमगढ़ और रामपुर में लोकसभा उपचुनाव से पहले ऐसा ही होगा.
शिवपाल अपने दम पर लड़ेंगे निकाय चुनाव
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया (पीएसपी-एल) ने बुधवार को जिलाध्यक्षों, मंडल प्रभारियों और अन्य फ्रंटल नेताओं की बैठक के बाद जारी एक बयान में कहा कि अपने पुराने अनुभवों से सबक लेते हुए वह नगर निकाय चुनाव अपने दम पर लड़ेंगे.
पार्टी प्रमुख शिवपाल यादव ने कहा कि उन्होंने खुले दिल से सपा के साथ गठबंधन किया था, लेकिन जवाब में पार्टी ने उनकी की पीठ में छुरा घोंपा. इसी का नतीजा है कि सपा विपक्ष में बैठी है. पीएसपी-एल समाजवाद और राष्ट्रवाद के सिद्धांतों के साथ आगे बढ़ेगा. किसी को भी राम के नाम पर विभाजन और नफरत की राजनीति करने की इजाजत नहीं है.
शिवपाल ने इससे पहले दिप्रिंट को बताया था कि इस साल की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाले विपक्षी नेता होने के बावजूद उन्हें सपा में कोई स्वीकृति नहीं मिली. जसवंतनगर से राज्य विधानसभा के लिए चुने गए, 26 मार्च को नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक में सपा द्वारा उन्हें आमंत्रित न किए जाने के बाद से वह कथित तौर पर परेशान हैं. शिवपाल अपनी पार्टी से टिकट पाने वाले एकमात्र व्यक्ति थे और उन्होंने सपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा था.
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