लखनऊ: दो पूर्व सांसद, एक मिस इंडिया रनर-अप, एक कथित गैंगस्टर की पत्नी—उत्तर प्रदेश में इस सप्ताह होने वाले पंचायत चुनाव मैदान में उतरे कई हाई-प्रोफाइल उम्मीदवारों के कारण ध्यान आकर्षित कर रहे हैं.
चार चरण के पंचायत चुनाव 15 अप्रैल से शुरू होंगे, जिसके नतीजे 2 मई को आएंगे.
पंचायत चुनाव प्रत्याशियों में चार बार सांसद और तीन बार विधायक रहे समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता 70 वर्षीय राम सागर रावत शामिल हैं, जो बाराबंकी के सिद्धौर क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं.
फतेहपुर सीकरी से सांसद रह चुकी सीमा उपाध्याय हाथरस से मैदान में हैं.
2015 मिस इंडिया प्रतियोगिता में रनर-अप रहीं मॉडल दीक्षा सिंह ने जौनपुर से नामांकन दाखिल किया है. वह पहली बार राजनीति में किस्मत आजमा रही हैं.
जौनपुर के ही एक अन्य वार्ड में ‘गैंगस्टर से राजनेता’ बने धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला मैदान में उतरी हैं.
और, रविवार तक उन्नाव दुष्कर्म कांड में दोषी पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की पत्नी संगीता सेंगर भी मैदान में थीं, लेकिन इसे लेकर हो रही आलोचना के बाद भाजपा ने उनका नाम वापस ले लिया.
पंचायत स्तर के चुनाव में उम्मीदवार बतौर निर्दलीय मैदान में उतरते हैं. यूपी राज्य चुनाव आयोग के अधिकारियों ने बताया कि पंचायत चुनाव पार्टी के आधार पर नहीं लड़े जाते हैं, लेकिन साथ ही बताया कि यदि पार्टियां चाहें तो कुछ उम्मीदवारों के लिए अपने समर्थन की घोषणा कर सकती हैं.
उदाहरण के तौर पर सेंगर को भाजपा और रावत को समाजवादी पार्टी (सपा) ने समर्थन दे रखा था.
यद्यपि पंचायत चुनावों को कभी राजनीतिक कैलेंडर में बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती थी लेकिन अब विभिन्न राजनीतिक दल इस पर खास ध्यान दे रहे हैं क्योंकि वे अपना ग्रामीण आधार मजबूत करना चाहते हैं.
उदाहरण के तौर पर भाजपा की तरफ से राज्य के कैबिनेट मंत्रियों और सभी वरिष्ठ नेताओं से इसके लिए प्रचार करने को कहा गया है, वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय लल्लू ने इन्हें ‘पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण’ बताते हुए खुद मोर्चा संभाल लिया है.
पंचायत चुनावों की बढ़ती अहमियत के बारे में पूछे जाने पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पार्टियां इन्हें अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ‘सेमीफाइनल’ के रूप में देख रही हैं. उन्होंने आगे कहा कि कई अन्य कारण भी है, उदाहरण के तौर पर सोशल मीडिया का असर, जिसने पंचायत स्तर की राजनीति के लिए भी कई सेलिब्रिटी का आगे आना सुनिश्चित किया है.
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‘गांव खुश तो, देश खुशहाल’
यूपी भाजपा के प्रवक्ता हरीश श्रीवास्तव ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि ‘बहुत बड़ी आबादी गांवों में रहती है.’ उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण यह है कि अगर गांव खुश हैं, तो पूरा देश खुशहाल होगा. इसलिए ये पंचायत चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं…क्योंकि यह लोगों की आवाज मुखर करता है.’
उन्होंने कहा, ‘यह उन्हें तमाम तरीकों से सशक्त बनाता है, इसलिए हमने इन पंचायत चुनावों में अपनी पूरी जान लगा दी है. हम ग्रामीणों के लिए केंद्र और यूपी सरकार की योजनाओं के बारे में मतदाताओं को बताएंगे.’
यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय लल्लू ने कहा कि वे पंचायत चुनावों के मद्देनजर ‘हर रोज 8 से 9 जनसभाएं’ कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘यह चुनाव हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यह ग्राम पंचायत स्तर पर हमारे संगठन को मजबूत करने में भी मदद करेगा.’
सपा के वरिष्ठ नेता अभिषेक मिश्रा ने भी इस तरह की राय जाहिर करते हुए कहा कि ये सर्वेक्षण ‘ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत’ करेंगे.
लखनऊ यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर कमल कुमार के अनुसार, पंचायत चुनाव ‘नई सुगबुगाहट’ का विषय है.
उन्होंने कहा, ‘यह पंचायत चुनाव विधानसभा चुनाव से पहले अपनी (उम्मीदवारों की) सारी ताकत दिखाने का एक मंच बन गया है. अगर आप पंचायत चुनावों में उतरे हाई-प्रोफाइल नामों की पृष्ठभूमि देखें हैं, तो उनमें से ज्यादातर राजनीतिक परिवारों से संबंध रखते हैं.
उन्होंने कहा, ‘ये परिवार किसी भी तरह अपनी राजनीतिक पार्टी को अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं. एक और कारण यह है कि इन दिनों सोशल मीडिया के बढ़ते असर के कारण पंचायत चुनाव भी ग्लैमरस हो गए हैं. उदाहरण के तौर पर आज एक जिला पंचायत अध्यक्ष या ब्लॉक प्रमुख भी किसी विधायक या सांसद से कम लोकप्रिय नहीं हैं. उनकी समर्थकों की तरफ से खूब आवभगत की जाती है, उनके पास कई शक्तियां भी होती हैं.’
लखनऊ के राजनीतिक टिप्पणीकार प्रो. कविराज बताते हैं कि पंचायत चुनावों के संचालन में एक खास बदलाव आया है. उन्होंने कहा, ‘इस बार ज्यादातर राजनीतिक दल आधिकारिक रूप से उम्मीदवारों के नाम जारी कर रहे हैं. पहले ऐसा बहुत कम होता था. वे इसे 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए सेमीफाइनल मान रहे हैं. ये चुनाव गांव का मिजाज तय करेंगे. यह विपक्ष के लिए भी एक अच्छा अवसर है. उन्हें 2022 के चुनावों के लिए कुछ उम्मीदवार मिल सकते हैं जो इन पंचायत चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करेंगे.’
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वे चुनाव क्यों लड़ रहे हैं
1989, 1991, 1996 और 1999 में बाराबंकी लोकसभा सीट से चुनाव जीतने वाले रावत 2004 और 2019 में फिर यहां से चुनाव मैदान में उतरे लेकिन हार गए. ये सपा नेता इस बार बाराबंकी के सिद्धौर क्षेत्र से पंचायत चुनाव लड़ रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं बचपन से ही गांवों के लिए कुछ करना चाहता था. ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में समय बिताता हूं, और इसीलिए पंचायत चुनाव लड़ रहा हूं. एक और कारण यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी का आधार मजबूत करना है.’
एक निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहीं सीमा उपाध्याय अपनी भाभी रितु उपाध्याय के खिलाफ मैदान में हैं, जिन्हे भाजपा का समर्थन हासिल है.
सीमा के पति रामवीर उपाध्याय एक बसपा विधायक हैं, जो पूर्ववर्ती मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं, लेकिन माना जा रहा है कि अब पार्टी के साथ उनके रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं.
मिस इंडिया 2015 की रनर-अप दीक्षा सिंह, एक और निर्दलीय उम्मीदवार हैं, जो जौनपुर में वार्ड नंबर 26 से जिला पंचायत सदस्य के रूप में चुनाव लड़ रही है. यह पूछे जाने पर कि वह क्यों चुनाव लड़ रही हैं, दीक्षा ने पिछले हफ्ते मीडियाकर्मियों से कहा कि उन्हें अपने गृहनगर के लिए कुछ करने की जरूरत महसूस हो रही थी. जौनपुर जिला विकास से कोसों दूर है. इसलिए, मैं पंचायत चुनाव लड़ने के लिए मैदान में हूं, ताकि कुछ बदलाव ला सकूं.
श्रीकला ने जौनपुर जिले के वार्ड नंबर 45 से अपना नामांकन दाखिल किया है. वह अगस्त 2019 में तेलंगाना में भाजपा में शामिल हुई थीं लेकिन निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रही हैं. मऊ ब्लॉक के पूर्व अध्यक्ष अजीत सिंह की हत्या में कथित भूमिका को लेकर वांछित रहे उनके पति धनंजय ने पिछले महीने आत्मसमर्पण कर दिया था.
मैदान में उतरे अन्य उम्मीदवारों में बसपा विधायक असलम चौधरी की पत्नी नसीम बेगम, भाजपा नेता नरेश अग्रवाल के भाई मुकेश अग्रवाल और सपा विधायक राजू यादव की पत्नी वंदना यादव शामिल हैं.
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