scorecardresearch
Wednesday, 8 May, 2024
होमराजनीतिमायावती के गठबंधन न करने के पीछे है सोची-समझी रणनीति, 'एकला चलो' से खुद की करेंगी री-ब्रांडिंग

मायावती के गठबंधन न करने के पीछे है सोची-समझी रणनीति, ‘एकला चलो’ से खुद की करेंगी री-ब्रांडिंग

हालांकि, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का मानना है कि यह मायने नहीं रखता कि मायावती की बीएसपी क्या फैसला लेती है क्योंकि पार्टी '2022 यूपी विधानसभा चुनाव की दौड़ में शामिल नहीं है'.

Text Size:

लखनऊ : बीएसपी प्रमुख मायावती ने हाल ही में ऐलान किया कि वे अब किसी भी दल से गठबंधन नहीं करेंगी. उन्होंने कहा कि ये बात न सिर्फ यूपी के लिए बल्कि पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु व पुडुचेरी सहित हर चुनावी राज्य पर लागू होगी. मायावती के इस ऐलान के पीछे की वजह ये बताई कि बीएसपी का वोट तो दूसरे दलों में ट्रांसफर हो जाता है लेकिन दूसरे दलों का वोट बीएसपी में ट्रांसफर नहीं होता. हालांकि पार्टी के नेताओं का कहना है कि ‘एकला चलो’ वाली रणनीति के पीछे तमाम कारण हैं.

बीएसपी नेताओं के मुताबिक, पार्टी ने पिछले 5 साल में तमाम दलों से गठबंधन का एक्सपीरियंस ले लिया है जिससे कोई विशेष फायदा नहीं हुआ, बल्कि कुछ हद तक उसका कोर वोट भी प्रभावित हुआ. इसके अलावा कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों ने बीएसपी को भाजपा का इनडायरेक्ट लाभ पहुंचाने वाला दल भी करार दे दिया. ऐसे में पार्टी ने खुद को रिवाइव करने के लिए एकला चलो वाला फॉर्मुला अपनाया है. अब न तो पार्टी सपा, कांग्रेस या बीजेपी के साथ गठबंधन करेगी और न ही ओवैसी, राजभर के छोटे दलों को समर्थन देगी.

बीएसपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया का कहना है, ‘यूपी, बिहार व कर्नाटक समेत तमाम राज्यों में पार्टी ने गठबंधन करके देख लिया जिससे कोई विशेष लाभ नहीं हुआ. इसी कारण बहन जी (मायावती) ने घोषणा कि अब कोई गठबंधन नहीं करना. यूपी चुनाव पर विशेष तौर पर हमारा फोकस है. संगठन पूरी तरह से तैयार हो गया है. बूथ व जोन स्तर पर भी कमेटियां बन गई हैं और मीटिंग्स भी शुरू हो गई हैं. पूरा फोकस एकजुट होकर अकेले दम पर सारे चुनाव लड़ने का है.’


यह भी पढ़ें : ‘धार्मिक ब्लैकमेल’, FDI पर लेक्चर- सपा के प्रशिक्षण शिविरों में चल रही बूथ स्तर पर BJP से मुकाबले की तैयारी


बीएसपी के एलायंस का रहा है पुराना इतिहास

यूपी में बीएसपी ने सभी दलों के साथ प्री-पोल या पोस्ट पोल एलायंस का अनुभव कर चुकी है. 1993 में यूपी में बीजेपी की बढ़ती ताकत को देखते हुए मुलायम सिंह व काशीराम एक हो गए जिससे बीजेपी चुनाव हार गई. मायावती पहली बार सीएम बन गईं. इसके बाद 1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद मायावती ने समर्थन वापस ले लिया जिससे समाजवादी पार्टी की सरकार गिर गई. इसके बाद बीजेपी, कांग्रेस व जनता पार्टी के समर्थन से वह मुख्यमंत्री बन गईं. 1996 का चुनाव उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा लेकिन किसी को बहुमत नहीं मिला तो राष्ट्रपति शासन लागू हो गया जिसके बाद 1997 में मायावती ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली और वे दूसरी बार सीएम बन गईं.

इसके बाद 2002 में चुनाव बाद मायावती ने बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन 2003 में ही ये सरकार गिर गई. 2019 लोकसभा में गठबंधन पॉलिटिक्स में लौटते हुए मायावती ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन का ऐलान किया. इसमें बीएसपी की 10 सीटें आईं और समाजवादी पार्टी सिर्फ 5 सीटें ही जीत पाई जिसके बाद मायावती ने ये गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया. यूपी के अलावा बिहार में बसपा उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी, कर्नाटक में जेडीएस के साथ भी गठबंधन कर चुना लड़ चुकी है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर व दलित पॉलिटिक्स के ऑब्जर्वर प्रोफेसर कालीचरण स्नेही के मुताबिक, मायावती का ये फैसला अपने कोर वोट को ध्यान में रखते हुए लिया गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में कभी यादव व दलितों के बीच तो कभी ठाकुर व ठाकुर व दलितों के बीच तमाम विवादों की खबरें आती हैं. ऐसे में बीएसपी का सपा या बीजेपी के साथ गठबंधन प्रैक्टिकली बहुत सक्सेसफुल कभी नहीं हो सकता है क्योंकि बहन जी के कोर वोटर्स को दूसरे दलों के कोर वोटर सामाजिक तौर पर दिल से एक्सेप्ट नहीं कर सकते तो फिर गठबंधन का क्या फायदा. ऐसे में अपना कोर वोट तो बीएसपी को संभालकर रखना चाहिए अगर उसे सर्वाइव करना है. किसी से गठबंधन न करके निश्चित तौर पर वे अपने कोर वोटर्स को व संगठन को भी ज्यादा समय दे पाएंगी जो कि उनके व उनकी पार्टी दोनों के लिए ठीक है. इससे ये है कि अगर वह अधिक प्रॉफिट में नहीं भी रहें तो कम से कम लॉस में भी नहीं रहेंगे.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक मिश्रा के मुताबिक, ‘2022 की लड़ाई यूपी में बीजेपी बनाम सपा है.’

वह आगे कहते हैं, ‘बहन जी (मायावती) क्या कर रही है किसी का कोई ध्यान नहीं. वही रही बात वोट ट्रांसफर की तो सपा का वोट बीएसपी में ट्रांसफर हुआ, तभी तो उनकी लोकसभा में 10 सीटें आईं लेकिन उनका वोट सपा में ट्रांसफर नहीं हुआ.’

वहीं यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता अंशू अवस्थी के मुताबिक, ‘मायावती अब चाहे अकेले लड़ें या गठबंधन करके जनता उनके बारे में नहीं सोच रही क्योंकि वो इनडायरेक्टली बीजेपी का फायदा ही पहुंचा रही हैं.’

2022 के लिए स्लोगन व हैशटैग भी तैयार

बीएसपी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक पार्टी का फोकस 2022 से पहले खुद को यूपी के बड़े दल के तौर पर री-इस्टैब्लिश करने का है. इसके लिए प्लान भी तैयार हो गया है. मायावती ने कोरोना वैक्सीन लगवाने के बाद लखनऊ में रहकर मीटिंग्स लेना शुरू कर दिया है. कोविड फेज़ में वे अधिकतर समय दिल्ली में ही रहीं, अब लखनऊ रहकर ही प्लानिंग करेंगी. पार्टी के एक नेता के मुताबिक, पार्टी ने पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सदस्य के लिए प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर ली है. इसके अलावा ‘बहन जी फिर से’,’ एक नेता, एक पार्टी, एक मिशन’ जैसे स्लोगन तैयार हो गए हैं जिनको पोस्टर्स के जरिए लॉन्च किया जाएगा. इस के अलावा ‘बसपा रोकेगी अत्याचार’ (बदहाल कानून व्यवस्था को लेकर) जैसे तमाम हैशटैग भी शुरू किए हैं. वरिष्ठ नेता के मुताबिक, हम लोग सोशल मीडिया पर थोड़ा कमजोर जरूर हैं लेकिन तमाम प्रो-दलित यू-ट्यूब चैनल व सोशल मीडिया अकाउंट्स के माध्यम से अपनी प्रेजेंस मजबूत करने में जुटे हैं. वहीं मायावती खुद भी ट्विटर पर एक्टिव हैं.

बीएसपी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने 2022 यूपी चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. ब्लॉक स्तर पर पार्टी के सम्मेलन भी शुरू हो गए हैं. प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को इन सम्मेलनों की जिम्मेदारी दी गई है. पार्टी का 2022 से पहले पंचायत चुनाव पर भी फोकस है. यही कारण है कि अभी ग्रामीण क्षेत्रों में बीएसपी नेता छोटी-छोटी जनसभाएं कर रहे हैं. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, ‘छोटी सभाएं करने से कनेक्टिविटी भी ज्यादा रहती है साथ ही कोविड गाइडलाइन्स के उल्लंघन के आरोप भी नहीं लग सकते. भले ही मीडिया व सोशल मीडिया पर इन सभाओं की तस्वीरें नहीं दिखतीं लेकिन हर जिले में ये मीटिंग्स शुरू हो गई हैं. साथ ही दलित चेतना से जुड़ा लिटरेचर भी बांटा जा रहा है. हम सब का लक्ष्य एक बार फिर बहन जी को सीएम बनाना है. मेन स्ट्रीम मीडिया का एक बड़ा तबका हमारी ताकत को नहीं मानता है लेकिन हम उन्हें एक बार फिर गलत साबित कर देंगे, हमने तैयारी शुरू कर दी है.’

जिलेवार ब्राह्मण सम्मेलन की भी तैयारी

पार्टी से जुड़े एक पदाधिकारी के मुताबिक, बीएसपी 2007 के फॉर्मुले पर ही 2022 का चुनाव लड़ेगी. दलित, मुस्लिम के साथ-साथ ब्राह्मणों पर विशेष फोकस रहेगा. इस बार पार्टी ब्राह्मणों को टिकट भी खूब देगी. इसके अलावा जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन कराने की तैयारी है. पदाधिकारी का कहना है कि पिछले साल कोरोना के कारण ये सम्मेलन नहीं हो पाए थे लेकिन इस बार मध्य व पूर्वी यूपी के हर जिले में ऐसे सम्मेलन कराने की तैयारी है. पार्टी के सीनियर लीडर सतीश चंद्र मिश्रा व सांसद रितेश पांडे को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है.


यह भी पढ़ें : UP में मायावती की कम सक्रियता से दलित वोट बैंक पर सब की नज़र, अठावले ने BJP से मांगी 10 सीट


 

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. सपा और बसपा दोनों जातीवादी पार्टियाँ हैं जो अपने अपने जाति के वोटरों को लामबन्द करते हैं | इस प्रकार वोटों का विभाजन होने से भा ज पा की जीत
    सुनिश्चित हो जाती है | इसीलिए मोदी जी इन पर लालूप्रसाद यादव जी की तरह हाथ नहीं डालते और अपना हित साधते हैं |

Comments are closed.