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Thursday, 14 November, 2024
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उमा भारती अकेली नहीं, भाजपा में बढ़ रही है OBC महिला आरक्षण की मांग- पार्टी के लिए चिंता की बात

महिला आरक्षण बिल में ओबीसी के लिए 'कोटे के भीतर कोटा' की विपक्ष द्वारा उठाई गई मांग को कई भाजपा नेताओं द्वारा सहयोग मिला. जिसके बाद पीएम मोदी ने 'नारी शक्ति को बांटने की कोशिश' की आलोचना की.

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नई दिल्ली: महिला आरक्षण विधेयक लाने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने का भाजपा का दांव, जिसकी नजर साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों पर है, ने पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है.

अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए “कोटा के भीतर कोटा” की विपक्ष द्वारा उठाई गई मांग को मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, जो स्वयं एक ओबीसी नेता हैं, सहित कई भाजपा नेताओं ने इसका समर्थन किया हैं.

नेताओं में ओबीसी सांसद संघमित्रा मौर्य (लोकसभा, बदांयू निर्वाचन क्षेत्र), संगीता यादव (राज्यसभा, उत्तर प्रदेश), कल्पना सैनी (राज्यसभा, उत्तराखंड) और केशरी देवी पटेल (लोकसभा, फूलपुर) शामिल हैं.

नया बिल, जिसे आधिकारिक तौर पर नारी शक्ति वंदन अधिनियम कहा जाता है, संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण प्रदान करता है.

संविधान में लोकसभा और राज्य में ओबीसी आरक्षण के लिए कोई प्रावधान नहीं है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि “सांसद वर्तमान में 3 श्रेणियों में चुने जाते हैं – सामान्य, एससी, एसटी… हमने [सरकार ने] उनमें से प्रत्येक में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की हैं.”

दिप्रिंट से बात करते हुए, उपरोक्त सांसदों ने कहा कि मोदी सरकार महिला आरक्षण बिल के तहत ओबीसी कोटा प्रदान करने की आवश्यकता से अवगत है, और कहा कि समुदाय को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

ओबीसी के लिए बढ़ती आवाज ने भाजपा को भी थोड़ा शांत कर दिया है, पार्टी नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि ओबीसी महिलाओं के आरक्षण के लिए विपक्ष के अभियान के प्रभाव को कम नहीं समझना चाहिए.

आरक्षण से पहले जाति जनगणना कराने की विपक्ष की मांग ने उनकी दुविधा को और बढ़ा दिया है.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले संसद का विशेष सत्र 18-23 सितंबर तक आयोजित किया गया था.

भाजपा छत्तीसगढ़ और राजस्थान में वापसी करना चाहती है, और साथ ही तेलंगाना में बढ़त हासिल करना चाहती है.

महिला आरक्षण बिल के साथ, भाजपा की नजर चुनाव से पहले महिला मतदाताओं तक पहुंच बनाने की है.

इस बीच, कांग्रेस ओबीसी महिलाओं के आरक्षण के मुद्दे को तेज़ करने की कोशिश कर रही है ताकि वह ओबीसी वोट दोबारा हासिल कर सके जो पार्टी ने पिछले कुछ वर्षों में “मंडल पार्टियों” के कारण खो दिया है.

कांग्रेस ने पूरे भारत में इस मुद्दे को उजागर करने के लिए एक दर्जन से अधिक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने का निर्णय लिया है.

महिला आरक्षण विधेयक के यूपीए संस्करण में ओबीसी के लिए कोटा जोड़ने में कांग्रेस की विफलता पर भाजपा द्वारा सवाल उठाए जाने पर सांसद और पूर्व पार्टी प्रमुख राहुल गांधी ने कहा है कि उन्हें खेद है कि वे ऐसा नहीं कर सके.


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ओबीसी कोटा पर विचार

इस हफ्ते की शुरुआत में, पीएम नरेंद्र मोदी की सोमवार को मध्य प्रदेश यात्रा से पहले, उमा भारती ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि पीएम महिला आरक्षण बिल के तहत ओबीसी के लिए कोटा तय करने के बारे में सकारात्मक संकेत देंगे.

उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन करके ओबीसी महिलाओं के लिए कोटा शामिल किया जाना चाहिए, और अगर उन्हें इस दायरे में शामिल नहीं किया गया तो एक अभियान शुरू करने की धमकी दी.

इस दौरान संघमित्रा मौर्य ने कहा कि “ओबीसी महिलाओं को भूलया नहीं जा सकता.”

उन्होंने कहा, “जो महिलाएं ओबीसी से हैं, उनके न्यायसंगत प्रतिनिधित्व के लिए बिल में शामिल किया जाना चाहिए. पिछड़ी महिलाओं का संघर्ष ऊंची जाति की महिलाओं से अलग है.”

संघमित्रा पांच बार के विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं, जो अब समाजवादी पार्टी का हिस्सा हैं और ओबीसी महिला आरक्षण के लिए अभियान का सक्रिय समर्थन कर रही है.

सांसद संगीता यादव ने कहा, ”महिला आरक्षण विधेयक पारित करना महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में पहला कदम है.”

उन्होंने कहा, “यह 27 वर्षों से लंबित था. पीएम मोदी ने इसे पास करने का साहस दिखाया है. दूसरा कदम ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण है. प्रधानमंत्री ने एससी और एसटी महिलाओं को (बिल में) शामिल किया है, और अब वे ओबीसी को भी शामिल करने के तरीके के बारे में सोच रहे होंगे.”

कल्पना सैनी ने कहा, “कोई भी पार्टी ओबीसी आबादी को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती.”

उन्होंने कहा, “लेकिन [ओबीसी महिलाओं के लिए कोटा] केवल संवैधानिक संशोधन के माध्यम से किया जा सकता है क्योंकि यह एक संवैधानिक मुद्दा है. बिल लंबे समय से लंबित था. पहली प्राथमिकता पहला कदम उठाना था. सरकार को [ओबीसी कोटा] पर विचार करना चाहिए क्योंकि प्रधानमंत्री इस मुद्दे के हर पहलू को जानते हैं.”

केसरी देवी पटेल ने कहा कि ओबीसी “समाज में एक बड़ा निर्वाचन क्षेत्र है”.

उन्होंने कहा, ”वे आरक्षण से वंचित नहीं रह सकते. हमने महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में पहला कदम हासिल कर लिया है. अब अगला कदम जनगणना और आरक्षण में ओबीसी महिलाओं का प्रतिनिधित्व है, और सरकार भी इस मुद्दे से अवगत है.”

यहां तक कि एनडीए सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल – जिनकी पार्टी को ओबीसी से समर्थन प्राप्त है – ने लोकसभा में कहा कि “महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी कोटा रखने की विपक्ष की मांग को गलत नहीं कहा जा सकता”.

महिलाओं के लिए प्रस्तावित कोटे के भीतर ओबीसी आरक्षण की मांग 1996 में संसद में विधेयक का पहला मसौदा पेश किए जाने के बाद से ही हो रही है.

उस समय, बिल की जांच करने वाली गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति ने आवश्यक संवैधानिक प्रावधान किए जाने के बाद उप-कोटा जोड़ने का सुझाव दिया था.

बीजेपी क्यों परेशान है

भाजपा पिछले दो दशकों में संगठन और सत्ता-साझाकरण संरचना के माध्यम से ओबीसी को सशक्त बनाकर हिंदुत्व के तहत पिछड़े वर्गों को आत्मसात करने में काफी सफल रही है.

विशेष सत्र के दौरान विपक्ष को जवाब देते हुए, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यूपीए बिल में ओबीसी कोटा की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया, साथ ही भाजपा ने यह भी कहा कि उसने एक ओबीसी प्रधानमंत्री बनाया और उनके कई मंत्री और सांसद इस समुदाय से हैं.

हालांकि, विपक्ष के अभियान के संभावित प्रभाव को लेकर भाजपा में चिंता है और इस मुद्दे को पीएम मोदी ने सोमवार को भोपाल में अपने भाषण में उठाया था.

एक रैली को संबोधित करते हुए, मोदी ने मतदाताओं को चेतावनी देने की कोशिश की कि विपक्ष “नारी शक्ति को विभाजित करने की कोशिश की जाएगी.” उन्होंने कहा, ”मैं आपको बताना चाहता हूं. वे निश्चित रूप से एक नया खेल खेलेंगे, वे नहीं चाहते कि महिलाएं एकजुट हों.”

पार्टी की दुविधा के बारे में बात करते हुए, मध्य प्रदेश के बीजेपी ओबीसी सांसद ढाल सिंह बिसेन ने कहा कि ओबीसी आरक्षण “जनगणना के बिना” संभव नहीं है.

उन्होंने कहा, “राजनीतिक दल इस बात पर हंगामा मचाएंगे कि पर्याप्त आरक्षण नहीं दिया गया.” उन्होंने कहा कि कांग्रेस “महिलाओं के ओबीसी आरक्षण के बारे में एक कहानी बनाकर चुनाव प्रचार में ओबीसी मतदाताओं को गुमराह कर सकती है.”

राजस्थान से बीजेपी के एक सांसद, जो कि ओबीसी भी हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी “विधानसभा चुनाव से पहले महिला मतदाताओं को एकजुट करने के लिए महिला विधेयक को पारित करने का इस्तेमाल कर रही है.”

उन्होंने कहा, “हमें हिंदुत्व परियोजना के माध्यम से पिछड़ी जातियों के मतभेदों को अपना तरफ करने में सफलता मिली है, लेकिन जाति जनगणना और महिला विधेयक पर कांग्रेस का अभियान ओबीसी और ओबीसी महिलाओं के बीच भाजपा की मजबूत सामाजिक पैठ में सेंध लगाने का एक गेमप्लान है. ओबीसी-प्रभुत्व वाले निर्वाचन क्षेत्रों में यह मुख्य चिंता है – सबसे पहले जाति जनगणना की अनुमति नहीं देना और दूसरा, ओबीसी महिलाओं को कोटा से बाहर रखना प्रतिकूल हो सकता है.”

नेता ने कहा, “यहां तक कि पुरुष ओबीसी मतदाता भी इस कहानी से प्रभावित हो सकते हैं.”

“यह सच है, हमारा संगठनात्मक ढांचा, संचार और प्रधानमंत्री की आवाज़ विपक्ष की तुलना में बहुत मजबूत है, लेकिन विपक्ष की ताकत को कम नहीं समझना चाहिए.”

भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा कि “जाति जनगणना एक पेंडोरा बॉक्स है जिसे विपक्ष ओबीसी के लिए राजनीतिक आरक्षण के लिए आधार बनाने पर जोर दे रहा है.”

“अगर महिलाओं को शामिल कर लिया जाए तो पुरुष भी आरक्षण की मांग करने लगेंगे. संविधान लिंग-समान कोटा अनिवार्य करता है. यह समाज में असमानता का एक और दौर पैदा करेगा, इसलिए इससे दूरी बनाई गई है.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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