scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमराजनीति‘बहुत खून बहा है’, त्रिपुरा में कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन पर पुरानी राजनीतिक लड़ाई का साया

‘बहुत खून बहा है’, त्रिपुरा में कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन पर पुरानी राजनीतिक लड़ाई का साया

कांग्रेस और वाममोर्चा दोनों का कहना है कि एक साझा दुश्मन होने के कारण दो पारंपरिक राजनीतिक विरोधियों को एक साथ ला दिया है, लेकिन नेताओं के बीच मेलजोल हमेशा पार्टी कार्यकर्ताओं पर हावी नहीं होता है.

Text Size:

खैरपुर/मजलिसपुर: इस महीने होने वाले त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे की घोषणा के बाद कांग्रेस और वाममोर्चा दोनों पार्टियों का कहना है कि ‘एक साझा दुश्मन’ होने का कारण ही दोनों पार्टियों साथ आई है. पूर्व मुख्यमंत्री और माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य माणिक सरकार जैसे नेता संयुक्त रैली और प्रेस कांफ्रेंस कर चुके हैं लेकिन गठबंधन को गठबंधन कहने से बचते रहे हैं.

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बिरजीत सिन्हा ने इस गठबंधन को कट्टर प्रतिद्वंद्वियों के बीच एक ‘समझौता’ बताया है.

उन्होंने कहा, ‘जमीन पर भी खामियां हैं और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘लक्ष्मण रेखा’ जिसे किसी भी पार्टी द्वारा पार नहीं किया जा सकता है.’

बनमालीपुर के एक किराने की दुकान के मालिक अनिमेष पॉल ने कहा इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार गोपाल राय बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष राजीब भट्टाचार्य के खिलाफ मैदान में हैं. उन्होंने कहा, ‘पुराने कांग्रेसी वाम मोर्चे को वोट नहीं दे सकते. बहुत ज्यादा खून बह चुका है. मेरे परिवार ने वाम मोर्चे के हाथों मौत और बर्बादी देखी है. मेरे जैसे परिवार उस पर कैसे काबू पा सकते हैं? भाजपा की वास्तविकता यह है कि उन्होंने केवल पिछले दस महीनों में ही काम किया है या जब से नए मुख्यमंत्री (माणिक साहा ने पिछले साल मई में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के रूप में बिप्लब देब की जगह मुख्यमंत्री की शपथ ली थी) आए हैं.’

नाराजगी पार्टी पदानुक्रम के निचले पायदान तक ही सीमित नहीं है.

तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पीयूष कांति बिस्वास दिसंबर 2022 में तृणमूल में शामिल हुए थे. वह कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष थे. उन्होंने कहा, ‘मैंने कुछ समय पहले कांग्रेस छोड़ दी थी और ऐसा इसलिए क्योंकि वाम मोर्चे के साथ गठबंधन को लेकर सुगबुगाहट पहले ही शुरू हो गई थी. मैं इससे निपट नहीं सकता था. शुरू में मैंने सोचा था कि मैं राजनीति छोड़ दूंगा, लेकिन मैं यहां हूं.’ बिस्वास ने 2021 में कांग्रेस छोड़ दी थी.

खायरपुर निर्वाचन क्षेत्र में खारची मंदिर के सामने यात्रियों की प्रतीक्षा कर रहे ऑटो रिक्शा चालक अजॉय डे से चुनाव के बारे में पूछे जाने पर मुंह फेर लेते हैं.

वो कहते हैं, ‘मुझे राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. मैंने राजनीति छोड़ दिया है. यह बहुत गंदा है.’ जोर देकर पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘मैं वर्षों से कांग्रेस का कार्यकर्ता था. 30 साल के वामपंथी शासन में हमें पीटा गया और प्रताड़ित किया गया. अब मैं कैसे वापस जा सकता हूं और उन्हीं लोगों के साथ मिलकर काम कर सकता हूं?’

खैरपुर में माकपा उम्मीदवार पबित्रा कार का मुकाबला भाजपा नेता और राज्य विधानसभा अध्यक्ष रतन चक्रवर्ती से है.

अजॉय डे की बात का कई कांग्रेस समर्थक समर्थन करते हैं.  

रत्नेश्वर रक्षित सरकारी नौकरी करते थे, लेकिन अदालत में मामला लंबित होने के कारण उन्हें पेंशन नहीं मिलती थी. वह अब छतरपुर में एक प्लास्टिक की दुकान पर 4,000 रुपये प्रति माह की मामूली मजदूरी पर काम करते हैं.

वो कहते हैं, ‘मुझे नौकरी कांग्रेस सरकार ने दी थी. और अब बीजेपी ने मुझे स्टाइपेंड दिया है. लेफ्ट ने मुझे कभी कुछ नहीं दिया. मैं कांग्रेस पार्टी का कार्डधारक सदस्य हूं. लेकिन इस बार मैं भाजपा को वोट दूंगा क्योंकि यहां कांग्रेस को दिया गया वोट मुख्य रूप से वाम मोर्चे को दिया गया वोट है.’


यह भी पढ़ें: ‘अनुकुलचंद्र कैंटीन’, त्रिपुरा के लिए BJP के घोषणापत्र में झारखंड के धर्म गुरु के नाम पर योजना क्यों


‘कट्टर प्रतिद्वंद्वी एक साथ आए’

वाम दलों के साथ गठजोड़ के बारे में बात करते हुए, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बिरजीत सिन्हा ने कहा, ‘लोकतंत्र को बचाने के लिए तथा राज्य का हित देखते हुए दो कट्टर प्रतिद्वंद्वी एक साथ आए हैं’.

उन्होंने कहा: ‘कांग्रेस पार्टी ने 30 वर्षों से इस राज्य में सत्ता का स्वाद नहीं चखा है. हमारे कार्यकर्ता इस बात को समझते हैं. आप केवल कुछ कार्यकर्ताओं को ही देखेंगे जो गठबंधन की आलोचना करते हैं. गलतफहमियां थीं, लेकिन अब वे दूर हो गई हैं. यह कि कार्यकर्ता नाखुश हैं, भाजपा द्वारा फैलाया जा रहा है एक ‘गलत सूचना’ मात्र है.’

सिन्हा कैलाशहर से चुनाव लड़ रहे हैं. यहां चुनाव प्रचार के दौरान अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के त्रिपुरा प्रभारी ने सीपीआई (एम) के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी का नाम गठबंधन के सीएम चेहरे के रूप में सामने रखा.

कुछ वामपंथी नेताओं और समर्थकों ने यह भी दावा किया कि कार्यकर्ताओं की बीच असंतोष का होना भाजपा का प्रचार मात्र था. नाम न छापने की शर्त पर रामठाकुर कॉलेज में पढ़ाने वाले एक वामपंथी शिक्षक ने कहा, ‘लोग नाखुश हैं और वे जानते हैं कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है. अतीत की प्रतिद्वंद्विता कोई मायने नहीं रखेगी.’

एक दिलचस्प बात यह भी है कि भाजपा के खिलाफ वामपंथी और कांग्रेस द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा चुनाव प्रचार गीत, भाजपा द्वारा 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाले गीत की तरह ही है. प्रचार वाहनों से ‘ई बीजेपी आर ना, एई जुमला आर ना (यह बीजेपी नहीं, केवल शब्द नहीं)’ के नारे सुनाई दे रहे हैं. पश्चिम बंगाल में, बीजेपी के बजाय तृणमूल शब्द का इस्तेमाल किया गया था, और जिस व्यक्ति ने मूल रूप से गाना गाया था, वह बीजेपी के पूर्व सांसद बाबुल सुप्रियो जल्द ही तृणमूल में शामिल हो गए.

टाउन बरदोवाली में एक सड़क के किनारे बैठक को संबोधित करते हुए, जहां वह वर्तमान मुख्यमंत्री माणिक साहा के खिलाफ लड़ रहे हैं, कांग्रेस नेता आशीष साहा ने गुरुवार को भीड़ को याद दिलाते हुए कहा कि चुनाव से एक साल से कम समय में मुख्यमंत्री को क्यों बदला गया, इस सवाल पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है. 

उन्होंने आरोप लगाया, ‘हमने अतीत में हिंसा और राजनीतिक झड़पें देखी हैं, लेकिन अब जो हो रहा है वह व्यक्तिगत है. सिर्फ विपक्षी पार्टियों पर ही हमले नहीं होते, डॉक्टर, इंजीनियर, व्यापारी किसी को भी नहीं बख्शा जाता. पूरे सरकारी ढांचे का इस्तेमाल पार्टी उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है.’

बाद में दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने दावा किया कि यह हिंसा का मौजूदा माहौल है जिसने लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं को पिछले अत्याचारों को भुला दिया है.

उन्होंने कहा, ‘लोग अतीत में जो हुआ, पुरानी लड़ाई को भूल गए हैं. लोग डरे हुए हैं, वे समझते हैं कि विचारधारा अब कोई मायने नहीं रखती. जो मायने रखता है वह है भाजपा के कुशासन का अंत.’

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘BJP के हिंदुत्व नैरेटिव का मुकाबला’— पेशवा ब्राह्मणों पर क्यों निशाना साधने में लगे हैं कुमारस्वामी


 

share & View comments