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Tuesday, 23 April, 2024
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35 साल बाद पहली बार महाराष्ट्र के इस गांव को अपनी ग्राम पंचायत के लिए ‘मतदान’ करना पड़ा

महाराष्ट्र के एक आदर्श गांव के रूप में ख्यात हो चुके हिवारे बाजार—जिसने पानी की कमी वाली एक अविकसित बस्ती से एक समृद्ध और आत्मनिर्भर गांव बनने का रास्ता तय किया है.

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मुंबई: महाराष्ट्र में 15 जनवरी को 14,234 ग्राम पंचायतों के लिए वोट पड़े लेकिन राज्य के अहमदनगर जिले में स्थित एक गांव के लिए ‘असामान्य घटनाक्रम’ था.

महाराष्ट्र के एक आदर्श गांव के रूप में ख्यात हो चुके हिवारे बाजार—जिसने पानी की कमी वाली एक अविकसित बस्ती से एक समृद्ध और आत्मनिर्भर गांव बनने का रास्ता तय किया है—के स्थानीय निवासियों ने 1985 के बाद पहली बार चुनाव वाले दिन इस तरह वोट डालने के लिए लंबी लाइनें लगाईं.

उन्हें इस बार बदलाव के लिए यह ‘चुनना’ पड़ा.

1990 के चुनावों के समय से ही हिवारे बाजार के लोग एक स्थानीय मंदिर के प्रांगण में आयोजित बैठक में सिर्फ हाथ उठाकर बेहद साधारण तरीके से अपने ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों को चुनते आ रहे थे. वे सर्वसम्मति से ही पोपटराव पवार यानी उस व्यक्ति के नेतृत्व वाले पैनल को चुनते रहे हैं, जिसे गांव की सूरत बदलने का श्रेय दिया जाता है.

इस बार एक स्थानीय स्कूल शिक्षक किशोर सामले ने सर्वसम्मति से अपने प्रतिनिधियों को चुनने की गांव की परंपरा को चुनौती दी और पवार के खिलाफ अपना खुद का पैनल खड़ा कर दिया.

हालांकि, चुनाव के बाद भी जीत पवार के पैनल की ही हुई, जिसने सभी सात सीटों पर बहुमत के साथ सूपड़ा साफ कर दिया और सामले के पैनल को सभी सीटों पर अपनी जमानत राशि गंवानी पड़ी.

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पवार ने कहा, ‘गांव में मुझे और मेरे सहयोगियों को ग्राम पंचायत सदस्यों के रूप में निर्विरोध चुनने की परंपरा रही है. हम हमेशा हाथ उठाकर इस पर फैसला करते आए हैं लेकिन इस साल कुछ लोगों ने सोचा कि यह प्रक्रिया बहुत ही अलोकतांत्रिक है.’

उन्होंने कहा, ‘हमारी तीन दशक पुरानी परंपरा टूट गई, लेकिन मुझे खुशी है कि लोगों ने इस गांव को आकार देने वालों हाथों पर औपचारिक रूप से अपनी मंजूरी पर मुहर लगा दी है.’


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पवार को दिया जाता है सफलता श्रेय

पवार ने 1989 में गांव के सरपंच के रूप में पदभार संभाला था और तबसे लगातार उस पद पर आसीन हैं. कुछ समय जब सरपंच का पद किसी विशेष जाति वर्ग या महिला के लिए आरक्षित किया गया, पवार ने उप सरपंच के पद से गांव की कमान संभाली.

उन्हें 1990 के दशक की शुरुआत से ही कुछ ऐसे कड़े फैसले लेने के लिए जाना जाता है जिससे भयंकर गर्मी के समय में भी इस गांव को हरा-भरा बनाए रखना सुनिश्चित हो सके. गर्मी के समय यहां भूजल स्तर काफी नीचे चला जाता है और बहुत ज्यादा बारिश भी नहीं होती है, ऐसे में हिवारे बाजार के आसपास की सभी बस्तियां पानी की गंभीर कमी से जूझती रहती हैं.

सरपंच के रूप में कार्यभार संभालने के तुरंत बाद पवार ने कुछ वन संरक्षण योजनाओं को लागू किया. इसके अलावा भी कुछ कदम उठाए जिसमें चिह्नित वन क्षेत्रों में मवेशियों के चरने पर रोक, ग्राम विकास योजनाओं में बतौर श्रमिक लोगों को स्वेच्छा ‘श्रमदान’ के लिए प्रोत्साहित करना, जनसंख्या प्रबंधन योजनाओं पर अमल, गन्ने और अनार जैसी ज्यादा पानी की खपत वाली फसलों से दूरी बनाना और गांव की वित्तीय और जल संसाधनों की स्थिति को सार्वजनिक तौर पर दर्शाने के लिए सोशल ऑडिट की व्यवस्था करना आदि शामिल है.

पवार के नेतृत्व में बारिश की बेहद कमी वाले कुछ कठिन वर्षों में गांव ने जल संकट का सामना किया और उससे निजात पाने के लिए तत्काल निर्णय भी लिए. 2019 में ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से रबी की फसल को छोड़ दिया.

पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने गांव में पवार के योगदान की सराहना करते हुए उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया.

महाराष्ट्र में चुनाव

महाराष्ट्र में कुल 27,920 ग्राम पंचायतें हैं, जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत के लिए पिछले हफ्ते चुनाव हुआ था. वास्तव में 12,712 ग्राम पंचायतों के लिए मतदान हुआ जबकि 1,523 में अकेले प्रत्याशियों के कारण निर्विरोध निर्वाचित घोषित किए जाने की संभावना बनी.

राज्य निर्वाचन आयोग ने दो गांवों—नासिक जिले के उमराने और नांदुरबार स्थित कोंडामाली–में ग्राम पंचायत चुनावों को रद्द कर दिया जहां पंचायत सीटों की क्रमशः 2 करोड़ और 42 लाख रुपये में नीलामी हुई थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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