scorecardresearch
Wednesday, 1 May, 2024
होमराजनीतिये कारण है कि कांग्रेस पर तंज़ कसते हुए शिवसेना शरद पवार की NCP से नज़दीकियां बढ़ा रही है

ये कारण है कि कांग्रेस पर तंज़ कसते हुए शिवसेना शरद पवार की NCP से नज़दीकियां बढ़ा रही है

पिछले कुछ महीनों में, शिवसेना बार बार कांग्रेस पर तंज़ कसती रही है, जिससे एमवीए गठबंधन में दरार की बातें उठने लगी हैं. सेना के अंदरूनी सूत्रों का कहना है, कि ये उकसावा जान बूझकर है.

Text Size:

मुम्बई: पिछले शनिवार को शिवसेना ने अपनी महाराष्ट्र सहयोगी कांग्रेस की ये कहते हुए आलोचना की कि वो ‘कमज़ोर और बेअसर’ है, और केंद्र में विपक्षी दल को आत्म-विश्लेषण करना चाहिए.

अपने मुखपत्र, सामना के संपादकीय के ज़रिए शिवसेना ने अप्रत्यक्ष रूप से नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अध्यक्ष शरद पवार को, केंद्र में विपक्ष, ख़ासकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की अगुवाई करने के लिए आगे बढ़ाया और कहा कि हर व्यक्ति को उनके अनुभव से फायदा उठाना चाहिए.

शिवसेना की इन टिप्पणियों पर, कांग्रेस की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई और पूर्व महाराष्ट्र मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कहा कि उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना, यूपीए का हिस्सा नहीं है जो उसके नेतृत्व पर टिप्पणी कर रही है. उन्होंने कहा कि शिवसेना के साथ उनका गठबंधन महाराष्ट्र तक सीमित है.

पिछले कुछ महीनों में, शिवसेना बार बार कांग्रेस को सुईं चुभोती रही है, जिसका एक तीखा जवाब मिलता है और शिवसेना, एनसीपी व कांग्रेस के महा विकास अघाड़ी गठबंधन (एमवीए) में दरार की बातें उठने लगती हैं. ये इसके बावजूद है कि शिवसेना और कांग्रेस दोनों बीजेपी को महाराष्ट्र में सरकार बनाने से रोकने के लिए एक दूसरे पर निर्भर करती हैं.

लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों और पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि ये उकसावा सोच-समझ कर किया जा रहा है, और ये भी कहा कि एनसीपी से क़रीब होकर और वयोवृद्ध पार्टी को अलगाव का एहसास कराकर, शिवसेना परेशान महाराष्ट्र कांग्रेस पर दबाव बनाए रखना चाहती है, ताकि सत्ता में बने रहने के लिए वो एमवीए को और कसकर पकड़ ले.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

कभी कभी की इस बहस से शिवसेना को, अपने मूल वोटर बेस को ख़ुश रखने में भी मदद मिलती है, जो काफी हद तक हिंदुत्व-समर्थक और कांग्रेस-विरोधी हैं.

इसके अलावा, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि हो सकता है कि शिवसेना एनसीपी के गुप्त प्रयासों में उसकी मदद कर रही हो, जो अपने अध्यक्ष 80 वर्षीय शरद पवार को, राष्ट्रीय स्तर पर एक अहम भूमिका में लाने का एक अंतिम प्रयास कर रही है.


यह भी पढ़ें: शिवसेना के किसान आंदोलन के समर्थन के पीछे अपनी शहरी छवि हटाने की एक सोची-समझी रणनीति है


शिवसेना-कांग्रेस डायनेमिक

2014 के विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस महाराष्ट्र में चकनाचूर हो गई थी और 2019 में और तबाह हो गई, जब चार मुख्य राजनीतिक संगठनों- बीजेपी, शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस, के बीच उसके हिस्से में सबसे कम सीटें आईं.

इसके अलावा, अंदरूनी सियासत, गुटबाज़ी और एक मज़बूत नेतृत्व के अभाव के चलते, पार्टी ऐसे सूबे में खुद को फिर से खड़ा नहीं कर पाई है, जो लोकसभा में 48 सांसद भेजता है- उत्तर प्रदेश के बाद दूसरी सबसे बड़ी संख्या.

तीन दलों की एमवीए सरकार में, कांग्रेस सबसे अधिक कुलबुला रही है- वो ऐसे गठबंधन में बहुत असुविधा महसूस कर रही है, शुरू में इसका नेतृत्व जिसके पक्ष में नहीं था और जहां वो अपने आपको एक तीसरे पहिए के रूप में देखती है. लेकिन पार्टी मतभेदों को नज़रअंदाज़ करती आ रही है, चूंकि उसे लगता है कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रखना ज़्यादा ज़रूरी है.

एक वरिष्ठ कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा, ‘इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस महाराष्ट्र में कमज़ोर है और अपना वजूद बनाए रखने के लिए, उसे किसी गठबंधन की ज़रूरत है. शिवसेना और एनसीपी के बीच एक आपसी समझ बनी हुई है कि कांग्रेस पर दबाव बनाएं, एक दूसरे से क़रीब होकर उससे दूरी बनाएं और कांग्रेस को मजबूर करें कि भविष्य के चुनावों में अपने हितों को देखते हुए, कम सीटें दिए जाने पर भी, वो मजबूरन एमवीए में बनी रहे’.

शिवसेना की नज़र 2022 के बृहण्मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) चुनावों पर बनी हुई है जो सेना का गढ़ रहा है और महाराष्ट्र में इसके प्रभाव का केंद्र है.

बीजेपी आक्रामकता के साथ शिवसेना से नगर निकाय छीनने की कोशिश में लगी है, जबकि शिवसेना मुम्बई के असंख्य समुदायों के बीच अपने वोटों को मज़बूत करके, अपने गढ़ को बचाए रखना चाहती है.

महाराष्ट्र सीएम और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे समेत पार्टी नेताओं ने कहा है कि एमवीए सहयोगियों को एकजुट होकर बीएमसी चुनाव लड़ने चाहिए.

लेकिन, मुम्बई कांग्रेस नेता, जिनमें नवनियुक्त शहरी इकाई अध्यक्ष भाई जगताप भी शामिल हैं, अकेले लड़ने पर ज़ोर दे रहे हैं.

शिवसेना और कांग्रेस स्थानीय स्तर पर कट्टर विरोधी रहे हैं. इसके अलावा मुम्बई कांग्रेस नेताओं को यक़ीन है कि अगर एमवीए साथ मिलकर चुनाव लड़ता है तो उन्हें मुम्बई में सेना के साथ दोयम दर्जे पर रहना पड़ेगा- और भविष्य के चुनावों के लिए एक पैटर्न क़ायम हो जाएगा.

इस बीच, एनसीपी बीएमसी चुनाव गठबंधन के तौर पर लड़ने के पक्ष में है, क्योंकि मुम्बई में उसकी कोई ख़ास मौजूदगी नहीं है, और एमवीए के हिस्से के तौर पर लड़ने से, पार्टी को विकसित होने के लिए एक आधार मिल जाएगा.

मुम्बई स्थित एक शिवसेना नेता ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘बीजेपी इस बीएमसी चुनाव में अपनी पूरी ताक़त झोंक देगी, इसलिए शिवसेना हरगिज़ नहीं चाहेगी कि वोटों का बंटवारा हो. लेकिन दोनों दलों के साथ आने की सूरत में, कांग्रेस और शिवसेना दोनों के स्थानीय नेता सिर्फ 2022 के बीएमसी चुनावों में ही नहीं, बल्कि तरंग प्रभाव के तौर पर 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी, अपने इलाक़े और सीटें खोने को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं’.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने कहा, ‘मुम्बई कांग्रेस नेताओं के बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने से संबंधित बयानों ने, शिवसेना को आशंकित कर दिया होगा.

देसाई ने कहा, ‘मराठी वोट बंट जाएंगे क्योंकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, किसी न किसी रूप में बीजेपी के साथ काम करेगी. हालांकि शिवसेना पिछले कुछ सालों से, छठ पूजा जैसे त्यौहार और समारोह आयोजित करके उत्तर भारतीय वोटों को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन कंगना रनौत के साथ हुआ विवाद इन वोटों पर असर डाल सकता है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर कांग्रेस अकेले दम पर लड़ती है, तो शिवसेना कुछ दलित, प्रवासी और मुस्लिम वोट खो सकती है. उससे शिवसेना की स्थिति कमज़ोर पड़ जाएगी’.

सेना की अपना मूल वोटर बेस बनाए रखने की कोशिश

पिछले साल महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए, कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाने के शिवसेना के फैसले ने बहुत लोगों को हैरान किया था.

सेना की पूर्व सहयोगी से विरोधी बनी बीजेपी ने, हर मौक़े का फायदा उठाते हुए कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर, सेना के हिंदुत्व एजेंडा का मज़ाक़ उड़ाया है.

2022 के मुम्बई निकाय चुनावों के लिए भी, बीजेपी संभावित रूप से शिवसेना के खिलाफ यही प्रचार करेगी और उन पुराने शिवसेना मतदाताओं को लक्ष्य बनाएगी, जो पार्टी के राज्य में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने से, अब हाशिए पर बैठे हो सकते हैं.

एक शिवसेना पदाधिकारी ने कहा कि पार्टी को चिंता है कि राज्य स्तर पर भी ‘सेक्युलर’ कांग्रेस के साथ इसके गठजोड़ से, मुम्बई में इसका वफादार कट्टर मराठी, कांग्रेस-विरोधी वोट बैंक बीजेपी में जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘इसलिए, हमें हर थोड़े समय बाद कांग्रेस-विरोधी बयानबाज़ी करनी होती है, ताकि दिखा सकें कि हमारे पास अभी भी अपनी निजी विचारधारा है. हम ये जोखिम नहीं ले सकते कि हमारे मूल वोटर्स बीजेपी में चले जाएं. इसी तरह, कांग्रेस को भी समय समय पर, सार्वजनिक रूप से हम पर कटाक्ष करना होता है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन, जब एक ही मेज़ पर बैठकर, राज्य सरकार में साथ काम करने की बात आती है, तो फिर कांग्रेस और शिवसेना के बीच कोई मतभेद नहीं रह जाते’.

महाराष्ट्र सीएम ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे भी, जो प्रदेश में कैबिनेट मंत्री हैं, एमवीए सरकार के एक वर्ष में, कांग्रेस की सार्वजनिक आलोचना करने से बचे हैं. सीएम ठाकरे ने तो अक्सर अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ, अपने सौहार्दपूर्ण संबंधों की बात की है. शिवसेना नेतृत्व तो संयम दिखाया है, लेकिन पार्टी अपने मुखपत्र सामना, और उसके कार्यकारी संपादक संजय राउत के ज़रिए वार करती है, जो सेना के मुख्य प्रवक्ता भी हैं.

मसलन, जून में सामना के एक संपादकीय में कहा गया कि कांग्रेस एक ‘पुरानी चरमराती चारपाई है, जो आवाज़ करती रहती है’.

इसी महीने, राज्यसभा सांसद राउत ने कहा था कि कांग्रेस अब कमज़ोर हो गई है, और ज़रूरत इस बात की है कि विपक्ष एक साथ आए और यूपीए के हाथ मज़बूत करे.

इस महीने पवार के 80वें जन्मदिवस पर शिवसेना ने सामना के ज़रिए गांधी परिवार पर अप्रत्यक्ष रूप से तंज़ करते हुए कहा कि एनसीपी अध्यक्ष देश की अगुवाई करने में पूरी तरह सक्षम हैं, और वो 1991 में प्रधानमंत्री बन सकते थे, अगर ‘उत्तर-भारतीय लॉबी’ उनके विरोध में खड़ी न हो जाती.

बार बार के इस उकसावे से कांग्रेस नेता, शिवसेना के खिलाफ ज़्यादा आक्रामक रुख़ इख़्तियार कर रहे हैं.

सोमवार को मुम्बई में कांग्रेस के स्थापना दिवस पर एक आयोजन में, एमवीए सरकार में एक मंत्री चव्हाण ने साफ शब्दों में चेतावनी दी कि ‘कांग्रेस के बग़ैर कोई सरकार नहीं रहेगी’.

महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहेब थोराट, जो ठाकरे की कैबिनेट में एक अन्य मंत्री हैं, ने भी कहा कि शिवसेना के साथ कुछ अनसुलझे मुद्दे हैं, और ये भी कहा कि उनकी पार्टी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगी कि कोई उसके गर्व को ठेस पहुंचाए, या उसके नेताओं का अपमान करे.

दो अन्य कांग्रेस मंत्रियों, असलम शेख़ और वर्षा गायकवाड़ ने कहा कि अगर शिवसेना उनकी पार्टी पर हमले करती रही, तो वो अपने मंत्री पदों की परवाह नहीं करेंगे.

यूपीए अध्यक्ष के लिए पवार की पैरोकारी

कांग्रेस को एक बेअसर विपक्ष क़रार देते हुए उसकी आलोचना करने के अलावा शिवसेना लगातार एमवीए के आर्किटेक्ट के तौर पर देखे जाने वाले पवार को यूपीए का आर्किटेक्ट बनाए जाने की भी पैरोकारी कर रही है.

पवार, जिन्होंने इसी महीने अपना 80वां जन्मदिवस मनाया ने स्पष्ट किया है कि उनका यूपीए अध्यक्ष पद संभालने का कोई इरादा नहीं है. लेकिन, किसी समय पीएम पद के मज़बूत उम्मीदवार रहे पवार के लिए, राष्ट्रीय राजनीति में एक अहम रोल अदा करने का ये आख़िरी मौक़ा होगा.

अभी तक, शिवसेना यूपीए का हिस्सा नहीं है, और गांधी परिवार की बजाय, पवार की आगुवाई वाले विपक्षी मंच पर सेना को राष्ट्रीय राजनीति में ज़्यादा जगह और तवज्जो मिलेगी.

एक वरिष्ठ कांग्रेस लीडर ने कहा कि सीनियर एनसीपी नेता, ऐसे कांग्रेस सदस्यों को टटोल रहे हैं, जो पार्टी के भीतर नेतृत्व के मौजूदा सिस्टम से ख़ुश नहीं हैं. ऐसे नेताओं को विपक्षी मोर्चे के लीडर के तौर पर, पवार के समर्थन में लामबंद करने की कोशिश की जा रही है.

लीडर ने आगे कहा, ‘ये सीधे पवार के नहीं, बल्कि उनके क़रीबियों के उकसावे पर हो रहा है. वो पहले ही 80 के हो चुके हैं. वो 2024 के चुनावों तक इंतज़ार नहीं कर सकते’.

पवार के यूपीए की कमान संभालने की भिनभिनाहट, ख़ासकर वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल की मौत के बाद शुरू हुई, जो कांग्रेस और दूसरी पार्टियों के बीच समन्वय के लिए एक प्रमुख वार्ताकार का काम करते थे. कांग्रेस नेतागण भी मानते हैं, कि पटेल की मौत से एक शून्य पैदा हो गया है और न तो यूपीए की मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी, और न ही राहुल गांधी इस भूमिका को सक्रियता से निभा सकते हैं.

राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बाल ने कहा, ‘अहमद पटेल की मौत के बाद एक शून्य पैदा हो गया है. ऐसा लगता है कि शरद पवार को यूपीए का संयोजक बनाने का कुछ बंदोबस्त हुआ है. ममता बनर्जी, नवीन पटनायक या उद्धव ठाकरे जैसे क्षेत्रीय दलों के नेता, राहुल गांधी के साथ बात नहीं करेंगे. वो शरद पवार से बात कर लेंगे.

उन्होंने आगे कहा, ‘उन्हें अध्यक्ष बनने की ज़रूरत नहीं है. उन्हें बस वो भूमिका निभानी है. लगता है कि शिवसेना इस एजेंडा में सहायता कर रही है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: अब कोई ब्राह्मणवाड़ा, महारवाड़ा नहीं—महाराष्ट्र सरकार इलाकों के जाति-आधारित नाम बदलेगी


 

share & View comments