नई दिल्ली: 19 विधानसभा सीटों पर लड़े गए उप-चुनावों में जीत हासिल करने के कुछ महीने बाद ही, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फिर से अगले उप-चुनावों- एक संसदीय चुनाव क्षेत्र और तीन विधान सभा सीटें की तैयारी में जुट गए हैं.
2023 विधानसभा चुनावों से पहले अपनी लोकप्रियता तथा प्रशासन की इस बड़ी आज़माइश में, चौहान ने कुल चार चुनावों के प्रबंधन के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के 40 से अधिक नेताओं को तैनात कर दिया है.
सूत्रों के अनुसार इन 40 में 12 मंत्री (कुल 26 कैबिनेट सदस्यों में से), पांच सांसद और महासचिवों तथा उपाध्यक्षों समेत 25 से अधिक संगठन के नेता शामिल हैं.
2020 विधानसभा उप-चुनावों में चौहान ने 70 नेताओं को, 28 सीटों के लिए तैनात किया था, जिनमें से पार्टी ने 19 सीटें जीतीं थीं.
ताज़ा चरण में खंडवा लोकसभा सीट शामिल है, जो पूर्व प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष नंद कुमार चौहान की मौत के बाद ख़ाली हुई है.
तीन विधानसभा सीटें विधायक जुगल किशोर बागड़ी (रायगांव), बृजेंद्र सिंह राठौड़ (पृथ्वीपुर), और कलावती भूरिया (जोबत) की मौत के बाद ख़ाली हुई हैं. इन तीन सीटों में से दो कांग्रेस के पास, और एक बीजेपी के पास थी.
उप-चुनावों की तारीख़ों का ऐलान अभी नहीं हुआ है.
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पार्टी की तैयारी
खंडवा संसदीय चुनाव क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं. बीजेपी ने हर सीट के लिए एक कैबिनेट मंत्री को नियुक्त किया है, जिनके साथ संगठन के कुछ नेताओं को लगाया गया है.
कैबिनेट मंत्रियों कमल पटेल, विजय शाह, तुलसी सिलावट, इंदर सिंह परमार, मोहन यादव, ऊषा ठाकुर, जगदीश देवड़ा, अरविंद भदौड़िया, बिसाहू लाल साहू, बृजेंद्र प्रताप सिंह, रामखिलावन पटेल, विश्वास सारंग, और प्रेम सिंह पटेल को, चार उप-चुनावों को संभालने का ज़िम्मा दिया गया है.
इनके अलावा, सांसद शंकर लालवानी को खंडवा की पंधाना विधानसभा सीट, गणेश सिंह को मारीगांव विधानसभा सीट, और गजेंद्र पटेल को जोबत के लिए नियुक्त किया गया है.
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आक्रामक मॉडल
बीजेपी सूत्रों का कहना था कि मध्यप्रदेश सीएम शिवराज सिंह चौहान का उप-चुनाव लड़ने का मॉडल, दूसरे मुख्य मंत्रियों से अलग होता है.
2020 में, सीएम ने किसी एक या दो नेताओं को उप-चुनाव प्रचार का प्रभारी नहीं बनाया, बल्कि अपनी लगभग पूरी कैबिनेट को उसमें लगा दिया. इसबार भी, उनका लगभग आधा मंत्रिमंडल चुनावों की ज़िम्मेदारी संभाले हुए है.
वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों में शामिल हैं वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा, किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री कमल पटेल, और जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, जो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के निष्ठावान माने जाते हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए, इंदौर के बीजेपी सांसद शंकर लालवानी ने, जो एक विधानसभा सीट के प्रभारी हैं, कहा कि उप-चुनावों के लिए तीन स्तर की ज़िम्मेदारियां हैं.
लालवानी ने कहा, ‘पहला स्तर मंत्री का है. फिर हर सीट के गैप को भरने के लिए एक सांसद है, और तीसरा स्तर संगठन नेताओं का है, जो इन सीटों पर रोज़ की घटनाओं तथा प्रचार अभियानों की समीक्षा करते हैं. सीएम ने प्रचार करना शुरू कर दिया है, हालांकि चुनाव की तारीख़ों की घोषणा अभी नहीं हुई है. हम चुनावों को इतनी ही गंभीरता से लेते हैं’.
मध्यप्रदेश इकाई के एक दूसरे बीजेपी उपाध्यक्ष ने कहा: ‘उत्तर प्रदेश में बीजेपी स्थानीय निकाय चुनाव हार गई, चूंकि उसने चुनावों को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन शिवराज जानते हैं कि वो तभी तक कुर्सी पर हैं, जब तक जीत रहे हैं. यहां की चुनावी हार उनकी सरकार की स्थिरता को प्रभावित नहीं करेगी, लेकिन हार से उनके विरोधियों में सुगबुगाहट शुरू हो जाएगी, जो शिवराज के पतन का इंतज़ार कर रहे हैं’.
दमोह की हार के बाद बीजेपी सतर्क, खंडवा एक प्रतिष्ठा का चुनाव
मई में पार्टी को दमोह उप-चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था, जहां बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई ने कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन की जीत, और राहुल लोधी का हार में भूमिका निभाई, जो कांग्रेस से दल बदलकर आए थे. पूर्व मंत्री जयंत मालवीय और उनके बेटे ने बीजेपी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया, चूंकि जयंत ने लोधी के लिए प्रचार नहीं किया.
उस हार से सीख लेते हुए शिवराज सिंह चौहान खंडवा में कोई भी मौक़ा छोड़ना नहीं चाहते, जहां एक पूर्व प्रदेश प्रमुख सिटिंग सांसद थे. खंडवा में हुई कोई भी हार बीजेपी आलाकमान को एक ग़लत राजनीतिक संकेत भेज सकती है.
कांग्रेस नेता कमल नाथ ने, जिनके पास यहां विधानसभा चुनावों से पहले सीएम के प्रभाव को कमज़ोर करने का अवसर है, शिवराज के मॉडल को टक्कर देने के लिए, हर विधानसभाीि सीट पर 10 कांग्रेस विधायकों को नियुक्त किया है.
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