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Monday, 17 March, 2025
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‘गोधरा से पहले गुजरात में 250 से ज़्यादा बड़े दंगे हुए, उसके बाद कुछ नहीं’ — फ्रिडमैन पॉडकास्ट पर मोदी

अमेरिकी कंप्यूटर साइंटिस्ट और पॉडकास्टर से बात करते हुए मोदी ने कहा कि 2002 के दंगों के लिए उनके राजनीतिक विरोधियों द्वारा उनकी सरकार को दोषी ठहराने की कोशिशों के बावजूद, अदालतों ने उन्हें निर्दोष पाया है.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी कंप्यूटर साइंटिस्ट और होस्ट लेक्स फ्रिडमैन के साथ पॉडकास्ट में 2002 के गोधरा कांड को — जिसमें 59 लोगों को ट्रेन में ज़िंदा जला दिया गया था — “अकल्पनीय परिमाण की त्रासदी” कहा.

हालांकि, उन्होंने तर्क दिया कि इसके बाद हुए दंगे गुजरात में हुए सबसे बुरे दंगे नहीं थे, उन्होंने कहा कि उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले राज्य में सांप्रदायिक हिंसा का लंबा इतिहास रहा है.

रविवार को फ्रिडमैन के साथ तीन घंटे तक चली बातचीत में, पीएम ने यह भी कहा कि दंगों के बारे में झूठा नैरेटिव फैलाया गया और राजनीतिक विरोधियों द्वारा उनकी सरकार को दोषी ठहराने के प्रयासों के बावजूद, अदालतों ने उन्हें निर्दोष पाया.

मोदी ने कहा, “यह धारणा कि ये अब तक के सबसे बड़े दंगे थे, असल में गलत सूचना है. अगर आप 2002 से पहले के डेटा की समीक्षा करेंगे, तो आप देखेंगे कि गुजरात में लगातार दंगे हुए. कहीं न कहीं लगातार कर्फ्यू लगाया जा रहा था. सांप्रदायिक हिंसा मामूली मुद्दों पर भड़क सकती थी, जैसे पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता या यहां तक ​​कि मामूली साइकिल टक्कर भी.”

उन्होंने कहा, “2002 से पहले गुजरात में 250 से ज़्यादा बड़े दंगे हुए थे. 1969 में हुए दंगे करीब 6 महीने तक चले थे. इसलिए, मेरे आने से बहुत पहले से ही एक लंबा इतिहास रहा है.”

प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्य में पिछले 22 सालों में एक भी बड़ा दंगा नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, “लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गुजरात में, जहां हर साल किसी न किसी तरह से दंगे होते थे, 2002 के बाद, 22 सालों में, गुजरात में एक भी बड़ा दंगा नहीं हुआ है. गुजरात पूरी तरह से शांतिपूर्ण है.”

प्रधानमंत्री ने साबरमती एक्सप्रेस में आगज़नी के बाद हुए दंगों को लेकर उनकी छवि खराब करने की साजिश करार देते हुए इसकी आलोचना की — जिसमें अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवकों की मौत हो गई और पूरे राज्य में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई — उन्होंने कहा कि उनकी सरकार कठोर कानूनी जांच के दायरे में है.

पीएम ने कहा, “लेकिन 2002 में हुई वह एक दुखद घटना एक चिंगारी बन गई, जिसने कुछ लोगों को हिंसा की ओर धकेल दिया. फिर भी, न्यायपालिका ने मामले की गहन जांच की. उस समय, हमारे राजनीतिक विरोधी सत्ता में थे और स्वाभाविक रूप से चाहते थे कि हमारे खिलाफ सभी आरोप मौजूद रहें.”

उन्होंने आगे कहा, “उनके अथक प्रयासों के बावजूद, न्यायपालिका ने दो बार स्थिति का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया और आखिरकार हमें पूरी तरह से निर्दोष पाया. जो लोग वास्तव में जिम्मेदार थे, उन्हें अदालतों से न्याय मिला है.”

आलोचकों ने मोदी पर 2002 के दंगों पर आंखें मूंद लेने का आरोप लगाया, जिसमें 1,000 लोग मारे गए थे, जिनमें से ज़्यादातर मुसलमान थे. उन्होंने लगातार इन आरोपों का खंडन किया है कि उन्होंने गोधरा कांड के बाद 2002 के दंगों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए. सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में जांच के बाद 2012 में उन्हें दोषमुक्त कर दिया गया था.


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‘अस्थिर काल’

मोदी ने कहा कि गोधरा की घटना उनके पहली बार निर्वाचित प्रतिनिधि बनने के मात्र 3 दिन बाद हुई.

गोधरा की घटना को याद करते हुए, जिसके कारण 2002 में दंगे हुए, मोदी ने कहा कि वह “बेहद अस्थिर” वक्त था, जिसमें भारत और विश्व में बड़े आतंकवादी हमले हुए.

उन्होंने 1999 के कंधार हाईजैक और 2000 के लाल किले पर हमले से लेकर अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमलों और दिसंबर 2001 में भारत की संसद पर हमले तक भारत और दुनिया को हिला देने वाली घटनाओं का ज़िक्र किया.

मोदी ने कहा, “24 दिसंबर, 1999 को ही लीजिए, लगभग तीन साल पहले, काठमांडू से दिल्ली जाने वाले एक भारतीय विमान को हाईजैक कर लिया गया, उसे अफगानिस्तान की ओर मोड़ दिया गया और कंधार में उतारा गया. सैकड़ों भारतीय यात्रियों को बंधक बना लिया गया. इसने पूरे भारत में भारी उथल-पुथल मचा दी.”

उन्होंने कहा, “इसके बाद साल 2000 में दिल्ली के लाल किले पर आतंकवादियों ने हमला किया. देश में एक और संकट आया, जिसने भय और अशांति को और बढ़ा दिया. 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के ट्विन टावर्स पर एक बार फिर से भयावह आतंकवादी हमला हुआ, जिसने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया. इसके बाद अक्टूबर 2001 में आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला किया. इसके तुरंत बाद 13 दिसंबर 2001 को भारत की संसद को निशाना बनाया गया.”

उन्होंने कहा, “महज़ 8 से 10 महीनों के भीतर ये बड़े वैश्विक आतंकवादी हमले हुए, हिंसक घटनाएं हुईं, जिनमें खून-खराबा हुआ और निर्दोष लोगों की जान गई. ऐसे तनावपूर्ण माहौल में छोटी सी चिंगारी भी अशांति को भड़का सकती है. स्थिति पहले से ही बेहद अस्थिर हो चुकी थी. ऐसे समय में अचानक 7 अक्टूबर 2001 को मुझे गुजरात का मुख्यमंत्री बनने की जिम्मेदारी दी गई. यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी.”

उन्होंने कहा कि गुजरात उस विनाशकारी भूकंप से उबर रहा था, जिसमें हज़ारों लोग मारे गए थे और मुख्यमंत्री के रूप में उनका पहला बड़ा काम बचे हुए लोगों के पुनर्वास की देखरेख करना था.

उन्होंने कहा, “यह एक महत्वपूर्ण कार्य था और शपथ लेने के बाद पहले दिन से ही मैंने खुद को इसमें झोंक दिया. मैं एक ऐसा व्यक्ति था जिसे सरकार के साथ काम करने का कोई पूर्व अनुभव नहीं था. मैं कभी किसी प्रशासन का हिस्सा नहीं रहा, यहां तक ​​कि मैंने पहले कभी सरकार में काम भी नहीं किया. मैंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा, यहां तक ​​कि कभी राज्य प्रतिनिधि भी नहीं रहा. अपनी ज़िंदगी में पहली बार मुझे चुनावों का सामना करना पड़ा.”

मोदी ने कहा, “राज्य प्रतिनिधि बने मुझे अभी तीन दिन ही हुए थे कि अचानक गोधरा की भयावह घटना घट गई. यह अकल्पनीय त्रासदी थी, लोगों को ज़िंदा जला दिया गया.”

उन्होंने आगे कहा, “आप कल्पना कर सकते हैं कि कंधार हाईजैक, संसद पर हमला या यहां तक ​​कि 9/11 जैसी घटनाओं की पृष्ठभूमि में और फिर इतने सारे लोगों को मार डाला जाना और ज़िंदा जला दिया जाना, आप कल्पना कर सकते हैं कि स्थिति कितनी तनावपूर्ण और अस्थिर थी.”

2002 के बाद से गुजरात की प्रगति पर बोलते हुए मोदी ने कहा कि राज्य में पिछले 22 साल में एक भी बड़ा दंगा नहीं हुआ. उन्होंने इसका श्रेय अपनी सरकार की “वोट बैंक की राजनीति” से हटकर समावेशी विकास एजेंडे को आगे बढ़ाने की नीति को दिया. उन्होंने दोहराया, “हमारा मंत्र रहा है: ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’. ”

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि गुजरात सांप्रदायिक तनाव के अतीत से निकलकर आर्थिक विकास और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का मॉडल बन गया है.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी सरकार “तुष्टिकरण की राजनीति” से आकांक्षा की राजनीति में बदल गई है, जिससे यह सुनिश्चित हो रहा है कि सभी समुदायों के लोग राज्य के विकास में योगदान दें.

पॉडकास्ट में प्रधानमंत्री ने कहा कि वे आलोचनाओं का स्वागत करते हैं, लेकिन वास्तविक आलोचना और एजेंडा-संचालित अभियान के बीच साफ फर्क है.

उन्होंने कहा, “आरोपों और आलोचना में बहुत अंतर है. एक मजबूत लोकतंत्र के लिए असली आलोचना ज़रूरी है. आरोपों से किसी को कोई फायदा नहीं होता, वह सिर्फ अनावश्यक संघर्ष का कारण बनते हैं. इसलिए मैं हमेशा आलोचना का खुले तौर पर स्वागत करता हूं और जब भी झूठे आरोप लगते हैं, मैं पूरी निष्ठा के साथ अपने देश की सेवा करता रहता हूं.”

उन्होंने कहा, “मेरा दृढ़ विश्वास है कि आलोचना लोकतंत्र की आत्मा है. अगर लोकतंत्र वास्तव में आपकी रगों में बहता है, तो आपको इसे अपनाना चाहिए…वास्तव में, मेरा मानना ​​है कि हमें अधिक आलोचना करनी चाहिए और यह तीखी और अच्छी तरह से सूचित होनी चाहिए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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