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Saturday, 15 June, 2024
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‘न डर है, न भय’, गांधी विहीन अमेठी में कांग्रेस के केएल शर्मा ने लगाया 40 साल पुराने संबंधों पर दांव

अपने पुराने संबंधों के अलावा, शर्मा की ब्राह्मण पहचान भी उस अभियान में काम आ रही है जिसमें भाजपा की हिंदुत्व पिच हावी है. अमेठी में 20 मई को मतदान है.

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अमेठी: अमेठी के भादर ब्लॉक में एक जनसभा में किशोरी लाल शर्मा ने अपने साथी कांग्रेस समर्थकों को धन्यवाद दिया जिन्होंने घोषणा की वे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, फिर भी, कांग्रेस परिवार के मृदुभाषी करीबी सहयोगी को वहां खड़े लोगों के सामने गांधी परिवार के ‘हनुमान’ (वफादार) की तरह पेश किया गया.

लेकिन, यह देखते हुए कि भीड़ में मौजूद युवाओं को कांग्रेस उम्मीदवार के बारे में थोड़ी जानकारी की ज़रूरत थी, यह एक व्यक्तिगत नोट पर शुरू हुआ. कांग्रेस के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने पूछा, “ओम प्रकाश कहां है? उन्हें हृदय की कुछ समस्या था जिसके लिए शर्मा जी ने उन्हें दिल्ली में इलाज कराने में मदद की.”

मंच के पीछे बैठे कांग्रेस समर्थकों के बीच यादव अपनी सीट से उठे और हाथ जोड़कर जनता का अभिवादन किया.

पंजाब के लुधियाना के मूल निवासी, किशोरी लाल शर्मा 1983 में बतौर समन्वयक अमेठी आए थे, राजीव गांधी के पहली बार हाई-प्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बनने के दो साल बाद, जो 2019 में स्मृति ईरानी की जीत तक कांग्रेस का गढ़ था.

उत्तर प्रदेश युवा कांग्रेस इकाई के पूर्व महासचिव अशोक सिंह ने कहा, “जब वे (शर्मा) पहली बार बतौर समन्वयक अमेठी आए थे, तब वे लगभग 20 साल के थे. वे उन समन्वयकों में से एक थे जिन्हें प्रकाश अग्रवाल, गुलाम अहमद मीर, चन्द्रशेखर यादव और विनोद शुक्ला सहित अन्य लोगों के साथ अमेठी भेजा गया था, जिन्हें विधानसभा क्षेत्रों में भेजा गया था.”

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सिंह ने बताया, “उन्हें पहली बार गांधी परिवार से कैप्टन सतीश शर्मा ने मिलवाया था, जो राजीव जी की हत्या (1991 में) के बाद अमेठी से लड़े थे और अंततः परिवार के करीब हो गए. उन्होंने अमेठी के लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाए और कांग्रेस नेताओं के साथ शर्मा के बारे में अच्छी प्रतिक्रिया साझा करने के बाद उनका कद बढ़ गया.”

कई कांग्रेस नेता उनके सहज स्वभाव की प्रशंसा करते हुए बताते हैं कि यह शर्मा को विशेष और स्वीकार्य भी बनाता है.


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‘कांग्रेस के सिपाही’

शर्मा ने दिप्रिंट को दिए एक विशेष इंटरव्यू में बताया, “मैं सिर्फ कांग्रेस का एक सिपाही हूं. 40 साल हो गए हैं जब से मैं यहां हूं. वह (कांग्रेस नेतृत्व) मुझे जो भी भूमिका देंगे, मैं उसमें फिट बैठूंगा. कभी वो मुझे एआईसीसी सचिव बना देते हैं. आज भी, मैं पंजाब में पीसीसी का सदस्य और एआईसीसी का सदस्य हूं.”

उन्होंने कहा, “राजीव जी की हत्या के बाद, कैप्टन सतीश शर्मा यहां से दो बार 1991 और 1996 में लड़े और जीते. 1998 में वे हार गए, जिसके बाद 1999 में सोनिया जी यहां से लड़ीं. फिर 2004 के बाद से राहुल जी यहां से लड़े.”

जहां बतौर समन्वयक के उनके प्रदर्शन और जनता की प्रतिक्रिया ने अमेठी में उनका कद बढ़ा दिया, वहीं शर्मा धीरे-धीरे अमेठी और रायबरेली में गांधी परिवार की आंख और कान बन गए.

इन वर्षों में, शर्मा किसी भी आपात स्थिति के लिए संपर्क करने वाले व्यक्ति बन गए — चाहे वे ओम प्रकाश यादव के मामले में इलाज हो या अमेठी की जनता की कोई अन्य समस्या हो.

स्थानीय कांग्रेस नेता ओम प्रकाश सिंह ने कहा, “उनका स्वभाव सहज है. जब उन्हें समन्वयक प्रतिनियुक्त किया गया, तो वे स्थानीय नेताओं के साथ आलाकमान के दिशानिर्देश साझा करते थे और एमपीएलएडी फंड को कैसे खर्च किया जाए, इस पर चर्चा करते थे. यह उनकी ईमानदारी और मिलनसार व्यक्तित्व ही था जिसके कारण गांधी परिवार से उनकी नजदीकियां बढ़ीं. जनता के सुख-दुख के बारे में मैं गांधी परिवार को बताऊंगा.”

Congress supporters and workers at a poll event in Amethi
अमेठी में एक चुनावी कार्यक्रम में कांग्रेस समर्थक और कार्यकर्ता | फोटो: शिखा सलारिया/दिप्रिंट

अमेठी के लोगों के लिए संपर्क का बिंदु होने से शर्मा धीरे-धीरे दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में गांधी परिवार के लिए अभियान प्रबंधक के रूप में उभरे और रायबरेली में सोनिया के प्रतिनिधि भी बन गए.

आज, जो लोग राहुल और सोनिया के चुनाव अभियान के दौरान उनके निर्देशों का पालन करते थे, वे उनकी नज़रों में आने के लिए शर्मा के लिए वही कर रहे हैं.

शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “मेरी टीम प्रशिक्षित है. वही चुनाव भी लड़ेंगे. मैं सिर्फ निगरानी करूंगा. मैं उनसे कहूंगा कि वे मुझसे केवल बड़े फैसलों पर ही चर्चा करें, अन्यथा, उनके पास खुली छूट है. खुर्शीद मियां और अल्लू मियां जैसे लोग, हमारे अभियान प्रबंधक हैं और मैं यहां हूं क्योंकि मैं उन पर भरोसा कर सकता हूं.”

कांग्रेस का यह सिपाही अपनी संभावनाओं को लेकर आश्वस्त है. हालांकि, वे स्वीकार करते हैं कि उन्हें प्रचार के लिए ज्यादा समय नहीं मिला और उन्हें अमेठी की स्टार पावर की भी याद आती है.

उन्होंने कहा, “मैंने लोगों से पूछा कि क्या वे प्रचार कर पाएंगे…उन्हें प्रचार के लिए कम समय मिला है, लेकिन उन्होंने कहा कि वे मेरे लिए चुनाव लड़ रहे हैं. जब जनता आपके लिए चुनाव लड़ती है तो आधा काम हो जाता है.”

अमेठी और रायबरेली के लिए उम्मीदवारों की घोषणा में देरी और गांधी भाई-बहनों के अमेठी में चुनाव लड़ने से परहेज करने के बारे में पूछे जाने पर, शर्मा ने दोहराया कि वह खुद चाहते थे कि कोई गांधी “पूरे मन से” यहां से चुनाव लड़े.

शर्मा ने कहा, “मैं लोगों की इस मांग में उनके साथ था कि गांधी परिवार के किसी सदस्य को यहां से लड़ना चाहिए. मैं चाहता था कि वे यहां से पूरे मन से लड़ें.”

उन्होंने कहा, “ये दोनों सीटें (कांग्रेस के लिए) बहुत अच्छी हैं…यहां तक कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के पोते-पोतियां भी अब हमारे लिए काम कर रहे हैं…यह सच है कि अगर प्रियंका जी या राहुल जी यहां से लड़ते तो हम सिर्फ एक सार्वजनिक बैठक से अपनी नैया पार लगा सकते थे. आज, मुझे कड़ी मेहनत करनी होगी.”

साथी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की तरह, शर्मा की छोटी बेटी अंजलि भी अभियान में शामिल हो गई हैं और अपने पिता के लिए वोट मांग रही हैं. अंजलि ने एक बैठक में जनता से कहा, “मेरे पिता ने 40 साल तक आपकी सेवा की है, आपको इस बार उन्हें जीतने में मदद करनी है.”

स्टार पावर की कमी के साथ-साथ, शर्मा का मुकाबला जुझारू बीजेपी से भी है, जिस पर वह 5 मई की रात को गौरीगंज में पार्टी कार्यालय के बाहर पटाखे फोड़ने और वाहनों को नुकसान पहुंचाने जैसी गड़बड़ी पैदा करने का आरोप लगाते हैं.

दिप्रिंट ने जिन पार्टी कार्यकर्ताओं से बात की, उन्होंने आरोप लगाया कि यह बीजेपी समर्थकों की करतूत थी और अमेठी इकाई ने घटना के बारे में पुलिस को शिकायत दी है.

शर्मा ने कहा, “यह कभी भी अमेठी की संस्कृति नहीं रही है, यहां कई लोकतांत्रिक चुनाव हुए हैं, लेकिन हम ये पहली बार देख रहे हैं कि कुछ लोग आए हैं और एक नया ट्रेंड ला रहे हैं. 15 दिनों के बाद, वही भाजपा और कांग्रेस कार्यकर्ता मिलेंगे क्योंकि वे सभी जुड़े हुए हैं…लेकिन यह कौन सी संस्कृति है जो वो शुरू कर रहे हैं कि भाई को भाई से लड़वाया जा रहा है.” शर्मा ने आगे कहा कि वे इस तरह के हमलों से डरने वाले नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “अमेठी की जनता के लिए गांधी परिवार के साथ उनका जुड़ाव गर्व की बात है. पहले जब वे बाहर जाते थे तो उनका स्वागत किया जाता था और आज लोग उनसे पूछते हैं कि उन्होंने राहुल जी को क्यों हराया. लोग पछता रहे हैं और इसे शर्म की बात मान रहे हैं.”


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‘अमेठी से संबंध टूटा नहीं’

अब जबकि कांग्रेस अमेठी में उन पर भरोसा कर रही है, शर्मा का कहना है कि चुनाव निगरानी का खेल है. उनका कहना है कि 2019 में यह गायब था जब राहुल भाजपा की स्मृति ईरानी से 55,000 से अधिक वोटों से हार गए.

शर्मा ने कहा, “चुनाव निगरानी का खेल है, क्या कार्यकर्ता उन्हें दिए गए संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं, क्या बूथ स्तर पर कार्यकर्ता ईमानदार हैं, या उन्होंने पाला बदल लिया है, या निष्क्रिय हैं. ये छोटी-छोटी चीजें (2019 में) हुईं, साथ ही सरकार ने ग्राम प्रधानों, कोटेदारों और हमारे कार्यकर्ताओं को बुलाकर और प्रताड़ित करके ‘नंगा नाच’ खेला.”

शर्मा ने कहा, “अमेठी की जनता के लिए यह पहला अनुभव था, उन्हें कभी ऐसा अनुभव नहीं हुआ होगा कि प्रधानों को वोट न देने पर पूछताछ की धमकी दी जाती हो. यहां तक कि अगर हमारे कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर भाजपा कार्यकर्ताओं की गंदी हरकतों का जवाब दिया, तो उन्हें पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ा. उन्होंने (भाजपा) राज्य मशीनरी का भरपूर दुरुपयोग किया.”

लेकिन क्या गांधी परिवार और अमेठी की जनता के बीच कोई अलगाव नहीं था? शर्मा इससे असहमत थे, उन्होंने कहा कि गांधी परिवार की यात्राओं की संख्या में 2019 के बाद ही गिरावट आई है.

उन्होंने कहा, “मुझे यकीन है कि राहुल जी ने गांधी परिवार के किसी भी अन्य सदस्य की तुलना में सबसे अधिक समय अमेठी में बिताया है. वे एसपीजी सुरक्षा के घेरे में थे और आप यह सत्यापित करने के लिए आरटीआई दायर कर सकते हैं कि वे कितनी बार यहां आए थे. मैं राजीव जी के समय में यहां आया था और मुझे लगता है कि गांधी परिवार के सभी सदस्यों में से, जिन्होंने अमेठी का दौरा किया है, उनमें (राहुल ने) सबसे अधिक दौरा किया है.”

शर्मा ने कहा, “मुझे पता है क्योंकि मैंने पूरे परिवार को देखा है. हम हर दो महीने में मैडम (सोनिया) के दौरे की व्यवस्था करेंगे, जबकि राहुल जी के लिए यह या तो मासिक या दो महीने में एक बार होगा. इसलिए, वो हर साल कम से कम सात-आठ बार आते थे. दिल्ली में, 6, महादेव रोड पर एक कार्यालय हर समय अमेठी के लोगों के लिए खुला रहेगा.”

वोट मांगते समय वह इसी सहयोग पर भरोसा कर रहे हैं और साथ ही प्रियंका गांधी वाड्रा की मदद भी मांग रहे हैं, जो 18 मई तक रायबरेली में अपने भाई और अमेठी में शर्मा के लिए प्रचार करेंगी.

शर्मा का कहना है कि वह ड्रिल जानते हैं. उन्होंने कहा, “हम जानते हैं कि इसके बारे में कैसे जाना है. हमें केवल उनकी ज़रूरत है कि वो एक चक्कर लगाए और जनता से मिले.”

उनकी ब्राह्मण पहचान उस अभियान में भी काम आ रही है जिसमें भाजपा की हिंदुत्व की पिच हावी है क्योंकि उनकी प्रतिद्वंद्वी स्मृति ईरानी अपनी चुनावी सभाओं में पाकिस्तान और राम मंदिर का मुद्दा उठाती हैं.

स्थानीय कांग्रेस इकाई के अनुसार, अमेठी में कुल 17.16 लाख मतदाताओं में से ब्राह्मण मतदाता लगभग 18 प्रतिशत हैं. पार्टी समाजवादी पार्टी के साथ ब्राह्मण-मुस्लिम-यादव फॉर्मूले पर भी भरोसा कर रही है.

अमेठी में कांग्रेस के एक समर्थक आफताब ने कहा, “समाजवादी पार्टी के गौरीगंज विधायक राकेश प्रताप सिंह और अमेठी विधायक महाराजी प्रजापति के बेटे अनुराग द्वारा भाजपा के लिए प्रचार करने से बेपरवाह, कांग्रेस समर्थक मतदाताओं के बीच शर्मा की जाति का दिखावा कर रहे हैं. न डर है, न भय है…इस बार पंडित शर्मा तय हैं. चाहे कुछ भी हो जाए, वह अमेठी जीतेंगे.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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