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Monday, 23 December, 2024
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यह एक नये राहुल गांधी हैं, और विपक्षी एकता के लिए ‘सक्रिय’ भूमिका निभाने में जुटे हैं

अन्य दलों के नेताओं के साथ संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस की और विपक्षी एकता का दावा करते हुए नाश्ते पर एक बैठक की मेजबानी भी संभाली.

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नई दिल्ली: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक नए अवतार की कोशिश में जुटे हैं— एक ऐसा नेता जिसका न केवल अपनी पार्टी के सदस्यों के बीच सम्मान हो बल्कि जिसे अन्य विपक्षी दलों की तरफ से भी पूरी अहमियत मिले.

पिछले कुछ हफ्तों से राहुल गांधी मानसून सत्र में अधिक सक्रिय भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं. उन्होंने संसदीय कार्यवाही से पहले विपक्ष की बैठकों का नेतृत्व किया, अन्य दलों के नेताओं के साथ संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस की और विपक्षी एकता का दावा करते हुए नाश्ते पर एक बैठक की मेजबानी भी संभाली.

यह पूर्व में संसद सत्रों के दौरान राहुल गांधी के व्यवहार के एकदम उलट है. पिछले साल सितंबर में संसद सत्र के दौरान ज्यादातर समय गायब रहने के लिए भी उनकी काफी आलोचना हुई थी. उस समय वह अपनी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की स्वास्थ्य जांच के लिए उनके साथ विदेश गए थे.

अब अपनी बातचीत के दौरान राहुल भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को हराने के लिए सभी विपक्षी दलों के बीच ‘एकता की नींव’ मजबूत करने पर जोर देते हैं.

सोनिया गांधी के विपरीत राहुल गांधी पर अक्सर अन्य दलों के नेताओं के साथ समीकरण स्थापित करने में नाकाम रहने का आरोप लगता रहा है. लेकिन, पार्टी नेताओं का कहना है कि राहुल काफी समय से खुद को बदलने की कोशिश में जुटे हैं, अपने फैसले खुद ले रहे हैं और खुद को सोनिया गांधी की छाया से बाहर ला रहे हैं.

पंजाब कांग्रेस प्रमुख के रूप में पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की नियुक्ति उनकी मर्जी चलने का ताजा उदाहरण है जबकि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को सोनिया गांधी का करीबी माना जाता है.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘लगभग हर बार संकट के दौरान सीएम दिल्ली आते तो सोनिया जी से मुलाकात करते और यह दिखाते कि वह उनके कितने करीब हैं. लेकिन इसके बावजूद अंततः राहुल गांधी की ही चली.’


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‘वास्तव में, सक्रिय जुड़ाव’

विपक्षी दलों के साथ बैठकों में हिस्सा ले रहे कांग्रेस नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी ने यह सुनिश्चित करने की ‘पूरी जिम्मेदारी’ खुद संभाल रखी है कि वह सभी नेताओं को एक साथ लामबंद कर पाएं.

नाश्ते पर हुई बैठक में मौजूद रहे कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘वह बार-बार साथ काम करने की जरूरत पर जोर देने के साथ वह ये भी बता रहे हैं कि कैसे सभी दलों को एक समान नजरिया अपनाने की जरूरत है. वह इन बैठकों में बहुत आदरपूर्वक व्यवहार करते हैं, अन्य पार्टी के नेताओं से उनकी राय जानने की कोशिश करते हैं.’

पिछले हफ्ते राहुल ने कांग्रेस समेत 15 विपक्षी दलों के सांसदों की एक बैठक का नेतृत्व किया, ताकि यह रणनीति बनाई जा सके कि पेगासस मामले पर उन्हें कैसे एकजुट किया जाना है. सूत्रों ने बताया कि बैठक राज्यसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के संसद कक्ष में हुई थी, लेकिन इसमें पूरी जिम्मेदारी मुख्यत: राहुल गांधी ने ही संभाल रखी थी.

बैठक के बाद विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों ने एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस की, जिसे मुख्य तौर पर राहुल गांधी ने संबोधित किया, लेकिन उन्होंने इस पर जोर दिया कि अन्य नेता भी बोलें.

संसद में पेगासस पर चर्चा की जरूरत पर जोर देते हुए राहुल गांधी ने कहा, ‘एक कांग्रेस नेता के नाते सिर्फ मैं ही यह बात नहीं कह रहा हूं…हर विपक्षी नेता आपसे यही कहेगा.’

इसके बाद उन्होंने शिवसेना के संजय राउत और समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव जैसे अन्य नेताओं को मीडिया को संबोधित करने के लिए माइक दिया और कहा कि यह जरूरी है कि सभी पार्टियों के नेता बोलें.

लेकिन यह सब सिर्फ संसद के बाहर तक ही सीमित नहीं है. राहुल गांधी सदन के अंदर भी अन्य पार्टी के नेताओं तक संपर्क बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.

सदन में सोमवार को पेगासस पर चर्चा न होने को लेकर जारी हंगामे के बीच उन्हें रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन.के. प्रेमचंद्रन से विचार-विमर्श करते देखा गया.

प्रेमचंद्रन ने दिप्रिंट को बताया कि गांधी की ‘स्पष्ट और सक्रिय भागीदारी’ का स्वागत है.

प्रेमचंद्रन ने दिप्रिंट को बताया, ‘वह इन मुद्दों पर आम सहमति सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय नजर आ रहे हैं और अन्य विपक्षी नेताओं को भी चर्चा में शामिल कर रहे हैं. उन्होंने साइकिल यात्रा का प्रस्ताव दिया और उसका नेतृत्व भी किया…यह वाकई काबिले तारीफ है.’

मंगलवार को नाश्ते की बैठक के बाद गांधी और अन्य विपक्षी सांसद साइकिल से संसद तक गए थे.

कुछ पार्टियां नदारद रहीं

नाश्ते पर बुलाई गई बैठक में शामिल विपक्षी दलों के नेताओं ने इसमें नजर आई एकता को ‘अभूतपूर्व’ बताया.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता इलामाराम करीम ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह वास्तव में अभूतपूर्व है, जब इतने सारे विपक्षी दलों को समान उद्देश्य के लिए एक साथ लाया गया.’

हालांकि, उन्होंने कहा कि अब तक संसद के भीतर एकजुटता पर आम सहमति बनती रही है और इससे बाहर व्यापक स्तर पर राजनीतिक एकता एक कठिन कार्य होगा.

उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक एकजुटता पर कोई भी फैसला सभी राजनीतिक दलों के राष्ट्रीय नेताओं की तरफ से लिया जाएगा. राजनीतिक दलों के विचार और विचारधाराएं अलग-अलग है. ऐसे में संसद के बाहर एकजुटता कायम तो हो सकती है, लेकिन यह आसान काम नहीं होगा.’

हालांकि, एकजुटता के इस भव्य प्रदर्शन के दौरान सभी विपक्षी दल मौजूद नहीं थे. मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा), अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुसलमीन (एआईएमआईएम) गैरमौजूद रहकर अपने इरादे जता दिए थे.

कांग्रेस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि बसपा और आप को तो न्यौता दिया गया था लेकिन एआईएमआईएम को नहीं बुलाया गया था.

कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘आप और बसपा तो राहुल गांधी से दूरी बनाकर ही अपनी राजनीति करना जारी रखने की कोशिश कर सकते हैं ताकि उन्हें कांग्रेस से कमतर न आंका जाए. जहां तक एआईएमआईएम की बात है तो हमारी बैठकों में उसे कभी भी आमंत्रित नहीं किया जाता है, क्योंकि हमारी स्पष्ट राय है कि वे भाजपा की बी-टीम हैं.’

‘विपक्ष की प्रतिक्रिया में ज्यादा बदलाव आया’

विश्लेषकों का माना है कि राहुल गांधी के रवैये में जितना बदलाव आया है उससे कहीं ज्यादा बदलाव देश में बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच उनके बारे में अन्य विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया में आया है.

राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल की हार और दूसरी कोविड-19 लहर के बाद मोदी सरकार के बारे में आम धारण एक हद तक बदल गई है. कई विपक्षी नेता 2014 या 2019 को दोहरा पाने की उनकी क्षमताओं को लेकर सुनिश्चित नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘उन्हें ऐसा महसूस होने लगा है कि शायद कांग्रेस के साथ मिलकर मोदी को हराने में मदद मिल सकती है और अगर 2024 में कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनती है, तो उन्हें व्यक्तिगत तौर पर एक या दो मंत्री पद मिल सकते हैं.’

किदवई ने कहा कि मोदी पर सीधे हमला करने की राहुल गांधी की राजनीति—राफेल के दौरान हो या अब पेगासस मामले में—निरंतर वैसे ही चलती रही है. लेकिन विपक्ष अब उनकी राजनीति को अधिक गंभीरता से ले रहा है.


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