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Friday, 29 March, 2024
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कोविड और महंगाई जैसे मुद्दों के बीच जनता को पेगासस के बारे में समझाना मुश्किल: शशि थरूर

दिप्रिंट को दिए एक खास इंटरव्यू में थरूर ने कहा कि संसदीय स्थायी समिति ‘अमेरिकी कांग्रेस की कमेटी की तरह नहीं है’ और अपनी सीमित शक्तियों के साथ वो एक हद से आगे नहीं जा सकती.

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नई दिल्ली: कांग्रेस नेता और सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने कहा कि पेगासस स्पाईवेयर विवाद में, जिसमें मोदी सरकार पर सॉफ्टवेयर के ज़रिए दर्जनों कार्यकर्ताओं, पत्रकारों तथा राजनेताओं के फोन हैक करने का आरोप है, ‘कमेटी एक हद तक ही जा सकती है’,

थरूर ने ये भी माना कि विपक्ष के लिए ‘गोपनीयता भंग होने’ का मामला जनता को समझाना आसान नहीं होगा, जो उनके हिसाब से, ‘कोविड, तेल के बढ़ते दाम और महंगाई जैसे, अस्तित्व के संकट से जुड़े मुद्दों को लेकर ज़्यादा चिंतित हैं’.

दिप्रिंट के साथ एक खास इंटरव्यू में थरूर ने कहा कि संसदीय स्थायी समिति ‘अमेरिकी कांग्रेस की कमेटी की तरह नहीं है’ और अपनी सीमित शक्तियों के साथ वो एक हद से आगे नहीं जा सकती.

थरूर ने दिप्रिंट से कहा, ‘इसमें बिल्कुल कोई शक नहीं है कि कमेटी की अपनी सीमाएं हैं. मैं कोई और बहाना नहीं करूंगा. हम अमेरिकी कांग्रेस की कमेटी की तरह नहीं हैं, जिसके कुछ अधिकार हैं, जिनमें गवाहों को समन जारी करने का अधिकार भी शामिल है’.

‘वो कानून की अदालत की तरह हैं जो हम नहीं हैं. और ये एक बड़ा कारण है कि आईटी कमेटी का अध्यक्ष होने के नाते मैंने कहा है कि जितना हम कर सकते हैं उतना जरूर करेंगे. हम सरकार के सचिवों से केवल सवाल पूछ सकते हैं. लेकिन हम एक हद तक ही आगे बढ़ सकते हैं’.

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उन्होंने आगे कहा कि ‘कमेटी अपना काम करेगी’ और 28 जुलाई को होने वाली अपनी आगामी बैठक में ‘नागरिक, डेटा गोपनीयता और सुरक्षा’ के विषय के तहत, पेगासस मुद्दे पर चर्चा करेगी’.

लेकिन उन्होंने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक न्यायिक जांच कराए जाने का सुझाव दिया.

थरूर ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराई गई न्यायिक जांच से स्थापित हो सकता है कि इसका दुरुपयोग करने वालों ने कोई अपराध किया है. अगर सरकार कहती है कि उसने ऐसा नहीं किया, तो फिर ये काम किसी विदेशी एजेंसी ने किया है. वो भी उतना ही गंभीर मामला बन जाता है, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा’.

पिछले हफ्ते द वायर ने खबर दी थी कि कई दर्जन भारतीय लोगों को संभावित लक्ष्यों की सूची में रखा गया था, जिनके फोन हैक किए गए. इन लोगों में अन्य के अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी आदि शामिल थे.


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‘राफेल का कोई असर नहीं हुआ, गोपनीयता को समझाना मुश्किल होगा’

नागरिकों और विपक्षी नेताओं की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए पेगासस के संभावित दुरुपयोग के विषय पर बात करते हुए थरूर ने कहा कि ये ‘निजता के हनन’ का मामला है लेकिन इसकी गंभीरता को लोगों तक पहुंचाना आसान नहीं होगा.

थरूर ने कहा, ‘ये आसान नहीं है. और मैं इससे सहमत हूं कि भारतीय जनता के एक बड़े हिस्से ने, शायद इस बात की गंभीरता को पूरी तरह समझा नहीं है कि हो सकता है कि सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल अपने ही नागरिकों, अपने ही लोगों के खिलाफ किया हो, अगर ये साबित हो जाए’.

वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि ये कहना मुश्किल है कि क्या गोपनीयता या निजता जैसा मुद्दा आम जानता से जुड़ेगा.

उन्होंने कहा, ‘अब सवाल ये है कि क्या हम अपने प्रचार में जाकर इसे आम जनता को समझा सकते हैं, जबकि लोगों को ज़्यादा चिंता कोविड से उबरने, रोज़गार खोने और पेट्रोल तथा ईंधन की बढ़ती कीमतों की है, जिन्हें हम यकीनन अलग से उठा रहे हैं. क्या ये लोगों के बीच चलेगा? मुझे नहीं मालूम’.

खबर सामने आने के बाद एक हफ्ते से अधिक से कांग्रेस आगे बढ़कर मोदी सरकार को घेर रही है. राहुल गांधी ने मांग उठाई कि गृह मंत्री अमित शाह इस्तीफा दें और पीएम मोदी की भूमिका की जांच की जानी चाहिए.

लेकिन थरूर ने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले राफेल मुद्दे पर मोदी सरकार के खिलाफ राहुल गांधी के प्रचार का लोगों में ‘कोई खास असर नहीं हुआ था’.

उन्होंने कहा, ‘मुझे मानना होगा कि 2019 के चुनावों में राफेल से जुड़े विवाद उठाने के राहुल गांधी के प्रयासों का आम लोगों में कोई खास असर नहीं दिखा, क्योंकि ये कोई रोज़ी-रोटी का मसला नहीं था, जिससे उनके रोज़मर्रा के जीवन पर कोई असर पड़ता’.

लेकिन लोकसभा सांसद ने आगे कहा कि विपक्षी नेताओं का कर्तव्य है कि वो इन चिंताओं को उठाएं और ‘हमारे देश, हमारे संविधान और हमारे लोकतंत्र के सामने खड़े गंभीर खतरों से आगाह रहें’.


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‘किसी बाहरी देश की उस महिला में क्यों रूचि होगी जिसने पूर्व CJI पर आरोप लगाए’

पेगासस सॉफ्टवेयर की मदद से जिन लोगों के फोन हैक किए गए, उनमें कथित रूप से एक नाम उस महिला का भी है, जिसने पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. गोगोई अब राज्य सभा सदस्य हैं.

थरूर ने कहा कि जासूसी किए जाने वाले लोगों की सूची में उस महिला का नाम होना एक मिसाल है कि ‘ये कल्पना करना मुश्किल क्यों है कि इसके पीछे किसी बाहरी देश का हाथ होगा’.

उन्होंने कहा, ‘ये सोचना मुश्किल है कि किसी बाहरी देश की इस बेचारी महिला और उसके परिवार तथा दोस्तों में क्या दिलचस्पी हो सकती है. या उन बहुत से दूसरे लोगों में जिन्हें निशाना बनाया गया है. जबकि आप अच्छे से समझ सकते हैं कि सत्ताधारी पार्टी की दिलचस्पी उनमें क्यों हो सकती है’.

ये पूछने पर कि क्या उन्हें चिंता है कि लिस्ट में महिला का नाम मौजूद होना सुप्रीम कोर्ट की स्थिति को जटिल बना देता है और क्या इसमें हितों का टकराव होगा अगर वही इकाई मामले की जांच की अगुवाई करे, थरूर ने कहा कि ‘ये खुद सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर करता है’.

थरूर ने कहा, ‘रिटायरमेंट्स के साथ जजों की संख्या बदलती रहती है. इसलिए बहुत से जज जो सीधे जस्टिस गोगोई के साथ काम कर चुके हैं, अब ज़्यादा समय तक कोर्ट में नहीं रहेंगे और बहुत से रिटायर हो चुके हैं, जैसे वो खुद भी हुए हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘और अगर ऐसा होता है कि कोर्ट इस मामले की जांच के लिए किसी ऐसे जज को नियुक्त करती है, जिसे लगता है कि वो समझौता कर चुका है, तो वो जज हमेशा इस केस से खुद को अलग कर सकता है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘कोर्ट इतनी बड़ी संस्था है कि वो बिना इस अहसास के इस मामले से निपट सकती है कि चूंकि एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश इसमें शामिल थे, इसलिए वो खुद को योग्य साबित नहीं कर पाएगी’.


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‘करदाताओं के पैसे का घोर दुरुपयोग, अवैध’

थरूर ने आगे कहा कि अगर ये साबित हो जाता है कि विपक्षी नेताओं तथा अन्य लोगों की जासूसी के पीछे मोदी सरकार का हाथ था, तो ये ‘न केवल अनैतिक है बल्कि करदाताओं के पैसे का घोर दुरुपयोग भी है’.

उन्होंने कहा, ‘किसी को इस पर आपत्ति नहीं होगी अगर सरकार आतंकवादियों की गतिविधियों पर नज़र रखने या अपराध रोकने के लिए कानूनी तरीके से संचार को बीच में रोक ले लेकिन निजी नागरिकों के पास जिनमें विपक्षी राजनेता भी होते हैं, निजता का एक मौलिक अधिकार होता है…और सत्तारूढ़ पार्टी का पेगासस के ज़रिए अपने सियासी विरोधियों के बारे में जानकारी हासिल करना, जैसा कि राहुल गांधी या प्रशांत किशोर को निशाना बनाने से आभास होता है, न सिर्फ अनैतिक होगा बल्कि पक्षपाती राजनीतिक उद्देश्यों के लिए करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग भी होगा’.

थरूर ने ये भी कहा कि ये ‘गैर-कानूनी’ भी होगा क्योंकि 1885 के टेलीग्राफ एक्ट तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के अनुसार, कानून केवल कुछ विशेष प्रकार के इंटरसेप्शन की अनुमति देता है. उहोंने कहा, ‘इन दोनों (कानूनों) में भारत की संप्रभुता और अखंडता, देश की सुरक्षा या बाहरी देशों से दोस्ताना रिश्ते बनाए रखने के हित में इंटरसेप्शन की अनुमति दी गई है’.

नेता ने आगे कहा कि पेगासस का इस्तेमाल करना गैर-कानूनी होगा, जब तक कि इसे इस्तेमाल करने वाले अन्यथा साबित न कर दें.

उन्होंने आगे कहा, ‘वो कह सकते हैं कि हमें लगा कि प्रशांत किशोर चीन का खुफिया एजेंट है और हमने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ऐसा किया. अगर ये आरोप है तो अच्छा होगा कि वो ऐसा कहें, बिना ये दिखाए कि ये एक बेहद गंभीर अवैधता है. और मैं बहुत गंभीरता से आपसे कहूंगा कि ये भारतीय लोकतंत्र के लिए भी खतरा है. आखिरकार ये लिस्ट और भी बड़ी हो सकती है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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