नई दिल्ली: महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन की जड़ें तमिलनाडु में हैं. उनकी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रति “निष्ठा” और दुश्मनों का न होना राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए फायदेमंद साबित हुआ. रविवार को गठबंधन ने उन्हें 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव का उम्मीदवार घोषित किया.
तमिलनाडु की सियासी गलियारों में जहां बीजेपी मतदाताओं को लुभाने में बड़े पैमाने पर निवेश कर रही है और जहां राधाकृष्णन कभी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, उन्हें “अजातशत्रु” (जिसका कोई शत्रु न हो) कहा जाता है. उन्हें “कोयंबटूर का वाजपेयी” भी कहा जाता है क्योंकि वे (अटल बिहारी) वाजपेयी युग के पुराने नेता रहे हैं. इतना ही नहीं, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के साथ बीजेपी के रिश्तों पर उनकी राय सबसे सम्मानित मानी जाती है.
राधाकृष्णन ने कई मौकों पर केंद्र सरकार का समर्थन किया है और तमिल पहचान के मुद्दे पर अपनी बात साफ शब्दों में रखी है.
इसी साल मार्च में मुंबई में Hedgewar: A Definitive Biography नामक किताब के विमोचन के दौरान उन्होंने राज्य में भाषा विवाद पर बात की, जहां मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन “हिंदी थोपने” का विरोध कर रहे थे.
उन्होंने कहा, “तमिलनाडु में शब्द हथियार का काम करते हैं और अगर हम इसे और बांटते गए, तो यह ऐसा होगा जैसे शहर की बस में चढ़ने-उतरने के लिए पासपोर्ट दिखाना पड़े. यही हकीकत है.”
इसी तरह, 2023 में जब स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने सनातन धर्म पर टिप्पणी कर विवाद खड़ा किया, तब राधाकृष्णन ने सलेम में उन पर तंज कसते हुए कहा, “कई मुगल बादशाहों ने सनातन को खत्म करने और हिंदुओं को मारने की कोशिश की. मुझे तो यह मज़ाकिया लगता है कि जो सनातन ऐसे हमलों से बच गया, उसे उदयनिधि मिटा देंगे.”
ऐसे में, बीजेपी के लिए राधाकृष्णन को देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद यानी उपराष्ट्रपति के लिए चुनना मुश्किल नहीं था. दिप्रिंट से बात करते हुए बीजेपी के एक पदाधिकारी ने कहा, “पार्टी ने कई नामों पर विचार किया. साफ था कि नया उपराष्ट्रपति आरएसएस-बीजेपी कैडर से होगा, क्योंकि धनखड़ का प्रयोग अच्छा नहीं रहा था.”
यह इशारा जगदीप धनखड़ की तरफ था, जिन्होंने पिछले महीने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन असल वजह यह मानी गई कि उन्होंने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप में विपक्ष का महाभियोग नोटिस स्वीकार कर लिया था. यह कदम सरकार के खिलाफ “विद्रोह” माना गया.
बीजेपी के दूसरे नेता ने कहा, “तमिलनाडु में पार्टी ने बहुत मेहनत की है. पुराने नेताओं के विरोध के बावजूद अन्नामलाई को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और इससे विस्तार हुआ. चुनाव से पहले एआईएडीएमके से तालमेल के लिए उन्हें बदला गया. राधाकृष्णन तमिलनाडु बीजेपी के सबसे सम्मानित चेहरों में हैं. उन्हें उपराष्ट्रपति बनाकर पार्टी ने तमिलनाडु और पूरे दक्षिण भारत को संदेश दिया है.”
उन्होंने याद दिलाया कि दक्षिण में बीजेपी का विस्तार वाजपेयी युग में हुआ, जब वेंकैया नायडू को पार्टी अध्यक्ष, येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री और अनंत कुमार को मंत्री बनाया गया.
नेता ने कहा, “बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस निवेश को जारी रखा, जी. किशन रेड्डी, एल. मुरुगन और केरल के अभिनेता सुरेश गोपी को केंद्रीय मंत्री बनाया और राधाकृष्णन से लेकर एल. गणेशन तक को राज्यपाल का पद दिया. 2014 के बाद से ही केंद्र ने तमिलनाडु से पांच राज्यपाल चुने हैं.”
उन्होंने कहा, “जैसे दो दशक पहले वेंकैया नायडू की नियुक्ति ने आंध्र और तेलंगाना में पार्टी को बढ़ाया, वैसे ही राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति बनना तमिलनाडु में बीजेपी को ताकत देगा.”
बीजेपी के एक तीसरे नेता ने कहा, “जाति और तमिल पहचान के अलावा उनकी नियुक्ति का बड़ा कारण प्रधानमंत्री से उनकी नज़दीकी और निष्ठा है. धनखड़ प्रकरण के बाद निष्ठा और भी अहम हो गई है, खासकर राज्यसभा की भूमिका को देखते हुए.”
प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर एनडीए उम्मीदवार के तौर पर राधाकृष्णन का नाम घोषित करते हुए लिखा, “सार्वजनिक जीवन के लंबे वर्षों में थिरु सी.पी. राधाकृष्णन जी ने समर्पण, विनम्रता और बुद्धिमत्ता से खुद को अलग पहचान दी है. उन्होंने हमेशा समाज सेवा और वंचितों को सशक्त बनाने पर ध्यान दिया है. तमिलनाडु में जमीनी स्तर पर उन्होंने व्यापक काम किया है. मुझे खुशी है कि एनडीए परिवार ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार चुना है.”
एनडीए के बहुमत को देखते हुए, यह तय माना जा रहा है कि राधाकृष्णन आसानी से उपराष्ट्रपति बन जाएंगे. हालांकि, रविवार को संसदीय बोर्ड की बैठक में उनकी उम्मीदवारी ने राजस्थान, हरियाणा और गुजरात जैसे उत्तरी राज्यों से आने वाले कई दावेदारों को निराश किया.
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एक वफादार नेता
राधाकृष्णन, जो ओबीसी गोंडर समुदाय से आते हैं, उन्होंने 1973 में आरएसएस स्वयंसेवक के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी, जब स्वर्गीय सूर्यनारायण राव प्रचारक थे. एक साल बाद, वे भारतीय जनसंघ (जो बाद में बीजेपी बनी) की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य बन गए.
1996 में उन्हें तमिलनाडु बीजेपी का सचिव बनाया गया और 1998 में कोयंबटूर बम धमाकों के बाद पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए. 1999 में वाजपेयी के समय और वेंकैया नायडू व राजनाथ सिंह की अध्यक्षता के दौरान वे दोबारा लोकसभा पहुंचे. 2004 से 2007 तक उन्होंने तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के रूप में काम किया.
उनकी 1998 की चुनावी जीत एआईएडीएमके के साथ गठबंधन के दौरान हुई थी और 1999 की जीत डीएमके गठबंधन में. इसके बाद 2004 और 2014 में उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए.
राधाकृष्णन का एक अहम संगठनात्मक काम 19,000 किलोमीटर लंबी रथयात्रा थी, जो 93 दिनों तक चली. इस यात्रा का मकसद था – सभी नदियों को जोड़ना, आतंकवाद खत्म करना, समान नागरिक संहिता लागू करना, अस्पृश्यता दूर करना और नशीली दवाओं की समस्या से निपटना. इसके अलावा उन्होंने अलग-अलग मुद्दों पर दो और पदयात्राएं निकालीं.
2016 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, राधाकृष्णन को कॉयर बोर्ड ऑफ इंडिया का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने चार साल काम किया. महाराष्ट्र राजभवन के अनुसार, उनके नेतृत्व में भारत से कॉयर (नारियल रेशा) का निर्यात 2,532 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो अब तक का सबसे ज़्यादा था.
2020 से 2022 तक वे केरल में बीजेपी के ऑल-इंडिया प्रभारी रहे. इसके बाद उन्हें झारखंड, तेलंगाना का राज्यपाल और पुडुचेरी का उपराज्यपाल बनाया गया.
झारखंड के राज्यपाल बनने पर तमिलनाडु बीजेपी में यह अटकलें चलीं कि पार्टी आक्रामक शैली वाले अन्नामलाई के लिए रास्ता साफ करना चाहती है, लेकिन झारखंड के अपने कार्यकाल में राधाकृष्णन ने पूरे राज्य का व्यापक दौरा किया, जिससे जेएमएम नेता हेमंत सोरेन असहज हो गए.
राधाकृष्णन ने अक्सर अपने भाषणों में आरएसएस की तारीफ़ की है और संगठन से उनका गहरा जुड़ाव उनकी राजनीतिक तरक्की का अहम कारण माना जाता है. महाराष्ट्र में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने आरएसएस संस्थापक हेडगेवार के प्रभाव को याद किया.
उन्होंने कहा, “उन्होंने स्कूल के बच्चों से संगठन की शुरुआत की. लोग पूछते थे कि क्या ये छोटे-छोटे बच्चे हिंदू राष्ट्र बना सकते हैं, लेकिन उन्होंने कभी चिंता नहीं की. आज आरएसएस सबसे बड़े राष्ट्रीय संगठनों में से एक है, जो ऐसे लोग पैदा कर रहा है जो समाज और देश के लिए जीते हैं.”
इस साल मार्च में तमिलनाडु की भाषा विवाद पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि “अलगाववादी ताकतें” तमिलनाडु और पंजाब में अब भी सक्रिय हैं, भले ही अलग-अलग तरीकों से. उन्होंने कहा कि हेडगेवार द्वारा बताए गए एकता और एकीकरण के विचार आज पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक हैं.
हालांकि, अपनी बातों में राधाकृष्णन हमेशा सावधानी बरतते रहे हैं और कभी भी किसी लाल रेखा को पार नहीं किया.
एक कूटनीतिज्ञ
सी.पी. राधाकृष्णन की एक बड़ी ताकत यह मानी जाती है कि उनके दोस्त डीएमके और एआईएडीएमके—दोनों पार्टियों में हैं.
उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर डीएमके एक अजीब स्थिति में है. वजह यह है कि भले ही उन्होंने सनातन धर्म विवाद पर स्टालिन और उनके बेटे पर हमला बोला हो, लेकिन कई मौकों पर उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की भी तारीफ की है.
2019 लोकसभा चुनाव के बाद, जब डीएमके-कांग्रेस गठबंधन ने तमिलनाडु में बड़ी जीत दर्ज की थी, तब राधाकृष्णन ने स्टालिन को “वह कमांडर जिसने बीजेपी को हराया” कहा था. तिरुप्पुर में एक विवाह समारोह में उन्होंने यहां तक कहा कि “हम सब (बीजेपी में) को और ज़्यादा मेहनत करनी होगी, बिल्कुल वैसे ही जैसे (दिवंगत डीएमके नेता और स्टालिन के पिता) करुणानिधि करते थे.”
व्यावहारिक तौर पर भी राधाकृष्णन ने डीएमके से संवाद बनाए रखा. पिछले महीने जब खबर आई कि स्टालिन बीमार हैं, तो वह उनके घर जाकर उनका हालचाल लेने पहुंचे. पिछले साल अक्टूबर में जब स्टालिन के बहनोई एम. सेल्वम का निधन हुआ, तब भी वह सबसे पहले पहुंचने वाले नेताओं में से थे और परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की थी.
बीजेपी द्वारा एक ओबीसी तमिल नेता को उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाना, ओबीसी समुदाय को एक बड़ा राजनीतिक संदेश देने के रूप में भी देखा जा रहा है, खासकर पश्चिमी तमिलनाडु में. गोंडर समुदाय, जिसे राज्य की लगभग 10% आबादी माना जाता है, चुनावों में एक मज़बूत ताकत है. एआईएडीएमके नेता एडाप्पडी पलानीस्वामी, जो राज्य में बीजेपी के साथ गठबंधन की अगुवाई कर रहे हैं, गोंडर समुदाय से आते हैं और तमिलनाडु बीजेपी प्रमुख अन्नामलाई भी इसी समुदाय से हैं.
दिलचस्प बात यह है कि राधाकृष्णन लंबे समय से बीजेपी के लिए हिंदी के महत्व को समझते थे. एक पत्रकार, जो उन्हें काफी नज़दीक से जानते हैं, उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि “अन्य तमिल नेताओं के विपरीत, राधाकृष्णन को हिंदी भाषा की बीजेपी के लिए अहमियत अच्छी तरह पता थी. इसलिए जब भी वह दिल्ली जाते, तो हिंदी सीखने की क्लास ज़रूर लेते.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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