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Wednesday, 20 November, 2024
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अधिकारियों का निलंबन और वेतन में कटौती — क्या खट्टर शासन के नक्शेकदम पर चल रही है सैनी सरकार

दो संयुक्त आयुक्तों, दो उप नगर आयुक्तों और एक कार्यकारी अधिकारी को वेतन कटौती का सामना करना पड़ रहा है, जबकि पराली जलाने की घटनाओं को रोकने में विफल रहने के कारण 24 को निलंबित कर दिया गया है — और यह सब 20 दिनों के भीतर हुआ है.

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गुरुग्राम: निलंबन और वेतन कटौती के सिलसिले के साथ, हरियाणा में नायब सिंह सैनी सरकार ने मनोहर लाल खट्टर सरकार के तहत शुरू की गई अधिकारियों के खिलाफ सख्त, मौके पर कार्रवाई का सिलसिला जारी रखा है.

मुख्यमंत्री सैनी ने शनिवार को एक सरकारी योजना को लागू करने में देरी के लिए विभिन्न राज्य नगर निकायों में तैनात पांच अधिकारियों के 15 दिन के वेतन में कटौती का आदेश दिया. इसके अलावा, गुरुग्राम नगर निगम के एक क्लर्क को कथित तौर पर रिश्वत मांगने के आरोप में तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया.

यह कार्रवाई कृषि विभाग के 24 कर्मचारियों को उनके संबंधित क्षेत्रों में किसानों द्वारा धान की पराली जलाने पर रोक लगाने में विफल रहने के कारण निलंबित करने के कुछ दिनों के भीतर हुई.

इससे पहले, परिवहन मंत्री अनिल विज ने अक्टूबर में अंबाला कैंट बस स्टैंड पर अचानक छापा मारा था और अधिकारियों पर कार्रवाई करने के अलावा एक बस स्टैंड प्रभारी को निलंबित कर दिया था.

विज के लिए यह कोई नई बात नहीं थी, जो मौके पर निलंबन और गुस्से के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने जून 2023 में दिप्रिंट से कहा था कि उन्हें याद नहीं है कि उन्होंने कितने अधिकारियों को निलंबित किया है.

उन्होंने कहा, “मैंने कई कर्मचारियों को निलंबित किया है. जब भी मुझे लगता है कि कोई कर्मचारी जानबूझकर अपना काम ठीक से नहीं कर रहा है या लोगों को परेशान कर रहा है, तो मैं उसे नहीं छोड़ता.”

इसी तरह, उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री राव नरबीर सिंह ने पिछले महीने मंत्री का पदभार संभालने के बाद गुरुग्राम में एक बैठक के दौरान वरिष्ठ अधिकारियों को फटकार लगाई, जबकि डिप्टी स्पीकर कृष्ण मिड्ढा ने जींद में बिजली विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से गुस्से में कहा कि भविष्य में उनकी ओर से किसी भी तरह की चूक होने पर उन्हें वे नहीं बल्कि बिजली मंत्री (विज) बुलाएंगे.

सैनी को हटाए जाने से ठीक पहले, पूर्व सीएम खट्टर ने भी अधिकारियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था, उनमें से कुछ को निलंबित किया, कुछ को छुट्टी पर जाने के लिए मजबूर किया और कुछ के वेतन में कटौती का आदेश दिया. ऐसी कार्रवाई कभी-कभी पिछली सरकारों द्वारा भी की जाती थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने से पहले यह कम आम था.

दिल्ली में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) की शोधकर्ता ज्योति मिश्रा ने कहा कि भाजपा सरकार गलती करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करके सुशासन की मिसाल कायम करना चाहती है.

उन्होंने कहा, “गुड़गांव नगर निगम के चार अधिकारियों के वेतन में कटौती और एक के निलंबन सहित हाल ही में की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई इस प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है. पिछले हफ्ते कृषि विभाग के 24 अधिकारियों को पराली जलाने पर नियंत्रण न कर पाने के कारण निलंबित कर दिया गया था — जो वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.”

मिश्रा ने कहा कि सख्त कार्रवाई से जवाबदेही मजबूत होती है, लेकिन कर्मचारियों के लिए समर्थन और जवाबदेही को मिलाकर संतुलित दृष्टिकोण सार्वजनिक सेवा में निरंतर सुधार को बढ़ावा देने में अधिक प्रभावी हो सकता है.

दूसरी ओर, हरियाणा सिविल सेवा (एचसीएस) से पदोन्नत और अपने करियर में कई बार निलंबन का सामना करने वाले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी फतेह सिंह डागर ने कहा कि इस तरह की कार्रवाइयों से सरकार को कोई खास फायदा नहीं होता और संबंधित अधिकारी पर इसका कोई असर भी नहीं पड़ता.

उन्होंने कहा, “निलंबित होने के बाद, कर्मचारी को गुज़ारे भत्ते के तौर पर वेतन का 50 प्रतिशत मिलता है. अगर कर्मचारी छह महीने में बहाल नहीं होता है, तो भत्ता 75 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जाता है. जैसे ही अधिकारी को बहाल किया जाता है, उसे एक बार में ही बाकी वेतन बकाया मिल जाता है. जब तक व्यक्ति को कार्रवाई शुरू करने के लिए पर्याप्त कदाचार का दोषी नहीं पाया जाता है, जो कि आमतौर पर इन तात्कालिक निलंबनों के मामले में नहीं होता है, तब तक कार्रवाई किसी भी तरह से अधिकारी का सर्विस रिकॉर्ड खराब नहीं करती है.”


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पूर्व मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में निलंबन

डागर को पूर्व मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में तीन बार निलंबित किया गया था, जब वे एचसीएस अधिकारी थे. उन्होंने याद किया कि ओम प्रकाश चौटाला के मुख्यमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल (1989-1990) के दौरान उन्हें जिला पेंशन अधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया था, जो कि एचसीएस अधिकारी के लिए नहीं था.

उन्होंने कहा, “मैंने ज्वाइन करने से इनकार कर दिया क्योंकि जिला पेंशन अधिकारी के रूप में नियुक्ति मेरी गरिमा के खिलाफ थी और इसलिए मुझे निलंबित कर दिया गया. हालांकि, कुछ ही दिनों में मुझे बहाल कर दिया गया.”

डागर ने यह भी कहा कि भजन लाल के दूसरे कार्यकाल (1991-1996) के दौरान, जब वे 1992 में झज्जर में एसडीएम के पद पर तैनात थे, तो उन्हें एक विरोध स्थल पर जाने के लिए निलंबित कर दिया गया था क्योंकि उनके वरिष्ठ ने उन्हें बताया था कि सीएम ने उन्हें वहां नहीं जाने का आदेश दिया है.

उन्होंने कहा, “हालांकि, कुछ ही दिनों में मुझे बहाल कर दिया गया. मैंने अपने जवाब में कहा कि मजिस्ट्रेट को ऐसी जगह जाने से रोकने का कोई प्रावधान नहीं है, जहां आसन्न कानून-व्यवस्था की स्थिति की आशंका हो.”

इसी तरह, 1995 में भजन लाल के कार्यकाल के दौरान डागर को फिर से निलंबित कर दिया गया था, जब वे अस्वस्थता के कारण नई पोस्टिंग पर शामिल नहीं हो पाए थे.

उन्होंने बताया, “हालांकि, मैंने अपना मेडिकल सर्टिफिकेट जमा किया और मुझे बहाल कर दिया गया.”

सैनी की कार्रवाई

सैनी ने शनिवार को अधिकारियों के खिलाफ शहरी स्वामित्व योजना के संबंध में कार्रवाई की, जिसका उद्देश्य किराएदारों को नगरपालिकाओं की व्यावसायिक भूमि का स्वामित्व देना है, अगर वह 20 साल से अधिक समय से किराए या पट्टे पर चल रहे हैं.

हरियाणा सरकार की योजनाओं की निगरानी मुख्यमंत्री आवास पर सीएम डैशबोर्ड सेल से की जाती है. यह सेल फीडबैक के लिए लाभार्थियों से सीधे संपर्क करता है, जिसकी सीएम समय-समय पर व्यक्तिगत रूप से समीक्षा करते हैं. लागू किए जाने के बाद से नागरिकों से उनके अनुभव के बारे में पूछा गया है और अधिकारियों को इस फीडबैक के आधार पर आगे के निर्देश दिए जाते हैं.

शुक्रवार को शहरी स्वामित्व योजना पर फीडबैक मांगते समय, सीएम डैशबोर्ड सेल ने कुछ गंभीर मुद्दों की पहचान की. गुरुग्राम में एक मामले में, एक लाभार्थी पूरा भुगतान करने के बावजूद दो साल से इंतज़ार में था और एक क्लर्क संदीप कुमार ने कथित तौर पर इस काम को करने के लिए 50,000 रुपये की रिश्वत मांगी. मुख्यमंत्री ने तुरंत कुमार को निलंबित कर दिया.

अंबाला, सोनीपत और नूंह से मिली खबरों से पता चला है कि जिन नागरिकों ने एक साल पहले पूरा भुगतान कर दिया था, उन्हें अभी भी बार-बार दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं, क्योंकि शहरी स्वामित्व योजना के तहत उनके हस्तांतरण कार्य पूरे नहीं हुए हैं.

इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने तुरंत सभी जिम्मेदार अधिकारियों के 15 दिन के वेतन में कटौती करने का आदेश देते हुए कहा कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

राज्य सरकार के एक सूत्र के अनुसार, शहरी स्थानीय निकाय विभाग के आयुक्त और सचिव ने इसके बाद निम्नलिखित अधिकारियों के 15 दिन के वेतन में कटौती की: गुरुग्राम नगर निगम (एमसी) के संयुक्त आयुक्त अखिलेश यादव, अंबाला एमसी के संयुक्त आयुक्त पुनीत, अंबाला के उप नगर आयुक्त दीपक सूरा, सोनीपत के उप नगर आयुक्त हरदीप और नूंह एमसी के कार्यकारी अधिकारी अरुण नांदल.

यह भी निर्देश जारी किए गए कि पूरा भुगतान प्राप्त होने के दो दिनों के भीतर हस्तांतरण कार्य पूरा कर लिया जाए.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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