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शुक्रवार, 16 मई, 2025
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सुशील मोदी की असामयिक मृत्यु ‘वरिष्ठ पार्टी नेताओं’ के दुर्व्यवहार के कारण : BJP नेता अश्विनी चौबे

पूर्व राज्य मंत्री ने यह भी कहा कि मोदी बिहार के मुख्यमंत्री इसलिए नहीं बने क्योंकि ‘वे लव-कुश सामाजिक गठबंधन में फिट नहीं बैठते थे.’ भाजपा नेता का कहना है कि यह नेतृत्व पर दबाव बनाने का प्रयास है कि वे उन्हें और उनके बेटे को चुनाव में शामिल करें.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बिहार इकाई के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी की पहली पुण्यतिथि पर मंगलवार को उनके सहयोगी अश्विनी चौबे ने एक बड़ा धमाका किया. सुशील मोदी को राज्य के राजनीतिक माहौल को आकार देने में अहम भूमिका निभाने के लिए जाना जाता था. चौबे ने कहा कि मोदी की मौत “पार्टी के एक वरिष्ठ नेता द्वारा दुर्व्यवहार के कारण जल्दी हो गई”.

पटना के आईजीआईएमएस में मोदी को याद करने के लिए आयोजित एक सार्वजनिक समारोह में बोलते हुए चौबे ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि 72 साल की उम्र में कैंसर से मरने वाले मोदी जाति की राजनीति के कारण बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. मोदी ने उपमुख्यमंत्री और राज्य मंत्री का पद संभाला था.

बिहार के पूर्व मंत्री चौबे ने किसी का नाम लिए बिना कहा, “वरिष्ठ नेता द्वारा किए गए व्यवहार के कारण वह (मोदी) बहुत दुखी थे. वरिष्ठ नेता द्वारा दिए गए दर्द ने उनके स्वास्थ्य को प्रभावित किया और उन्हें कैंसर हो गया और उनकी मृत्यु हो गई. जो लोग कभी उनके सामने रोते थे, उन्होंने बाद में उनका अपमान किया.”

उन्होंने कहा, “सुशील मोदी बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए क्योंकि वे लव-कुश सामाजिक गठबंधन (अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रमुख समूह) और बिहार के यादव-मुस्लिम राजनीतिक समीकरण में फिट नहीं बैठते थे.”

उन्होंने दावा किया कि “सुशील मोदी ने मुझसे अपना दर्द साझा किया और मैंने उनके आंसू पोंछे.”

चौबे ने कहा, “आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आत्मा सब कुछ देख रही है.”

गुरुवार को दिप्रिंट से बात करते हुए चौबे ने 2000 के दशक की शुरुआत की एक बैठक को याद किया जब यह तय किया गया था कि मोदी बिहार का नेतृत्व कर सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मोदी उनके लिए भाई की तरह हैं.

उन्होंने कहा, “एक छोटी सी बैठक हुई जिसमें कैलाशपति मिश्रा, ताराकांत झा, सुशील मोदी, शत्रुघ्न सिन्हा और मैं मौजूद थे. (अटल बिहारी) वाजपेयी जी जानना चाहते थे कि बिहार में पार्टी का नेतृत्व कौन करे. हर नेता ने अपने सुझाव दिए.”

“मैंने वाजपेयी जी से कहा कि एक युवा नेता को आगे बढ़ाया जाना चाहिए जो बिहार को जानता हो और जेपी (जयप्रकाश नारायण) आंदोलन से आया हो. शत्रुघ्न सिन्हा और मैं सुशील मोदी के अधीन काम करने के लिए सहमत हुए. वे मुख्यमंत्री बन सकते थे. बाद में पार्टी के कुछ लोगों ने सुशील जी और मेरे बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश की, लेकिन हमारा रिश्ता भाइयों जैसा था.”

चौबे ने आगे कहा कि “जब सुशील मोदी को किनारे कर दिया गया, तो मैंने उनके दर्द और पीड़ा को महसूस किया. एक मौके पर, मैंने उनके आंसू भी पोंछे.” वह भाजपा के बड़े नेता थे, लेकिन पार्टी ने उनके साथ वैसा सम्मान नहीं किया, जिसके वह हकदार थे.

चौबे के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए भाजपा सूत्रों ने कहा कि वह विभिन्न कारणों से पार्टी से नाराज़ हैं और इसलिए वह बिहार चुनाव से पहले खासकर उच्च जाति के वोटों को नुकसान पहुंचाकर परेशानी पैदा करने के तरीके तलाश रहे हैं.

बीजेपी के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा, “चौबे एक प्रमुख ब्राह्मण नेता हैं और बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक माहौल को खराब कर सकते हैं. ऐसे समय में जब भाजपा मोदी की विरासत को रेखांकित करके वैश्य वोटों को एकजुट करना चाहती है, चौबे ने यह कहकर नैरेटिव को हवा दे दी है कि दिवंगत नेता को उनके समय में अपमानित किया गया था.”

उन्होंने कहा, “इस तरह चौबे बदला ले रहे हैं और नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं कि वह उन्हें और उनके बेटे को विधानसभा चुनाव में शामिल करे.”

भाजपा ने भी सार्वजनिक जीवन और पार्टी में मोदी के योगदान को याद करने के लिए मंगलवार को एक समारोह आयोजित किया था, लेकिन खास बात यह रही कि चौबे को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया. इस समारोह में राज्य इकाई के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, बिहार के दोनों उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा और कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे.

चौबे को बिहार सरकार द्वारा मोदी की याद में आयोजित एक अलग समारोह में भी आमंत्रित नहीं किया गया, जहां भाजपा एक सहयोगी है. यहां, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की कि राज्य हर साल आधिकारिक तौर पर सुशील मोदी की पुण्यतिथि मनाएगा और उनके सम्मान में एक प्रतिमा स्थापित की जाएगी.


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चौबे का सुशील मोदी को समर्थन

बतौर छात्र कार्यकर्ता अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले सुशील मोदी 1970 के दशक में जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे. उन्हें बिहार में भाजपा के उदय का श्रेय दिया गया और वे स्वर्गीय कैलाशपति मिश्रा के बाद राज्य के सबसे बड़े नेताओं में से एक बन गए.

उन्हें बिहार में लालू प्रसाद के शासन के दौरान भाजपा को एक आक्रामक विपक्षी दल बनाने के लिए भी जाना जाता था और बाद में जब भाजपा ने नीतीश कुमार के साथ गठबंधन किया तो वे उनके डिप्टी बन गए. उन्होंने आडवाणी-वाजपेयी युग के दौरान नीतीश के साथ एक सहज कामकाजी संबंध बनाए रखने में मदद की.

हालांकि, जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने भाजपा का नेतृत्व संभाला, तो सुशील मोदी का प्रभाव कम होने लगा. 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों के बाद, उन्हें डिप्टी सीएम के पद के लिए नहीं चुना गया. बाद में, उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया गया, लेकिन बिहार में भाजपा की राजनीति को आकार देने में उनके काम के बावजूद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया.

मंगलवार को आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए चौबे ने कहा कि लालू यादव-मुस्लिम वोटों के बल पर बिहार के सीएम बने, जबकि नीतीश लव-कुश सोशल केमिस्ट्री के बल पर आगे बढ़े. उन्होंने कहा, “यह बहुत दुखद है कि बिहार में बीजेपी एक मजबूत पार्टी होने के बावजूद राज्य में पार्टी से कोई सीएम नहीं बना.”

पिछले साल मोदी के निधन पर चौबे ने खुलकर रोते हुए उन्हें भाई बताया था. उन्होंने मीडिया से कहा, “सुशील मोदी सिर्फ मेरे दोस्त ही नहीं बल्कि मेरे भाई थे. मैंने आज अपने भाई को खो दिया है और मैं इस दर्द को बयां नहीं कर सकता. वह बहुत विनम्र और दयालु थे. उन्होंने पार्टी के लिए समर्पण के साथ काम किया. अगर वह कभी किसी पर गुस्सा होते थे, तो बाद में शांति से कहते थे कि ‘मैंने उस आदमी को उसकी आदतें सुधारने के लिए डांटा था’.”

‘बदला लेना’

बीजेपी ने पिछले साल चौबे को बक्सर से लोकसभा का टिकट देने से मना कर दिया था, जिसके बाद से उन्हें बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए विवाद पैदा करने वाला माना जा रहा है.

टिकट न मिलने पर उन्होंने कहा था कि ब्राह्मण होने की वजह से उन्हें दरकिनार किया गया है.

चौबे ने सार्वजनिक तौर पर कहा, “मेरा एकमात्र दोष यह है कि मैं परशुराम (ब्राह्मण) समुदाय से हूं. मैंने कभी कुछ नहीं मांगा. मैंने कभी हाथ नहीं बढ़ाया. मैं एक फकीर हूं और मैं ऐसी ही रेखा खींचना चाहता हूं. मेरा एकमात्र दोष यह है कि मैं परशुराम का वंशज हूं. मैं एक स्वाभिमानी ब्राह्मण हूं. मैं एक कर्मकांडी ब्राह्मण हूं. मैं संस्कारहीन नहीं हूं और मैं अपने मूल्यों को कभी नहीं छोड़ सकता.”

उन्होंने कहा, “मैं गिरगिट की तरह रंग नहीं बदलने वाला. मेरा एक ही रंग है — भगवा. यह भगवा रंग मेरी आखिरी सांस तक मेरे शरीर पर रहेगा. मैं पार्टी बदलने वालों में से नहीं हूं. मैं राम का भक्त हूं और राम के लिए काम करूंगा.”

भाजपा सूत्रों ने बताया कि बक्सर से मिथिलेश तिवारी को पार्टी के लोकसभा उम्मीदवार के रूप में उतारने के बाद हाईकमान ने चौबे को राज्यपाल बनाने का वादा किया था. हालांकि, चौबे के समर्थकों ने तिवारी के लिए काम नहीं किया, जिसके कारण बक्सर में भाजपा की हार हुई.

एक सूत्र ने बताया, “तब से चौबे ने भाजपा के लिए परेशानी खड़ी करने और बदला लेने के लिए हर मौके का इस्तेमाल किया है.”

पिछले महीने ही चौबे ने प्रस्ताव दिया था कि “एनडीए में उनके योगदान के कारण नीतीश कुमार को भारत का उप-प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए.”

उन्होंने तर्क दिया, “नीतीश कुमार ने लंबे समय तक एनडीए के साथ समन्वयक की भूमिका निभाई है. अगर उन्हें उप-प्रधानमंत्री का दर्जा दिया जाता है, तो यह बिहार के लिए गर्व की बात होगी.”

यह विचार बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन को पसंद नहीं आया और नीतीश की जेडी(यू) ने तुरंत प्रतिक्रिया दी. पार्टी प्रवक्ता ने मीडिया से कहा, “नीतीश कुमार फिर से सीएम बनेंगे और बिहार को नीतीश कुमार की ज़रूरत है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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