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Thursday, 21 November, 2024
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सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने शरद पवार बनाम अजित पवार गुट के बीच खोला एक और मोर्चा

सीनियर पवार ने अपने भाई के पोते, और अजित पवार के बेटे पार्थ की इस बात के लिए आलोचना की, कि उसने पार्टी लाइन के ख़िलाफ जाकर, सुशांत सिंह राजपूत की तथाकथित ख़ुदकुशी की सीबीआई जांच की.

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मुम्बई: एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत की सीबीआई जांच की मांग ने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार, और उनके भतीजे महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री अजित पवार के बीच बढ़ते टकराव को फिर सामने ला दिया है.

इसका तत्काल कारण था अजित पवार के बेटे पार्थ पवार का वो पत्र, जो उन्होंने महाराष्ट्र के गृहमंत्री और एनसीपी के सहयोगी नेता अनिल देशमुख को लिखा था, जिसमें उन्होंने राजपूत की मौत की सीबीआई जांच की मांग की थी. महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन की महाविकास अघाड़ी सरकार, जिसके भरोसेमंद सलाहकार शरद पवार हैं, इस मामले को सीबीआई को दिए जाने के सख़्त ख़िलाफ हैं.

पवार ने मंगलवार को पार्थ की मांग का असामान्य रूप से मुंहतोड़ जवाब दिया, और उन्हें ‘नासमझ’ क़रार देते हुए टीवी चैनलों से कहा: ‘हमें पार्थ पवार की राय की परवाह नहीं है. हम पूरी तरह महाराष्ट्र सरकार और मुम्बई पुलिस के साथ खड़े हैं’.

सुबह को ज़ाहिर उनके ग़ुस्से का नतीजा ये हुआ कि देर शाम तक उनके भतीजे अजित पवार उनके ‘संदेह दूर करने’ चाचा के आवास पर पहुंच गए. सूत्रों का कहना था कि शरद पवार का भड़कना, अजित पवार के लिए एक चेतावनी थी, कि वो अपने बेटे पर लगाम कसें जो अपने दादा की राय के खिलाफ अपने विचार ट्वीट कर रहा है.

राजनीतिक विश्लेषक प्रताप एसबे, जो तीन दशकों से भी अधिक से शरद पवार के साथ जुड़े रहे हैं, को लगता है कि पवार का भड़कना, उनके मिज़ाज के ख़िलाफ था. एसबे ने कहा, ‘वो हमेशा से संयमित रहे हैं, चाहे अपने विरोधियों की ही बात कर रहे हों. उनका भड़कना एक संकेत है कि वो बहुत ग़ुस्से में हैं. पार्थ के लिए संदेश ये है कि वो पार्टी के रुख़ का पालन करें और अजित पवार के लिए भी संदेश है कि अपने बेटे पर लगाम लगाएं’.

इससे कुछ दिन पहले, 5 अगस्त को पार्थ ने अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के भूमि पूजन का स्वागत किया था, जिसका पवार ने ये कहकर विरोध किया था कि इससे ‘कोरोनावायरस नहीं मरेगा‘.

दिप्रिंट ने कॉल्स और टेक्स्ट मैसेज के ज़रिए इस ख़बर पर प्रतिक्रिया लेने के लिए अजित पवार से संपर्क करना चाहा, लेकिन इस रिपोर्ट के छपने तक उनका कोई जवाब नहीं मिला था.


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चाचा और भतीजे के बीच बढ़ती खाई

शरद पवार पिछली सर्दियों में इसके गठन के बाद से ही एमवीए को चला रहे हैं और महाराष्ट्र सरकार में उनकी पार्टी के पास गृह मंत्रालय है. मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, एनसीपी प्रमुख के लगातार संपर्क में रहते हैं, जिन्हें वो अपना गुरु मानते हैं.

एमवीए सूत्रों के अनुसार इससे अजित पवार हाशिए पर खिसक गए हैं और उप-मुख्यमंत्री का पद ‘महज़ सजावट’ बनकर रह गया है. मार्च में लॉकडाउन लगाए जाने के बाद से, अजित मुम्बई और सरकार की सीट मंत्रालय से दूर ही रहे हैं और सीएम के साथ उनकी ज़्यादा बैठकें नहीं हुई हैं.

हाल ही के महीनों में शरद और अजित पवार के बीच की खाई और गहरी हो गई है और पार्टी सूत्र अजित पवार को एक ‘ज़िंदा टाइम बम’ बता रहे हैं.

एक सूत्र ने कहा, ‘उनके बेटे पर सार्वजनिक रूप से डांट पड़ने के व्यापक नतीजे होंगे. अपने चाचा की तरह वो भी एक चतुर राजनीतिज्ञ हैं और अपने समय का इंतज़ार करेंगे’.

रिश्तों में खटास तब आई जब अजित ने बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस से हाथ मिलाकर, पिछले साल 23 नवम्बर को सूरज उगने से पहले ही, डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली. ऐसे समय, जब शरद पवार शिवसेना और कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर, एक गठबंधन बना रहे थे.

अजित के इस कदम ने शरद पवार की साख को ज़बर्दस्त धक्का पहुंचाया और चाचा-भतीजे के बीच आपसी विश्वास घटा दिया.

लेकिन, एनसीपी लीडर छगन भुजबल ने पवार घराने में, ‘सत्ता संघर्ष’ की अटकलबाज़ियों को ख़ारिज किया और मीडिया से कहा कि चाचा-भतीजे के बीच सब कुछ ठीक है.

रिश्ते पहले ही ठंडे पड़ रहे थे

दोनों नेताओं के करीबी सूत्रों ने बताया कि हालांकि शरद पवार अजित के गुरू और मार्गदर्शक रहे हैं लेकिन दोनों के आपसी रिश्ते पिछले नवम्बर की घटनाओं से पहले ही ठंडे पड़ने लगे थे. अब शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले, जो पवार की पुरानी सीट बारामती से सांसद हैं, उनकी सियासी वारिस हैं.

एक एनसीपी विधायक ने दिप्रिंट को बताया, ‘अजित दादा को लगता है कि वे सियासी रूप से सीमित होकर रह गए हैं. ये पवार साहेब ही थे जो उन्हें राजनीति में लाए थे लेकिन अब उनका राजनीतिक रास्ता रोका जा रहा है. साहेब ने हमेशा किसी और को दादा के ऊपर चुना है, जो मुख्यमंत्री बनने के बिल्कुल योग्य हैं’. उन्होंने आगे कहा कि शरद पवार ने ‘दादा को अपना समर्थन तो दिया लेकिन उनका समर्थन सीमित ही था’.

दोनों के बीच रिश्तों की नरम-गरम प्रवृत्ति की जड़ें 1990 के दशक तक जाती हैं, जब अजित पवार ने सियासत की सीढ़ी चढ़ना शुरू ही किया था. हालांकि वो पुणे के सियासी मैदान में, अपना दबदबा क़ायम करना चाहते थे लेकिन शरद पवार ने, जो उस समय कांग्रेस के साथ थे, सुरेश कलमाड़ी का समर्थन किया जो वहां एक ताक़त बनकर उभरे.

1999 में जब शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी की स्थापना की, तो अजित का शुमार उभरते हुए नेताओं के एक मज़बूत गुट में होता था. ऊपर हवाला दिए गए विधायक ने कहा, ‘छगन भुजबल, जयंत पाटिल, आरआर पाटिल, सुनील ततकारे और विजय सिंह मोहिते पाटिल को, दूसरी पंक्ति के नेताओं के रूप में तैयार किया गया, जिनका क़द अजित दादा के प्रतिभार के तौर पर बढ़ा’.

उसी साल, जब कांग्रेस और एनसीपी ने महाराष्ट्र में एक गठबंधन सरकार बनाई तो शरद पवार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी कांग्रेस को दे दी, हालांकि अजित पवार उसमें दिलचस्पी रखते थे. विलासराव देशमुख ने पदभार संभाला और अजित पवार के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कते हुए, एनसीपी के छगन भुजबल को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया. राजनीतिक विवादों के चलते छगन भुजबल के, दो बार अपने पद से इस्तीफा देने के बाद भी, अजित के नाम पर कभी ग़ौर नहीं किया गया.

एक दूसरे सीनियर एनसीपी लीडर ने कहा कि 2010 में, आदर्श सोसाइटी घोटाले में आरोपों के बाद, जब अशोक चव्हाण ने सीएम पद से इस्तीफा दिया तो अजित फिर ये कुर्सी चाहते थे और एनसीपी के पास कांग्रेस से ज़्यादा सीटें थीं, इसलिए उनका सपना पूरा हो सकता था.

उसकी बजाय, ‘सत्ता संघर्ष को भांपकर शरद पवार ने ये कुर्सी फिर से कांग्रेस को दे दी’, जिससे पृथ्वीराज चव्हाण मुख्यमंत्री बन गए और अजित उनके डिप्टी. इस लीडर ने कहा कि ये ‘उचित नहीं’ था कि सीनियर पवार अजित को डिप्टी के पद पर धकेलते रहे, जबकि वो सीएम बनने में ‘सक्षम’ हैं.

पर कतरने से पैदा हुए मतभेद

एनसीपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना था कि लगातार पर कतरे जाने से, अजित पवार के अंदर विरोध और असंतोष पनपने लगा. अजित अपने गरमागरम, नकचढ़े और जल्दबाज़ी में किए गए कामों के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने अक्सर अपने चाचा के लिए शर्मनाक स्थिति पैदा की है- जैसे कि 8 अप्रैल 2013 को, जब उन्होंने भूख हड़ताल पर बैठे एक किसान का उपहास किया था, जो एक सूखा-प्रभावित ज़िले में उपलब्ध जल संसाधनों के, बेहतर प्रबंधन की मांग कर रहा था.

अजित पवार ने कहा था, ‘हम उसे कहां से पानी लाकर दें? क्या हम बांधों में पेशाब कर दें?’ इस बयान से पूरे महाराष्ट्र में हंगामा मच गया, जिसके लिए शरद पवार को मजबूरन माफी मांगनी पड़ी.

चाचा और भतीजे के बीच मतभेद 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले फिर सामने आए, जब अजित अपने बेटे पार्थ के लिए, पुणे की मावल सीट से टिकट चाहते थे. शरद पवार नौसीखिए पार्थ को चुनाव मैदान में नहीं उतारना चाहते थे. लेकिन अजित पवार ने अपने बेटे के चुनाव लड़ने पर ज़ोर दिया, इसलिए शरद पवार ने माधा सीट से चुनाव लड़ने का अपना मूल विचार त्यागने का फैसला कर लिया.

पार्थ 2 लाख से अधिक वोटों से मावल से हार गए, जिसने पवार के चुनाव में अजेय होने की धारणा को चुनौती दे दी.


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एक तीसरे एनसीपी लीडर ने बताया, ‘साहेब पार्थ की हार से परेशान हुए, जबकि दादा को लगा कि एनसीपी कार्यकर्ताओं ने, उनके बेटे की जीत के लिए मेहनत नहीं की. फिर वो जाकर देवेंद्र फडणवीस के साथ मिल गए. ऐसा लगता है कि दोनों के बीच में काफी ग़ुस्सा है’.

फिर बाद में, 2019 के महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों में, शरद पवार के एक दूसरे भाई का पोता रोहित राजेंद्र पवार, करजत-जामखेड़ विधान सभा सीट से जीत गया. एक अन्य पार्टी सूत्र ने कहा, ‘दादा को लगता है कि साहेब रोहित को आगे बढ़ा रहे हैं और पार्थ को किनारे किया जा रहा है’.

लेकिन, सूत्र ने आगे कहा: ‘ये अध्याय यहां ख़त्म नहीं हुआ है. दादा जवाब देंगे. वो इंतज़ार करेंगे लेकिन कुछ प्रतिक्रिया निश्चित है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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