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Sunday, 3 November, 2024
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‘सत्र पर सत्र’, ‘सत्र पर सत्र’ बीते लेकिन पिछले साढ़े तीन साल में सदन में नहीं दिखे सांसद सनी देओल

सिर्फ़ सनी देओल संसद से ग़ैर हाज़िर नहीं है बल्कि उनकी गुरुदासपुर  की जनता भी सनी देओल को साढ़े तीन सालों से ढूंढ रही है. विरोधी दलों के नेता कहते हैं कि सांसद बनने के बाद साढ़े तीन सालों में अंतिम बार कोविड के दौरान 2020 में सनी देओल को अपने क्षेत्र में देखा गया था.

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नई दिल्ली:

भारतीय न्याय प्रणाली पर सवाल उठाने वाले मशहूर फ़िल्म अभिनेता और गुरदासपुर से बीजेपी के सांसद सनी देओल का भारतीय संसद को भी उनकी हिस्सेदारी की तारीख का इंतज़ार है. अभी ख़त्म हुए संसद के शीतकालीन सत्र में भी उनकी उपस्थिति काफी कम रही. सत्रहवीं लोकसभा ख़त्म होने में महज़ डेढ़ साल का वक्त बचा है लेकिन सनी देओल की उपस्थिति अब तक बहुत ही कम रही है. पिछले साढ़े तीन सालों में पंजाब के गुरदासपुर से बीजेपी सांसद ने अपने क्षेत्र की जनता के लिए संसद में मात्र एक सवाल पूछा है जो अपने आप में किसी रिकॉर्ड से कम नहीं है.

संसद में सांसदों के द्वारा प्रश्न पूछने का राष्ट्रीय औसत 153 सवाल है लेकिन अभिनेता से नेता बने सनी देओल ने साढ़े तीन सालों में संसद में किसी भी बहस में हिस्सा नहीं लिया और न ही उन्होंने संसद में एक भी प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया है. जबकि यह दोनों ही चीजें किसी भी सांसद द्वारा सदन में अपनी आवाज़ उठाने और कानून बनाने की प्रक्रिया में हिस्सा लेने का माकूल संसदीय तरीका है.

सनी देओल ने पहला और अंतिम सवाल पिछले साढ़े तीन सालों में 2020 में संसद के बजट सत्र में पूछा था जो नदियों में गैरकानूनी ढंग से किए जा रहे बालू के उत्खनन से संबंधित था. उन्होंने उसके बाद भी सत्रहवीं लोकसभा के दो साल गुजर चुके हैं पर सनी देओल ने तब से कोई भी सवाल नहीं पूछा है. पंजाब में बालू माफिया का एक बड़ा नेटवर्क राज्य की जनता के लिए परेशानी का सबब है.

सनी देओल की सर्वाधिक उपस्थिति 2019 के शीतकालीन सत्र में 65 प्रतिशत थी, 2022 के बजट सत्र में उनकी उपस्थिति 11 प्रतिशत थी, और संसद में उनकी औसत उपस्थिति मात्र 21 फ़ीसदी है जबकि सांसदों की राष्ट्रीय औसत उपस्थिति 79 प्रतिशत है.

बेताब फ़िल्म से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत करने वाले सनी देओल अब तक सौ से अधिक फ़िल्में कर चुके हैं जिनमें घायल, डर, दामिनी, बॉर्डर, ग़दर ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल का ग़दर मचाया था, पर बतौर सांसद उनकी उपस्थिति का संसद और उनकी गुरुदासपुर जनता को अब भी इंतज़ार है. देओल ने साढ़े तीन सालों में संसद के किसी भी बहस में हिस्सा तो नहीं ही लिया जबकि इसी दौरान जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म करने से लेकर राष्ट्रीय नागरिकता संशोधन क़ानून, कोविड जैसे मुद्दों पर गर्मागर्म बहस संसद में हुई, सांसदों के बहस में शामिल होने का राष्ट्रीय औसत 39.4 प्रतिशत रहा.

लेकिन सभी में सनी नदारद रहे यही नहीं पिछले शुक्रवार को लोकसभा में पेश किए गए लोकसभा सांसदों के प्राइवेट मेंबर बिल पेश के दौरान भी सनी देओल का प्रदर्शन फिसड्डी रहा है. उन्होंने सांसद बनने के बाद आज तक कोई प्राइवेट मेंबर विधेयक पेश नहीं किया है जबकि राष्ट्रीय औसत 1.2 है.


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सनी देओल से बेहतर रिकॉर्ड है मां हेमा मालिनी का

लेकिन अगर वहीं हम नजर डालें उनकी सौतेली मां और मथुरा से सांसद हेमा मालिनी की उपस्थिति पर तो 74 साल की उम्र में हेमा मालिनी हर सत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करती रही हैं. वह समय समय पर अपने क्षेत्र में भी उपस्थित रहती हैं. हेमा सदन में 50 फीसदी उपस्थित रही हैं जबकि देओल की उपस्थित 21 फीसदी ही है. पिछले साढ़े तीन सालों में हेमा ने अब तक 74 सवाल पूछे हैं वहीं वो 17 बहस में हिस्सा ले चुकी हैं, जिनमें बजट के प्रावधानों के अलावा सरोगेसी विधेयक, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा, डाक्टरों की सुरक्षा के लिए क़ानून जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी भागीदारी से संसद में सक्रियता दिखाया और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर अपना भागीदारी दर्ज कराई .

विरोधी दल के नेता का नाम

सिर्फ़ सनी देओल संसद से ग़ैर हाज़िर नहीं है बल्कि उनकी गुरुदासपुर की जनता भी सनी देओल को साढ़े तीन सालों से ढूंढ रही है. अभी अक्टूबर के महीने में उनके लोकसभा क्षेत्र में नाराज़ जनता ने दीवारों पर गुमशुदा की तलाश नाम से उनके फ़ोटो चिपका दिये थे. विरोधी दलों के नेता कहते हैं कि सांसद बनने के बाद साढ़े तीन सालों में अंतिम बार कोविड के दौरान 2020 में सनी देओल को अपने क्षेत्र में देखा गया था.

विरोधी दल के नेता कहते हैं, ‘इन साढ़े तीन सालों में देओल ने इस इलाके में कोई भी विकास का काम नहीं किया और न ही केन्द्रीय योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचाया है. उन्होंने एक निजी प्रतिनिधि यहां के लिये नियुक्त किया था जो कभी कभार नज़र आते हैं. वो अपने को पंजाब का बेटा कहते हैं पर पंजाब कभी नहीं आते. ‘2020 में भी गुमशुदा सनी देओल के पोस्टर जब पठानकोट में लगे थे तो सनी देओल ने फ़ेसबुक पर वीडियो पोस्ट कर विरोधियों को जवाब देते हुए कहा कि विरोधियों को अपनी ऊर्जा मुझ पर नहीं बल्कि सामाजिक और विकास के काम कराने में खर्च करना चाहिये .

पंजाब बीजेपी के एक नेता कहतें है, ‘फ़िल्म अभिनेता को सांसद बनाने के अपने फायदे नुकसान हैं. उनकी लोकप्रियता के आधार पर जनता उन्हें वोट देकर जिता तो देती है पर राजनीति उनकी प्राथमिकता नहीं होती वो अपनी फ़िल्मी दुनिया से बाहर नहीं आ पाते, हम मुश्किल सीटों को जीतने के लिए इस रणनीति का इस्तेमाल करते हैं पर इसका नुकसान क्षेत्र की जनता को उठाना पड़ता है. यहां तक कि पंजाब विधानसभा के चुनाव के समय भी सनी देओल पार्टी के पक्ष में प्रचार करने से दूर ही रहे.’

सनी देओल के ट्विटर अकाउंट को भी देखें तो उनकी उपस्थिति अपनी हाल ही में रिलीज हुई फ़िल्म चुप के प्रमोशन और आने वाली फ़िल्म के प्रमोशन के अलावा कुछ नहीं है. जबकि हेमा मालिनी की बात करें तो उपस्थिति के अलावा मथुरा की सांस्कृतिक गतिविधियों और विकास के कामों को ज्यादा उठाते हुए दिखती है. पिछले हफ़्तों में उन्होंने रामकृष्ण मिशन के अस्पताल के उद्घाटन, तीरंदाजी प्रतियोगिता के मथुरा में उद्घाटन जैसे कार्यक्रमों में शिरकत कर जनता के बीच रहने में सामंजस्य स्थापित किया है.

हालांकि सनी देओल के करीबी कहतें है कि ‘फ़िल्म अभिनेता भले ज़्यादा समय मुंबई में गुज़ारते हैं पर गुरदासपुर के विकास कार्यों को कराने में उन्होंने कभी कोताही नहीं बरती है और समय मिलने पर संसद भी आते है.’

इस मामले में दिप्रिंट ने सनी देओल से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फ़ोन और मैसेज का जबाब नहीं दिया.

जीतने के बाद नहीं आते अभिनेता

सुनील जाखड़, जो अब बीजेपी में है पर 2019 के लोकसभा चुनाव में सनी देओल के सामने थे और 88,000 वोटों से चुनाव हार गए थे, वो दिप्रिंट से कहते हैं, ‘इसके लिये जनता को भी सोचना चाहिये, तब भी मैंने जनता से कहा था कि फ़िल्मी अभिनेता को जिताने के फ़ायदे हैं तो नुक़सान भी हैं. वो जीतने के बाद आएगा नहीं, पर जनता ने वोट देकर उन्हें जिता दिया और यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है जनता और लोकतंत्र को मज़बूत होना पड़ेगा ताकि ग़ैर ज़िम्मेदार लोगों को वोट देने से बचे.’

धर्मेन्द्र परिवार के तीन सदस्य राजनीति में क़िस्मत आज़मा चुके हैं ख़ुद सनी के पिता मशहूर अभिनेता धर्मेंद्र ने बीकानेर से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की थी. पर उन्होंने भी राजनीति को कभी गंभीरता से नहीं लिया, संसद में कभी कभार आना और अपने क्षेत्रों लगातार नदारद रहने पर उनके लापता होने के भी पोस्टर गाहे-बगाहे नज़र आते थे.

एक बार कुछ पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए संसद भवन में धर्मेंद्र ने स्वीकारा था, ‘उन्हें प्रमोद महाजन ने फंसा दिया राजनीति में आने के लिए, उन्हें नहीं पता था लोकसभा सांसद को इतनी मेहनत करनी पड़ती है.’ 2004 में जीतने के बाद धर्मेंद्र ने कभी दुबारा चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई. अकेले धर्मेन्द्र परिवार में हेमा मालिनी ही हैं जो फ़िल्मी कैरियर के बाद भी बीजेपी के चुनाव प्रचार के लिए अभी भी उपलब्ध रहती हैं और लोकसभा क्षेत्र में भी उपस्थिति दर्ज कराती रहती हैं.

(संपादन: अलमिना खातून)


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