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Sunday, 22 December, 2024
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कौन हैं आजसू पार्टी के सुदेश महतो जिनके सामने भाजपा ने अपना उम्मीदवार भी नहीं उतारा

रघुबार दास को दिया था समर्थन, विधानसभा चुनाव 2019 में भाजपा-आजसू सीटों के वितरण को लेकर एकमत नहीं हुए और अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं.

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रांची/नई दिल्ली: झारखंड में 2014 से लेकर 2019 तक भाजपा के मुख्यमंत्री रघुबर दास शासन करने में सफल रहे. 81 विधानसभा सीटों में भाजपा को 37 सीटें ही मिली थीं लेकिन आजसू यानी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन की 5 सीटों की मदद ने भाजपा की सरकार चला दी. झारखंड में पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई सरकार पांच साल तक चल पाई पर 2019 के चुनाव में भाजपा और आजसू के बीच सीटों के वितरण को लेकर सहमति नहीं बनी और अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं.

पर ये ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन क्या है?

इस संदर्भ में आजसू के मुख्य प्रवक्ता देव शरण भगत बताते हैं, ‘इसमें छात्रों और युवाओं की एनर्जी व बुद्धिजीवियों का दिमाग लगा है, इसलिए आज भी ये पार्टी स्टूडेंट यूनियन की तरह ऊर्जा से काम करती है. रही बात अलग चुनाव लड़ने की तो आजसू अब बच्चा नहीं रहा जिसे चलने के लिए सहारे जरूरत हो.’

एक अलग राज्य झारखंड के निर्माण के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा लंबे समय से प्रयास कर रहा था लेकिन वांछित सफलता नहीं मिल रही थी. 1977 में केन्द्र और बिहार दोनों में जनता पार्टी की सरकार आने के बाद भी झारखंड को प्रदेश के तौर पर जगह नहीं मिल रही थी. इस संदर्भ में 1986 का साल झारखंड के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. इस साल झारखंड के छात्रों ने आंदोलन में खुलकर हिस्सा लेना शुरू किया और ऑल इंडिया झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन बना लिया, जिसका एकमात्र उद्देश्य था झारखंड राज्य का निर्माण.


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डॉक्टर प्रसेनजीत घोष की किताब ‘पॉलिटिकल आइडेंटिटीज एंड डिलेमा इन झारखंड मूवमेंट’ में लिखा है कि आजसू ने छात्रों के लिए जगह बना दी. ये राज्य की मांग के लिए रेडिकल थे और हंगामा, आंदोलन, बंद, घेराव इत्यादि के माध्यम से अपना पक्ष मजबूती से रखते थे. एक्का और सिन्हा लिखते हैं कि जमशेदपुर में आजसू ने ‘नो झारखंड, नो इलेक्शन’ कैंपेन भी चलाया था. पीएम राजीव गांधी को ज्ञापन भी सौंपा.

बाद में ये मांग और बढ़ी और ऐसा कहा जाने लगा कि झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों को मिलाकर संपूर्ण किया जाए. घोष लिखते हैं कि 90 के दशक में झारखंड की मांग के अग्रणी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भाजपा के साथ हाथ मिला लिया और झारखंड को छोटानागपुर और संथाल परगना के क्षेत्रों तक सीमित किया गया.

क्रिस्टोफ जैफरलोट अपनी किताब ‘राइज ऑफ द प्लेबियन्स’ में लिखते हैं कि 80 के दशक में केन्द्र की कांग्रेस को झारखंड आंदोलन के बारे में को तब समझ पाई जब आजसू आई. इनके मुताबिक ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन की तर्ज पर आजसू को झारखंड मुक्ति मोर्चा के यूथ विंग के तौर पर 22 जून 1986 को स्थापित किया गया. आजसू के संस्थापक झारखंड की पुरानी राजनीति से तंग आ चुके थे और मिलिटेंट आंदोलन चाहते थे.

मई 1989 में आजसू ने 72 घंटे का बंद बुलाया. जून में 96 घंटे के बंद का आह्वान किया, इसके बाद केंद्र सरकार के गृहमंत्री और बिहार के सीएम को मीटिंग करनी पड़ी. झारखंड राज्य की मांग में आजसू का उदय एक मील का पत्थर था.

1989 के लोकसभा चुनावों में आजसू ने बहिष्कार करने का कैंपेन किया और हड़तालें भी कीं. शिबू सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आजसू का इस बॉयकाट में समर्थन नहीं किया और दोनों की राहें अलग हो गईं.

1990 में बिहार सरकार ने तय किया कि झारखंड एरिया ऑटोनोमस काउंसिल बनाया जाएगा. इसके बाद आजसू को राजनीतिक सच्चाई का सामना करना पड़ा. अंदरूनी कलहें हुईं और कई लोग टूटे-जुड़े. 1995 में बिहार सरकार ने अपना वादा पूरा किया. 90 सदस्यों वाली इस काउंसिल में 41 झामुमो (सोरेन) के सदस्य थे और 31 जनता दल के. आजसू ने इसमें धांधली का आरोप लगाते हुए शामिल होने से इंकार कर दिया.

जब लालू ने दिया सुदेश महतो को मंत्री पद का ऑफर

पर मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव बिहार विभाजन के लिए तैयार नहीं थे. 1998 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार आई और यहां से झारखंड बनने की दिशा में कदम रखे जाने लगे. कांग्रेस ने झारखंड का समर्थन किया साथ ही छत्तीसगढ़ की भी मांग रखी. 2000 में झारखंड एक अलग राज्य बन गया.  उस साल आजसू के पास विधानसभा में दो सीटें थीं. एक सीट 25 वर्षीय युवा सुदेश महतो की थी जो सिल्ली से विधायक थे. ये विधायक कुर्ता-पायजामा के बजाय जींस टीशर्ट भी पहनता था. उस साल भाजपा और आजसू एक साथ थे.

देव शरण बताते हैं कि लालू प्रसाद यादव ने सुदेश महतो से समर्थन के बदले मंत्री पद देने का वादा किया था. पर झारखंड के मुद्दे पर सुदेश ने इंकार कर दिया. झारखंड राज्य बनने के बाद सुदेश ने बाबूलाल मरांडी की पहली सरकार को समर्थन दिया और बदले में उन्हें मंत्री पद मिला. वह बाद में आजसू के प्रेसिडेंट बने.

सुदेश महतो 2000, 2005 और 2009 में सिल्ली से विधायक बनते रहे. 2009 में वो झारखंड के उप मुख्यमंत्री बने. दिप्रिंट से हुए साक्षात्कार में उन्होंने बताया, ‘इस दौरान मैंने अपनी पढ़ाई भी पूरी की. जब पहली बार विधायक बना तब मैं इंटर पास था. बाद में ओपन यूनिवर्सिटी से बीए और फिर एमए किया.’

वो आगे जोड़ते हैं, ‘हम झारखंड में अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहते हैं. राष्ट्रीय पार्टियां स्थानीय मुद्दों को समझने की कोशिश नहीं करतीं.’ नतीजों के साथ भाजपा के साथ गठबंधन पर सुदेश कोई साफ जवाब नहीं देते हैं लेकिन झारखंड भाजपा के जनरल सेक्रेटरी ने दिप्रिंट को दिए साक्षात्कार में बताया है कि आजसू के साथ उनका कोई मनभेद नहीं है. बता दें कि इस चुनाव में भाजपा ने सुदेश के खिलाफ अपना कैंडिडेट नहीं उतारा है.

आजसू का चुनावी रिकॉर्ड

2005 में आजसू 40 सीटों पर लड़ी और उसे मात्र 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. जबकि भाजपा 63 पर लड़कर 30 सीटें हासिल करने में कामयाब रही. 2009 के चुनाव में भाजपा 67 सीटों पर लड़ी और 18 सीटें बना ले गई. आजसू 54 सीटों पर लड़ी और मात्र 5 ही जीत पाई. 2014 में भाजपा 72 सीटों पर लड़ी और 37 सीटें निकाल लिया. वहीं आजसू 8 सीटों पर लड़ी और 5 सीटें जीत पाईं.

2014 में पहली बार आजसू ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था और सीटों का बंटवारा किया था. इसके पहले वह अलग ही चुनाव लड़ती थी, हालांकि चुनाव बाद भाजपा के साथ आ जाती थी. आजसू ने हर चुनाव में इतनी सीटें तो जीती ही हैं कि हर बार भाजपा को इनकी जरूरत पड़ती है. झारखंड में 5-6 सीटों को आजसू ने सत्ता की चाभी बना दिया है. इसी दम पर आजसू हमेशा किंगमेकर के तौर पर नजर आती है.


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सुदेश महतो को पहला झटका 2014 में लगा जब झारखंड मुक्ति मोर्चा के अमित महतो ने उन्हें उनके गढ़ सिल्ली में ही हरा दिया. बाद में अमित सरकारी अधिकारी के साथ मारपीट के आरोप में अभियुक्त बने तो वहां उपचुनाव हुए. इस चुनाव में भी सुदेश को अमित की पत्नी सीमा के हाथों हार का सामना करना पड़ा.

सुदेश महतो की साख सिल्ली में दांव पर लगी है और उन्होंने वहां जबर्दस्त चुनाव प्रचार किया है. इस बार ओबीसी रिजर्वेशन पर सुदेश उग्र रहे हैं. वो खुद भी ओबीसी हैं. आदिवासी समुदाय के लिए संथाल आंदोलन के नायक बिरसा मुंडा की जयंती पर वो समारोह करते रहे हैं और अपना जुड़ाव दिखाते रहे हैं. वहीं झारखंड आंदोलन के नेता विनोद बिहारी महतो के लिए भी समारोह करते हैं. आजसू के एक सक्रिय कार्यकर्ता का मानना है कि इस बार 12-13 सीटें पक्की हैं और 10-12 पर वो 50:50 मान के चल रहे हैं. वहीं भाजपा के एक प्रवक्ता ने बताया कि आजसू 5-7 सीटों पर रहेगी. झामुमो के प्रवक्ता ने अपने हाथों को उठाकर 5 का इशारा किया.

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